Samas in Hindi | Samas समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण

जय हिंद! इस पोस्ट में आज हमलोग समास, समास के परिभाषा, समास के भेदों को उदाहरण के साथ बिल्कुल आसान भाषा में समझेंगे। समास की परिभाषा (Samas ki paribhasha) Samas kise kahate hain, समास के भेद उदाहरण सहित। Samas ke kitne bhed hote hain.

समास की परिभाषा (Samas ki paribhasha)

अनेक पदों को मिलकर एक पद बन जाना समास कहलाता है।

समास का अर्थ है – संक्षेप अर्थात् छोटा रूप , अर्थात् जब दो या दो से अधिक पदों से मिलकर जो नया और छोटा पद बनता है, उसे समास कहते है।

या , दो या दो से अधिक पदों को मिलकर एक पद बन जाना समास कहलाता है।

उदाहरण :-

  • राधा – कृष्ण = राधा और कृष्ण ।
  • नवरत्न = नव रत्नों का समूह।
  • गंगाजल = गंगा का जल।
  • चंद्रमुख = चंद्रमा के समान मुख।
  • लम्बोदर = लम्बा है जिसका उदर वह अर्थ गणेश।
  1. समास का अर्थ संक्षेप होता है।
  2. समास को तोड़ने को प्रक्रिया विग्रह कहलाती है।
  3. समास का विपरितर्थक/विलोम शब्द व्यास होता है।
  4. पदों को मिलने से जो पद बनाता है उसे समस्तपद कहा जाता है।

समास रचना में प्रायः दो पद होते हैं। पहले को पूर्वपद और दूसरे को उत्तरपद कहते हैं;

जैसे- ‘राजपुत्र’ में पूर्वपद ‘राज’ है और उत्तरपद ‘पुत्र’ है।

समास प्रक्रिया में पदों के बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं,

जैसे-राजा का पुत्र = राजपुत्र । यहाँ ‘का’ विभक्ति लुप्त हो गई है।

इसके अलावा कई शब्दों में कुछ विकार भी आ जाता है; जैसे-काठ की पुतली = कठपुतली (काठ के ‘का’ का ‘क’ बन जाना); घोड़े का सवार = घुड़सवार (घोड़े के ‘घो’ का ‘घु’ बन जाना) ।

वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नहीं बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं।

समास के प्रकार (Samas ke bhed)

समास छः प्रकार के होते है –

1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. द्वन्द्व समास
4. बहुब्रीहि समास
5. द्विगु समास
6. कर्म धारय समास

अव्ययीभाव समास (Avyayibhav Samas)

जिस समास में प्रथम पद अव्यय, अन्य पद संज्ञा आदि हों, समस्तपद अव्यय की तरह बन जाता हो और अर्थ की दृष्टि से पूर्वपद की प्रधानता हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।

अव्ययीभाव समास द्वारा बने समस्त पदों का रूपान्तर नहीं होता अर्थात् लिंग, वचन और विभक्ति का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

पहचान के नियम:–

  1. यदि समस्तपद के आरंभ में उप, नि, अन, अति,भर, निर्, प्रति, यथा, बे, आ , उप, यावत्, अधि, अनु आदि उपसर्ग/अव्यय हों। समस्तपद वाक्य में क्रियाविशेषण का काम करे। वे अव्ययीभाव समास होते हैं।

जैसे- यथाशक्ति, प्रत्येक, उपवन, निर्विवाद अनुरूप, आजीवन आदि ।

बनाने का नियम :-

  • उप = शब्द के समीप।
  • नि/निर् = बिना शब्द के।
  • प्रति = हर शब्द या प्रत्येक शब्द।
  • बे = बिना शब्द के।
  • अन = बिना शब्द हुए।
  • भर = शब्द भरकर।
  • यथा = जितना शब्द हो या शब्द के अनुसार।
  • अति = शब्द की अधिकता।
  • अनु = शब्द के अनुसार।
  • आ = शब्द भर / तक।

उदाहरण :–

  • उपनगर = नगर के समीप
  • निडर = बिना डर के।
  • भरपेट = पेट भरकर।
  • अनजान = बिना जाने हुए।
  • अनुरूप = रूप के अनुसार।
  • आजीवन = जीवन भर।
  • अनदेखा = बिना देखे हुए।
  • बेकाम = बिना काम के।
  • आमरण = मरण तक।
  • प्रतिदिन = प्रत्येक दिन।

तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)

जिस समास में उत्तरपद अर्थात् अन्तिम पद के अर्थ की प्रधानता होती है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।

उदाहरण :-

  • देशभक्ति = देश के लिए भक्ति।
  • राजपुत्र = राजा का पुत्र।
  • राहखर्च = राह के लिए खर्च
  • तुलसीदासकृत = तुलसीदास के द्वारा कृत
  • राजमहल = राजा का महल
  • गंगाजल = गंगा का जल

तत्पुरुष समास के छः भेद हैं –

  1. कर्म तत्पुरुष
  2. करण तत्पुरुष
  3. संप्रदान तत्पुरुष
  4. अपादान तत्पुरुष
  5. संबंध तत्पुरुष
  6. अधिकरण तत्पुरुष

1. कर्म तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। ‘को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘को’ के लोप से यह समास बनता है।

उदाहरण:–

  • ग्रंथकार = ग्रन्थ को लिखने वाला।
  • कृष्णार्पण  = कृष्ण को अर्पण।
  • नेत्र सुखद  =  नेत्रों को सुखद।
  • रथचालक = रथ को चलने वाला।
  • वनगमन = वन को गमन।
  • जेब कतरा = जेब को कतरने वाला।
  • प्राप्तोदक =  उदक को प्राप्त।
  • ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ।
  • चिड़ीमार = चिड़िया को मारनेवाला।
  • सिरतोड़ = सिर को तोड़नेवाला।
  • स्वर्गप्राप्त =  स्वर्ग को प्राप्त।
  • माखनचोर  = माखन को चुराने वाला।
  • मुंहतोड़  = मुंह को तोड़ने वाला।
  • गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला।
  • शत्रुघ्न = शत्रु को मारने वाला।
  • जनप्रिय = जन को प्रिय।

2. करण तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के द्वारा’ और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं। ‘से’ और ‘के द्वारा’ के लोप से यह समास बनता है।

उदाहरण :–

  • वाल्मिकिरचित = वाल्मीकि के द्वारा रचित।
  • शोकाकुल = शौक से आकुल।
  • कष्टसाध्य = कष्ट से साध्य।
  • मनमाना = मन से माना हुआ।
  • स्वरचित = स्व द्वारा रचित।
  • शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त।
  • भुखमरी = भूख से मरी।
  • धनहीन = धन से हीन।
  • बाणाहत = बाण से आहत।
  • ज्वरग्रस्त = ज्वर से ग्रस्त।
  • मदांध = मद से अँधा।
  • रसभरा = रस से भरा।
  • भयाकुल = भय से आकुल।
  • आँखोंदेखी = आँखों से देखी।
  • सूररचित = सूर द्वारा रचित।
  • करुणापूर्ण = करुणा से पूर्ण।
  • ईश्वर प्रदत्त = ईश्वर द्वारा प्रदत्त।
  • तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित।
  • रोग पीड़ित = रोग से पीड़ित।
  • मनगढ़ंत = मन से गढ़ा हुआ।
  • रेखांकित = रेखा के द्वारा अंकित।

3. संप्रदान तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के लिए’ होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘के लिए’ का लोप होने से यह समास बनता है।

उदाहरण:–

  • सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह।
  • विद्यालय =विद्या के लिए आलय।
  • रसोईघर = रसोई के लिए घर।
  • सभाभवन = सभा के लिए भवन।
  • विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह।
  • गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा।
  • प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला।
  • देशभक्ति = देश के लिए भक्ति।
  • स्नानघर = स्नान के लिए घर।
  • सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह।
  • यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला।
  • डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी।
  • देवालय = देव के लिए आलय।
  • गौशाला = गौ के लिए शाला।
  • देशार्पण = देश के लिए अर्पण।
  • विद्यालय = विद्या के लिए आलय।
  • हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी।
  • सभाभवन = सभा के लिए भवन।
  • लोकहितकारी = लोक के लिए हितकारी।

4. अपादान तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘से अलगाव’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘से’ का लोप होने से यह समास बनता है।

उदाहरण:–

  • पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट।
  • देशनिकाला = देश से निकाला।
  • पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट।
  • पदच्युत =पद से च्युत।
  • जन्मरोगी = जन्म से रोगी।
  • कामचोर = काम से जी चुराने वाला।
  • दूरागत =दूर से आगत।
  • रणविमुख = रण से विमुख।
  • नेत्रहीन = नेत्र से हीन।
  • पापमुक्त = पाप से मुक्त।
  • रोगमुक्त = रोग से मुक्त।
  • ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त।
  • धनहीन = धन से हीन।
  • गुणहीन = गुण से हीन।
  • विद्यारहित = विद्या से रहित।
  • पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट।
  • जीवनमुक्त = जीवन से मुक्त।
  • बंधनमुक्त = बंधन से मुक्त।
  • दूरागत = दूर से आगत।
  • जन्माँध = जन्म से अँधा।
  • नेत्रहीन = नेत्र से हीन।
  • जलहीन = जल से हीन।
  • जन्मांध = जन्म से मुक्त।
  • आदिवासी = आदि से वास करने वाला।
  • इन्द्रियातीत = इन्द्रियों से अतीत।
  • नरक भय = नरक से भय।
  • राजद्रोह = राज से द्रोह।
  • हृदयहीन = हृदय से हीन।
  • आशातीत = आशा से परे।

5. संबंध तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच में संबंध कारक छिपा होता है। संबंध कारक के चिन्ह या विभक्ति ‘का, ‘के, ‘की’ होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘का, ‘के, ‘की’ आदि का लोप होने से यह समास बनता है।

उदाहरण:–

  • राजसभा = राजा की सभा।
  • सुखयोग = सुख का योग।
  • शिवालय = शिव का आलय।
  • देशरक्षा = देश की रक्षा।
  • सीमारेखा = सीमा की रेखा।
  • राजपुत्र = राजा का पुत्र।
  • दुर्वादल =दुर्व का दल।
  • देवपूजा = देव की पूजा।
  • आमवृक्ष = आम का वृक्ष।
  • राजकुमारी = राज की कुमारी।
  • जलधारा = जल की धारा।
  • भूदान = भू का दान।
  • राष्ट्रगौरव = राष्ट्र का गौरव।
  • राजसभा = राजा की सभा।
  • जलधारा = जल की धारा।
  • भारतरत्न = भारत का रत्न।
  • पुष्पवर्षा = पुष्पों की वर्षा।
  • उद्योगपति = उद्योग का पति।
  • पराधीन = दूसरों के आधीन।
  • सेनापति = सेना का पति।
  • राजदरबार = राजा का दरबार।
  • देशरक्षा = देश की रक्षा।
  • गृहस्वामी = गृह का स्वामी।
  • अक्षांश = अक्ष का अंश।
  • स्वतंत्र = स्व का तंत्र।
  • फुलवाड़ी = फूलों की बाड़ी।
  • सौरमंडल = सूर्य का मण्डल।
  • अमचूर = आम का चूर।
  • सेनाध्यक्ष = सेना का अध्यक्ष।
  • मंत्रिपरिषद = मंत्रियों की परिषद्।
  • अश्वमेध = अश्व का यज्ञ।
  • मनोविज्ञान = मन का विज्ञान।
  • गंगाजल = गंगा का जल।
  • लोकतंत्र = लोक का तंत्र।
  • आमवृक्ष = आम का वृक्ष।
  • राजकुमारी = राज की कुमारी।
  • जलधारा = जल की धारा।
  • राजनीति = राजा की नीति।
  • सुखयोग = सुख का योग।
  • मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा।
  • सीमारेखा = सीमा की रेखा।

6. अधिकरण तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘में, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘में’ और ‘पर’ का लोप होने से यह समास बनता है।

उदाहरण:–

  • जलसमाधि = जल में समाधि।
  • कार्य कुशल =कार्य में कुशल।
  • वनवास =वन में वास।
  • ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति।
  • आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास।
  • दीनदयाल = दीनों पर दयाल।
  • दानवीर = दान देने में वीर।
  • आचारनिपुण = आचार में निपुण।
  • जलमग्न =जल में मग्न।
  • सिरदर्द = सिर में दर्द।
  • क्लाकुशल = कला में कुशल।
  • शरणागत = शरण में आगत।
  • आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न।
  • आपबीती =आप पर बीती।
  • गृहप्रवेश : गृह में प्रवेश।
  • पर्वतारोहण  : पर्वत पर आरोहण।
  • ग्रामवास : ग्राम में वास।
  • आपबीती : आप पर बीती।
  • जलसमाधि : जल में समाधि।
  • जलज : जल में जन्मा।
  • नीतिकुशल : नीति में कुशल।
  • नरोत्तम : नारों में उत्तम।
  • गृहप्रवेश : गृह में प्रवेश।

तत्पुरुष समास के उपभेद (Tatpurush samas ke upbhed)

  1. नञ् तत्पुरुष समास
  2. उपपद तत्पुरुष समास
  3. लुप्तपद तत्पुरुष समास
  4. प्रादी तत्पुरुष समास

1. नञ् समास

जिस समास का पहला पद नकारात्मक होता है उसे नञ् समास कहते हैं।

बनाने का नियम

  • अ = न
  • अन = न अ

उदाहरण:

  • असभ्य = न सभ्य
  • अनादि = न आदि
  • असंभव = न संभव
  • अनंत = न अंत

2 उपपद तत्पुरुष समास

जिस तत्पुरुष समास में प्रथम पद संज्ञा या अव्यय हो तथा दूसरा पद धातु से बना हुआ ऐसा सुबंत हो , जिसका प्रयोग स्वतंत्र न होता हो उसे उपपद तत्पुरुष समास कहते हैं।

बनाने का नियम :

पूर्व पद + को/में/से (कारक चिह्न) + उत्तर पद की क्रिया का विस्तृत रूप (वाला/वाली/वाला है)

उदाहरण:

  • जलद = जल को देने वाला (बादल)
  • पंकज = पंक (कीचड़) में जन्म लेने वाला (कमल)
  • नभचर = नभ (आकाश) में विचरण करने वाला (पक्षी)
  • सर्वज्ञ = सब कुछ जानने वाला
  • हितकर = हित को करने वाला
  • कुंभकार = कुंभ (घड़ा) को बनाने वाला
  • स्वर्णकार = स्वर्ण (सोना) को बनाने वाला
  • चर्मकार = चर्म (चमड़ा) का काम करने वाला
  • धनद = धन को देने वाला (कुबेर)
  • गृहस्थ = गृह में स्थित रहने वाला
  • ग्रामग = ग्राम को जाने वाला
  • शस्त्रधर = शस्त्र को धारण करने वाला
  • मनोज = मन में जन्म लेने वाला (कामदेव)
  • अग्रज = आगे जन्म लेने वाला (बड़ा भाई)
  • अनुज = पीछे जन्म लेने वाला (छोटा भाई)
  • जलज = जल में जन्म लेने वाला (कमल)
  • पापमोचक = पाप से मोक्ष दिलाने वाला
  • ग्रंथकार = ग्रंथ की रचना करने वाला
  • कष्टहर = कष्ट को हरने वाला
  • खग = आकाश में गमन करने वाला (पक्षी)

3. लुप्तपद तत्पुरुष समास

लुप्तपद तत्पुरुष समास, जिसे मध्यमपदलोपी तत्पुरुष समास भी कहते हैं।

लुप्तपद तत्पुरुष समास वह समास है जिसमें समस्त पद बनाते समय पूर्व पद और उत्तर पद के बीच के कारक चिह्न के साथ कुछ शब्दों या पदों का लोप हो जाता है। ऐसे समास को लुप्तपद तत्पुरुष समास कहते है।

बनाने का नियम :

पूर्व पद + (मध्यवर्ती पद/पद-समूह) + उत्तर पद = समस्त पद (मध्यवर्ती पद/पद-समूह का लोप)

उदाहरण:

  • दहीबड़ा = दही में डूबा हुआ बड़ा
  • वनमानुष = वन में रहने वाला मानुष
  • पवनचक्की = पवन से चलने वाली चक्की
  • रेलगाड़ी = रेल पर चलने वाली गाड़ी
  • गोबरगणेश = गोबर से बना हुआ गणेश
  • हस्तलिखित = हस्त से लिखा हुआ
  • पनडुब्बी = पानी में चलने वाली पनडुब्बी
  • मधुमक्खी = मधु (शहद) एकत्र करने वाली मक्खी
  • जलकुंभी = जल में उत्पन्न होने वाली कुंभी
  • छाती-पीटू = छाती पीटने वाला (दुःख प्रकट करने वाला)
  • मालगाड़ी = माल ढोने वाली गाड़ी
  • वायुयान = वायु में चलने वाला यान
  • जेबकतरा = जेब कातरने वाला
  • तेलचट्टा = तेल चाटने वाला
  • घृतपक्व = घृत (घी) में पका हुआ
  • वनभोज = वन में किया जाने वाला भोज
  • शाकप्रिय = शाक (सब्जी) को पसंद करने वाला

(4) प्रादी तत्पुरुष समास

प्रादि समास तत्पुरुष समास का उपभेद है जिसमें पहला पद (पूर्वपद) कोई उपसर्ग (जैसे प्र, परा, अप, नि, दुर्, कु, सु, वि, अनु, अधि, अति, आदि) होता है और उत्तरपद प्रधान होता है। यह समास अक्सर किसी विशेष या भिन्न अर्थ को प्रकट करता है जो सामान्य अर्थ से हटकर होता है। प्रादी तत्पुरुष समास समास कहते है।

बनाने का नियम

पहला पद उपसर्ग होता है और दूसरा पद संज्ञा या विशेषण होता है।

पहला पद (उपसर्ग) का अर्थ + दूसरा पद

  • प्राचार्य = प्रकृष्ट आचार्य
  • प्रगति = प्रकृष्ट गति
  • अवनति = अवकृष्ट नति
  • अपमान = अपगत मान
  • अपयश = अपकृष्ट यश
  • निर्जन = निर्गत जन
  • निर्धन = निर्गत धन
  • दुर्दशा = दुर्गत दशा
  • दुर्जन = दुष्ट जन
  • सुपुत्र = सुंदर पुत्र
  • कुपुत्र = कुत्सित पुत्र
  • अत्यंत = अतिक्रान्त अंत
  • अतिवृष्टि = अतिक्रान्त वृष्टि
  • अनुवाद = अनु पश्चात् वाद
  • अधिनियम = अधि नियम

द्वन्द्व समास (Dvandva Samas)


द्वंद्व समास वह समास है जिसमें दो या दो से अधिक पद होते हैं, और ये सभी पद प्रधान होते हैं। जब इस समास का विग्रह किया जाता है, तो पदों के बीच में ‘और’, ‘तथा’, ‘या’, ‘अथवा’, ‘एवं’ जैसे योजक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।


उदाहरण के लिए, जब हम कहते हैं “माता-पिता”, तो इसमें ‘माता’ और ‘पिता’ दोनों का समान महत्व है। विग्रह करने पर यह “माता और पिता” बन जाता है।


द्वंद्व समास पहचान:

इसमें पदों के बीच में योजक चिह्न (–) लगा होता है

द्वंद्व समास के तीन भेद होते हैं:

1.इतरेतर द्वंद्व:

इसमें दोनों पद अपना अलग-अलग अस्तित्व रखते हैं और उनके बीच ‘और’, ‘तथा’, ‘एवं’ जैसे शब्दों का प्रयोग होता है। दोनों पदों का समान महत्व होता है और वे एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।

उदाहरण:

  • राम-लक्ष्मण = राम और लक्ष्मण
  • माता-पिता = माता और पिता
  • नदी-नाले = नदी और नाले
  • राम-लक्ष्मण = राम और लक्ष्मण
  • माता-पिता = माता और पिता
  • अन्न-जल = अन्न और जल
  • भाई-बहन = भाई और बहन
  • स्त्री-पुरुष = स्त्री और पुरुष
  • हाथ-पैर = हाथ और पैर
  • राजा-रानी = राजा और रानी

2 . समाहार द्वंद्व:

इस समास में पद अपने अर्थ के साथ-साथ उसी प्रकार के अन्य चीजों या समूह का भी बोध कराते हैं। विग्रह करने पर पदों के साथ ‘आदि’, ‘इत्यादि’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:

  • दाल-रोटी = दाल और रोटी आदि (भोजन सामग्री)
  • हाथ-पैर = हाथ और पैर आदि (शारीरिक अंग)
  • फल-फूल = फल और फूल आदि (विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ)
  • घर-द्वार = घर और द्वार आदि (संपत्ति)
  • लत्ता-कपड़ा = लत्ताऔर कपड़ा आदि (पहनावा)
  • भूखा-प्यासा = भूखा और प्यासा आदि (दशा)
  • काम-काज = काम और काज आदि (व्यवसाय)
  • नमक-मिर्च = नमक और मिर्च आदि (मसाले)
  • पूजा-पाठ = पूजा और पाठ आदि (धार्मिक कृत्य)
  • रुपया-पैसा = रुपया और पैसा आदि (धन-संपत्ति)
  • कंद-मूल = कंद और मूल आदि (वनस्पति)
  • अन्न-पानी = अन्न और पानी आदि (जीवन निर्वाह की वस्तुएँ)

3. वैकल्पिक द्वंद्व:

इस समास में दो पदों के बीच विकल्प का भाव होता है। इसमें ‘या’ या ‘अथवा’ जैसे योजक शब्दों का प्रयोग होता है, जिसका अर्थ होता है कि दोनों में से कोई एक। ये पद अक्सर एक-दूसरे के विलोम होते हैं।

उदाहरण:

  • सुख-दुःख = सुख या दुःख
  • पाप-पुण्य = पाप या पुण्य
  • लाभ-हानि = लाभ या हानि
  • यशापयश = यश या अपयश
  • थोड़ा-बहुत = थोड़ा या बहुत
  • सही-गलत = सही या गलत
  • आज-कल = आज या कल
  • जीवन-मरण = जीवन या मरण
  • गुण-अवगुण = गुण या अवगुण
  • धर्म-अधर्म = धर्म या अधर्म
  • खरा-खोटा = खरा या खोटा
  • सच-झूठ = सच या झूठ
  • आना-जाना = आना या जाना
  • नफा-नुकसान = नफा या नुकसान
  • शुभ-अशुभ = शुभ या अशुभ
  • छोटा-बड़ा = छोटा या बड़ा

द्वंद्व समास के कुछ अन्य उदाहरण:

  • अन्न-जल = अन्न और जल
  • देश-विदेश = देश और विदेश
  • भूखा-प्यासा = भूखा या प्यासा
  • कृष्णार्जुन = कृष्ण और अर्जुन
  • खरा-खोटा = खरा या खोटा
  • रात-दिन = रात और दिन
  • नर-नारी = नर और नारी

बहुव्रीहि समास Bahuvrihi Samas

यह वह समास है जिसमें दिए गए दोनों पद प्रधान नहीं होते, बल्कि दोनों पद मिलकर किसी तीसरे, विशेष अर्थ की ओर संकेत करते हैं। इसे बहुव्रीहि समास कहा जाता है।


इस समास में समस्त पद (यानी समास के बाद बनने वाला नया शब्द) के दोनों खंड (पूर्व पद और उत्तर पद) में से कोई भी प्रधान नहीं होता। इसके बजाय, वे दोनों पद मिलकर किसी अन्य पद या व्यक्ति या वस्तु का बोध कराते हैं।इसे ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘जिसमें अन्य पद की अर्थ की प्रधानता हो’।


बहुव्रीहि समास की पहचान
यह विशेष अर्थ प्रदान करता है । यह प्रायः योगरूढ़ शब्द होता है।

उदाहरण

  • गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
  • त्रिनेत्र =तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
  • नीलकंठ =नीला है कंठ जिसका (शिव)
  • लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
  • दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
  • चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
  • पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
  • चक्रधर=चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)
  • वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
  • स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)
  • दुरात्मा = बुरी आत्मा वाला (दुष्ट)
  • घनश्याम = घन के समान है जो (श्री कृष्ण)
  • मृत्युंजय = मृत्यु को जीतने वाला (शिव)
  • निशाचर = निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
  • गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला (कृष्ण)
  • पंकज = पंक में जो पैदा हुआ (कमल)
  • त्रिलोचन = तीन है लोचन जिसके (शिव)
  • विषधर = विष को धारण करने वाला (सर्प)

बहुव्रीहि समास के प्रकार/भेद

(1) समानाधिकरण बहुब्रीहि समास

इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है ,वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।

 उदाहरण

  • प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
  • जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
  • दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन
  • निर्गत है धन जिससे = निर्धन
  • नेक है नाम जिसका = नेकनाम
  • सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा

(2)  व्यधिकरण बहुब्रीहि समास 

समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।

उदाहरण

  • शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
  • वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी

(3) तुल्ययोग बहुब्रीहि समास

जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है। इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है।

उदाहरण

  • जो बल के साथ है = सबल
  • जो देह के साथ है = सदेह
  • जो परिवार के साथ है = सपरिवार

(4)  व्यतिहार बहुब्रीहि समास

जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई।

उदाहरण

  • मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
  • बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती

द्विगु समास

वह समास जिसका पहला पद संख्यावाचक विशेषण हो , उसे द्विगु समास कहते हैं।

बनाने का नियम :–

विग्रह करते समय पहला पद (संख्यवाचक शब्द ) को हिन्दी की संख्या में बदलकर + दूसरे पद को बहुवचन में बदलकर “ का समूह” या “का समाहार” पद लिखा कर बनाया जाता है।

  • नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
  • त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
  • पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
  • त्रिलोक =तीन लोकों का समाहार
  • शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
  • पंसेरी = पांच सेरों का समूह
  • सतसई = सात सौ पदों का समूह
  • त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
  • दोपहर = दो पहरों का समाहार
  • चौमासा = चार मासों का समूह
  • नवरात्र = नौ रात्रियों का समूह
  • अठन्नी = आठ आनों का समूह
  • सप्तऋषि = सात ऋषियों का समूह
  • त्रिकोण = तीन कोणों का समाहार
  • सप्ताह = सात दिनों का समूह

द्विगु समास के भेद

(1) समाहारद्विगु समास

समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं। जैसे :

तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक

पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी

तीन भुवनों का समाहार =त्रिभुवन

(2) उत्तरपदप्रधानद्विगु समास

उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
(1) बेटा या फिर उत्पत्र के अर्थ में।

दो माँ का =दुमाता
दो सूतों के मेल का = दुसूती।

(2) जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।

पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
पांच हत्थड = पंचहत्थड

कर्म धारय समास

कर्मधारय समास वह समास है जिसमें दोनों पदों (पूर्वपद और उत्तरपद) के बीच विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है या उपमान-उपमेय का संबंध होता है। इसमें उत्तरपद प्रधान होता है।


कर्मधारय समास बनाने का नियम
कर्मधारय समास बनाने के मुख्य नियम इस प्रकार हैं:

  • विशेषण-विशेष्य संबंध:
    • विशेषण + विशेष्य: पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। (जैसे: नील कमल – नीला है जो कमल)
    • विशेष्य + विशेषण: कभी-कभी पूर्वपद विशेष्य और उत्तरपद विशेषण होता है। (जैसे: पुरुषोत्तम – पुरुषों में जो उत्तम है)
  • उपमान-उपमेय संबंध:
    • उपमान + उपमेय: पूर्वपद उपमान (जिससे तुलना की जाए) और उत्तरपद उपमेय (जिसकी तुलना की जाए) होता है। (जैसे: घनश्याम – घन के समान श्याम)
    • उपमेय + उपमान: कभी-कभी पूर्वपद उपमेय और उत्तरपद उपमान होता है। (जैसे: चरण-कमल – चरण जो कमल के समान हैं)
  • विग्रह: विग्रह करते समय ‘है जो’, ‘के समान’, ‘रूपी’ जैसे शब्दों का प्रयोग होता है।

उदाहरण

  • नीलकमल: नीला है जो कमल (विशेषण-विशेष्य)
  • महापुरुष: महान है जो पुरुष (विशेषण-विशेष्य)
  • घनश्याम: घन के समान श्याम (उपमान-उपमेय)
  • चरण-कमल: चरण जो कमल के समान हैं (उपमेय-उपमान)
  • मृगनयन: मृग के समान नयन (उपमान-उपमेय)
  • कनकलता: कनक (सोने) के समान लता (उपमान-उपमेय)

कर्मधारय समास के भेद 

1) विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास

इस कर्मधारय समास में पूर्वपद विशेषण होता है और उत्तरपद विशेष्य होता है।

बनाने का नियम

पहला पद + है जो + दूसरा पद

  • नीलगगन: नीला है जो गगन
  • महादेव: महान है जो देव
  • पीताम्बर: पीत (पीला) है जो अंबर (वस्त्र)
  • शुभ आगमन: शुभ है जो आगमन
  • परमानंद: परम है जो आनंद

2) विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास

विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास कर्मधारय समास का एक उपभेद है जहाँ पहला पद (पूर्वपद) विशेष्य होता है और दूसरा पद (उत्तरपद) विशेषण होता है। इसमें विशेषण, विशेष्य की विशेषता बताता है।


यह कर्मधारय समास का वह प्रकार है जिसमें पूर्वपद विशेष्य (जिसकी विशेषता बताई जाए) होता है और उत्तरपद विशेषण (जो विशेषता बताए) होता है।


बनाने का नियम
पहला पद + में जो + दूसरा पद है।

  • पुरुषोत्तम: पुरुषों में जो उत्तम है
  • यहाँ ‘पुरुष’ विशेष्य है और ‘उत्तम’ विशेषण।
  • ऋषिवर: ऋषियों में जो वर (श्रेष्ठ) है
  • यहाँ ‘ऋषि’ विशेष्य है और ‘वर’ विशेषण।
  • कविकुलगुरु: कवियों में जो कुलगुरु है
  • यहाँ ‘कवि’ विशेष्य है और ‘कुलगुरु’ विशेषण।
  • आपबीती: आप पर जो बीती
  • यहाँ ‘आप’ (स्वयं) विशेष्य है और ‘बीती’ विशेषण।
  • नृपश्रेष्ठ: नृपों में जो श्रेष्ठ है। यहाँ ‘नृप’ (राजा) विशेष्य है और ‘श्रेष्ठ’ विशेषण।

3) विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास

इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।

नील – पीत

सुनी – अनसुनी

कहनी – अनकहनी

4) विशेष्योभयपद कर्मधारय समास

इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।

आमगाछ

वायस-दम्पति

कर्मधारय समास के उपभेद 

1) उपमान कर्मधारय समास

उपमान कर्मधारय समास वह समास है जिसमें उपमान (जिससे तुलना की जाए) और उपमेय (जिसकी तुलना की जाए) के बीच समानता या तुलना का संबंध स्थापित किया जाता है। उसे उपमान कर्मधारय समास कहते हैं।

बनाने का नियम

दोनों पदों के बीच “के समान या के जैसी” जोड़ा जाता है।

उदाहरण

  • कमलनयन = कमल के समान नयन
  • चंद्रमुख = चंद्रमा के समान मुख
  • कनकलता = कनक के समान लता
2) उपमितकर्मधारय समास

यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं।

बनाने का नियम

पहला पद + दूसरा पद + के समान या के जैसा या

पहला पद + जो + दूसरा पद + के समान + है

उदाहरण

  • अधरपल्लव के समान = अधरपल्लव
  • नर सिंह के समान = नरसिंह
  • चरण पंकज के समान = चरमपंकज
3)  रूपक कर्मधारय समास

उपमेय और उपमान को अभिन्न मानकर जो समास होता है, उसे रूपक कर्मधारय समास कहते हैं।

कर्मधारय समास का एक भेद है, जिसमें उपमेय (जिस वस्तु की समानता बताई जा रही है) और उपमान (जिससे समानता बताई जा रही है) में अभेद (कोई अंतर नहीं) दिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में, एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है। 

रूपक कर्मधारय समास में, उपमेय और उपमान के बीच एकरूपता दिखाई जाती है, और दोनों को एक ही माना जाता है। 

बनाने का नियम

विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच “रूपी” शब्द का प्रयोग किया जाता है। अर्थात् पहला पद + रूपी + दूसरा पद । अथवा

“पहला पद + ही + दूसरा पद + है”

उदाहरण:

  • चरणकमल:यहाँ “चरण” (पैर) को “कमल” मान लिया गया है, यानी “कमल के समान चरण” नहीं, बल्कि “चरण रूपी कमल”। या चरण ही कमल है।
  • मुखचन्द्र:यहाँ “मुख” (चेहरा) को “चन्द्र” (चाँद) मान लिया गया है, यानी “चन्द्र के समान मुख” नहीं, बल्कि “मुख रूपी चन्द्र”। 
  • विद्याधन:यहाँ “विद्या” को “धन” मान लिया गया है, यानी “धन के समान विद्या” नहीं, बल्कि “विद्या रूपी धन”। 
  • भवसागर:यहाँ “भव” (संसार) को “सागर” मान लिया गया है, यानी “सागर के समान संसार” नहीं, बल्कि “संसार रूपी सागर”। 
  • अमृतवचन:यहाँ “वचन” (बातें) को “अमृत” मान लिया गया है, यानी “अमृत के समान वचन” नहीं, बल्कि “वचन रूपी अमृत”. 

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