बहादुर Bahadur Ka Question Answer 2024

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में Bahadur Ka Question Answer गोधूली भाग – 2 के गद्य खण्ड के पाठ 6 ‘बहादुर’ के सारांश को पढ़ेंगे। इस कहानी के अमरकांत है । अमरकांत जी ने इस कहानी में मँझोले शहर के नौकर की लालसा वाले निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में काम करने वाले एके नेपाली गँवई गोरखे बहादुर की कहानी है |(Bihar Board Class 10 Hindi अमरकांत ) (Bihar Board Class 10 Hindi बहादुर )(Bihar Board Class 10th Hindi Solution) ( बहादुर )

  • लेखक का नाम – अमरकांत
  • जन्म – 1 जुलाई 1925 ई०
  • जन्म स्थान – बलिया जिला के नागरा गाँव, (उत्तर प्रदेश)
  • गवर्नमेंट हाई स्कूल बलिया से शिक्षा पाई।
  • 1942 ई० के स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने के कारण पढ़ाई अधूरी रह गई।
  • 1946 ई० में सतीशचंद्र कॉलेज बलिया से इंटरमीडिएट किए।
  • 1947 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी०ए० किए।
  • 1948 ई० में अगरा के दैनिक पत्र ‘सैनिक’ का संपादन किए।
  • इसके अतिरिक्त पत्रिका :—
    • दैनिक पत्रिका – अमृत पत्रिका (इलाहाबाद), भारत पत्रिका (इलाहाबाद)
    • मासिक पत्रिका – कहानी (इलाहाबाद), मनोरमा (इलाहाबाद)
  • अगरा में प्रगतिशील लेखक संघ में शामिल हुए।
  • इनकी कहानी ‘डिप्टी कलक्टरी’ अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत हुई।
  • इन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
  • इनकी कहानियों में लोक जीवन के मुहावरे और देशज शब्द का प्रयोग होता है।
  • प्रमुख रचनाएँ :—
    • कहानी – ‘जिंदगी और जॉक’, ‘देश के लोग’, ‘मौत का नगर’, ‘मित्र मिलन’, ‘कुहासा आदि
    • उपन्यास – ‘सूखा पत्ता’ , ‘आकाशपक्षी’, ‘काले उजले दिन’, ‘सुखजीवी’, ‘बीच की दीवार’, ‘ग्राम सेविका’ आदि
    • बाल उपन्यास – ‘वानर सेना’ नामक एक बाल उपन्यास भी लिखा है।
  • यह सामाजिक कहानी है।

प्रस्तुत कहानी मँझोले शहर के नौकर की लालसा वाले निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में काम करने वाले एके नेपाली गँवई गोरखे बहादुर की कहानी है । परिवार का नौकरी पेशा मुखिया तटस्थ स्वर में बहादुर के आने और अपने स्वच्छंद निश्छल स्वभाव की आत्मीयता के साथ नौकर के रूप में अपनी सेवाएँ देने के बाद एक दिन स्वभाव की उसी स्वच्छंदता के साथ हर हृदय में एक कसकती अंतर्व्यथा देकर चले जाने की कहानी कहता है। लेखक घर के भीतर और बाहर के यथार्थ को बिना बनाई सँवारी सहज परिपक्व भाषा में पूरी कहानी बयान करता है। हिंदी कहानी में एक नये नायक को यह कहानी प्रतिष्ठित करती है।

प्रस्तुत पाठ ’बहादुर’ अमरकान्त के द्वारा लिखा है। इसमें लेखक ने बहादुर नामक एक नेपाली लड़का के रूप-रंग, स्वभाव कर्मनिष्ठा, त्याग तथा स्वाभिमान का मार्मिक वर्णन किया है।

एक दिन लेखक ने बारह-तेरह वर्ष की उम्र के ठिगना चकइठ शरीर, गोरे रंग तथा चपटा मुँह वाले लड़के को देखा। वह सफेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बँधा था। परिवार के सभी सदस्य उसे पैनी दृष्टि से देख रहे थे। लेखक को नौकर रखना अति आवश्यक हो गया था। क्योंकि उनके भाई तथा रिश्तेदारों के घर नौकर थे।

उनकी भाभियाँ रानी की तरह चारपाइयाँ तोड़ती थी, जबकि उनकी पत्नी निर्मला दिन से लेकर रात तक परेशान रहती थी। इसलिए लेखक के साले ने उनके घर नौकर के लिए लाया था। वह नेपाल तथा बिहार की सीमा पर रहता था। उसका बाप युद्ध में मारा गया था। माँ ही सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी। वह गुस्सैल स्वभाव की थी। वह चाहती थी कि उसका बेटा घर के काम में हाथ बटाए, किंतु काम करने के नाम पर वह जंगलों में भाग जाता था, जिस कारण माँ उसे मारती थी।

एक दिन चराने ले गये पशुओं में से उस भैंस को उसने बहुत मारा, जिसको उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती थी। मार खाकर भैंस भागीदृभागी उसकी माँ के पास पहुंच गई। भैंस के मार का काल्पनिक अनुमान करके माँ ने उसकी निर्दयता से पिटाई कर दी।

लड़के का मन माँ से फट गया। उसने माँ के रखे रूपयों में से दो रूपये निकाल लिये और वहाँ से भाग गया तथा छः मील दूर बस-स्टेशन पहुँच गया। वहाँ उसकी भेंट लेखक से होती है। लेखक ने उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम दिलबहादुर बताया। लेखक तथा उसकी पत्नी ने उसे काम के ढंग के बारे में बताया, साथ ही, मीठे वचनों से उसका दिल भर दिया। निर्मला ने उसके नाम से ’दिल’ हटा दिया। वह अब दिल बहादुर से बहादुर बन गया।

बहादुर अति हँसमुख तथा मेहनती लड़का था। वह हर काम हँसते हुए कर लेता था। लेखक की पत्नी निर्मला भी उसका पूरा ख्याल रखती थी। उसकी वजह से घर का उत्साहपूर्ण वातावरण था।

निर्मला ऐसे नौकर पाकर अपने-आप के धन्य समझती थी। इसलिए वह आँगन में खड़ी होकर पड़ोसियों को सुनाते हुए कहती थी, बहादुर आकर नास्ता क्यों नहीं कर लेते ? मैं दूसरी औरतों की भाँति नहीं हुँ। मैं तो नौकर-चाकर को अपने बच्चों की तरह रखती हूँ।

बहादुर भी घर का सारा काम करने लगा, जैसे- सवेरे उठ कर नीम के पेड़ से दातुन तोड़ना, घर की सफाई करना, कमरों में पोंछा लगाना, चाय बनाना तथा पिलाना, दोपहर में कपड़े धोना, बर्तन मलना आदि।

बहादुर सिधा-साधा तथा रहमदिल बालक था। अपनी मालकिन की तबीयत ठीक नहीं रहने पर काम न करने का आग्रह करता था और दवा खाने का समय होने पर वह भालू की तरह दौड़ता हुआ कमरे में जाता और दवाई का डिब्बा निर्मला के सामने लाकर रख देता था।

वह कृतज्ञ बालक था। निर्मला के पूछने पर उसने कहा कि माँ बहुत मारती थी, इसलिए माँ की याद नहीं आती है, परन्तु माँ के पास पैसा भेजने के संबंध में उसका उत्तर था- माँ-बाप का कर्जा तो जन्म भर भरा जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि वह मस्त और नेक इन्सान था।

उसकी मस्ती का पता तब चलता था जब रात का काम समाप्त करने के बाद एक टूटी खाट पर बैठ जाता तथा नेपाली टोपी पहनकर आइना में बंदर की तरह मुँह देखता और कुछ देर तक खेलने के बाद वह धीमे स्वर में गुनगुनाने लगता था। उसके पहाड़ी गाने से घर में मीठी उदासी फैल जाती थी। उसकी गीत को सुनकर लेखक को लगता कि जैसे कोई पहाड़ की निर्जनता में अपने किसी बिछड़े हुए साथी को बुला रहा हो।

लेखक अपने को ऊँचा तथा मोहल्ले के लोगों को तुच्छ मानने लगे, क्योंकि उनके यहाँ नौकर था। बहादुर की वजह से घर के सभी लोग आलसी हो गए। मामूली काम के लिए बहादुर की पुकार होने लगी। जिससे बहादुर को घर में हमेशा नाचना पड़ता था। बड़ा लड़का किशोर ने अपना सारा काम बहादुर को सौंप दिए। वह नौकर को बड़े अनुशासन में रखना चाहता था। इसलिए काम में कोई गड़बड़ी होती तो उसको बुरी-बुरी गालियाँ देता और मारता भी था।

समय बीतने के साथ ही लेखक के मनोस्थिति भी बदल जाती है। अब बहादुर को नौकर की दृष्टि से देखा जाता है। उसे अपना भोजन स्वयं बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। रोटी बनाने से इंकार करने पर निर्मला से मार खाता है।

इतना हि नहीं, कभी-कभी एक गलती के लिए निर्मला तथा किशोर दोनों मारते थे, जिस कारण बहादुर से अधिक गलतियाँ होने लगी। लेखक यह सोचकर चुप रहने लगे कि नौकर-चाकर के साथ मारपीट होना स्वभाविक है।

इसी बीच एक दूसरी घटना घट जाती है। लेखक के घर कोई रिश्तेदार आता है। उनके भोजन के लिए रोहु मछली और देहरादूनी चावल मंगाया जाता है। नास्ता- पानी के बाद बातों की जलेबी छनने लगती है। अचानक उस रिश्तेदार की पत्नी रूपये गुम होने की बात कहकर घर में भूचाल उत्पन्न कर देती है। बहादुर के सिर दोष मढ़ा जाता है।

लेखक को विश्वास नहीं होता, क्योंकी बहादुर ने जब इधर-उधर पैसे पड़ा देखता तो उठाकर निर्मला के हाथ में दे दिया करता था।

किंतु रिश्तेदार के यह कहने पर की नौकर-चाकर चोर होते हैं, लेखक ने उससे कड़े स्वर में पुछा- तुमने यहाँ से रूपये उठाये थे ? उसने निर्भीकतापूर्वक उत्तर दिया, ’नहीं बाबुजी’। बहादुर का मुँह काला पड़ गया, लेखक ने उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दिया कि ऐसा करने से बता देगा। उसकी आँखों से आँसु गिरने लगे। इसी समय रिश्तेदार साहब ने बहादुर का हाथ पकड़कर दरवाजे की ओर घसीट कर ले गए, जैसे पुलिस को देने जा रहे हों। फिर भी उसने पैसे लेने की बात स्वीकार नहीं की तो निर्मला भी अपना रोब जमाने के लिए दो-चार तमाचे जड़ दिए।

इस घटना के बाद बहादुर काफी डाँट-मार खाने लगा। किशोर उसकी जान के पिछे पड़ गया था। एक दिन बहादुर वहाँ से भाग निकला।

लेखक जब दफ्तर से लौटा तो घर में उदासी छाई हुई थी। निर्मला चुपचाप आँगन में सिर पर हाथ रख कर बैठी थी। आँगन गंदा पड़ा था। बर्तन बिना मले रखे हुए थे। सारा घर अस्त-व्यस्त था। बहादुर के जाते ही सबके होश उड़ गये थे। निर्मला अपने बदकिस्मती का रोना रो रही थी।

लेखक बहादुर का त्याग देखकर भौंचक्का रह जाता है, क्योंकि उसने अपना तनख्वाह, वस्त्र, विस्तर तथा जुते सब कुछ वहीं छोड़ गया था, जिससे बहादुर के अंदर के दर्द का पता चलता है। वह गरीब होते हुए भी आत्म अभिमानी था। मार तथा गाली-गलौज के कारण ही वह माँ से दुखी था तथा उसने घर का त्याग किया था।

उत्तर — लेखक के घर में एक नौकर की आवश्यकता थी। लेखक की पत्नी निर्मला को सुबह से लेकर रात तक खटना पड़ता था। लेखक को ऐसा लगता था कि उसकी पत्नी के समान अभागिन और दुखिया इस्त्री इस दुनिया में नहीं है। अतः एक परिवार का मुखिया होने के नाते लेखक को ऐसा लगता है कि जैसे उस पर एक भारी दायित्व आ गया है।

उत्तर — बहादुर एक 12–13 वर्ष का लड़का था जिसका ठिगना चकईठ शरीर, गोरा रंग और चपटा मुंह था। वह सफेद नेकर आधी बाँह सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूते पहने हुए था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रुमाल बांधा हुआ था। उस नेपाली लड़के को देखकर लेखक और उसके परिवार के सदस्य उसको घेर कर खड़े थे।

उत्तर — लेखक के लिए नौकर रखना कई कारणों से बहुत जरूरी हो गया था। लेखक के सभी भाई और रिश्तेदार अच्छे पदों पर थे और सभी के यहाँ नौकर थे। लेखक ने नौकर का सुख उस समय देखा था, जब वह अपनी बहन की शादी में घर गए थे। लेखक ने देखा है था कि उसकी दोनों भाभियाँ रानी की तरह बैठकर चौपाइयाँ तोड़ रही थी, जबकि उसकी पत्नी सुबह से शाम तक घटती रहती थी। इस स्थिति को देखकर ही लेखक को ऐसा लगता है कि नौकर रखना उसके लिए बहुत जरुरी हो गया है।

उत्तर — साले साहब से लेखक को बहादुर के संबंध में किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा। साले साहब ने बताया की बहादुर एक नेपाली है और बिहार की सीमा पर उसका बाप एक युद्ध में मारा गया था और उसकी माँ परिवार का भरण पोषण करती थी। बहादुर की मैं बड़ी गुस्से वाली थी और बहादुर को बात-बात पर मरती थी। माँ चहती थी की लडका घर के कम में हाथ बढ़ाए, पर बहादुर पहाड़ों या जंगलों में निकल जता था। एक बार बहादुर ने उस भैंस को मारा जिसको माँ बहुत प्यार करती थी। क्रोधित होकर माँ ने एक डंडे से बहादुर की दोगुनी पिटाई कर दी । जिससे बहादुर का मन अपनी माँ के प्रति फट गया और उसने सदा के लिए अपना घर छोड़ दिया।

उत्तर — बहादुर का बाप एक युद्ध में मारा गया था जिससे परिवार की पोषण की जिम्मेवरी उसके माँ के ऊपर गई। वे बड़ी गुस्से वाली थी। वह बात–बात पर बहादुर की पिटाई कर देती थी। वह चहती थी की उसका बेटा उसके घर के कामों में हाथ बढ़ाये पर बहादुर काम से जी चुराकर पहाड़ों और जंगलों की ओर भाग जता था। एक बार बहादुर ने उस भैंस की पिटाई कर दी जिसे उसकी माँ बहुत चहती थी। क्रोध में आकर माँ ने बहादुर की दो गुनी पिटाई कर दी जिससे बहादुर अपने घर से भाग गया।

उत्तर — बहादुर का वस्तविक नाम दिल बहादुर था। जब बहादुर नौकर के रूप में लेखक के घर आया तब लेखक की पत्नी निर्मला ने उसके नाम से दिल शब्द को उड़ा दिया। मेरे विचार से ऐसा करने के दो प्रयोजन हो सकते हैं। पहला यह की बहादुर का नाम कुछ लंबा था जिससे पुकारने में कुछ गलतियां हो जाती थी। अतः पुकारने वाले नाम के रूप में सिर्फ ‘बहादुर’ शब्द को छोड़ा गया। दुसरा करण यह था की लेखक के मोहल्ले में कुछ उपहास करने वाले व्यक्ति भी रहते थे। कहीं उनके द्वारा बहादुर उपहास का पात्र ना बन जाए। इसलिए लेखक की पत्नी ने बड़े प्यार से बहादुर के नाम से ‘दिल’ शब्द उड़ा दिये।

उत्तर — प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भागों 2 में संकलित बहादुर शीर्षक कहानी से ली गई है। जिसके रचनाकर हिन्दी के श्रेष्ठ कथाकार अमरकांत है।

दफ्तर से आने के बाद लेखक परिवार के सदस्यों से घर का अनुभव सुनता था। बाद में बहादुर की बारी आती थी। बहादुर किसी भी साधारण बात को निडर निः संकोच होकर इस प्रकार सुनाता था। जैसे वह कोई मजेदार बात सुना रहा हो। बात सुनाते समय वह अंदर ही अंदर इतना आनंदित होता की खिलखिला कर हँसने लगता था। लेखक की नजर में उसकी वह हँसी बड़ी कोमल थी। ऐसा लगता था जैसे किसी फूल की पंखुड़ियां टूटकर बिखर गई हो।

उत्तर — प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भागों 2 में संकलित बहादुर शीर्षक कहानी से ली गई है। जिसके रचनाकर हिन्दी के श्रेष्ठ कथाकार अमरकांत है।

इस पंक्ति के द्वारा लेखक यह कहना चाहता है की बहादुर एक ईमानदार और कर्मठ नौकर था। वह केवल प्यार देना और पना चाहता था, पर लेखक के घर में उसे वह प्यार नहीं मिला। लेखक के बड़े लड़के किशोर ने अपने सारे कम बहादुर पर लाद रखे थे। उसमें जरा भी चूक हो जाने पर बहादुर को मारता पिटता था। यही स्थिति लेखक की पत्नी निर्मला की भी हो गई। वह भी छोटी-छोटी बातों के लिए हाथ उठाने लगी जिससे बहादुर की अंतः चेतना में किशोर और निर्मला से मिलने वाली पिटाई के करण एक डर व्याप्त हो गया। जिसके कारण उससे भूल–गलतियां अधिक होने लगी।

उत्तर — प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भागों 2 में संकलित बहादुर शीर्षक कहानी से ली गई है। जिसके रचनाकर हिन्दी के श्रेष्ठ कथाकार अमरकांत है।

बहादुर के चले जाने के बाद लेखक के लड़के किशोर को यह अनुभव हुआ कि बहादुर के साथ उसने अच्छा नहीं किया। बहादुर तो निर्दोष था। किशोर बहादुर के प्रति किए गए अपने निर्मम व्यवहार पर पश्चताप करने लगा। किशोर में पाश्विक वृत्ति के स्थान पर मानवीय संवेदनशीलता का जन्म हुआ है। उसने अपनी माँ से कहा की अगर बहादुर एक बार भी आ जाता तो मैं उस पकड़ लेता और उस कभी जाने नहीं देता। उससे माफी मांग लेता और कभी नहीं मारता। अगर वह कुछ चुरा कर ले गया होता तो मुझे संतोष हो जाता कि चलो उसने अपनी सेवाओं के बदले कुछ लिया तो ।

इस प्रकार यहां पर किशोर के बदले हुऎ चरित्र के संदर्भ में बताया गया है।

उत्तर — प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भागों 2 में संकलित बहादुर शीर्षक कहानी से ली गई है। जिसके रचनाकर हिन्दी के श्रेष्ठ कथाकार अमरकांत है।

यह कथन लेखक का है। अपने घर से बहादुर के चले जाने के पीछे लेखक अपने को दोषी मानता है। किशोर और निर्मला के साथ लेखक भी निर्दोष बहादुर पर हाथ उठाने लगा था। लेखक को ऐसा लगता है की उसने ऐसा करके अपने प्रति बहादुर के विश्वास को तोड़ा था। इसलिए बहादुर उसका घर छोड़कर भाग गया था। यदी लेखक उससे नहीं मारता तो शायद बहादुर ना जता।

उत्तर — लेखक के पत्नी निर्मला ने बहादुर को एक पट्टी पुरानी दरी डे दी थी। बहादुर अपने घर से एक चादर भी ले आया था। रात को कम धाम करने के बाद वाह अभी तक के बरामेड में एक तूती हुई। बस खत पर अपना बीस्टार बिछाता था। वाह वीस्टार पर बैठ जता और अपनी जेब से। कपड़े की एक गोली सी नेपाली टोपी निकलकर पहन लेटा था जो बाई और काफी झुकी रहती थी फिर वाह एक छोटा सा आइना निकल कर बंदर की तरह उसमें अपना मुंह देखता था। वाह बहुत ही खुश नजर आता था, उसके बाद कुछ और भी चीजेन जैसे कुछ गोलियां पुराने ताश की गद्दी। कुछ खूूबसूरत पत्थर के टुकड़े। ब्लेड कागज की नव आदि जेब से निकलकर उसके बिछड़ पर। साज जाति थी। वाह कुछ डर तक उसके साथ खेलता था। उसके बाद वाह धीमे धीमे स्वर में गुनगुना आने लगता था।

उत्तर — बहादुर के आने से परिवार के सारे सदस्यों को खूब आराम मिल रहा था। घर भी खूब साफ सुथरा था।नियम से बहादुर सबके कपड़े धोता। किसी को मामूली से मामूली काम कराना होता तो बहादुर को ही याद करता । बहादुर घर में फिरकी की तरह नाचता रहता। सभी रात में जल्दी सो जाते लेकिन बहादुर घर के कामों को पूरा करके ही बिछावन पर जाता था।

उत्तर — लेखक के घर में बहादुर को अच्छा से रखा गया। धीरे-धीरे लेखक का लडका उस पर दबाव डालकर काम करवाने लगा। कुछ समय बाद लेखक की पत्नी और पुत्र बात बात पर उसकी पिटाई कर देते थे। एक दिन लेखक के घर में उनका एक रिश्तेदार आया और रूपया खो जाने की बात करने लगे। बहादुर पर चोरी का आरोप लगाया। मजबूर होकर लेखक ने उस दिन उसकी पिटाई कर दी। बार-बार प्रताड़ित होने से एवं, घर में सभी से मार खाने के बाद वह समझ गया की अब उससे कोई प्यार नहीं करता और एक दिन लेखक का घर छोड़कर भाग गया।

उत्तर — प्रायः ऐसा देखा जाता है कि लोग घर के नौकर को हेय दृष्टि से देखते हैं। किसी ममले में उसे दोषी मान लेना आसन लगता है। रिश्तेदार ने सोचा की नौकर पर आरोप लगाने से लोगों को लगेगा की ऐसा हो सकता है। बहादुर इस आरोप से बहुत दुखी होता है। उसकी अंतरात्मा पर गहरी चोट लगती है। उस दिन से वह उदास रहने लगता है उस घटना के बाद से उसे डांट फटकार का सामना करना पड़ता है। उसका काम करने में मन नहीं लगता है।

उत्तर — घर आये रिश्तेदरों ने अपनी झुठी प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए रूपया चोरी का प्रपंच रचा। उनका कहना था की बच्चों के लिए मिठाई नहीं ला सका इसलिए मिठाई मंगाने के लिए तेरह रूपया निकल कर यहां रखा था। लेकिन बाद में हम लोग उलझे हुऎ रहे इसी दारमियान रुपए चोरी हो गए। उन्होंने बहादुर पर इस झुठी चोरी का दोष लगाया।

इस आरोप से बहादुर की पिटाई हुई? उस दिन से उसे लोग हमेशा फटकारने लगे। वह उदास रहने लगा। उसका मन काम करने में नहीं लगता। अंततः घर से एक दिन चला गया। रिश्तेदार के प्रपंच के चलते लेखक के घर का काम करने वाला बहादुर को घर से जाने के बाद घर अस्त–व्यस्त हो गया।

उत्तर — बहादुर घर के सभी कार्य कुशलता पूर्वक करता था। घर के सभी सदस्य को आराम मिलता था। किसी भी कार्य हेतु घर के हर सदस्य बहादुर को पुकारते थे। वह घर के सभी कार्यों से सबको मुक्त रखता था। साथ रहते रहते घुल मिल गया था। डांट–फटकार के बावजुड़ भी काम करता रहता था। इन्हीं सब कारणों से बहादुर के चले जाने से सबको पछतावा होता है।

उत्तर — बहादुर—बहादुर लेखक के घर का नौकर था, वह नेपाली था। उसके पिता का देहवासन युद्ध में हो गया था। माता जी घर चलाती थी। एक दिन मां बहादुर को बहुत मारा। बहादुर घर छोड़कर भाग गया और लेखक यहां नौकरी करने लगा।

किशोर—किशोर लेखक का बेटा था जो अपना सारा काम बहादुर से करवाता था। धीरे-धीरे बहादुर पर हाथ छोड़ने लगा। बहादुर को घर छोड़कर भागने में किशोर का वर्ताव अधिक कारगर हुआ।

निर्मला —निर्मला लेखक की पत्नी थी जिसे नौकर रखने का बहुत शौक था। पहले–पहले बहादुर को अपने घर काफी प्यार दिया।लेकिन धीरे-धीरे व्यवहार बदलने लगा। यहां तक की उस मारने भी लगी। परिणाम हुआ की बहादुर भाग गया। बहादुर को भाग जाने पर भी विलाप की।

कथावाचक — कथावाचक लेखक का साला था जो बहादुर के बारे में पुरी कहानी असाधारण विस्तार से सुनाता है। बहादुर को लेकर कथावाचक ही आता है। वह अपनी बहन की नौकर रखने की इच्छा को पुरी करता है।

उत्तर — बहादुर के चले जाने पर निर्मल को इस बात का अफसोस हुआ की वह कोई समान लेकर नहीं गया। वह अपने कपड़े , विस्तर, जूते, सब कुछ छोड़ गया है। यदी वह इन्हें अपने साथ ले गया होता तो शायद निर्मला को एक प्रकार का संतोष हो गया होता। उसे अफसोस है की उसने बहादुर को कुछ नहीं दिया। यदी वह कहकर अपने घर जाता तो वह उसके तनखवाह के रुपए दे देती। दो चार रुपए और अधिक दे देती।

उत्तर — बहादुर कहानी में सबसे बड़ी बात होती है कि एक दिन बहादुर बिना कुछ कहे और बिना सामान लिये भाग गया। यह घटना तो छोटी थी लेकिन बहुत बड़ी-बड़ी बात कह गई। सभी को अपने व्यवहार पर पछतावा होने लगा। हर आदमी अपने-आप को नीचा अनुभव करने लगा। किशोर बहादुर के मिलने पर उससे माफी मांगने को भी तैयार था।

उत्तर — प्रस्तुत कहानी में एक बालक का चित्रण किया गया है। बालक जो लेखक के घर में नौकर का काम करता है कहानी का मुख्य पात्र है। इसमें बहादुर नौकरी करने के पूर्व स्वछंद था। वहाँ माँ से मार खाने के बाद घर से भाग गया था। उसके बाद लेखक के घर काम करने के लिए रखा जाता है। यहाँ उसके नौकर के रूप में चित्रण के साथ-साथ उसके बाल-सुलभ मनोभाव का चित्रण भी किया गया है। ईमानदार, कर्मठ एवं सहनशील बालक के रूप में चित्रित है। प्रताड़ना, झूठा आरोप उसे पसंद नहीं था । अंतत: फिर वह भागकर स्वछंद हो जाता है साथ ही लेखक के पूरे परिवार पर अपने अच्छी छवि का चित्र अंकित कर जाता है। ऐसे में बहादुर ही इसका नायक कहा जा सकता है। इस कहानी के केन्द्र में बहादुर है। अतः यह शीर्षक सार्थक है। इसमें बालक को केवल नौकर की भूमिका में नहीं रखा गया है बल्कि उसमें विद्यमान अन्य गुणों की चर्चा की गई है। इसलिए नौकर शीर्षक नहीं रखा गया।

उत्तर — – कथाकार अपनी बहन के विवाह में घर गय तो भाभियों के आगे-पीछे नौकरी की भीड़ और पत्नी की खटनी देख ईर्ष्या हुई। प नो निर्मला भी ‘नोकर’ की रट लगाने लगी। अंत में साले साहब एक नेपाली ले आए। नाम दिल बहादुर। बहादुर के आने पर महल्ले वालों पर रौब जमा। ‘बहादुर ने भी इतनी खूबी से काम सभाला कि अब हर काम के लिए सभी उसी पर निर्भर हो गए। बेटे किशोर न न सिर्फ अपने सभी काम बहादुर पर छोड़ दिए अपितु जरा-सी चूक पर मार-पीट करने लगा। पत्नी ने भी पड़ोसियों के उकसावे में आकर उसकी रोटी सेकनी बंद कर दी ओर हाथ भी चलाने लगी। एक दिन मेहमान आए। उनकी पत्नी ने कहा अभी-अभी रूपये रखे थे, मिल नहीं रहे हैं। बहादुर आया था, तत्काल चला गया। बहादुर से पूछ-ताछ शुरू हुई। उसने कहा कि न रूपये देखे, न लिया। कथाकार ने भी पूछा ओर मेहमान ने भी अलग ले जाकर पूछा, पुलिस में देने की धमकी दी लेकिन बहादुर मुकरता रहा। अंत में कथाकार ने झल्लाकर एक तमाचा जड़ दिया। बहादुर रोने लगा। इसके बाद तो जैसे सभी उसके पीछे पड़ गए। – एक दिन कथाकार जब घर आए तो मालूम हुआ कि बहादुर चला गया, ताज्जुब तो तब हुआ जब पाया गया कि बहादुर यहाँ का कुछ भी लेकर नहीं गया बल्कि अपने सामान भी छोड़ गया है। लेखक व्यथित हो गया-चोरी का आरोपी न मालिक का कोई समान ले गया, अपना।इस प्रकार हम पाते हैं कि ‘बहादुर’ कहानी छोटा-मुँह बड़ी बात कहती है क्योंकि ‘नौकर’ जैसे आदमी को नायकात्व प्रदान करती है और कथाकार के अन्तर की व्यथा को अभिव्यक्त करती है।

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