मुद्रास्फीति (Inflation) का अर्थ है वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों का लगातार और सामान्य रूप से बढ़ते रहना। जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में समय के साथ-साथ वस्तुएँ और सेवाएँ महँगी होने लगती हैं, तो उसे मुद्रास्फीति कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में, जब एक उपभोक्ता को वही वस्तु खरीदने के लिए पहले से अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, तो इसका मतलब है कि मुद्रा की क्रय शक्ति (Purchasing Power) घट रही है। उदाहरण के लिए, अगर एक लीटर दूध आज ₹50 में मिलता है और कुछ महीनों बाद उसकी कीमत ₹60 हो जाती है, तो यह मुद्रास्फीति का संकेत है।
मुद्रास्फीति का मापन मुख्यतः उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index – CPI) और थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index – WPI) के ज़रिए किया जाता है।
अब जानते हैं मुद्रास्फीति के दो प्रमुख कारण:
1. माँग खींची मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation)
इस प्रकार की मुद्रास्फीति तब होती है जब किसी अर्थव्यवस्था में कुल माँग (Aggregate Demand) उसकी कुल आपूर्ति (Aggregate Supply) से अधिक हो जाती है। यानी लोग वस्तुएँ और सेवाएँ ज़्यादा खरीदना चाहते हैं, लेकिन बाज़ार में उनके लिए पर्याप्त माल उपलब्ध नहीं होता। परिणामस्वरूप कीमतें बढ़ जाती हैं।
यह स्थिति कई कारणों से उत्पन्न हो सकती है:
- उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि: यदि लोगों की आमदनी बढ़ती है तो उनका खर्च करने की क्षमता भी बढ़ जाती है, जिससे वस्तुओं की माँग बढ़ती है।
- सरकारी खर्च में वृद्धि: अगर सरकार सार्वजनिक कल्याण या निर्माण कार्यों में ज़्यादा खर्च करती है, तो बाज़ार में माँग बढ़ जाती है।
- निर्यात में वृद्धि: जब किसी देश के उत्पादों की माँग विदेशों में बढ़ जाती है, तो देश के अंदर आपूर्ति घटती है और कीमतें ऊपर जाती हैं।
- मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि: अगर देश में नकद पैसे की उपलब्धता बढ़ जाती है, तो लोग ज़्यादा खरीदारी करने लगते हैं और माँग बढ़ जाती है।
उदाहरण के लिए: त्योहारी सीज़न में इलेक्ट्रॉनिक सामान की माँग बढ़ जाती है। यदि आपूर्ति स्थिर रहती है, तो कंपनियाँ कीमतें बढ़ा देती हैं – यह माँग खींची मुद्रास्फीति है।
2. लागत प्रेरित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation)
यह मुद्रास्फीति उत्पादन की लागत बढ़ने के कारण होती है। यदि किसी वस्तु को बनाने में उपयोग होने वाले कच्चे माल, मजदूरी, बिजली, परिवहन आदि की लागत बढ़ जाती है, तो उस वस्तु की बिक्री मूल्य भी बढ़ाना पड़ता है। इससे बाज़ार में वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं।
लागत बढ़ने के कारणों में शामिल हैं:
- कच्चे माल की कीमत में वृद्धि: जैसे पेट्रोल, डीज़ल, लोहा, स्टील आदि की कीमतें बढ़ना।
- मजदूरी में वृद्धि: यदि श्रमिकों को अधिक वेतन देना पड़े, तो उत्पादक अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ा देते हैं।
- करों में वृद्धि: अगर सरकार वस्तुओं पर कर बढ़ा देती है, तो उत्पादकों को लागत में वृद्धि झेलनी पड़ती है।
- आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि: कई बार विदेशी बाज़ारों से आने वाली वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं, जिससे घरेलू उत्पाद भी महँगे हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए: यदि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें बढ़ जाती हैं, तो भारत जैसे देश में पेट्रोल और डीज़ल महँगा हो जाता है। इससे ट्रांसपोर्ट महँगा होता है और बाकी चीज़ों की कीमत भी बढ़ जाती है – यह लागत प्रेरित मुद्रास्फीति है।
इन दोनों कारणों के अलावा भी कुछ अन्य कारण होते हैं जैसे – मुद्रा आपूर्ति में अत्यधिक वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखला में बाधा, प्राकृतिक आपदाएँ, युद्ध या राजनीतिक अस्थिरता। लेकिन मुख्यतः मुद्रास्फीति को समझने के लिए माँग खींची और लागत प्रेरित मुद्रास्फीति को ही मूल कारणों के रूप में देखा जाता है।
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