Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi- हिंदी कक्षा 10 परम्परा का मूल्यांकन

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में Parampara Ka Mulyankan गोधूली भाग – 2 के गद्य खण्ड के पाठ 7 ‘परम्परा का मूल्यांकन (निबंध)’ के सारांश को पढ़ेंगे। इस निबंध के रचनाकार रामविलास शर्मा है । रामविलास शर्मा जी ने इस निबंध में साहित्य के परंपरा के बारे मे बताया है| (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

  • लेखक का नाम – डॉ० रामविलास शर्मा
  • जन्म – 10 अक्टूबर 1912 ई० में
  • जन्म स्थान – उन्नाव जिला के एक छोटे से गांव ऊंचगांव सानी (उ० प्र०)
  • मृत्यु – 30 मई 2000 ई० को दिल्ली
  • उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1932 ई० में बी० ए०
  • तथा 1934 ई० में अंग्रेजी साहित्य में एम० ए० किया
  •  1938 ई० तक शोधकार्य में व्यस्त रहे
  • 1938-1943 ई० तक उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापन कार्य किये।
  • 1943-1971 ई० तक आगरा के बलवंत राजपूत कॉलेज में अध्यापन कार्य करते रहे।
  • आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर वे के० एम० हिंदी संस्थान के निदेशक बने।
  • और यहीं से 1974 ई० में सेवानिवृत्त हुए।
  • 1949 से 1953 ई० तक भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री भी रहे

प्रमुख रचनाएं-

  • ‘निराला की साहित्य साधना’ , ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना’, ‘भारतेन्दु हरिश्चंद्र’, ‘प्रेमचंद और उनका युग’, ‘भाषा और समाज’, ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण’, ‘भारत की भाषा समस्या’, ‘नयी कविता और अस्तित्ववाद’, ‘भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद’, ‘भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी’, ‘विराम चिह्न’, ‘बड़े भाई’ आदि .
  • उन्हें ‘निराला की साहित्य साधना’ पुस्तक पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है.
  • देशभक्ति और मार्क्सवादी चेतना रामविलास जी का केंद्र बिंदु है।
  • यह निबंध परंपरा के मूल्यांकन से लिया गया है। (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

यह निबंध समाज, साहित्य और परंपरा के पारस्परिक संबंधों की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक मीमांसा एकसाथ करते हुए रूपांतर ग्रहण करता है। परंपरा के ज्ञान, समझ और मूल्यांकन का विवेक जगाता यह निबंध साहित्य की सामाजिक विकास में क्रांतिकारी भूमिका को भी स्पष्ट करता चलता है।  नई पीढ़ी में यह निबंध परंपरा और आधुनिकता की युगानुकूल नई समझ विकसित करने में एक सार्थक हस्तक्षेप करता है। (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

प्रस्तुत पाठ ‘परम्परा का मूल्यांकन’ ख्यातिप्राप्त आलोचक रामविलास शर्मा द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने प्रगतिशील रचनाकारों के विषय में अपना विचार प्रकट किया है।

लेखक का मानना है कि क्रांतिकारी साहित्य-रचना करनेवालों के लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि साहित्यिक-परम्परा के ज्ञान से ही प्रगतिशील आलोचना का विकास होता है और साहित्य की धारा बदली जा सकती है। तथा नए प्रगतिशील साहित्य का निर्माण किया जा सकता है।

मनुष्य आर्थिक जीवन के अलावा एक प्राणि के रूप में भी जीवन व्यतीत करता है। साहित्य विचारधारा मात्र नहीं है।
साहित्य में विकास प्रक्रिया चलती रहती है। जैसे-जैसे समाज का विकास होता है वैसे-वैसे साहित्य का भी। व्यवहार में देखा जाता है कि 19 वीं तथा 20 वीं सदी के कवि क्या भारत के, क्या यूरोप के, ये तमाम कवि अपने पूर्ववर्ती कवियों की रचनाओं का मनन करते हैं, उनसे सिखते हैं और नई परम्पराओं को जन्म देते हैं।

दूसरों को नकल करके लिखा गया साहित्य अधम कोटि का होता है और सांस्कृतिक असमर्थता का सूचक होता है। लेकिन उतम कोटि का साहित्य दूसरी भाषा में अनुवाद किए जाने पर अपना कलात्मक-सौन्दर्य खो देता है। तात्पर्य यह कि ऐसे साहित्य से कला की आवृति नहीं हो सकती। जैसे- अमेरिका अथवा रूस ने एटम बम बनाए, लेकिन शेक्सपियर के नाटकों जैसी चीज दुबारा लेखन इंगलैड में भी नहीं हुआ।
19वीं सदी में शेली तथा वायरन ने अपनी स्वाधीनता के लिए लड़ने वाले यूनानीयों को एकात्मकता की पहचान करने में सहयोग किया था।

भारतीयों ने भी अपनी स्वाधीनता संग्राम के दौरान इस एकात्मकता को पहचाना।
मानव समाज बदलता है और अपनी अस्मिता कायम रखता है, क्योंकि जो तत्व मानव समुदाय को एक जाति के रूप में संगठित करता है। साहित्य पंरपरा के ज्ञान के कारण ही पूर्वी एवं पश्चिमी बंगाल के लोग सांस्कृतिक रूप से एक हैं। कोई भी देश बहुजातिय तथा बहुभाषी होने के बावजूद जब उस देश पर कोई मुसीबत आती है तो उस समय वह राष्ट्रीय अस्मिता समर्थ प्रेरक बनकर लोगों को मुसीबत से लड़ने में सहयोग करती है।

जैसे- हिटलर के आक्रमण के समय रूसी जाति ने बार-बार अपने साहित्य परंपरा का स्मरण किया। टॉल्स्टाय सोवियत समाज में पढ़े जाने वाले साहित्य के महान साहित्यकार हैं तो रूसी जाति के अस्मिता को सुदृढ़ एवं पुष्ट करने वाले साहित्यकार भी हैं।

1917 ई0 के रूसी क्रांति के पहले वहाँ रूसी तथा गैर-रूसी थे, किन्तु इस क्रांति के बाद रूसी तथा गैर रूसी जातियों के संबंधों में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ। सभी जातियाँ एक हो गई। फिर भी जातियों का मिला-जुला इतिहास जैसा भारत का है, वैसा सोवियत संघ का नहीं है।
यूरोप के लोग यूरोपियन संस्कृति की बात करते हैं, लेकिन यूरोप कभी राष्ट्र नहीं बना।

राष्ट्रीयता की दृष्टी से भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ राष्ट्रीय एक जाति द्वारा दूसरी जाति पर थोपी नहीं गई, बल्कि वह संस्कृति तथा इतिहास की देन है।
इस संस्कृति के निर्माण में देश के कवियों का महान योगदान है। रामायण एवं महाभारत इस देश की संस्कृति की एक कड़ी है। जिसके बिना भारतीय साहित्य की एकता भंग हो जाएगी।

लेखक का तर्क है कि यदि जारशाही रूस समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर नवीन राष्ट्र के रूप में पुनर्गठित हो सकता है तो भारत में समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर यहाँ की राष्ट्रीय अस्मिता पहले से कितना पुष्ट होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। अतः समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है।

पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का अपवाह होता है। देश के साधनों का समुचित उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही होता है।
देश की निरक्षर निर्धन जनता जब साक्षर होगी तो वह रामायण तथा महाभारत का ही अध्ययन नहीं करेगी, अपितु उत्तर भारत के लोग दक्षिण

भारत की कविताएँ तथा दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत की कविताएँ बड़े चाव से पढ़ेंगे। दोनों में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा। तब अंग्रेजी भाषा प्रभुत्व जमाने की भाषा न होकर ज्ञानार्जन की भाषा होगी।

हम अंग्रेजी ही नहीं, यूरोप की अनेक भाषाओं का अध्ययन करेंगे। एशिया के भाषाओं के साहित्य से हमारा गहरा परिचय होगा, तब मानव संस्कृति की विशाल धारा में भारतीय साहित्य की गौरवशाली परम्परा का नवीन योगदान होगा। (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

Parampara Ka Mulyankan; प्रश्न उत्तर

Parampara Ka Mulyankan: पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. परंपरा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – जो लोग साहित्य में युग परिवर्तित करना चाहते हैं। जो लकीर के फकीर नहीं है, जो रूढ़ियाँ तोड़कर क्रांतिकारी साहित्य रचना चाहते हैं। उनके लिए साहित्य की परंपरा का ज्ञान सबसे ज्यादा आवश्यक है।

प्रश्न 2. परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक क्यों महत्त्वपूर्ण मानता है ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – निबंधकार रामविलस शर्मा जी के अनुसार, परम्परा का मूल्यांकन करते समय साहित्य के वर्गीय आधार को समझना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि साहित्य हमेशा किसी न किसी वर्ग के हितों या विचारधारा से प्रभावित होता है। विवेकपूर्ण मूल्यांकन से हम यह पहचान सकते हैं कि कौन सा साहित्य शोषक वर्ग का पक्ष ले रहा है और कौन सा शोषक के विरुद्ध आम जनता के हितों की रक्षा कर रहा है। इससे हमें श्रेष्ठ और प्रगतिशील साहित्य को चुनने में मदद मिलती है।

प्रश्न 3. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है ? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें । (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – साहित्य में विचारधारा की अपेक्षा मनुष्य के इंद्रियबोध और उसकी भावनाओं की अभिव्यक्ति ही अपेक्षाकृत अस्थाई होती है। विचारधारा स्थिति और समय के मांग के अनुसार परिवर्तनशील होती है, लेकिन इंद्रियबोध और भावनाओं में अपेक्षाकृत अधिक स्थायित्व होता है। मानवीय अनुभूतियों और भावनाएं स्थाई होती है इसमें विचारधाराओं की तरह चंचल परिवर्तनशीलता नहीं होती। साहित्य का भाव पक्ष विचार पक्ष से ज्यादा स्थाई होता है।

प्रश्न 4. ‘साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती, जैसे समाज में’ लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए। (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक का आशय यह है कि समाज में विकास क्रमिक और अक्सर सीधी रेखा में होता है (जैसे बैलगाड़ी से हवाई जहाज तक का सफर), लेकिन साहित्य में ऐसा नहीं है। साहित्य में यह ज़रूरी नहीं कि बाद में आने वाला कवि अपने पूर्ववर्ती कवि से श्रेष्ठ ही हो। उदाहरण के लिए, आज का कोई भी नाटककार शेक्सपियर से आगे नहीं निकल पाया है, जबकि विज्ञान और समाज बहुत आगे बढ़ चुके हैं। साहित्य में कलात्मक विकास की अपनी स्वतंत्र और जटिल गति होती है।

प्रश्न 5. लेखक मानव चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी सापेक्ष स्वाधीनता किन दृष्टांतों द्वारा प्रमाणित करता है ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक का मानना है कि मानव चेतना पूरी तरह आर्थिक संबंधों की गुलाम नहीं होती। इसे प्रमाणित करने के लिए वे अमेरिका और एथेंस का उदाहरण देते हैं। वे बताते हैं कि गुलामी के समय के एथेंस ने जिस महान साहित्य और कला को जन्म दिया, वह आज के विकसित और धनी अमेरिका के पास भी नहीं है। यदि चेतना केवल आर्थिक आधार पर चलती, तो आज का अमेरिका एथेंस से श्रेष्ठ कला पैदा करता। इससे सिद्ध होता है कि साहित्य और चेतना सापेक्ष रूप से स्वाधीन होते हैं।

प्रश्न 6. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से आगाह करता है ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक स्वीकार करते हैं कि साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका मुख्य होती है। लेकिन वे आगाह करते हैं कि प्रतिभाशाली मनुष्य जो कुछ करते हैं, वह सब कुछ अच्छा ही हो, यह ज़रूरी नहीं। उनकी कृतियों में भी दोष हो सकते हैं। इसलिए, किसी भी लेखक की प्रतिभा को आँख बंद करके नहीं मानना चाहिए, बल्कि उसकी सीमाओं को समझकर ही उसकी परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए।

प्रश्न 7. राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक के अनुसार, राजनीति समय के साथ बदलती रहती है और साम्राज्य या शासन खत्म हो जाते हैं, लेकिन महान साहित्य सदियों तक जीवित रहता है। उदाहरण के लिए, जिस रोमन साम्राज्य ने यूरोप को प्रभावित किया था, वह नष्ट हो गया, लेकिन एथेंस की कला और साहित्य आज भी पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहे हैं। इसी आधार पर साहित्य के मूल्य राजनीति से अधिक स्थायी माने जाते हैं।

प्रश्न 8. जातीय अस्मिता का लेखक किस प्रसंग में उल्लेख करता है और उसका क्या महत्त्व बताता है ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक ‘जातीय अस्मिता’ का उल्लेख साहित्य के प्रभाव के प्रसंग में करते हैं। वे बताते हैं कि जब किसी राष्ट्र पर संकट आता है, तो यही जातीय अस्मिता उसे एकजुट करती है। जैसे युद्ध के समय लोग अपने पुराने महान कवियों और नायकों को याद करके गर्व महसूस करते हैं और एकजुट होकर लड़ते हैं।

प्रश्न 9. जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप का अंतर करते हुए लेखक दोनों में क्या समानता बताता है ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक के अनुसार ‘जातीय अस्मिता’ एक विशेष समुदाय या भाषा की पहचान है, जबकि ‘राष्ट्रीय अस्मिता’ पूरे देश की साझा पहचान है। दोनों में समानता यह है कि ये दोनों ही इतिहास, संस्कृति और साहित्य की साझा परंपरा से विकसित होती हैं। भारत जैसे बहुजातीय देश में जातीय अस्मिताएं मिलकर एक मजबूत राष्ट्रीय अस्मिता का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 10. बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक रामविलास शर्मा ने यह प्रतिपादित किया है कि बहुजातीय राष्ट्र के हैसियत से कोई भी राष्ट्र भारत का मुकाबला नहीं कर सकता। इसका मुख्य कारण यह है की राष्ट्रीयता एक जाति द्वारा दूसरी जातियों पर राजनीतिक प्रभुता स्थापित करके कायम नहीं हुई है, जबकि विश्व में अनेक बहुजातीय राष्ट्रों में कुछ ऐसा ही हुआ है। भारत की संस्कृति और इतिहास की ही यह देन है कि यहां की विभिन्न जातियां एकात्मक भाव से रहकर भारतीय राष्ट्र की विशिष्ट अस्मिता का निर्माण करती है। भारत के बहुजातीय राष्ट्र के विकास में यहां की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और साहित्य की देन को बुलाया नहीं जा सकता है

प्रश्न 11. भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है. कैसे ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – भारत में आर्य और अनार्य जातियों के साथ अनेक विदेशी जातियों का संगम हुआ है। अनेक विदेशी जातियों ने भारत पर आक्रमण किया, उसमें से अनेक जातियां यहां पर अस्थाई रूप से रहने लगी। उन जातियों ने यहां की जातियों से अनेक संस्कार ग्रहण किया। इस प्रकार भारत में एक मिली जुली संस्कृति का विकास हुआ। यह इतिहास की देन के रूप में ही लिया जाना चाहिए कि भारत एक बहुजातीय राष्ट्र के रूप के अस्तित्व में आया। भारतीय संस्कृति ने बहुजातियाता को स्वीकार किया और उसमें सकारात्मक का विधान किया है।

प्रश्न 12. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है ? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें । (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक रामविलास शर्मा जी के अनुसार भारत में समाजवादी व्यवस्था कायम होने से यहाँ की राष्ट्रीय अस्मिता पहले से ज्यादा मजबूत होगी। वे कहते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था में बेहिसाब शक्ति का अपव्यय होता है। देश के साधनों का उत्तम उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही संभव हो सकता है क्योंकि जहाँ भी समाजवादी व्यवस्था कायम हुई है, वहाँ का राष्ट्र पहले से ज्यादा शक्ति संपन्न हो गया है। हमारा राष्ट्र भी समाजवाद के संस्थापक से ही शक्ति संपन्न हो होगा।

प्रश्न 13. निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है ? उसे साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है ? विचार करें । (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर –निबंध का समापन करते हुए लेखक रामविलास शर्मा भारत में अधिक से अधिक लोगों के साक्षर होने का स्वप्न देखते हैं। जब हमारे देश की जनता साक्षर होगी तब रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ पढ़ने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होगी। देश में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा। लोग भाषा की सीमा में नहीं बंधेंगे। यहाँ की विभिन्न भाषाओं में लिखा हुआ साहित्य जातीय सीमाएं लगकर सारे देश की संपत्ति बनेगा। साहित्य के परंपरा के योगदान से एशिया की भाषाओं के साहित्य से हमारा परिचय गहरा होगा।

प्रश्न 14. साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है. इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कौन-से तर्क और प्रमाण उपस्थित किए हैं ? (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

उत्तर – लेखक का मुख्य तर्क यह है कि यदि साहित्य पूरी तरह आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर होता, तो गुलामी के दौर वाले एथेंस में इतना महान साहित्य नहीं रचा जाता। उन्होंने तर्क दिया कि आर्थिक ढाँचा बदलने के बाद भी पुरानी साहित्यिक कृतियाँ (जैसे शेक्सपियर के नाटक) आज भी हमें आनंद देती हैं। यह प्रमाणित करता है कि साहित्य सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित तो होता है, लेकिन वह उनके पूरी तरह अधीन नहीं होता; उसकी अपनी एक स्वाधीन पहचान होती है।

प्रश्न 15. व्याख्या करें – (Parampara Ka Mulyankan Class 10 Hindi)

विभाजित बंगाल से विभाजित पंजाब की तुलना कीजिए, तो ज्ञात हो जाएगा कि साहित्य की परंपरा का ज्ञान कहां ज्यादा है, कहां कम है और इस न्यूनाधिक ज्ञान के सामाजिक परिणाम क्या होते हैं ।

उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक को गोधूलि भाग 2 में संकलित है `परंपरा का मूल्यांकन` शीर्षक निबंध से ली गई है। इसके रचनाकार रामविलास शर्मा है

निबंधकार के अनुसार साहित्य की परंपरा का ज्ञान विभाजित पंजाब की तुलना में विभाजित बंगाल में ज्यादा है। विभाजन के बाद भी पश्चिम बंगाल एवं पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) बांग्ला भाषा की साहित्य परंपरा कायम है और दोनों बंगाल की जनता अपनी इस भाषा के प्रति समर्पित है। विभाजित पंजाब में भाषा भी क्षेत्र के बंटवारे के साथ अलग-अलग हो गई। साहित्य के परंपरा का ज्ञान देश के लोगों को सांस्कृतिक बोध से समृद्ध कराता है और उनमें एकात्मकता का बोध उत्पन्न करता है। सांस्कृतिक एवं एकात्मकता का बोध समाज में सामंजस्य की भावना भरता है और इस प्रकार सामाजिक एकता की स्थापना करता है।

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