परिचय
अस्मितागत उपन्यास (Identity-based novel) एक साहित्यिक विधा है, जो व्यक्ति, समुदाय या समाज की अस्मिता (पहचान) से जुड़े मुद्दों को केंद्र में रखकर लिखी जाती है। यह उपन्यास जाति, लिंग, भाषा, क्षेत्र, धर्म, वर्ग और सांस्कृतिक पहचान से जुड़े संघर्षों, अंतर्द्वंद्वों और सामाजिक अन्याय को उजागर करते हैं। भारतीय साहित्य में यह विधा विशेष रूप से पिछड़े, दलित, स्त्री, आदिवासी और हाशिए पर खड़े समुदायों की आवाज़ को अभिव्यक्ति देने के लिए उभरी है।
अस्मितागत उपन्यास की विशेषताएँ
- पहचान और संघर्ष – ये उपन्यास किसी न किसी समुदाय या व्यक्ति की अस्मिता को केंद्र में रखकर लिखे जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से उत्पीड़ित और वंचित तबकों के संघर्षों को चित्रित किया जाता है।
- यथार्थवाद – इनमें समाज की वास्तविक परिस्थितियों और समस्याओं को यथार्थवादी तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। यह कल्पना से अधिक सामाजिक सत्य को दर्शाने पर ज़ोर देते हैं।
- सामाजिक अन्याय के विरुद्ध आवाज़ – ये उपन्यास सत्ता, पितृसत्ता, जातिवाद, नस्लवाद, लैंगिक भेदभाव और धार्मिक शोषण के खिलाफ प्रतिरोध की भावना को व्यक्त करते हैं।
- स्वर और शैली – अस्मितागत उपन्यासों में आमतौर पर लोकभाषा और जनसामान्य की भाषा शैली का प्रयोग किया जाता है ताकि हाशिए के समुदायों की आवाज़ को सीधे और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जा सके।
- नायक का आत्मसंघर्ष – इनमें अक्सर नायक या नायिका अपने अस्तित्व और पहचान की खोज में संघर्ष करता दिखाई देता है।
उदाहरण और प्रमुख लेखक
- दलित अस्मिता –
- ओमप्रकाश वाल्मीकि की ‘जूठन’ (आत्मकथात्मक उपन्यास)
- शरण कुमार लिंबाले की ‘हिन्दी दलित आत्मकथाएँ’
- हीरालाल राजस्थानी की ‘दलित आत्मकथा’
- स्त्री अस्मिता –
- महादेवी वर्मा की ‘शृंखला की कड़ियाँ’
- मैत्रेयी पुष्पा की ‘इदन्नमम’
- मृदुला गर्ग की ‘कठगुलाब’
- आदिवासी अस्मिता –
- महाश्वेता देवी की ‘हज़ार चौरासी की माँ’
- नरेश मेहता की ‘संन्यासिन’
- भाषिक और क्षेत्रीय अस्मिता –
- फणीश्वरनाथ रेणु की ‘मैला आँचल’
- राही मासूम रज़ा की ‘आधा गाँव’
अस्मितागत उपन्यास का महत्व
अस्मितागत उपन्यास समाज में समावेशिता, समानता और न्याय को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं। ये न केवल हाशिए के समुदायों को आवाज़ देते हैं, बल्कि पाठकों को उनके संघर्षों और अस्तित्व की जटिलताओं को समझने का अवसर भी देते हैं। इन उपन्यासों की विषयवस्तु समाज के उपेक्षित और बहिष्कृत वर्गों को मुख्यधारा में लाने का कार्य करती है।
निष्कर्ष
अस्मितागत उपन्यास साहित्य की एक महत्वपूर्ण धारा है, जो समाज में हाशिए के तबकों की अस्मिता और संघर्षों को प्रकाश में लाने का कार्य करती है। ये उपन्यास केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज़ की तरह कार्य करते हैं। इनके माध्यम से समाज में व्याप्त अन्याय, भेदभाव और संघर्षों को समझा जा सकता है, जिससे एक अधिक समावेशी और समानतावादी समाज की ओर बढ़ने में सहायता मिलती है।