नैतिकता और नैतिक व्यवहार में क्या अन्तर है?


नैतिकता और नैतिक व्यवहार में अंतर

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने के लिए उसे कुछ नियमों, मूल्यों और मर्यादाओं का पालन करना होता है। इन्हीं नियमों और मूल्यों को नैतिकता कहा जाता है, और इनका पालन करके जो कार्य किया जाता है, उसे नैतिक व्यवहार कहा जाता है। इन दोनों शब्दों का गहरा संबंध है, परन्तु दोनों का अर्थ, उपयोग और प्रभाव अलग-अलग होता है। आइए इन दोनों को समझते हैं।

1. नैतिकता (Morality) क्या है?

नैतिकता एक सिद्धांतात्मक और वैचारिक व्यवस्था है, जो यह निर्धारित करती है कि क्या सही है और क्या गलत। यह एक प्रकार का मार्गदर्शक सिद्धांत होता है, जो समाज, संस्कृति, धर्म या किसी व्यक्ति के आत्मबोध के आधार पर तय होता है। नैतिकता स्थिर मूल्यों और आदर्शों पर आधारित होती है।

उदाहरण के लिए, सत्य बोलना, चोरी न करना, बुज़ुर्गों का सम्मान करना, हिंसा से दूर रहना आदि नैतिक मूल्यों के उदाहरण हैं। ये मूल्य हमें यह सिखाते हैं कि हमें जीवन में कैसे आचरण करना चाहिए। नैतिकता सामान्यतः समाज द्वारा स्वीकृत होती है, लेकिन कई बार यह व्यक्तिगत सोच पर भी आधारित हो सकती है।

नैतिकता समय, स्थान और समाज के अनुसार बदल भी सकती है। जो चीज़ एक समाज में नैतिक मानी जाती है, वह दूसरे समाज में अनैतिक मानी जा सकती है। उदाहरणस्वरूप, कुछ समाजों में विवाह से पहले संबंध अनैतिक माने जाते हैं, जबकि कुछ समाजों में यह सामान्य माना जाता है।

इसलिए नैतिकता एक आंतरिक दिशा-निर्देश की तरह है, जो यह तय करता है कि किसी परिस्थिति में कौन-सा विकल्प नैतिक रूप से उचित होगा।

2. नैतिक व्यवहार (Moral Behaviour) क्या है?

नैतिक व्यवहार का अर्थ है नैतिकता के सिद्धांतों को वास्तविक जीवन में अमल में लाना। यह वह क्रियात्मक पहलू है, जहाँ व्यक्ति अपने कार्यों और निर्णयों में नैतिक मूल्यों को अपनाता है।

यदि कोई व्यक्ति सत्य बोलने को नैतिक मानता है और वह सच में हर परिस्थिति में सच्चाई ही बोलता है, तो यह उसका नैतिक व्यवहार कहलाएगा। यानी, नैतिकता विचार है, और नैतिक व्यवहार उसका क्रियान्वयन है।

नैतिक व्यवहार समाज में व्यक्ति की छवि बनाता है। अगर कोई लगातार ईमानदारी से काम करता है, दूसरों की मदद करता है, न्याय के लिए खड़ा होता है, तो लोग उसे एक नैतिक व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं। वहीं अगर कोई व्यक्ति नैतिकता की बातें तो करता है, लेकिन खुद अमल नहीं करता, तो उसका व्यवहार अनैतिक माना जाएगा।

इसका एक और उदाहरण देखें – मान लीजिए एक व्यक्ति जानता है कि रिश्वत लेना अनैतिक है (यानी नैतिकता की समझ रखता है), लेकिन फिर भी वह रिश्वत लेता है। इसका मतलब यह है कि उसके विचारों में तो नैतिकता है, लेकिन उसका व्यवहार नैतिक नहीं है।

नैतिकता और नैतिक व्यवहार में मुख्य अंतर

पहलूनैतिकतानैतिक व्यवहार
स्वरूपवैचारिक और सिद्धांत आधारितव्यावहारिक और क्रियात्मक
आधारक्या सही और गलत है, यह तय करनानैतिक सिद्धांतों के अनुसार आचरण करना
दृष्टिकोणयह सोच और ज्ञान का विषय हैयह आचरण और क्रिया का विषय है
उदाहरण“झूठ बोलना गलत है” – यह नैतिकता है“झूठ न बोलना” – यह नैतिक व्यवहार है
स्थायित्वसमय और संस्कृति के अनुसार बदल सकता हैव्यक्ति विशेष की इच्छाशक्ति और परिस्थितियों पर निर्भर

इस प्रकार, नैतिकता और नैतिक व्यवहार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। नैतिकता विचारों का क्षेत्र है, जबकि नैतिक व्यवहार उन विचारों को जीवन में लागू करने का तरीका है।


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