कालिदास का साहित्यिक परिचय प्रस्तुत कीजिए।

संस्कृत साहित्य के इतिहास में यदि किसी कवि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, तो वह हैं कालिदास। वे न केवल संस्कृत के महानतम कवि माने जाते हैं, बल्कि संपूर्ण भारतीय साहित्य के अमर नक्षत्र हैं। उनकी काव्य प्रतिभा, सौंदर्य बोध, भाव सम्पदा और प्रकृति चित्रण की क्षमता अतुलनीय मानी जाती है। कालिदास की रचनाएँ न केवल भारत में, बल्कि विश्व के साहित्यिक मानचित्र पर भी विशिष्ट स्थान रखती हैं। उनकी रचनाओं में काव्य और दर्शन का ऐसा विलक्षण संगम मिलता है जो पाठकों और विद्वानों को सदियों से आकर्षित करता आ रहा है।


कालिदास का जीवन

कालिदास के जीवन के बारे में निश्चित ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनके जीवन से जुड़े अनेक किंवदंतियाँ और लोककथाएँ हैं, जो उन्हें एक साधारण व्यक्ति से महामनीषी बनने तक की यात्रा की कहानी सुनाती हैं। यह माना जाता है कि वे गुप्तकाल (लगभग चौथी से पाँचवीं शताब्दी ई.) में विद्यमान थे, जो भारतीय संस्कृति और साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है।

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार कालिदास पहले अशिक्षित थे, परन्तु माता सरस्वती की कृपा से उन्हें अद्भुत विद्वत्ता प्राप्त हुई। यह कथा भले ही ऐतिहासिक न हो, लेकिन यह उनके जीवन में हुए आध्यात्मिक और बौद्धिक परिवर्तन की ओर संकेत करती है।

उनकी शिक्षा-दीक्षा, जन्मस्थान आदि पर भी विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वान उनका संबंध उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) से जोड़ते हैं, जो उस समय गुप्त साम्राज्य की एक सांस्कृतिक राजधानी थी। उज्जयिनी का वर्णन उनकी रचनाओं में विशेष रूप से मिलता है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे वहां निवास करते थे या कम से कम उस नगर से विशेष लगाव रखते थे।


कालिदास का साहित्यिक योगदान

कालिदास ने महाकाव्य, नाटक और लघुकाव्य तीनों प्रमुख साहित्यिक विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ कीं। उनकी भाषा संस्कृत के सर्वोच्च सौंदर्य की प्रतीक है और उनके द्वारा प्रयुक्त उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकार आज भी संस्कृत काव्य की पहचान बने हुए हैं।

1. महाकाव्य

कालिदास के दो प्रमुख महाकाव्य हैं:

(क) रघुवंशम्

यह एक दीर्घ काव्य है जिसमें सूर्यवंश के प्रसिद्ध राजा रघु, अज, दशरथ, श्रीराम आदि की गाथा वर्णित है। इसमें कुल 19 सर्ग हैं। रघुवंश में राजा राम के पूर्वजों और उनके वंश की गौरवगाथा के माध्यम से आदर्श राजधर्म, नीति और समाज के प्रति दायित्व का सुंदर चित्रण किया गया है।

कालिदास ने इस महाकाव्य में शासकों की चरित्र निष्ठा, दानशीलता, वीरता और जनसेवा को इतनी खूबसूरती से प्रस्तुत किया है कि पाठक आज भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। भाषा सुसंस्कृत है, शैली गम्भीर और छंद-रचना अत्यंत कलात्मक।

(ख) कुमारसम्भवम्

यह शिव और पार्वती की कथा पर आधारित महाकाव्य है। इसमें पार्वती के तप, शिव की तपस्या, दोनों का विवाह और उनके पुत्र कुमार (कार्तिकेय) के जन्म की गाथा वर्णित है। कुल 17 सर्गों में से 8 तक ही इसे आमतौर पर कालिदास रचित माना जाता है।

इस काव्य में श्रृंगार रस की अत्यंत कोमल और सुरुचिपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है। कालिदास ने इस रचना में प्रकृति का जैसा नारी रूप में चित्रण किया है, वह उन्हें अन्य कवियों से अलग और ऊँचा स्थान प्रदान करता है। उनकी कल्पना शक्ति, उपमानों की नवीनता और भावों की गहराई अद्वितीय है।


2. नाटक

कालिदास ने संस्कृत नाटक को एक नई ऊँचाई प्रदान की। उनके नाटक केवल मंचीय अभिनय के लिए नहीं, बल्कि साहित्यिक सौंदर्य के लिए भी जाने जाते हैं।

(क) अभिज्ञानशाकुन्तलम्

यह नाटक कालिदास की सर्वश्रेष्ठ और विश्वप्रसिद्ध कृति मानी जाती है। इसका कथानक महाभारत के ‘आदिपर्व’ से लिया गया है जिसमें राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेमकथा, वियोग और पुनर्मिलन का वर्णन है।

इस नाटक में प्रेम, विरह, प्रकृति, श्रृंगार, और करुणा का अद्भुत समन्वय मिलता है। कालिदास की भाषा यहाँ अपने चरम सौंदर्य पर है। प्रकृति और भावनाओं का ऐसा चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है। यह नाटक इतना लोकप्रिय हुआ कि इसका कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ, विशेष रूप से जर्मन विद्वान विलियम जोन्स द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद इसका पहला विदेशी प्रवेश था।

(ख) मालविकाग्निमित्रम्

यह कालिदास का प्रथम नाटक माना जाता है। इसमें राजा अग्निमित्र और राजकन्या मालविका की प्रेमकथा वर्णित है। यह एक राजसी रोमांटिक नाटक है, जिसमें दरबारी जीवन, राजनीतिक दाँवपेंच और प्रेम की कोमल भावनाओं का चित्रण हुआ है।

इसमें संवाद सहज, पात्र जीवंत और घटनाएँ स्वाभाविक हैं। यह कालिदास की प्रारम्भिक काव्य-प्रतिभा का प्रमाण माना जाता है।

(ग) विक्रमोर्वशीयम्

यह नाटक राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रेमकथा पर आधारित है। यह कथा पौराणिक है लेकिन कालिदास ने इसमें मानव भावनाओं को दिव्यता के साथ जोड़ा है। इसमें लोक और अलोक (स्वर्ग) के संयोग और संघर्ष का सुंदर चित्रण है।

इस नाटक में श्रृंगार रस और प्रकृति की अभिव्यक्ति अत्यंत मोहक है। भाषा में मधुरता और दृश्यविधान में कल्पना की उड़ान देखने को मिलती है।


3. लघुकाव्य / खण्डकाव्य

(क) मेघदूतम्

‘मेघदूत’ कालिदास की सर्वाधिक प्रिय रचना मानी जाती है। यह एक खण्डकाव्य है, जिसमें एक यक्ष, जिसे कुबेर ने वर्षभर के लिए वनवास दिया है, मेघ से अपनी पत्नी को सन्देश भेजता है। यह काव्य दो भागों में विभाजित है — पूर्वमेघ और उत्तरमेघ।

इसमें यक्ष का विरह, मेघ के माध्यम से प्रेमिका के सौंदर्य का वर्णन, मार्ग में आने वाले स्थानों का चित्रण और अलकापुरी की शोभा — सब अत्यंत मनोहारी रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। यह काव्य संवेदना, प्रकृति, और कल्पना की त्रिवेणी है। इसकी भाषा अत्यंत मधुर, सरल और भावप्रवण है।

मेघदूत को ‘विरह श्रृंगार’ का सर्वोच्च उदाहरण माना जाता है। इसमें मानसून, पहाड़, नदी, पशु-पक्षी आदि का मानवीकरण करके कवि ने प्रकृति को जीवंत बना दिया है।


कालिदास की काव्य-शैली और विशेषताएँ

  1. प्रकृति चित्रण – कालिदास को प्रकृति का कवि कहा जाता है। वे नदियों, पर्वतों, फूलों, ऋतुओं, पक्षियों, आदि का ऐसा वर्णन करते हैं मानो वे सजीव पात्र हों।
  2. श्रृंगार रस की प्रधानता – उनकी कृतियों में प्रेम और सौंदर्य का अत्यंत कोमल और गरिमामय चित्रण है। वे श्रृंगार को अश्लील नहीं, बल्कि सौंदर्य और आत्मिक प्रेम का प्रतीक बनाते हैं।
  3. सरल और सुसंस्कृत भाषा – उनकी भाषा क्लिष्ट नहीं है, लेकिन उसमें गरिमा और माधुर्य का समन्वय है।
  4. उपमाओं का प्रभावी प्रयोग – कालिदास की उपमाएँ अद्वितीय हैं। जैसे – “कवित्वं कालिदासस्य… उपमा कालिदासस्य” — अर्थात् उपमा के लिए कालिदास प्रसिद्ध हैं।
  5. लोक और अलोक का समन्वय – वे मनुष्य और देवता, धरती और स्वर्ग, प्रेम और नीति — इन सबको एक साथ समेट लेते हैं।

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