पृथ्वी के सतह का तीन-चौथाई भाग जल से ढ़का है। पृथ्वी के अधिकतर स्तर पर जल की उपस्तिथि के कारण ही इसे नीला ग्रह कहा जाता है।
जल श्रोत- जिस स्त्रोत से जल की प्राप्ति होती है, उसे जल स्त्रोत कहते हैं।
जल–श्रोत विभिन्न रुपों में पाये जाते हैं–
- भू–पृष्ठीय जल, 2. भूमिगत जल, 3. वायुमंडलीय जल तथा 4. महासागरीय जल।
जल संसाधन का वितरण–
अधिकांश जल दक्षिणी गोलर्द्ध में ही है। इसी कारण दक्षिणी गोलर्द्ध को ‘जल गोलार्द्ध’ और उत्तरी गोलार्द्ध को ‘स्थल गोलर्द्ध’ के नाम से जाना जाता है ।
विश्व के कुल मृदु जल का लगभग 75 प्रतिशत अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड एवं पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ की चादर या हिमनद के रूप में पाया जाता है और लगभग 25% भूमिगत जल स्वच्छ जल के रूप में उपलब्ध है।
ब्रह्मपुत्र एवं गंगा विश्व की 10 बड़ी नदियों में से हैं। इन नदियों को विश्व की बड़ी नदियों में क्रमशः आठवाँ एवं दसवाँ स्थान प्राप्त है ।
जल संसाधन का उपयोग– 1951 ई० में भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 5177 घन मीटर थी, जो 2001 में 1829 घन मीटर प्रति व्यक्ति तक पहुंच गई है। संभावना है 2025 ई० तक पहुंचते-पहुंचते प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1342 घन मीटर हो जाएगी।
पेयजल– घरेलू कार्य, सिंचाई, उद्योग, जन-स्वास्थ्य, स्वच्छता तथा मल-मूत्र विसर्जन इत्यादि कार्यों के लिए जल अत्यंत जरूरी है। जल-विद्युत निर्माण तथा परमाणु-संयत्र, शीतलन, मत्स्य पालन, जल-कृषि, वानिकी, जल-क्रीड़ा जैसे कार्य की कल्पना बिना जल के नहीं की जा सकती है।
बहुउद्देशीय परियोजनाएं– ऐसी परियोजनाएँ, जिसका निर्माण एक साथ कई उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है, उसे बहुउद्देशीय परियोजना कहते हैं। बहुउद्देशीय परियोजनाओं को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने गर्व से ‘आधुनिक भारत का मंदिर’ कहा है।
बहुउद्देशीय परियोजना के विकास के उद्देश्य– बाढ़ नियंत्रण, मृदादृअपरदन पर रोक, पेय एवं सिंचाई के लिए जलापूर्ति, परिवहन, मनोरंजन, वन्य-जीव संरक्षण, मत्स्य-पालन, जल-कृषि, पर्यटन इत्यादि। भारत में अनेक नदी-घाटी परियोजनाओं का विकास हुआ है- भाखड़ा-नांगल, हीराकुंड, दामोदर, गोदावरी, कृष्णा, स्वर्णरेखा एवं सोन परियोजना जैसी अनेक परियोजनाएं भारत के बहुअयामी विकास में सहायक हो रहे हैं ।
नर्मदा बचाओ आंदोलन– ‘नर्मदा बचाओं आंदोलन’ एक गैर सरकारी संगठन है, जो स्थानीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गुजरात के नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध के विरोध के लिए प्रेरित करता है। इस आंदोलन के प्रवर्त्तक मेधा पाटेकर थे।
बहुउद्देशीय परियोजनाओं से होने वाली हानियाँ:
- पर्याप्त मुआवजा न मिल पाना,
- विस्थापित होना,
- पुनर्वास की समस्या,
- आस-पास बाढ़ का आ जाना।
बहुउद्देशीय परियोजनाओं के कारण भूकंप की समस्या बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, बाढ़ से जल-प्रदूषण, जल-जनित बीमारियाँ तथा फसलों में कीटाणु जनित बीमारियों का भी संक्रमण हो जाता है।
जल संकट– जल की अनुपलब्धता (कमी) को जल-संकट कहा जाता है। बढ़ती जनसंख्या, उनकी मांग तथा जल के असमान वितरण भी जल दुर्लभता का परिणाम है।
वर्तमान समय में भारत में कुल विद्युत का लगभग 22 प्रतिशत भाग जल-विद्युत से प्राप्त होता है।
उद्योगों की वजह से मृदु जल पर दबाव बढ़ रहा है। शहरों में बढ़ती आबादी एवं शहरी जीवन शैली के कारण जल एवं विद्युत की आवश्यकता में तेजी से वृद्धि हुई है।
जल की पर्याप्त मात्रा होने के बावजूद लोग प्यासे हैं। इस दुर्लभता का कारण है, जल की खराब गुणवत्ता, यह किसी भी राज्य या देश के लिए चिंतनीय विषय है। घरेलू एवं औद्योगिक-अवशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों और कृषि में प्रयुक्त होने वाले उर्वरक जल में मिल जाने से जल की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हुई है जो मानव के लिए अति नुकसानदेह है।
केवल कानपुर में 180 चमड़े के कारखानें हैं जो प्रतिदिन 58 लाख लीटर मल-जल गंगा में विसर्जित करती है ।
जल संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्कता– जल संसाधन की सीमित आपूर्ति, तेजी से फैलते प्रदूषण एवं समय की मांग को देखते हुए जल संसाधनों का संरक्षण एवं प्रबंधन अपरिहार्य है। जिससे स्वस्थ-जीवन, खाद्यान्न-सुरक्षा, आजीविका और उत्पाद अनुक्रियाओं को सुनिश्चित किया जा सके।
जल संसाधन के दुर्लभता या संकट से निवारण के लिए सरकार ने ‘सितंबर 1987’ में ‘राष्ट्रीय जल नीति’ को स्वीकार किया ।
इसके अंतर्गत सरकार ने जल संरक्षण के लिए निम्न सिद्धांतों को ध्यान में रखकर योजनाओं को बनाया गया है-
(a) जल की उपलब्धता को बनाये रखना।
(b) जल को प्रदूषित होने से बचाना।
(c) प्रदूषित जल को स्वच्छ कर उसका पुनर्चक्रण।
इस सन्दर्भ में अग्रांकित संरक्षण विधियाँ कारगर सिद्ध हो सकती है:
- भूमिगत जल की पुर्नपूर्ति : पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने ‘जल मिशन’ संदर्भ देकर भूमि जल पुनपूर्ति पर बल दिया था। जिससे खेतों, गाँवों, शहरों, उद्योगों को पर्याप्त जल मिल सके। इसके लिए वृक्षारोपण जैविक तथा कम्पोस्ट खाद के प्रयोग, वेटलैंडस (Wetlands) का संरक्षण, वर्षा जल के संचयन एवं मल-जल शोधन पुनःचक्रण जैसे क्रियाकलाप उपयोगी हो सकते हैं।
- जल संभर प्रबंधन (Watershed Management) : जल प्रवाह या जल जमाव का उपयोग कर उद्यान, कृषि वानिकी, जल कृषि एवं कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। इससे पेय जलापूर्ति भी की जा सकती है। इस प्रबंधन को छोटे इकाईयों पर लागू करने की आवश्यकता है।
- तकनीकी विकास : तकनीकी विकास से तात्पर्य है ऐसे उपक्रम जिसमें जल का कम से कम उपयोग कर अधिकाधिक लाभ लिया जा सके। जैसे-ड्रिप सिंचाई, लिफ्ट सिंचाई, सूक्ष्म फुहारों (Micro Sprinkler) से सिंचाई, सीढ़ीनुमा खेती इत्यादि ।
वर्षा जल संग्रहण एवं उसका पुनःचक्रण–
जल दुर्लभता एवं उनकी निम्नीकरण वर्तमान समय की एक प्रमुख समस्या बन गई है। बहुउद्देशीय परियोजनाओं के विफल होने तथा इसके विवादास्पद होने के कारण वर्षा जल-संग्रहण एक लोकप्रिय जल संरक्षण का तरीका हो सकता है ।
भूमिगत जल का 22 प्रतिशत भाग का संचय वर्षा-जल का भूमि में प्रवेश करने से होता है।
सूखे एवं अर्द्धसूखे क्षेत्रों में वर्षा-जल को एकत्रित करने के लिए गड्ढ़ो का निर्माण किया जाता था, जिससे मिट्टी सिंचित कर खेती की जा सके। उसे राजस्थान के जैसलमेर में ‘खादीन’ तथा अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ के नाम से पुकारा जाता है। राजस्थान के बिरानो फलोदी और बाड़मेर जैसे सूखे क्षेत्रों में पेय-जल का संचय भूमिगत टैंक में किया जाता है। जिसे ‘टांका’ कहा जाता है। मेघालय स्थित चेरापूंजी एवं मॉसिनराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती है। जहाँ पेय जलसंकट का निवारण लगभग (25 प्रतिशत) छत जल संग्रहण से होता है । मेघालय के शिलांग में छत जल संग्रहण आज भी परंपरागत रूप में प्रचलित है।
पं० राजस्थान में इंदिरा गाँधी नहर के विकास से इस क्षेत्र को बारहमासी पेयजल उपलब्ध होने के कारण से यह वर्षा जल संग्रहण की की उपेक्षा हो रही है, जो खेद जनक है।
वर्तमान में महाराष्ट्र, म०प्र०, राजस्थान एवं गुजरात सहित कई राज्यों में वर्षा जल संरक्षण एवं पुनः चक्रण किया जा रहा है।
स्वतंत्रता के बाद भारत में आर्थिक, सामाजिक, व्यापारिक सहित समग्र विकास के उद्देश्य से जल संसाधन के उपयोग हेतु योजनाएं तैयार की गई। बिहार में भी इन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर कई परियोजनाएं बनायी गई हैं, जिनमे तीन प्रमुख हैं-
1. सोन परियोजना, 2. गंडक परियोजना, 3. कोसी परियोजना।
सोन नदी–घाटी परियोजना : सोन नदी-घाटी परियोजना बिहार की सबसे प्राचीन परियोजना के साथ-साथ यहाँ की पहली परियोजना है। ब्रिटिश सरकार ने सिंचित भूमि में वृद्धि कर अधिकाधिक फसल उत्पादन की दृष्टि से इस परियोजना का विकास 1874 ई० में किया था । सुविकसित रूप से यह नहर तीन लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती हैं। 1968 ई० में इस योजना के डेहरी से 10 किमी० की दूरी पर स्थित इंद्रपुरी नामक स्थान पर बांध लगाकर बहुउद्देशीय परियोजना का रूप देने का प्रयास किया गया। इससे पुराने नहरों, जल का बैराज से पुनर्पूर्ति, नहरी विस्तारीकरण एवं सुदृढ़ीकरण हुआ है। यही वजह है कि सोन का यह सूखाग्रस्त प्रदेश आज बिहार का ‘चावल का कटोरा’ (त्पबम ठवूस वि ठपींत) के नाम से विभूषित हो रहा है।
इस परियोजना के अंर्तगत जल-विद्युत उत्पादन के लिए शक्ति-गृह भी स्थापित हुए हैं। पश्चिमी नहर पर डेहरी के समीप शक्ति-गृह की स्थापना की गई है। जिससे 6.6 मेगावाट ऊर्जा प्राप्त होती है। इस ऊर्जा का उपयोग डालमियानगर का एक बड़े औद्योगिक-प्रतिष्ठान के रूप में उभर रहा है।
बिहार विभाजन के पूर्व ‘इंद्रपुरी जलाशय योजना’, ‘कदवन जलाशय योजना’ के नाम से जानी जाती थी।
इसके अतिरिक्त भी बिहार के अंर्तगत कई नदी घाटी परियोजनाएं प्रस्तावित हैं; जिसके विकास की आवश्यकता है। जिनमें दुर्गावती जलाशय परियोजना, ऊपरी किऊल जलाशय परियोजना, बागमती परियोजना तथा बरनार जलाशय परियोजना इत्यादि शामिल है
SOME IMPORTANT NOTES
- पृध्वी अश्वी पर जल के स्रोत निम्न हैं –
(I) भू-पृष्ठीय जल (ii) भूमिगत जल (iii) वायुमंडलीय जल (iv) महासागरीय जल।
- भारत में विश्व की 16% आबादी निवास करती है और इसके लिए मात्र 4% जल ही उपलब्ध हैं
- भारत में कुल भू-पृष्ठीय जल का लगभग 2/3 भाग देश की तीन बड़ी नदियों सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र में प्रवाहित है।
- ब्रह्मपुत्र एवं गंगा विश्व की 10 बड़ी नदियों में से हैं। इन नदियों को विश्व की बड़ी नदियों में क्रमशः 8वाँ एवं 10वां स्थान प्राप्त है।
- प्राणियों में 65% तथा पौधों में 65-99% जल का अंश विद्यमान रहता है।
- स्वीडेन के एक विशेषज्ञ फॉल्कन मार्क के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रति दिन एक हजार घन लीटर जल की आवश्यकता है। इससे कम जल उपलब्धता जल संकट है।
- वर्तमान समय में भारत में कुल विद्युत का लगभग 22% भाग जल विद्युत से प्राप्त होता है।
- पृथ्वी की तीन-चौथाई भाग जल से ढंका है जिसमें अधिकांश जल लवणीय है।
- जल की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी को नीला ग्रह कहा जाता है।
- विश्व के कुल जल आयतन का 96.6% जल महासागरों में ही पाया जाता है। उनमें मात्र 2.5% प्रतिशत ही अलवणीय (मृदु) जल है।
- जल एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संसाधन है। इसका उपयोग घरेलू कार्यों के अतिरिक्त पन-बिजली के उत्पादन और परिवहन के लिए किया जा रहा है।
- जल दो प्रकार का होता है-मीठा जल और खारा जल। नदी एवं तालाब का जल मीठा होता है। साथ ही वर्षा का जल भी मीठा होता है। जो पीने योग्य है जबकि समुद्र का जल खारा होता है।
- दक्षिणी गोलार्द्ध को जल गोलार्द्ध एवं उत्तरी गोलार्द्ध को स्थल गोलार्द्ध कहा जाता है।
- पृथ्वी पर जल के स्रोत निम्न हैं (i) भू-पृष्ठीय जल (ii) भूमिगत जल (iii) वायुमण्डलीय जल (iv) महासागरीय जला
- मीठे जल की सबसे बड़ी झील सुपीरियर झील और सबसे गहरी झील बैकाल झील है। जबकि सबसे ऊँची झील टिटिकाका है
- खारे जल की सबसे बड़ी झील कैस्पियन सागर और सबसे गहरी झील मृत सागर है।
- भारत में विश्व की 16% आबादी निवास करती है और इसके लिए मात्र 4% जल ही उपलब्ध है।
- जल में कुल भू-पृष्ठीय जल का लगभग 2/3 भाग देश की तीन बड़ी नदियों सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र में प्रवाहित है।
- ब्रह्मपुत्र एवं गंगा विश्व की 10 बड़ी नदियों में से है। इन नदियों को विश्व की बड़ी नदियों में क्रमशः 8वां एवं 10वां स्थान प्राप्त है। ‘
- गंगा नदी का जल विश्व में सबसे अधिक पवित्र माना जाता है, लेकिन वर्तमान समय में यह प्रदूषित हो रहा है।
- जल ही जीवन है। इसलिए जीव-जगत के लिए जल एक अनिवार्य संसाधन है
- जल सतह पर उपलब्ध है और भूमि के अन्दर भी। भूमिगत जल प्राप्त करने के लिए कुआँ आदि खोदना पड़ता है।
- हमारे देश में जल के प्रमुख स्रोत हैं-वर्षा, झरना, नदी, हिमनद (हिमालय क्षेत्र में), कुआं, तालाब, झोल आदि।
- 2005 तक विश्व के अनेक देशों में जल का अभाव होने की संभावना है। यह समस्या भारत में भी उत्पन्न हो सकती है।
- वर्तमान समय में जल प्रदूषण की एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो चुकी है जिससे हमारा भौतिक पर्यावरण बिगड़ रहा है और मानव जीवन के लिए भी यह एक गंभीर समस्या है।
- प्राणियों में 65% एवं वनस्पतियों में 65-99% जल का अंश विद्यमान होता है।
- नदियों के जल का उपयोग नदियों पर बाँध बनाकर किया जाता है। मैदानी इलाकों में ही नदियों से अधिकतर नहरें निकाली गयी हैं।
- पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नदी का उपयोग सिंचाई के लिए बहुत अधिक हुआ है। दक्षिण भारत में नदियों के डेल्टा भाग में अधिक नहरें बनायी गयी हैं।
- भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का 16% है, लेकिन जल संसाधन के मामले में इसके पास विश्व के कुल जल संसाधन का मात्र 4% उपलब्ध है।
- बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में मुख्यतः सिंचाई की सुविधाएँ प्राप्त हुयी हैं और जल-विद्युत उत्पादन किया जा रहा है।
- मत्स्योद्यम का विकास देश के जलाशयों में किया जाता है। साथ ही तटीय भाग में सटे समुद्रों में भी किया जाता है।
- झील, तालाब एवं अन्य जलाशय देश के विभिन्न भागों में हैं। उनका जल भी उपयोग में लाया जाता है। तालाबों की अधिक संख्या दक्षिण भारत में (पठारी भाग में) है।
- ग्लेशियर गर्मी में पिघलकर नदियों को जल प्रदान करते हैं। भारत में इसका क्षेत्र उच्च हिमालय है, हिमालय की चोटियाँ हिमाच्छादित हैं और वे पिघलकर नदियों को जलपूरित रखती हैं।
- भारत में कई प्रमुख बहुउद्देशीय नदीघाटी परियोजनाएँ हैं जैसे- दामोदर घाटी परियोजना, भाखड़ा नांगल परियोजना, हीराकुंड परियोजना, कोसी परियोजना, चंबल घाटी परियोजना, तुंगभद्रा परियोजना, नागार्जुन सागर परियोजना, नर्मदा घाटी परियोजना, इंदिरा गाँधी परियोजना तथा सोन परियोजना।
- सतलज नदी पर एशिया का सबसे ऊंचा और विश्व का दूसरा सर्वोच्च परियोजना भाखड़ा नांगल परियाजना है।
- कोसी परियोजना तथा सोन परियोजना प्रमुख बिहार की नदीघाटी परियोजनाएँ हैं।
- स्वीडन के एक विशेषज्ञ फॉल्कन मार्क के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रति दिन एक हजार घन लीटर जल की आवश्यकता है। इससे कम जल उपलब्धता जल संकट है।
बिहार बोर्ड की किताब के प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. वृहद क्षेत्रों में जल की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी को कहते हैं
(क) उजला ग्रह (ख) नीला ग्रह
(ग) लाल ग्रह (घ) हरा ग्रह
उत्तर- (ख) नीला ग्रह
प्रश्न 2. कुल जल का कितना प्रतिशत भाग महासागरों में निहित है ?
(क) 9.5% (ख) 95:5%
(ग) 96.5% (घ) 96.6%
उत्तर- (ग) 96.5%
प्रश्न 3. देश के बाँधों को किसने ‘भारत का मंदिर’ कहा था?
(क) महात्मा गाँधी (ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ग) पंडित नेहरू (घ) स्वामी विवेकानन्द
उत्तर- (ग) पंडित नेहरू
प्रश्न 4. प्राणियों के शरीर में कितना प्रतिशत जल की मात्रा निहित होती है ?
(क) 55% (ख) 60%
(ग) 65% (घ) 70%
उत्तर- (ग) 65%
प्रश्न 5. बिहार में अति जल दोहन से किस तत्व का संकेन्द्रण बढ़ा है ?
(क) फ्लोराइड (ख) क्लोराइड
(ग) आर्सेनिक (घ) लोह
उत्तर- (ग) आर्सेनिक
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. बहुउद्देशीय परियोजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- वैसी परियोजना जिसके द्वारा कई उद्देश्यों जैसे बाढ़ नियंत्रण, मृदा अपरदन पर रोक, पेय एवं सिंचाई हेतु जलापूर्ति, विद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन, जल कृषि, वन्य जीव संरक्षण, पर्यटन इत्यादि की पूर्ति एक साथ हो जाती है बहुउद्देशीय परियोजना कहलाती है।
प्रश्न 2. जल संसाधन के क्या उपयोग हैं ? लिखें।
उत्तर- जल को ही जीवन कहा जाता है। जल के उपयोग की सूची लंबी है। पेयजल, घरेलू कार्य, सिंचाई, उद्योग, जनस्वास्थ्य, स्वच्छता तथा मल-मूत्र विसर्जन इत्यादि कार्यों के लिए जल अपरिहार्य है। इसके अलावे जल-विद्युत निर्माण तथा परमाणु संयंत्र-शीतलन, मत्स्य पालन, जल कृषि वानिकी, जल क्रीड़ा जैसे कार्य की कल्पना बिना जल के नहीं की जा सकती है।
प्रश्न 3. अंतर्राज्यीय जल–विवाद का क्या कारण है ?
उत्तर- चूँकि जल एक व्यापक उपयोगिता वाला संसाधन है और सभी के लिए आवश्यक भी है अतः अपनी-अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकाधिक जल प्राप्त करना अर्थात् जल का बँटवारा ही विवाद का मुख्य कारण है। भारत में कर्नाटक एवं तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के जल बंटवारे का विवाद काफी पुराना है।
प्रश्न 4. जल संकट क्या है?
उत्तर- उद्देश्य जनित जल की अनुपलब्धता को ही जल-संकट के रूप में जाना जाता है। पृथ्वी पर विशाल जलसागर होने एवं नवीकरणीय संसाधन होने के बावजूद जल दुर्लभता एक जटिल समस्या है। जल संकट के भाव उत्पन्न होते ही मानस पटल पर सूखाग्रस्त या अनावृष्टि क्षेत्र का चित्र उपस्थित होने लगता है।
प्रश्न 5. भारत की नदियों के प्रदूषण के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर- भारत की नदियों के प्रदूषण के कारण निम्नलिखित हैं:l
- शहरों में बढ़ती आबादी और जीवन-शैली।
- वाहित मल-जल का नदियों में निस्तारण।
- धार्मिक अनुष्ठान एवं अंधविश्वास।
- औद्योगिक अवशिष्टों का नदियों में निस्तारण।
- शवों का विसर्जना
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जल संरक्षण से आप क्या समझते हैं ? इसके क्या उपाय हैं ?
उत्तर- उद्देश्य जनिल जलं की पर्याप्तता को बनाये रखना, जल को प्रदूषित होने से बचाना तथा वर्षाऋतु में निरुद्देश्य बहने वाले जल को सुरक्षित करना ही जल संरक्षण कहलाता है। जल संरक्षण के उपाय निम्न हैं
- भूमिगत जल की पूनर्पूर्ति- भूमिगत जल एक बहुत ही महत्वपूर्ण जल स्रोत है। आज इसका कई प्रकार से दोहन भी हो रहा है जिससे भूमिगत जल के स्तर में लगातार गिरावट हो रही है। अत: इसकी पूनर्पूर्ति आवश्यक है। इसके लिए वृक्षारोपण, जैविक तथा कम्पोस्ट खाद का उपयोग, वेटलैंड्स का संरक्षण, वर्षा जल का संचयन एवं मल-जल शोधन पुनः चक्रण जैसे क्रियाकलाप उपयोगी होते हैं।
- जल संभर प्रबंधन (Watershed Management)- जल प्रवाह या जल जमाव का उपयोग कर उद्यान, कृषि वानिकी, जल कृषि, कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। इससे पेयजल की आपूर्ति भी की जा सकती है। इस प्रबंधन को छोटी इकाइयों पर लागू करने की आवश्यकता है। इसके लिए जलाशयों, नहरों इत्यादि का निर्माण करना चाहिए।
- तकनीकि विकास- तकनीकी विकास से तात्पर्य ऐसे उपक्रम से है जिसमें जल का कम-से-कम उपयोग कर, अधिकाधिक लाभ लिया जा सके। जैसे ड्रिप सिंचाई, लिफ्ट सिंचाई, सूक्ष्म फुहारों से सिंचाई, सीढ़ीनुमा खेती इत्यादि।
प्रश्न 2. वर्षा जल की मानव जीवन में क्या भूमिका है ? इसके संग्रहण एवं पुनःचक्रण की विधियों का उल्लेख करें।
उत्तर- हमारे लिए उपयोगी जल की एक बड़ी मात्रा वर्षा जल द्वारा ही पूरी होती है। खासकर । हमारे देश की कृषि वर्षाजल पर ही आधारित होती है। पश्चिम भारत खासकर राजस्थान में पेयजल हेतु वर्षाजल का संग्रहण छत पर किया जाता था। पं. बंगाल में बाढ़ मैदान में सिंचाई के लिए बाढ़ जल वाहिकाएँ बनाने का चलन था।
शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए गड्ढों का निर्माण किया जाता था जिससे मृदा सिंचित कर खेती की जा सके। इसे राजस्थान के जैसलमेर में ‘खरदीन’ तथा अन्य क्षेत्रों में जोहड़’ के नाम से पुकारा जाता है। राजस्थान के वीरानों
फलोदी और बाड़मेर जैसे शुष्क क्षेत्रों में पेय-जल का संचय भूमिगत टैंक में किया जाता है जिसे ‘टाँका’ कहा जाता है। यह प्रायः आँगन में हुआ करता है जिसमें छत पर संग्रहित जल को पाइप द्वारा जोड़ दिया जाता है।
इस कार्य में राजस्थान की N.G.O. ‘तरुण भारत संघ’ पिछले कई वर्षों से कार्य कर रही है। मेघालय के शिलांग में छत वर्षाजल का संग्रहण आज भी प्रचलित है। कर्नाटक के मैसूर जिले में स्थित गंगथर गाँव में छत-जल संग्रहण की व्यवस्था 200 घरों में है जो तब संरक्षण की दिशा में एक मिसाल है। वर्तमान समय में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश बाजस्थान एवं गुजरात सहित कई राज्यों में वर्षा-जल संरक्षण एवं पुनः चक्रण किया जा रहा है।