नई कहानी आंदोलन पर टिप्पणी

नई कहानी आंदोलन हिन्दी कथा साहित्य का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जो 1950 के दशक के उत्तरार्ध में उभरा। यह आंदोलन मुख्य रूप से उन रचनाकारों की प्रतिक्रिया थी जो तत्कालीन कृत्रिम आदर्शवाद, नारेबाज़ी, और संवेदना-विहीन यथार्थवाद से असंतुष्ट थे। इस दौर के कहानीकारों ने व्यक्ति की आंतरिक सच्चाइयों, संवेदनाओं, संघर्षों, और टूटते रिश्तों को केंद्र में रखकर एक नई प्रकार की कथा संरचना गढ़ी, जिसे ‘नई कहानी’ कहा गया।

नई कहानी आंदोलन का मूल स्वर यह था कि कहानी को व्यक्ति के मन की गहराइयों, समाज की जटिलताओं, और मूल्य विघटन की सच्चाई से जोड़ा जाए। इस आंदोलन के लेखकों का मानना था कि अब समाज केवल वर्ग-संघर्ष से नहीं, बल्कि मानवीय संबंधों के विघटन, मनोवैज्ञानिक संघर्षों, और आंतरिक अकेलेपन से अधिक प्रभावित हो रहा है।

इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में भारत का स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद का वह समय था, जब लोगों की आशाएँ टूट रही थीं, राजनीतिक आदर्शवाद बिखर रहा था, और सामाजिक ढाँचा बदल रहा था। ऐसे में कहानी अब ‘कहानीपन’ या किस्सागोई से हटकर वास्तविक जीवन की सूक्ष्मताओं को पकड़ने का माध्यम बनी।

नई कहानी के प्रमुख कथाकारों में मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, नैयर, अमृत राय, और मन्नू भंडारी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्होंने अपने लेखन में उन पात्रों को स्थान दिया जो समाज की मुख्यधारा में नहीं थे, या जिनकी कहानियाँ पहले कभी साहित्य का विषय नहीं बनी थीं — जैसे एक अकेली स्त्री, बेरोज़गार युवक, शहर में संघर्ष करता आम आदमी, टूटते रिश्ते में जीती गृहिणी आदि।

मन्नू भंडारी की कहानी “यही सच है” और मोहन राकेश की “आधे-अधूरे” जैसी रचनाओं में नए समाज की टूटन, उदासी, और संवादहीनता को बहुत सशक्त रूप से चित्रित किया गया है। राजेन्द्र यादव की कहानियाँ आंतरिक द्वंद्व और यौनिक मनोविज्ञान तक जाती हैं, जो पहले साहित्य में वर्जित माने जाते थे।

नई कहानी की भाषा सरल, संवादप्रधान और सीधी होती थी। यह कहानी पाठकों से भावनात्मक नहीं बल्कि बौद्धिक जुड़ाव की अपेक्षा करती थी।

यह आंदोलन न केवल हिन्दी कहानी की प्रकृति और विषय को बदलने वाला था, बल्कि उसने यह भी स्थापित किया कि साहित्य का उद्देश्य केवल आदर्श दिखाना नहीं, बल्कि कटु यथार्थ को उजागर करना भी है।

नई कहानी आंदोलन ने हिन्दी कहानी को एक सजीव, समकालीन और संवेदनशील माध्यम बना दिया, जो आज भी समकालीन कहानीकारों के लेखन में गहराई से दिखाई देता है।

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