Usha class 12 hindi| कक्षा 12 हिन्‍दी उषा

Usha class 12 hindi:

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड क्लास 12वीं हिन्दी किताब दिगंत भाग – 2 के पद्य खण्ड के अध्याय 8 ‘उषा’ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। जिसके रचनाकार शमशेर बहादुर सिंह है। Class 12 Usha ka Arth। उषा का अर्थ

Class 12 Hindi Chapter 8 Usha

कवि परिचय

कवि का नाम – शमशेर बहादुर सिंह

  • जन्म : 13 जनवरी 1911
  • निधन : 19931
  • जन्म-स्थान : देहरादून, उत्तराखंड ।
  • माता : प्रभुदेई
  • पिता : तारीफ सिंह (कलेक्ट्रिएट में रीडर और साहित्य प्रेमी)।
  • शिक्षा :
    • 1928 में हाई स्कूल,
    • 1931 में इंटर,
    • 1933 में बी० ए० (इलाहाबाद से),
    • 1938 में एम० ए० (पूर्वार्ध) अंग्रेजी,
  • पारिवारिक जीवन :
    • 1929 में धर्म देवी से विवाह
    • 1933 में पत्नी की मृत्यु।
  • वृत्ति
    • रूपाभ, कहानी, माया, नया साहित्य, नया पथ एवं मनोहर कहानियाँ के संपादन कार्य से जुड़े ।
    • उर्दू-हिंदी कोश का भी संपादन।
    • 1981-85 तक ‘प्रेमचंद सृजनपीठ’ विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के अध्यक्ष ।
  • यात्रा : 1978 में सोवियत रूस की यात्रा।
  • कृतियाँ : 1932-33 में लिखना शुरू किया।
    • दूसरा सप्तक (1951),
    • कुछ कविताएँ (1959),
    • कुछ और कविताएँ (1961),
    • चुका भी नहीं हूँ मैं (1975),
    • इतने पास अपने (1980),
    • उदिता (1980),
    • बात बोलेगी (1981),
    • काल तुझसे होड़ है मेरी (1982),
    • टूटी हुई बिखरी हुई,
    • कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ,
    • सुकून की तलाश (गजलें)।
    • प्रतिनिधि कविताएँ (सं० डॉ० नामवर सिंह) – सभी कविताएँ ।
    • डायरी, विविध प्रकार के निबंध एवं आलोचना भी फुटकर रूप में प्रकाशित ।
  • अज्ञेय, नागार्जुन आदि के समकालीन शमशेर बहादुर सिंह आधुनिक हिंदी कविता में स्वच्छंद चेतना के प्रयोगशील कवि के रूप में ‘दूसरा सप्तक’ में उदित हुए थे।
  • बीसवीं शती के उत्तरार्ध में सतत प्रयोगधर्मी श्रेष्ठ प्रगतिशील कवि के रूप में उन्होंने व्यापक प्रतिष्ठा अर्जित की।
  • उन्होंने लिखना तीस के दशक में ही शुरू कर दिया था किंतु आजीविका, आवास, पारिवारिक जीवन आदि के अनिश्चय, अभाव तथा प्रकाशन को लेकर उदासीनता भरे विशिष्ट स्वभाव के कारण उनकी कविताएँ पुस्तकाकार शती के उत्तरार्ध में ही आनी शुरू हुईं। शीघ्र ही शमशेर बहादुर सिंह हिंदी के विशिष्ट और प्रमुख कवि के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।
  • वे कवि और शायर एक साथ थे।
  • स्वच्छंदतावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता तथा वस्तुवादी यथार्थवाद और कलावादी रूपवाद इन सबका एक ऐसा विलक्षण घोल उन्होंने अपनी सर्जनात्मकता में तैयार किया जिसमें इन सब की सीमाएँ नहीं, शक्ति सक्रिय और मुखरित हुई।
  • हिंदी और उर्दू को तथा इनकी कविता शैलियों और संस्कृतियों को उन्होंने एक माना ही नहीं, जाना और अनुभव भी किया। कवि के लिए दोनों दो नहीं, एक हैं; इसी रूप में शमशेर के यहाँ उनकी अभिव्यक्ति भी होती है।
  • उर्दू काव्य और आधुनिक हिंदी काव्य की विरासत को उन्होंने मिजाज, रंग, स्वर, लय और भंगिमाओं के साथ अपनी खास संवेदना और कल्पनाशीलता के सहारे अपने ढंग से आत्मसात् किया।
  • उनके समकालीन जहाँ ‘छायावाद’ से खुद को विलगाने और अलग-थलग, विशिष्ट दिखने के प्रति आग्रहशील रहे वहाँ शमशेर ने एक ही संधान में निराला और पंत दोनों को साधा।
  • कविता, चित्र, संगीत, नाटक, नृत्य, मूर्ति आदि विविध कलाओं के सर्जनात्मक प्रभाव उन्होंने अपनी कविता की स्वायत्त जमीन और शर्तों पर ग्रहण किए।
  • वे ‘कवियों के कवि’ कहे जाते हैं।
  • यहाँ उनकी प्रसिद्ध कविता ‘उषा’ संकलित है जिसमें उन्होंने ‘उषा’ का गतिशील चित्रण बिंबों द्वारा प्रस्तुत किया है।

“शमशेर ऐसे कवि हैं जो अपना असर धीरे-धीरे डालते हैं। शमशेर जैसे कवियों का कोई ‘स्कूल’ नहीं बनता, उनकी कोई पंथ-प्रतिमा नहीं बनती । वे उन नदियों की तरह होते हैं जो चुपचाप पूरी घाटी को जरखेज करती चलती हैं, जिनपर कभी कोई पुल नहीं बनता ।”

— अरुण कमल

Usha class 12 hindi

Class 12 उषा कविता के अर्थ

प्रात नभ था बहत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हआ चौका
[अभी गीला पड़ा है ]

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘उषा’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार शमशेर बहादुर सिंह है। इसमें कवि ने प्रातः कालीन दृश्य की चर्चा की है।

कवि कहते हैं कि सूर्योदय से पूर्व का आसमान नीले शंख की तरह होता है।भोर का आसमान राख से लीपे हए चौके की तरह होता है जो अभी गीला ही है। कवि कहते हैं कि प्रभात कालीन वेला सौंदर्य की साम्राज्ञी होती है। (Usha class 12 hindi)

बहत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धूल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘उषा’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार शमशेर बहादुर सिंह है। इसमें कवि ने प्रातः कालीन दृश्य की चर्चा की है।

कवि कहते हैं कि भोर का आसमान राख से लीपे हए चौके की तरह होता है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने लाल केसर वाली सिल को धो दिया गया है लेकिन उस पर केसर की आभा दिखाई दे रही है। कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दिया गया हो। (Usha class 12 hindi)

नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘उषा’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार शमशेर बहादुर सिंह है। इसमें कवि ने प्रातः कालीन दृश्य की चर्चा की है।

कवि कहते हैं कि नीला आकाश मानो नीले जल की भांति प्रतीत हो रहा है और सूर्य आकाश में ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई सुंदरी नीले जल से बाहर आ रही हो और उसके गोरे रंग की आभा चारों तरफ फैल रहा हो। (Usha class 12 hindi)

और …..
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘उषा’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार शमशेर बहादुर सिंह है। इसमें कवि ने प्रातः कालीन दृश्य की चर्चा की है।

कवि कहते है कि प्रातः कालीन समय सतरंगी होता है। और आकाश राख से लिपे हए चौके की तरह प्रतीत होता है लेकिन सूर्योदय के बाद उषा रूपी सुंदरी की लालिमा और नीलिमा वाली शोभा नष्ट हो जाती है अर्थात उषा का जादू खत्म हो जाता है। (Usha class 12 hindi)

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