नागरी लिपि ( निबंध ) Nagari Lipi Question Answer 2024

जय हिन्द। Nagari Lipi Question Answer गोधूली भाग – 2 के गद्य खण्ड के पाठ 5 ‘नागरी लिपि’ के सारांश को पढ़ेंगे। इस पाठ के रचनाकर गुणाकर मुले है । गुणाकर मुले ने इस पाठ में हिन्दी की लिपि नागरी या देवनागरी के ऐतिहासिक रूपरेखा के बारे में बताया गया है।(Bihar Board Class 10 Hindi गुणाकर मुले) (Bihar Board Class 10 Hindi नगरी लिपि )(Bihar Board Class 10th Hindi Solution) ( नागरी लिपि )

Nagari Lipi Question Answer
  • लेखक का नाम – गुणाकर मुले
  • जन्म – 1935 ई०
  • जन्म स्थान – महाराष्ट्र के अमरावती जिला में
  • मृत्यु – 2005 ई०
  • इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्रामीण परिवेश में मराठी भाषा में हुई।
  • ये मिडिल स्तर तक पढ़ाई मराठी में किए।
  • फिर वर्धा चले गए।
  • वहाँ 2 वर्षों तक नौकरी किए और साथ में हिन्दी तथा अंग्रेजी का अध्ययन किए।
  • इलाहाबाद आकार गणित में मैट्रिक से एम०ए० तक पढ़े।
  • इनकी रचना विषय:– गणित, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, विज्ञान का इतिहास, पुरालिपिशास्त्र और प्राचीन भारत का इतिहास व संस्कृति जैसे विषयों पर खूब रचना किए।
  • 2500 से अधिक लेख और 30 पुस्तक प्रकाशित हो चुका है।
  • प्रमुख रचनाएँ :– ‘अक्षरों की कहानी’, ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’, ‘प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘मैंडलीफ’, ‘महान वैज्ञानिक’, ‘सौर मंडल’, ‘सूर्य’, ‘नक्षत्र-लोक’, ‘भारतीय लिपियों की कहानी’, ‘अंतरिक्ष-यात्रा’, ‘ब्रह्मांड परिचय’, ‘भारतीय विज्ञान की कहानी’ , ‘अक्षर कथा’ आदि ।
  • अक्षर कथा में संसार की प्रायः सभी प्रमुख पुरालिपियों की विस्तृत जानकारी दी गई है।
  • यह निबंध भारतीय लिपियों की कहानी से लिया गया है।

प्रस्तुत निबंध में हिंदी की अपनी लिपि नागरी या देवनागरी के ऐतिहासिक विकास की रूपरेखा स्पष्ट की गयी है। यहाँ हमारी लिपि की प्राचीनता, व्यापकता और शाखा विस्तार का प्रवाहपूर्ण शैली में प्रामाणिक आख्यान प्रस्तुत किया गया है। तकनीकी बारीकियों और विवरणों से बचते हुए लेखक ने निबंध को बोझिल नहीं होने दिया है तथा सादगी और सहजता के साथ जरूरी ऐतिहासिक जानकारियाँ देते हुए लिपि के बारे में हमारे भीतर आगे की जिज्ञासाएँ जगाने की कोशिश की है।

प्रस्तुत पाठ ’नागरी लिपि’ गुणाकर मुले के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने देवनागरी लिपि की उत्पति, विकास एवं व्यवहार पर अपना विचार व्यक्त किया गया है। लेखक का कहना है कि जिस लिपि में यह पुस्तक छपी है, उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहते हैं। इस लिपि की टाइप लगभग 2 सदी पहले बनी। इसके विकास से अक्षरों में स्थिरता आ गई।

हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ, संस्कृत एवं नेपाली आदि इसी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी के संबंध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विश्व में संस्कृत एवं प्राकृत की पुस्तकें प्रायः इसी लिपि में छपती है।

देश में बोली जाने वाली भिन्न-भिन्न भाषाएँ तथा बोलियाँ भी इसी लिपि में लिखी जाती है। तमिल, मलयालम, तेलुगु एवं कन्नड़ की लिपियों में भिन्नता दिखाई पड़ती है, लेकिन ये लिपियाँ भी नागरी की तरह ही प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है।

लेखक का कहना है कि नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। यह लिपि नंदिनागरी लिपि कहलाती थी। दक्षिण भारत में तमिल-मलयालम और तेलुगु-कन्नड़ लिपियों का स्वतंत्र विकास हो रहा है, फिर भी कई शासकों ने नागरी लिपि का प्रयोग किया है। जैसे- ग्यारहवीं सदी में राजराज और राजेन्द्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर अंकित है तो बारहवीं सदी में केरल के शासकों के सिक्कों पर “वीर केरलस्य’।

इसी प्रकार नौवीं सदी के वरगुण का पलियम ताम्रपत्र नागरी लिपि में है तो ग्यारहवीं सदी में इस्लामी शासन की नींव डालने वाले महमूद गजनवी के चाँदी के सिक्कों पर भी नागरी लिपि के शब्द मिलते हैं।

गजनवी के बाद मुहम्मद गोरी, अलाउदीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने भी सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए। अकबर के सिक्कों पर तो नागरी लिपि में ’रामसीय’ शब्द अंकित है। तात्पर्य है कि नागरी लिपि का प्रचलन ईसा की आठवीं-नौवीं सदी से आरंभ हो गया था।

लेखक ने लिपि के पहचान में कहा है कि ब्राह्मी तथा सिद्धम् लिपि अक्षर तिकोन है जबकि नागरी लिपि के अक्षरों के सिरों पर लकिर की लम्बाई और चौड़ाई एक समान है।

प्राचीन नागरी लिपि के अक्षर आधुनिक नागरी लिपि से मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार दक्षिण भारत में नागरी लिपि के लेख आठवीं सदी से तथा उत्तर भारत में नौवीं सदी से मिलने लग जाते हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि इस नई लिपि को नागरी, देवनागरी तथा नंदिनागरी क्यों कहते हैं ? —नागरी शब्द के उत्पति के संबंध में विद्वानों का मत एक नहीं है। कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात के नागर ब्राह्मण ने इस लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग किया था, इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा, किंतु कुछ विद्वानों के मत के अनुसार अन्य नगर तो मात्र नगर है, परन्तु काशी को देवनगरी माना जाता है, इसलिए इसका नाम देवनागरी पड़ा।

अल्बेरूनी के अनुसार 1000 ई० के आसपास नागरी शब्द अस्तित्व में आया। इतना निश्चित है कि नागरी शब्द किसी नगर अथवा शहर से संबंधित है। दूसरी बात यह है कि उत्तर भारत की स्थापत्य-कला की विशेष शैली को ’नागर शैली’ कहा जाता था। यह नागर या नागरी उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता था। उस समय उत्तर भारत में प्राचीन पटना सबसे बड़ा नगर था। साथ ही गुप्त शासक चन्द्रगुप्त (द्वितीय) ’विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ’देव’ था, संभव है कि गुप्तों की राजधानी पटना को ’देवनगर कहा गया हो और देवनगर की लिपि होने के कारण देवनागरी नाम दिया गया हो।

अन्ततः लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि ईसा के आठवीं से ग्यारहवीं सदी तक यह लिपि सार्वदेशिक हो गई थी, इसलिए इसके नामकरण के विषय में कुछ कहना संभव नहीं लगता।

मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि में है। धारा नगरी का परमार शासक भोज अपने विद्यानुराग के लिए इतिहास प्रसिद्ध है। 12वीं सदी के बाद भारत के सभी हिंदू शासक तथा कुछ इस्लामी शासकों ने अपने सिक्कों पर नागरी लिपि अंकित किए हैं।

उत्तर — करीब दो सदी पहले पहली बार देवनागरी लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगी। इस प्रकार ही देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता आयी है।

उत्तर — देवनागरी लिपि में मुख्यतः नेपाली (खसकुरा) व नेवारी , मराठी, संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी भाषाएँ लिखी जाती हैं।

उत्तर — लेखक ने गुजराती, बांग्ला और ब्राह्मी लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है। बांग्ला लिपि प्राचीन नगरी लिपि की पुत्री नहीं, तो बहन अवश्य है।

उत्तर — कुछ समय पहले दक्षिण भारत में पोथियाँ‌ लिखने के लिए नागरी लिपि का प्रयोग होता था। वास्तव में नागरी लिपि के आरंभिक लेख दक्षिण भारत से मिले हैं। दक्षिण भारत की यह नागरी लिपि नंदी नगरी कहलाती थीं। कोंकण के शीलाहार, मान्याखेट के राष्ट्रकूट , देवगिरि के यादव और विजयनगर के शासकों के लेख नंदीनगरी में है। सबसे पहले विजयनगर के राजाओं के लेखों की लिपि को नंदीनागरी लिपि कहा गया है।

उत्तर — विद्वानों के अनुसार नागरी लिपि के आरंभिक लेख विंध्य पर्वत के नीचे ढक्कन प्रदेश से प्राप्त हुए हैं। राजराज , राजेंद्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिखों पर नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं। सुदूर दक्षिणी से प्राप्त वरगुण का पलियम ताम्रपत्र नागरी लिपि में है।

उत्तर — गुप्त काल की ब्राह्मी और बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस तिकोन है, लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें बन जाती है और यह शिरोरेखाएं उतनी ही लंबी रहती है, जितनी अक्षरों की चौड़ाई होती है।

उत्तर — उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर–अजमेर के चौहान , कन्नौज के गाहड़वाल, काठियावाड़–गुजरात के सोलंकी , आबू के परमार , जेजाकभूक्ति (बुंदेलखंड ) के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचूरि शासकों के लेख नगरी लिपि में हैं।

उत्तर — नागरी नाम की उत्पत्ति तथा इसके अर्थ के बारे में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। एक मत के अनुसार गुजरात के नागर ब्राह्मणों ने पहले–पहल इस लिपि का इस्तेमाल किया, इसलिए इसका नाम नगरी पड़ा। इस मत को स्वीकार करने में अनेक अड़चनें हैं। एक अन्य मत के अनुसार बाकी नगर सिर्फ नगर है, परंतु काशी देवनगरी है। इसलिए काशी में प्रयुक्त लिपि का नाम देवनागरी पड़ा। पर यह भी एक संकुचित मत है।

उत्तर — इतना निश्चित है कि नगरी शब्द किसी नगर अर्थात् बड़े शहर से संबंधित है। ‘पादताडितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थें। हम यह भी जानते है कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहते है। अतः नागर या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन पटना ही हो। चंद्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था। इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ भी कहा जाता होगा। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा, लेकिन यह सिर्फ एक मत है।

उत्तर — ईसा की आठवीं – नौवीं सदी से नागरी लिपि का प्रचलन सारे देश में था। यह एक सार्वदेशिक लिपि थी।

उत्तर — नागरी लिपि के साथ – साथ अनेक प्रादेशिक भाषाएँ जन्म लेती है। आठवीं – नौवीं सदी से आरंभिक हिन्दी का साहित्य मिलने लग जाता है। इसी काल में भारतीय आर्यभाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ — मराठी , बंग्ला आदि जन्म ले रही थी। इस समय से इन भाषाओं के लिख भी मिलने लग जाते है।

उत्तर —अनेक विद्वानों का मत है कि गुर्जर–प्रतिहार बाहर से भारत आए थे । ईसा की आठवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने अपना शासन खड़ा किया और बाद में कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया । मिहिरभोज , महेंद्रपाल आदि प्रख्यात प्रतिहार शासक हुए। मिहिरभोज (840-81 ई०) की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि संस्कृत भाषा में हैं।

उत्तर — नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। कोंकण के शीलाहार, मान्याखेट के राष्ट्रकूट , देवगिरि के यादव और विजयनगर के शासकों के लेख नंदीनगरी में है। सबसे पहले विजयनगर के राजाओं के लेखों की लिपि को नंदीनागरी लिपि में है। राजराज , राजेंद्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिखों पर नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं। 12 वीं सदी के केरल के शासकों के सिक्कों पर ‘वीर केरलस्य’ जैसे शब्द नागरी लिपि में अंकित है।

सुदूर दक्षिणी से प्राप्त वरगुण का पलियम ताम्रपत्र नागरी लिपि में है। 12 वीं सदी में श्रीलंका के पराक्रमबाहु, विजयबहु आदि शासकों के सिक्कों पर भी नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं। 11 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में गजनबी द्वारा ढलावाए गए सिखों पर नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं। गुप्तों की राजधानी पटना में भी देवनागरी लिपि होने का प्रमाण मिला है। 12 वीं सदी के सभी हिंदू शासक देवनागरी लिपि का इस्तेमाल करते हुए देखे जा सकते हैं।

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