Bihar board 10th Class Hindi Solution || भारतमाता |chapter 5 |सुमित्रानंदन पंत |पद्य खण्ड

भारतमाता: जय हिन्द। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड क्लास 10 हिन्दी किताब गोधूली भाग – 2 के पद्य खण्ड के पाठ पाँच ‘भारतमाता’ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। इस कविता के कवि सुमित्रानंदन पंत जी है । पंत जी ने इस पाठ में भारत के दुर्दशा का चित्रण किया है|(Bihar Board Class 10 Hindi सुमित्रानंदन पंत ) (Bihar Board Class 10 Hindi भारतमाता )(Bihar Board Class 10th Hindi Solution)

  • कवि का नाम – सुमित्रानंदन पंत
  • जन्म – 1900 ईo
  • जन्म स्थान – अलमोड़ा जिला , कौसानी उत्तरांचल
  • मृत्यु – 29 दिसंबर 1977 ईo
  • माता – सरस्वती देवी ( पंत के जन्म के 6 घंटे बाद इनकी मृत्यु हो गई)
  • गंगादत्त पंत ( कौसानी टी स्टेट में एकाउंटेंट )
  • प्राथमिक शिक्षा – गाँव से
  • हाई स्कूल – बनारस
  • कलाकांकर में कुछ वर्ष रहें।
  • इसके बाद इलाहाबाद में आजीवन रहें।
  • प्रकार – छायावादी
  • रचनाओं में विलक्षण मृदुता और सौष्ठव
  • विचार – उदारमनावतावादी
  • विरोध – अतिवादिता और संकीर्ण
  • विश्वास – मानव इतिहास के नित्य विकास में
  • प्रमुख रचनाएँ – ‘उच्छ्वास’, ‘पल्लव’, ‘वीणा’, ‘ग्रंथि’, ‘गुंजन’, ‘युगांत’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘युगपथ’, ‘चिदंबरा’ आदि।
  • अंतिम काव्य – लोकायतन
  • पुरस्कार – भारतीय ज्ञानपीठ ( चिदंबरा के लिए)
  • यह कविता ‘ग्राम्या’ से ली गई है ।
  • पंतजी ने नाटक, आलोचना, कहानी, उपन्यास आदि भी लिखा। ‘

यह कविता आधुनिक हिंदी के उत्कृष्ट प्रगीतों में शामिल की जाती है। अतीत के गरिमा- गान द्वारा अब तक भारत का ऐसा चित्र खींचा गया था जो ऐतिहासिक चाहे जितना रहा हो, वर्तमान को देखते हुए वास्तविक प्रतीत नहीं होता था। धन-वैभव, शिक्षा-संस्कृति, जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ, धुँधला और मटमैला दिखाई पड़ता यह देश हमारा वही भारत है जो अतीत में कभी सभ्य, सुसंस्कृत, ज्ञानी और वैभवशाली रहा था। कवि यहाँ इसी भारत का यथातथ्य चित्र प्रस्तुत करता है।

अर्थ – कवि सुमित्रानंदन पंत के अनुसार भारतमाता गाँवों बसती है। गाँवों की दुर्दशा का चित्र प्रस्तुत करते हुए कहते हैं जहाँ खेत सदा हरे-भरे रहते हैं वहां के निवासी शोषण की चक्की में पिसकर मजबूर दिखाई देते हैं। गंगा-यमुना के जल उनकी व्यथा के प्रतिक हैं। सीधे-साधे किसान अपनी दयनीय दशा के कारण अपने दुर्भाग्य पर आँसु बहा रहे हैं और उदास हैं।

अर्थ – पंतजी भारतमाता के उन कर्मठ सपूत किसानों की दयनीय दशा एवं दुःखपूर्ण जीवन की करूण-कहानी प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि जमींदारों एवं सूदखोर साहूकारों के शोषण ने इन्हें अति गरीब, चेतनाशून्य बना दिया है। अपने मजबूरी के कारण अपने ऊपर हो रहे अन्याय को सिर झुकाए अपलक देखने को मजबूर हैं। वे अपनी अंदर की पीड़ा अन्दर-ही-अन्दर सहने को मजबूर हैं। सदियों की त्रासदी ने उनके जीवन को निराश बना दिया है। वे अपने घर में अपने अधिकारों से वंचित है।

तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तकतरु-तल
निवासिनी!

अर्थ – अंग्रेजी शासन की क्रुरता के कारण भारतमाता की तीस करोड़ संतान अर्द्धनग्न तथा अर्द्धपेट खाकर जीवन व्यतित करने को विवश हैं। इनमें प्रतिकार और विरोध करने की शक्ति नहीं है। वे मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित, गरीब, पेड़ के नीचे गर्मी, वर्षा तथा जाड़ा का कष्ट सहन करते हैं।

स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लंठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी!

अर्थ – कवि पंत जी कहते हैं कि जिनकी पकी फसल सोने के समान दिखाई पड़ती है, पराधीनता के कारण वे शोषण के शिकार हैं। वे उनके हर अपमान, शोषण, अत्याचार आदि को सहन करते हुए धरती के समान सहनशील बने हुए हैं। अर्थात् वे अपने जुल्मों का विरोध न करके चुपचाप सहन कर लेते हैं। वे क्रुर शासन से इतने भयभीत हैं कि खुलकर रो भी नहीं सकते। देशवासियों की ऐसी दुर्दशा और विवशता देखकर कवि दुःख से भर जाता है कि जिस देश के वीरों की गाथा संसार में शरदपूर्णिमा की चाँदनी के समान चमकती थी, आपसी शत्रुता के कारण आज ग्रहण लगा अंधकारमय है।

चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान-मूढ़गीता
प्रकाशिनी!

अर्थ – कवि पंतजी कहते हैं कि अंग्रेजों के अत्याचार एवं शोषण से लोग उदास, निराश और हताश हैं, यानी वातावरण में घोर निराशा छायी हुई है। देशवासियों की ऐसी मन की स्थिति पर कवि आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं कि जिसके मुख की शोभा की उपमा चन्द्रमा से दी जाती थी, या फिर जहाँ गीता जैसे प्ररणादायी ग्रंथ की रचना हुई थी, उस देश के लोग अज्ञानता और मूर्खता के कारण गुलाम हैं।

सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तम-भ्रम,
जग-जननी
जीवन-विकासिनी!

अर्थ – कवि सफलता पर आशा प्रकट करते हुए कहते हैं कि अहिंसा जैसे महान मंत्र का संदेश देकर लेगों के मन का भय, अज्ञान एवं भ्रम का हरण कर भारतमाता की स्वतंत्रता की प्राप्ति का संदेश दिया।

उत्तर – कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि सुमित्रानंदन पंत ने भारतवासियों का वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है। भारत वासियों के तन पर पर्याप्त वस्त्र नहीं है। उन्हें कभी भरपेट भोजन नसीब नहीं होता। वह शोषित और पीड़ित हैं। विवश्ता में उनके मस्तक झुके हुए हैं। वे निराश हैं तथा रोना उनकी नियति है। वह सहनशील है तथा प्रतिकार करना नहीं जानते हैं।

उत्तर – भारत माता प्रवासिनी इसलिए बनी हुई है क्योंकि वह गाँव में निवास करती है। कवि भारत माता के प्रवासिनी होने का उल्लेख करके इस तथ्य को प्रस्तुत करना चाहता है कि भारत गाँवों का देश है। गाँव का विकास ही भारत का विकास है पर गाँवों के विकास पर किसी का ध्यान नहीं है। गांव उपेक्षित पड़े हुए हैं। सारा ध्यान नगरों पर होता है। सारी विकास सुविधाएं नगरों के लिए होती है। यह अत्यंत दुख का विषय है कि कोई अपने ही घर में अपने को ना पहचाने।

उत्तर – कवि सुमित्रानंदन पंत ने भारतवासियों का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। भारत वासियों के शरीर पर पर्याप्त कपड़े नहीं है। वह अधनंगे हैं। उन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलता। वे शोषित है। मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित और निर्धन है। वे इस प्रकार मजबूरी का विषपान कर रहे हैं कि उनके मस्तक झुक गए हैं। वे निराश हो गए हैं। वे इस प्रकार सहनशील हो चुके हैं कि वे किसी का विरोध तक नहीं करते।

उत्तर – कवि सुमित्रानंदन पंत के अनुसार शरद कालीन चंद्रमा की रजत ज्योत्सना से परिपूर्ण भारत माता का हास राहु ग्रसित है। अर्थात भारत माता का वैभवशाली अतीत समाप्त हो चुका है। आज भारत माता असहाय और विवश है। इनकी सारी समृद्धि विदेशियों ने लूट ली है। जैसे पूर्ण चंद्रमा को ग्रसित करके राहु उसे निस्तेज बना देता है। ठीक उसी तरह विदेशियों ने भारत माता को निस्तेज कर दिया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे भारत माता की हास को ग्रहण लग गया है।

उत्तर – गीता एक श्रेष्ठ उपनिषद है जिसमें कर्म की महत्ता का प्रतिपादन हुआ है। यह दिव्य ग्रंथ भारत में उपलब्ध है। विडंबना की बात यह है कि इस दिव्य ग्रंथ के यहाँ होने के बावजूद भी भारत के लोग ज्ञान को कर्म में उतारने में विफल हो गए हैं। ज्ञान रहते हुए भी उसे कार्य में न बदलना मूर्खता का प्रतीक है। इसी अर्थ में कवि भारत माता को गीता प्रकाशनी मानकर ज्ञान मूढ़ कहता है।

उत्तर – कवि सुमित्रानंदन पंत के दृष्टि में आज भारत माता का घोर तप और संयम सफल हुआ है। उसने अहिंसा रूपी अमृत के समान अपना दूध पिला कर भारतीयों के मन से भय का हरण कर लिया है। उसने अपने तप संयम के बल पर भारत में व्याप्त अज्ञानता के अंधकार का हरण कर लिया है। आज भारत माता का तप संयम इस अर्थ में भी सफल है कि उसने उस के बल पर विकास के विभिन्न दिशाओं में अनुसंधान करके भारतीयों को उस पर चलने के लिए प्रेरित किया है।

उत्तर – प्रस्तुत व्याख्यये पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित भारतमाता शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचनाकार प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत है ।

भारत माता अत्यंत समृद्ध है। उसके पास उन्नत धनसंपदा है। पर आज वह इस परतंत्रता की स्थिति में दूसरों के पैरों के तले रौंदी जा रही है। इससे उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंची है और इसके चलते उसका मन कुंठित हो गया है। उसके भीतर धरती के समान सहनशीलता है। वह सारी मुसीबतों को सहज भाव से सहन कर लेती है। इस प्रकार यहाँ पर भारत माता के जीवन के विरोधाभास को उजागर किया गया है। वह परतंत्रता के कारण अपार ऐश्वर्य और वैभव के बीच भी कुंठित है। कवि ने उसकी सहनशीलता की तुलना धरती से की है।

उत्तर – प्रस्तुत व्याख्यये पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित भारतमाता शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचनाकार प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं।

कभी कहता है कि भारत माता की भृकुटी से यह साफ दिखाई पड़ रहा है कि वह चिंता से ग्रस्त है। वह उसी तरह दिख रही है, जिस तरह संध्या में अलंकार से पूर्ण क्षितिज दिखाई पड़ता है। उसकी आंखें वीसद, चिंता और लज्जा में झुकी हुई अश्रुपूर्ण है। उसकी आंखें इस तरह आकाश- वाष्पच्छादित होकर बरसने की स्थिति में होता है।

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