शब्द: शब्द विचार हिन्दी व्याकरण का दूसरा खंड है
शब्द की परिभाषा
एक या अनेक अक्षरों के मेल से बनी सार्थक स्वतंत्र ध्वनि या ध्वनि समूह को शब्द कहते है।
जैसे– विद्यालय, घर, हवा, कमल, फूल, पानी आदि
एक वर्ण से निर्मित शब्द – न (नहीं ), व (और), ख (आकाश) आदि
अनेक वर्णों से निर्मित शब्द – कुत्ता , शेर, कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी , परमात्मा आदि
भारतीय संस्कृति में शब्द को ब्रह्म कहा गया है।
पद
जब शब्द का प्रयोग वाक्य में किया जाता है तो उसे पद कहते हैं। पद वाक्य में अन्य शब्दों के साथ संबंध स्थापित करता है। जैसे: “राम ने खाना खाया” में “राम”, “खाना”, और “खाया” पद हैं।
शब्द के भेद (Shabd Ke Bhed)
- व्युत्पत्ति/रचना/बनावट के आधार पर
- उत्पत्ति/उद्गम/शब्द भंडार के आधार पर
- अर्थ के आधार पर
- रूपांतर के आधार पर
व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द-भेद
व्युत्पत्ति / रचना / बनावट के आधार पर शब्द के तीन भेद हैं–
- रूढ़,
- यौगिक तथा
- योगरूढ़।
रूढ़ शब्दः
वे शब्द जिनके खण्ड या टुकड़े करने पर किसी भी खण्ड का कोई अर्थ न निकले उसे रूढ़ कहते है।
जैसे- कल, पर आदि
इनमें क, ल, प, र का टुकड़े करने पर कुछ अर्थ नहीं हैं।
यौगिक शब्दः
वे शब्द जो अपने खण्ड के अर्थ भी साथ रखते हैं उसे यौगिक कहते है।
जैसे – देवालय (देव+आलय), राजपुरुष (राज+पुरुष), हिमालय (हिम+आलय), देवदूत (देव+दूत) आदि।
- विद्यालय – विद्या + आलय (ज्ञान का स्थान)
- पुस्तकालय – पुस्तक + आलय (किताबों का स्थान)
- रसोईघर – रसोई + घर (खाना बनाने का स्थान)
- जलज – जल + ज (पानी में पैदा होने वाला, कमल)
- दशानन – दश + आनन (दस मुख वाला, रावण)
- राजपुत्र – राज + पुत्र (राजा का पुत्र)
- गंगाजल – गंगा + जल (गंगा नदी का पानी)
- चंद्रमा – चंद्र + मा (चमकने वाला चंद्र)
- सूर्योदय – सूर्य + उदय (सूरज का निकलना)
- पथिक – पथ + इक (रास्ते पर चलने वाला)
- हिमालय – हिम + आलय (बर्फ का घर)
- नरेश – नर + ईश (मनुष्यों का स्वामी, राजा)
- धनवान – धन + वान (धन वाला)
- वनवास – वन + वास (जंगल में रहना)
- राजधानी – राज + धानी (राज्य की मुख्य नगरी)
- गुरुकुल – गुरु + कुल (गुरु का स्थान)
- जलधारा – जल + धारा (पानी की धारा)
- महाराज – महा + राज (बड़ा राजा)
- सत्यवादी – सत्य + वादी (सच बोलने वाला)
- प्राणदान – प्राण + दान (जीवन देना)
योगरूढ़ शब्दः
वे शब्द, जो यौगिक तो हैं, किन्तु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं।
जैसे – पंकज, दशानन आदि।
पंकज = पंक+ज (कीचड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य अर्थ में प्रचलित न होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है। अतः पंकज शब्द योगरूढ़ है।
इसी प्रकार दश (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अर्थ में प्रसिद्ध है।
- दशानन – दश + आनन (दस मुख वाला, रावण)
- जलज – जल + ज (पानी में पैदा होने वाला, कमल)
- पंकज – पंक + ज (कीचड़ में पैदा होने वाला, कमल)
- गजानन – गज + आनन (हाथी के समान मुख वाला, गणेश)
- नीलकंठ – नील + कंठ (नीले कंठ वाला, शिव)
- चक्रधर – चक्र + धर (चक्र धारण करने वाला, विष्णु)
- कमलनयन – कमल + नयन (कमल जैसे नेत्र वाला, विष्णु)
- त्रिलोचन – त्रि + लोचन (तीन नेत्र वाला, शिव)
- पीतांबर – पीत + अंबर (पीले वस्त्र धारण करने वाला, कृष्ण)
- महादेव – महा + देव (सबसे बड़े देवता, शिव)
- विषधर – विष + धर (विष धारण करने वाला, सर्प)
- कृष्णसार – कृष्ण + सार (काले रंग का सार, हिरण)
- श्वेतांबर – श्वेत + अंबर (सफेद वस्त्र धारण करने वाला, जैन मुनि)
- सहस्त्रबाहु – सहस्त्र + बाहु (हजार भुजाओं वाला, राजा सहस्त्रबाहु)
- कुंडलधारी – कुंडल + धारी (कुंडल पहनने वाला, कृष्ण)
- चतुर्भुज – चतुर + भुज (चार भुजाओं वाला, विष्णु)
- मृगांक – मृग + अंक (चंद्रमा)
- किरीटी – किरीट + ई (मुकुट धारण करने वाला, अर्जुन)
- शंखधर – शंख + धर (शंख धारण करने वाला, विष्णु)
- गदाधर – गदा + धर (गदा धारण करने वाला, विष्णु)
उत्पत्ति/उद्गम/शब्द भंडार के आधार पर
उत्पत्ति/उद्गम/शब्द भंडार के आधार पर शब्द के निम्नलिखित चार भेद हैं-
- तत्सम शब्द
- तद्भव शब्द
- देशज शब्द तथा
- विदेशज शब्द
तत्सम शब्दः
संस्कृत के वे शब्द जो अपने मूल रूप में हिन्दी में प्रयुक्त होते है उन्हें तत्सम शब्द कहते है। अर्थात्
जो शब्द संस्कृत भाषा से हिन्दी में बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं वे तत्सम कहलाते हैं।
जैसे – अग्नि, क्षेत्र, वायु, रात्रि, सूर्य, गृह, वृक्ष, नेत्र आदि।
तद्भव शब्दः
तत्सम के बदले हुए रूप को तद्भव कहते है। अर्थात्
जो शब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं।
जैसे – आग (अग्नि), खेत (क्षेत्र), रात (रात्रि), सूरज (सूर्य), घर (गृह), पेड़ (वृक्ष), आँख (नेत्र) आदि।
देशज शब्दः
जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति और आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं। अर्थात्
भारत के मूलनिवासियों की बोलियों से आए शब्द को देशज कहते है।
जैसे- पगड़ी, लोटा, पैना, ढिबरी, गाँव, खेत, झोपड़ी, गाय, भैंस, खटिया, ठेला, डिबिया, कटोरा, खुरपी, गमछा, लट्ठ, चूल्हा, तवा, डंडा, पनघट, घड़ा आदि।
विदेशज शब्दः
विदेशी जातियों के संपर्क से उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। ऐसे शब्द विदेशज कहलाते हैं।
जैसे – स्कूल, अनार, आम, कैंची, अचार, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि।
ऐसे कुछ विदेशी शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है।
- अंग्रेजी – कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल, बोतल आदि।
- फारसी – अनार, चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि।
- अरबी – औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर, रिश्वत औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।
- तुर्की- कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर आदि। पुर्तगाली- अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि।
- फ्रांसीसी – पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि।
- चीनी – तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि।
- यूनानी – टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा आदि।
- जापानी – रिक्शा, सुनामी आदि।
- डच-बम आदि।
अर्थ के आधार पर
अर्थ के दृष्टि से शब्द के निम्नलिखित 2 भेद होते है।
- सार्थक शब्द तथा
- निरर्थक शब्द
सार्थक शब्द
वे शब्द जिनके अर्थ स्पष्ट होते है, उन्हें सार्थक शब्द करते है।
जैसे – राम, विद्यालय, घर, रोटी, पानी, पुस्तक आदि।
निरर्थक शब्द
वे शब्द जिनका कोई अर्थ कोई अर्थ नहीं होता , उसे निरर्थक शब्द कहते हैं।
जैसे – चिड़ियों, पशुओं की आवाज (चें–चें, भौं–भौं), पानी–वानी, रोटी–वोटी, डंडा–वंडा ( इसमें वानी, वोटी और वंडा का कोई अर्थ नहीं होता है।)
रूपांतर के आधार पर
रूपांतर के आधार पर शब्द के निम्नलिखित 2 भेद होते हैं।
- विकारी शब्द
- अविकारी शब्द
विकारी शब्द:
विकारी शब्द– जो शब्द लिंग, वचन, पुरुष और कारक के अनुसार अपने रूप बदलते हैं, उन्हें विकारी कहते हैं।
जैसे – लड़का, कुत्ता, अच्छा, खेलता आदि
विकारी शब्द के 4 भेद होते है।
- संज्ञा
- सर्वनाम
- विशेषण
- क्रिया
अविकारी शब्द
जो शब्द लिंग, वचन, पुरुष और कारक के अनुसार अपने रूप नहीं बदलते, उन्हें अविकारी शब्द कहते है। इसे ‘अव्यय’ भी कहा जाता है।
जैसे– धीरे–धीरे, लगातार, किंतु, नित्य आदि
अविकारी शब्द के भी 4 भेद होते है।
- क्रिया–विशेषण
- संबंधबोधक
- सेसमुच्चय बोधक
- विस्मयादि बोधक