कक्षा 12 हिन्‍दी पुत्र वियोग | Putra Viyog class 12 hindi

Putra Viyog class 12 hindi

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड क्लास 12वीं हिन्दी किताब दिगंत भाग – 2 के पद्य खण्ड के अध्याय 7 ‘पुत्र वियोग’ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। ‘इसके रचना सुभद्रा कुमारी चौहान ने की है। Putra Viyog class 12 hindi

Putra Viyog

हिन्‍दी पुत्र वियोग

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कवयित्री परिचय

कवयित्री का नाम – सुभद्रा कुमारी चौहान

  • जन्म – 16 अगस्त 1904
  • निधन – 15 फरवरी 1948, बसंत पंचमी के दिन नागपुर से जबलपुर वापसी में कार दुर्घटना में।
  • जन्म-स्थान – निहालपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश ।
  • माता – श्रीमती धिराज कुंवँर
  • पिता – ठाकुर रामनाथ सिंह।
  • पति – ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान, खंडवा, मध्य प्रदेश निवासी से 1919 में विवाह ।
  • ठाकुर लक्ष्मण सिंह अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त ‘कुली प्रचा’ और ‘गुलामी का नशा’ नामक नाटकों के लेखक, प्रसिद्ध पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और काँग्रेसी नेता थे।
  • शिक्षा – क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल, इलाहाबाद में प्रारंभिक शिक्षा।
  • इसी स्कूल में प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ थीं।
  • पुनः थियोसोफिकल स्कूल, वाराणसी में वर्ग 9 तक की पढ़ाई के बाद शिक्षा अधूरी छोड़कर असहयोग आंदोलन में कूद पड़ीं।
  • प्रधान कर्मक्षेत्र – समाज सेवा, राजनीति, स्वाधीनता संघर्ष में सक्रिय भागीदारी, अनेक बार कारावास, मध्य प्रदेश में काँग्रेस पार्टी की एम. एल. ए।
  • विशिष्ट अभिरुचि – छात्र जीवन से ही काव्य रचना की प्रवृत्ति, आगे चलकर प्रमुख कवयित्री एवं साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठा।
  • पुरस्कार – ‘मुकुल‘ पर 1930 में ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ का ‘सेकसरिया पुरस्कार’ ।
  • कृतियाँ – ‘मुकुल’ (कविता संग्रह, 1930), त्रिधारा (कविता चयन), बिखरे मोती (कहानी संग्रह), सभा के खेल (कहानी संग्रह)।
  • सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी की छायावादी काव्यधारा के समानांतर स्वतंत्र रूप से काव्यरचना करने वाली राष्ट्रीय भाव धारा की प्रमुख और विशिष्ट कवयित्री थीं।
  • राष्ट्रीय भावधारा का भारतीय नवजागरण और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से अभिन्न संबंध था।
  • इस भावधारा का उन्मेष भारतेंदु युग में ही हुआ था।
  • द्विवेदी युग में इसका विकास हुआ तथा उसके बाद के युगों में यह भावधारा अनेक दिशाओं में फैलती हुई व्यापक और बहुमुखी होकर उत्कर्ष पर पहुँच गई।
  • राष्ट्रीय भावधारा के इस यथार्थोन्मुख रूप से सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का घनिष्ठ संबंध है।
  • उनकी कविता की केंद्रीय और प्रमुख प्रेरणा यथार्थनिष्ठ राष्ट्रीय भावधारा ही है।
  • यह कविता ‘मुकुल’ से ली गई है।
  • प्रस्तुत कविता निराला की ‘सरोज स्मृति’ के बाद हिंदी में एक दूसरी शोकगीति है जो पुत्र के असामयिक निधन के बाद कवयित्री माँ के द्वारा लिखी गई है।

पुत्र वियोग कविता का अर्थ

आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास विश्व पर छाया'
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री कहती है कि आज चारों ओर खुशी का वातावरण है और सारे संसार में खुशियाँ छाई है लेकिन ये खुशियाँ मेरे लिए व्यर्थ है क्योंकि मेरा खोया हुआ पुत्र अब तक मुझे प्राप्त नहीं हुआ। अर्थात कवयित्री के पुत्र का निधन हो गया है।

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शीत न लग जाए, इस भय से
नहीं गोद से जिसे उतारा,
छोड़ काम दौड़ कर आई
‘मा’ कहकर जिस समय पुकारा।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने शीत लगने के भय से उसे अपनी गोद से नहीं उतारा। उसने जब भी माँ कहके आवाज लगाई मैं अपना सारा काम-काज छोड़कर उसके पास दौड़कर आई ताकि उसकी जरूरतों को पूरा कर सकूँ।

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थपकी दे दे जिसे सुलाया
जिसके लिए लोरियाँ गाईं,
जिसके मुख पर जरा मलिनता
देख आँखें में रात बिताई।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने जिसके हरेक सुख का ध्यान रखा। जिसे थपकी दे कर सुलाया और जिसके लिए लोरियाँ गाई। उसके चेहरे पर छाई उदासी को महसूस करके जिसका रात भर जाग कर ख्याल रखा।

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जिसके लिए भूल अपनापन
पत्थर को भी देव बनाया,
कहीं नारियल दूध, बताशे
कहीं चढ़ाकर शीश नवाया।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने जिसके लिए अपने सारे सुखों को भूला दिया। पत्थर को देवता मानकर जिसे नारियल दूध और बताशे चढ़ाएँ। जिसके लिए मैंने देवालयों में शीश नवाया वो आज मेरे पास नहीं है।

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फिर भी कोई कुछ न कर सका
छिन ही गया खिलौना मेरा,
मैं असहाय विवश बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मेरे द्वारा की गई पूजा अर्चना दुआएँ कोई भी काम नहीं आई। कोई भी मेरा कुछ नहीं कर सका और मेरा हृदय का टुकड़ा मुझसे छिन ही गया। मैं आज असहाय और विवश बैठी हूँ और मेरा नन्हा बच्चा मेरे आँखों के सामने ही भगवान को प्यारा हो गया।

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तड़प रहे हैं विकल प्राण ये
मुझको पल भर शांति नहीं है,
वह खोया धन पा न सकूँगी
इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मेरे प्राण तड़प रहे है और मुझे एक पल की भी शांति नहीं है। मैंने जो अनमोल धन खो दिया है उसे मैं अब वापस नहीं पा सकूँगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

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फिर भी रोता ही रहता है
नहीं मानता है मन मेरा,
बड़ा जटिल नीरस लगता है
सूना सूना जीवन मेरा।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैं जानती हुँ कि मैं अपने पुत्र को प्राप्त नहीं कर सकती। फिर भी मेरा हृदय मेरा मन इस बात को मानने को तैयार नहीं है। मेरा जीवन अब कठिन और नीरस सा हो गया है।

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यह लगता है एक बार यदि
पल भर को उसको पा जाती,
जी से लगा प्यार से सर
सहला सहला उसको समझाती।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि यदि मैं अपने पुत्र को एक पल के लिए भी पा लेती तो उसे जी भर कर प्यार करती और उसे समझती कि वह अपनी माँ को यूं छोड़ कर ना जाए। लेकिन अब उसको पाना संभव नहीं है।

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मेरे भैया मेरे बेटे अब
माँ को यों छोड़ न जाना,
बड़ा कठिन है बेटा खोकर
माँ को अपना मन समझाना।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैं अपने पुत्र को अगर एक पल के लिए भी पा लेती तो उसे समझाती कि वह मझे छोड़कर न जाए। माँ के लिए अपने बेटे को खोकर अपने मन को सांत्वना देना बड़ा ही कठिन होता है। (Putra Viyog class 12 hindi)

भाई-बहिन भूल सकते हैं
पिता भले ही तुम्हें भुलावे,
किन्तु रात-दिन की साथिन माँ
कैसे अपना मन समझावे।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार सुभद्रा कुमार चौहान है। इस कविता उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है।

कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि भाई-बहन तुम्हें भूल सकते है तुम्हारे पिता भले ही तम्हें भूल जाएँ लेकिन एक माँ जो दिन-रात अपने बच्चे के साथ रही हो वो कैसे अपने मन को समझा सकती है। कवयित्री कहना चाहती है कि माँ का हृदय बच्चे को कभी भी नहीं भूल सकता। (Putra Viyog class 12 hindi)

पुत्र वियोग कविता का सारांश (Putra Viyog)

सुभद्रा जी मूलतः राष्ट्रीय चेतना की गायिका हैं पर समाज में भी तो नाना प्रकार के करुण चित्र बिखरे पड़े रहते हैं। यहाँ ऐसा ही एक चित्र उतारा गया है। पुत्र की मृत्यु के उपरान्त एक माता की क्या स्थिति हो जाती है, वही यहाँ व्यंजित है ।

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आज समस्त दिशाएँ हँस रही हैं, चारों ओर आनन्द और उल्लास का वातावरण छाया हुआ है, पर यहाँ मात्र एक मैं ही हूँ जिसका खिलौना (पुत्र) खो गया है, जो अब तक मेरे पास नहीं आ सका है। ( बच्चा खिलौना चाहता है उसमें मग्न रहता है, वह उसके लिये परमप्रिय होता है, उसके खो जाने पर या दूर जाने पर उसका हृदय भी भग्न हो जाता है) यही स्थिति पुत्र वियोग में माता की होती है, वह पुत्र के साथ बिताये पिछले दिनों को याद करती है। मैंने उसको गोद से नहीं उतारा कि कहीं उसको शीत न लग जाय, जब भी उसने ‘माँ’ कहकर पुकारा, मैं सारे काम-काज छोड़कर उसके पास दौड़ती चली आयी। मैं उसको थपकियाँ देकर सुलाया करती थी, उसके सुलाने हेतु ही मैं लोरियाँ भी गाया करती थी, उसको जरा-सा भी कोई कष्ट हो जाता था उसके मुख पर मलिनता उभर आती थी, मैं सारी सारी रात जागती रहती थी, उसको गोद में समेटे रहती थी ।

माँ कहती है, मैंने इसके लिये क्या नहीं किया । अमूर्त की भी देव-तुल्य पूजा की जड़ पत्थर को भी देवता बना लिया। अपना अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। उस देवता पर कभी पुत्र की सलामती हेतु दूध-बताशा चढ़ाया, नारियल चढ़ाया, कहीं उसके सामने अपना शीश नवाया पर इस सबका कोई फल प्राप्त नहीं हो सका, साथ ही मेरा खिलौना मुझसे छिन गया। अब तो मैं परम असहाय हूँ, विवश हूँ, यहाँ उदास दुःखी बैठी हूँ, पर मेरा छोना छिन ही गया ।

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मेरे व्यथित प्राण तड़प रहे हैं, एक पल को भी शान्ति नहीं है, शान्ति की रेखा भी नहीं है। चारों ओर अशान्ति ही अशान्ति है। यह मुझे पता है कि मेरा जो पुत्र रूपी धन खो गया, उसको पाना सर्वथा असम्भव है। इसमें कोई भी सन्देह नहीं है पर मैं क्या करूँ, यह मेरा मन हरदम रोता ही रहता है। मैं उसको समझाने का काफी प्रयास करती हूँ पर वह मानता ही नहीं है। उसके अभाव में मेरा सरल जीवन बड़ा जटिल बन गया है और चारों ओर सूनापन छा गया है।

अब कभी-कभी यह लगता है कि किसी प्रकार भी पल भर को उसको पा जाती, उसको हृदय से लगाकर बड़े प्यार से उसका सर सहला-सहला कर उसको यह समझाती मेरे भैया, मेरे बेटे अब माँ को इस प्रकार छोड़कर मत जाना, तुम नहीं जानते बेटा खोकर माता को अपना मन समझाना बड़ा कठिन हुआ करता है। यह हो सकता है कि तुम्हारे भाई-बहन तुम्हें भूल जायें, तुम्हारे पिता भी तुम्हें भुला दें, पर माँ तो रात-दिन की साथिन होती है, वह कैसे तुम्हें भुलाकर अपना मन समझा सकती है। (Putra Viyog class 12 hindi)

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