मंगलम पाठ का अर्थ Class 10 Question Answer

मंगलम पाठ का अर्थ Class 10 Question Answer: इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 की संस्कृत के अध्याय 1 मंगलम् (Mangalam Path Sanskrit Class 10) के अर्थ को आसान भाषा में समझेंगे। प्रत्येक श्लोक का सरल भाषा में अर्थ और व्याख्या को पढ़ेंगे। साथ ही सारे पश्नो के उत्तर को पढ़ेंगे।

मंगलम पाठ का अर्थ Class 10 Question Answer

इस पाठ में पाँच मन्त्र क्रमशः ईशावास्य, कठ, मुण्डक तथा श्वेताश्वतर नामक उपनिषदों से संकलित है। ये मंगलाचरण के रूप में पठनीय है। वैदिकसाहित्य में शुद्ध आध्यात्मिक ग्रन्थों के रूप में उपनिषदों का महत्व है। इन्हें पढ़ने से परम सत्य (मुख्य शक्ति अर्थात् ईश्वर) के प्रति आदरपूर्ण आस्था या विश्वास उत्पन्न होती है, सत्य के खोज की ओर मन का झुकाव होता है तथा आध्यात्मिक खोज की उत्सुकता होती है। उपनिषदग्रन्थ विभिन्न वेदों से सम्बद्ध हैं ।

उपनिषद् का अर्थ- गुरू के समीप बैठना

उपनिषद् वैदिक साहित्य के अंतिम भाग में दर्शनशास्त्र के सिद्धांत को प्रकट किया गया है। सभी जगह परम् पुरुष परमात्मा की महिमा का प्रधान रूप से गायन हुआ है। उसी परमात्मा से संसार पर्याप्त और अनुशासित है। वह ही सबकी तपस्या का परम् लक्ष्य है। इस पाठ में परमात्मा की प्राप्ति के लिए उपनिषद् के पाँच मंत्र श्लोक के रूप में संकलित हैं।

हे सूर्य ! सत्य का मुख सोने के पात्र से ढका हुआ है। हे पूषन!, इसलिए सत्य के दर्शन के लिए इसे हटा दीजिए।

प्रस्तुत श्लोक ‘ईशावास्य उपनिषद्‘ से संकलित तथा मङ्गलम पाठ से उद्धृत है। इसमें सत्य के विषय में कहा गया है कि सांसारिक मोह-माया के कारण विद्वान भी उस सत्य की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं, क्योंकि सांसारिक चकाचैंध में वह सत्य इस प्रकार ढ़क जाता है कि मनुष्य जीवन भर अनावश्यक भटकता रहता है। इसलिए ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि हे प्रभु ! उस माया से मन को हटा दो ताकि परमपिता परमेश्वर को प्राप्त कर सके।

जीवो के हृदय रूपी गुफा में रहने वाली यह आत्मा अणु से भी सूक्ष्म है और महान् से भी महान् है। विद्वान् उस आत्मा की महिमा को देखते है और शोक रहित हो जाते है।

प्रस्तुत श्लोक ‘कठ‘ उपनिषद् से संकलित तथा ‘मङ्गलम‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें आत्मा के स्वरूप तथा निवास के विषय में बताया गया है।विद्वानों का कहना है कि आत्मा मनुष्य के हृदय में सूक्ष्म से भी सूक्ष्म तथा महान से भी महान रूप में विद्यमान है। जब जीव सांसारिक मोह-माया का त्यागकर हृदय में स्थित आत्मा से साक्षात्कार करता है तब उसकी आत्मा महान परमात्मा में मिल जाती है और जीव सारे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। इसलिए भक्त प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! हमें उस अलौकिक (पवित्र) प्रकाश से आलोकित करो कि हम शोकरहित होकर अपने-आप को उस महान परमात्मा में एकाकार कर सकें।

सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं जीतता है। सत्य से ही देवलोक का रास्ता खुला है। जिसके द्वारा मोक्षार्थी ऋषि उस सत्य को प्राप्त करते है। जहां सत्य का भरपूर खजाना है।

प्रस्तुत श्लोक ‘मुण्डक‘ उपनिषद् से संकलित तथा ‘मङ्गलम्‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें सत्य के महत्व पर प्रकाश डाला गया है।ऋषियों का संदेश है कि संसार में सत्य की ही जीत होती है, असत्य या झूठ की नहीं। तात्पर्य यह कि ईश्वर की प्राप्ति सत्य की आराधना से होती है, न कि सांसारिक विषय-वासनाओं में डूबे रहने से होती है। संसार माया है तथा ईश्वर सत्य है। अतः जीव जब तक उस सत्य मार्ग का अनुसरण नहीं करता है तब तक वह सांसारिक मोह-माया में जकड़ा रहता है। इसलिए उस सत्य की प्राप्ति के लिए जीव को सांसारिक मोह-माया से दूर रहनेवाला भाव से कर्म करना चाहिए, क्योंकि सिर्फ ईश्वर ही सत्य है, इसके अतिरिक्त सबकुुछ असत्य है।

जिस प्रकार बहती हुई नदियां सत्य नाम रूप की छोड़कर समुद्र में जाकर मिल जाती है, उसी प्रकार विद्वान् नाम रूप से मुक्त होकर उस दिव्य परम् पुरुष को प्राप्त कर लेता है।

प्रस्तुत श्लोक ‘मुण्डक‘ उपनिषद् से संकलित तथा ‘मङ्गलम‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें जीव और आत्मा के बीच संबंध का विवेचन किया गया है।ऋषियों का कहना है कि जिस प्रकार बहती हुई नदियाँ समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार विद्वान ईश्वर के अलौकिक (पवित्र) प्रकाश में मिलकर जीव योनि से मुक्त हो जाता है। जीव तभी तक माया जाल में लिपटा रहता है जब तक उसे आत्म-ज्ञान नहीं होता है। आत्म-ज्ञान होते ही जीव मुक्ति पा जाता है।

मैं अंधकार हूं, दूसरे प्रकाश है ऐसा महान् पुरुष मानते है। ऐसा ही मानकर मृत्यु को पार कर जाते है। इससे अलग अन्य दूसरा रास्ता नहीं है।

प्रस्तुत श्लोक ‘श्वेताश्वतर‘ उपनिषद् से संकलित तथा ‘मङ्गलम‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें परमपिता परमेश्वर के विषय में कहा गया है।ऋषियों का मानना है कि ईश्वर ही प्रकाश का पुंज है। उन्हीं के भव्य दर्शन से सारा संसार आलोकित होता है। ज्ञानी लोग उस ईश्वर को जानकर सांसारिक विषय-वासनाओं से मुक्ति पाते हैं। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

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