वन- वन उस बड़े भू-भाग को कहते हैं जो पेड़ पौधों एवं झाड़ियों द्वारा आच्छादित होते है।
वन दो प्रकार के होते हैं–
- प्राकृतिक वन और 2. मानव निर्मित वन
- प्राकृतिक वन– वे वन जो स्वतः विकसित होते हैं, उसे प्राकृतिक वन कहते हैं।
- मानव निर्मित वन– वे वन जो मानव द्वारा विकसित होते हैं, उसे मानव निर्मित वन कहते हैं।
वन और वन्य जीव संसाधनों के प्रकार और वितरण : वन विस्तार के नजरिए से भारत विश्व का दसवां देश है, यहां करीब 68 करोड़ हेक्टेअर भूमि पर वन का विस्तार है। रूस में 809 करोड़ हेक्टेअर वन क्षेत्र है, जो विश्व में प्रथम है। ब्राजील में 478 करोड़ हेक्टेअर, कनाडा में 310 करोड़ हेक्टेअर, संयुक्त राज्य अमेरिका में 303 करोड़ हेक्टेअर, चीन में 197 करोड़ हेक्टेअर, ऑस्ट्रेलिया में 164 करोड़ हेक्टेअर, कांगो में 134 करोड़ हेक्टेअर, इंडोनेशिया में 88 करोड़ हेक्टेअर और पेरू में 69 करोड़ हेक्टेअर वन क्षेत्र है। भारत में, 2001 में 19.27 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र पर वन फैले हुए थे। (वन सर्वेक्षण, थैंप ) के अनुसार 20.55 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में वन का विस्तार है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह सबसे आगे है, जहां 90.3 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में वन विकसित है।
वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों को पांच वर्गो में रखा जा सकता है।
- अत्यंत सघन वन (कुल भौगोलिक क्षेत्र में वृक्षों का घनत्व 70 प्रतिशत से अधिक )
- सघन वन (कुल भौगोलिक क्षेत्र में वृक्षों का घनत्व 40-70 प्रतिशत)
- खुले वन (कुल भौगोलिक क्षेत्र में वृक्षों का घनत्व 10 से 40 प्रतिशत)
- झाड़ियां एवं अन्य वन (कुल भौगोलिक क्षेत्र में वृक्षों का घनत्व 10 प्रतिशत से कम)
- मैंग्रोव वन (तटीय वन)- इस प्रकार के वन समुद्र के तटों पर पाए जाते हैं। इस प्रकार के वनों का विस्तार पूर्वी तट, पश्चिमी तट और अण्डमान निकोबार द्विप समुह में है।
- अत्यंत सघन वन– भारत में इस प्रकार के वन का विस्तार 54.6 लाख हेक्टेअर भूमि पर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.66 प्रतिशत है, असम और सिक्किम को छोड़कर सभी पूर्वोंत्तर राज्य इस वर्ग में आते हैं।
- सघन वन– इसके अन्तर्गत 73.60 लाख हेक्टेअर भूमि आते हैं जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 3 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र एवं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में इस प्रकार के वनों का विस्तार है ।
- खुले वन– 2.59 करोड़ हेक्टेअर भूमि पर इस वर्ग के वनों का विस्तार है, यह कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.12 प्रतिशत है। कर्नाटक, तामिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा के कुछ जिलों एवं असम के 16 आदिवासी जिलों में इस प्रकार के वनों का विस्तार है।
- झाड़ियां एवं अन्य वन– राजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्र में इस प्रकार के वन पाए जाते है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल के मैदानी भागों में वृक्षों का घनत्व 10 प्रतिशत से भी कम है।
- मैंग्रोव वन (तटीय वन)- इस प्रकार के वनों का विकास समुद्र के तटों पर हुआ है। इसलिए इसे तटीय वन भी कहते हैं। इसका विस्तार केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में हुआ है।
क्या आप जानते हैं? |
देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 25.11 प्रतिशत वन क्षेत्र पूर्वोत्तर के सात राज्यों में हैं। |
भारत में 188 आदिवासी जिलों में कुल वन क्षेत्र का 60.11 प्रतिशत पाया जाता है। |
देश में वनाच्छादित क्षेत्र के मामले में मध्यप्रदेश का प्रथम स्थान है, जहाँ देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 11.22 प्रतिशत वन है। दूसरे स्थान पर अरूणाचल प्रदेश (10.01 प्रतिशत), तीसरे स्थान पर छत्तीसगढ़ (8.25 प्रतिशत), चौथे स्थान पर उड़ीसा (7.18 प्रतिशत) है जबकि महाराष्ट्र का स्थान पाँचवाँ है जहाँ (7.01) प्रतिशत) वन क्षेत्र हैं। |
संसार में मात्र 3.4 बिलियन हेक्टेयर में वन रह गया है, लगभग 800 वर्ष पूर्व से 6 बिलियन हेक्टेयर वनों की कटाई हो चुकी है। |
हाल के वर्षों में वन विकास में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। |
बिहार विभाजन के बाद वन विस्तार में बिहार राज्य दैनीय स्थिति में आ गया हैं, क्योंकि वर्तमान बिहार में अधिकतर भूमि कृषि योग्य हैं। मात्र 6764.14 हेक्टेयर में वन क्षेत्र बच गया है, यह भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 7.1 प्रतिशत है। बिहार के 38 जिलों में से 17 जिलों से वन क्षेत्र समाप्त हो गया हैं।
प्रशासकीय दृष्टि से वनों को निम्नांकित वर्गों में रखा गया है :
- आरक्षित वन (Reserved Forest)- जो वन जलवायु की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं उनहें आरक्षित वन कहते हैं। इसमें ना तो लकड़ियां ही काटी जा सकती हैं और ना ही पशुचारण होता है। बाढ़ नियंत्रण, भूमि संरक्षण, मरूस्थल प्रसार को रोकने तथा जलवायु नियमित रहने हेतु इसकी आवश्यकता होती है। वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिए आरक्षित वनों को सबसे अधिक मूल्यवान माना जाता है। देश में आधे से अधिक वन क्षेत्र (54 प्रतिशत) आरक्षित वन घोषित किए गए हैं।
- रक्षित वन (Protected Forest)- इस वन क्षेत्र में विशेष नियमों के अधिन पशुओं को चराने और सीमित रूप में लकड़ी काटने की सुविधा दी जाती है। वनों के अत्यधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इसकी सुरक्षा की जाती हैं। वन विभाग के अनुसार कुल वन क्षेत्र का लगभग एक तिहाई हिस्सा (29 प्रतिशत) रक्षित वन है।
- अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest)- शेष सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों, समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, स्वतंत्र एवं अवर्गीकृत वन के अन्तर्गत रखा गया है। इस प्रकार के वनों में लकड़ी काटने और पशुओं को चराने पर सरकार की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं है। सरकार इसके लिए शुल्क लेती है। कुल वन क्षेत्र का 17 प्रतिशत अवर्गीकृत वन है।
वन सम्पदा तथा वन्य जीवों का ह्रास एवं संरक्षण : विकास के नाम पर वनों का विनाश होना शुरू हुआ। बीसवीं सदी के मध्य तक 24 प्रतिशत क्षेत्र पर वन विस्तार था, जो इक्किसवीं सदी के आरंभ में ही संकुचित होकर 19 प्रतिशत क्षेत्र में रह गया है। इसका मुख्य कारण मानवीय हस्तक्षेप, पालतू पशुओं के द्वारा अनियंत्रित चारण एवं विविध तरीकों से वन सम्पदा का दोहन है। भारत में वनों के ह्रास का एक बड़ा कारण कृषिगत भूमि का फैलाव है।
वनों एवं वन्य जीवों के विनाश में पशुचारण और ईंधन के लिए लकड़ियों का उपयोग की भी काफी भूमिका रही है। रेल-मार्ग, सड़क मार्ग, निर्माण, औद्योगिक विकास एवं नगरीकरण ने भी वन विस्तार को बड़े पैमाने पर तहस-नहस किया है।
जैसे-जैसे वनों का दामन सिकुड़ा, वैसे-वैसे वन्य जीवों का आवास भी तंग होता गया।
आज स्थिति यह है कि बहुत से वन्य प्राणी लुप्त हो गए हैं या लुप्त प्राय हैं। भारत में चीता और गिद्ध इसके उदाहरण हैं ।
विलुप्त होने के खतरे से घिरे कुछ प्रमुख प्राणी हैं:
कृष्णा सार, चीतल, भेड़िया, अनूप मृग, नील गाय, भारतीय कुरंग, बारहसिंगा, चीता, गेंडा, गिर सिंह, मगर, हसावर, हवासिल, सारंग, श्वेत सारस, घूसर बगुला, पर्वतीय बटेर, मोर, हरा सागर कछुआ, कछुआ, डियूगाँग, लाल पांडा आदि।
हिमालययव (Yew) हिमालय यब (चीड़ के प्रकार का सदाबहार वृक्ष) एक औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता है। चीड़ी की छाल, पत्तियाँ, टहनियों और जड़ों से टैकसोल (Taxol) नामक रसायन निकाला जाता है तथा इसे कैंसर रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इस से बनाई गई दवाई विश्व में सबसे अधिक बिकने वाली कैंसर औषधि है। इसके अत्याधिक निष्कासन से इस वनस्पति जाति के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। पिछले एक दशक में हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में यव के हजारों पेड़ विलुप्त हो चुके है। |
वन्य जीवों के अधिवास पर प्रतिकूल मानवीय प्रभाव के तीन प्रमुख कारण हैं, जो निम्नांकित हैं :
- प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण– वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास जंगल, मैदानी क्षेत्र, नदियाँ, तालाब, वेट लैंड, पहाड़ी एवं तराई आदि हैं। जन संख्या में हो रही अनियंत्रित वृद्धि, औद्योगिक विकास, शहरीकरण, बड़े बांध या अन्य परियोजनाएँ इनके आवास की अतिक्रमण कर रही है। यातायात की सुविधाओं में वृद्धि के कारण भी वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण हुआ है। प्राक्रतिक निवास स्थान के छिन जाने के दबाव से वन्य जीवों की सामान्य वृद्धि तथा प्रजनन क्षमता में कमी आ गई है।
- प्रदूषण जनित समस्या– बढ़ते प्रदूषणों ने कई समस्याओं को जन्म दिया है। इन में वन्य जीवों की संख्या में कमी के प्रमुख कारक पराबैगनी किरणें, अम्लवर्षा और हरित गृहप्रभाव हैं। इसके अतिरिक्त वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण के कारण वन एवं वन्य जीवों का जीवन चक्र गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। जीवन चक्र को पूर्ण किए बिना नए पौधे या जंतु का जन्म ही नहीं हो सकता है। फलतः वास स्थान उपलब्ध रहने के बावजूद वन्य जीव धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं।
- आर्थिक लाभ- रंग-बिरंगी तितलियों से लेकर मेढ़कों, पक्षियों और जंगली जानवरों, कछुआ, तोता एवं अन्य स्थानीय परिंदों का अवैध शिकार कर इन्हें बेचा जाता है। इसकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काला बाजारी होती है। चीन ऐसे वन्य जीवों के काला बाजारी का मुख्य केन्द्र है।
अमृता देवी वन्य संरक्षण परसार : अमृता देवी राजस्थान के विशनोई गाँव (जोधपुर जिला) की रहनेवाली थी। उसने 1731 ई० में राजा के आदेश को दरकिनार कर वनों से लकड़ी काटनेवालों का विरोध किया था। राजा के लिए नवीन महल निर्माण के लिए लकड़ी काटा जाना था। अमृता देवी के साथ गाँव वालों ने भी राजा के आदमियों का विरोध किया। महाराजा को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्हें काफी पश्चाताप हुआ और अपने राज्य में वनों की कटाई पर रोक लगा दी । |
वर्तमान समय में वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। भारत की संकटापन्न पादप प्रजातियों की सूची बनाने का काम सर्वप्रथम 1970 में बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया तथा वन अनुसंधान संस्थान देहरादून द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इन्होंने जो सूची बनाई उसे ‘रेड डेटा बुक’ का नाम दिया गया। इसी क्रम में असाधारण पौधों के लिए ‘ग्रीन बुक’ तैयार किया गया।
रेड डेटा बुकः इसमें सामान्य प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे से अवगत किया जाता है।
संकटग्रस्त प्रजातियाँ सर्वमान्य रूप से चिन्हित होते हैं।
विश्व स्तर पर, संकटग्रस्त प्रजातियों की एक तुलनात्मक स्थिति के प्रति चेतावनी देती है। स्थानीय स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों की पहचान एवं उनके संरक्षण से संबंधित कार्यक्रम को प्रोत्साहन देना।
अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में कार्य कर रही एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।
इस संस्था ने विभिन्न प्रकार के पौधों और प्राणियों के जातियों को चिन्हित कर निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया हैः
- सामान्य जातियाँ – ये वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती हैं जैसे- पशु, साल, चीड़ और कृतंक इत्यादि।
- संकटग्रस्त जातियाँ – ये वे जातियाँ है जिनके लुप्त होने का खतरा है। जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है, यदि वे जारी रहती हैं तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन है। काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, गेंडा, पूंछ वाला बंदर, संगाई (मणिपुरी हिरण) इत्यादि इस प्रकार के जातियों के उदाहरण हैं।
- सुभेद्य जातियाँ – इसके अंतर्गत ऐसी जातियों को रखा गया है, जिनकी संख्या घट रही है। यह वैसी जातियाँ हैं जिनपर ध्यान नहीं दिया गया तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ सकते हैं। नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा की डॉल्फिन आदि इस प्रकार की जातियों के उदाहरण हैं।
- दुर्लभ जातियाँ – इन जातियों की संख्या बहुत कम है और यदि इनको प्रभावित करने वाली विषम परिस्थितियाँ नहीं बदलती हैं तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ सकती हैं।
- स्थानिक जातियाँ – प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियाँ, अंडमानी टील, निकोबरी कबूतर, अंडमानी जंगली सुअर और अरुणाचल के मिथुन इसी वर्ग में आते हैं।
- लुप्त जातियाँ – ये वे जातियाँ हैं जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पाई गई हैं। ये उपजातियाँ स्थानीय क्षेत्र, प्रदेश, देश, महाद्वीप या पूरी पृथ्वी से लुप्त हो गई हैं। एशियाई चीता और गुलाबी सर वाली बत्तख एवं डोडो पंक्षी इसके अच्छी उदाहरण हैं।
संकटग्रस्त वन एवं वन्य जीवों , पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अन्य कई अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संस्थान भी कार्यक्रम चल रही है इनमें वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर (WWF)विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
भारत में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय (Ministry of Forest and Environment) द्वारा वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के अनेक के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं
वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करने का प्रयास सफल हो रहा है इन्हें इन सीटू (in situ ) प्रयास कहते हैं। इनके अंतर्गत विस्तृत भूखंड को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाता है।
इसी प्रकार इन्हें संकट से बचने के लिए कृत्रिम आवासीय संरक्षण का विकास किया जाता है इसे एक्स सीटू (Ex Situ )कहते हैं। एक्स सीटू के प्रयास से जिन प्रजातियां के विलुप्त होने का खतरा है उन्हें संग्रहित किया जाता है।
वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्रों में (क) राष्ट्रीय उद्यान, (ख) विहार या अभ्यारण्य तथा (ग) जैव मंडल सम्मिलित हैं।
(1) राष्ट्रीय उद्यान : ऐसे पार्कों का उद्देश्य वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास में वृद्धि एवं प्रजनन की परिस्थितियों को तैयार करना है। हमारे देश में राष्ट्रीय उद्यानों की संख्या 85 है।
(2) विहार क्षेत्र या अभम्यारण्य : यह एक ऐसा सुरक्षित क्षेत्र होता है जहाँ वन्य जीव सुरक्षित ढंग से रहते हैं। यह निजी संपत्ति हो सकती है। भारत में इनकी संख्या 448 है। बिहार में बेगूसराय तथा काँवर झील तथा दरभंगा का कुशेश्वर इसके लिए चिन्हित किया गया है।
(3) जैव मंडल : यह वह क्षेत्र है जहाँ प्राथमिकता के आधार पर जैवदृविविधता के संरक्षण के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। विश्व के 65 देशों में करीब 243 सुरक्षित जैवदृमंडल क्षेत्र हैं। भारत में इनकी संख्या 14 है।
भारत में राज्यानुसार प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानतथा अभ्यारण्यो
मध्य प्रदेश | बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान (उमरिया) फासिल राष्ट्रीय उद्यान (मण्डला) कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (मण्डला और बालाघाट माधव राष्ट्रीय उद्यान (शिवपुरी) पन्ना राष्ट्रीय उद्यान (पन्ना/छतरपुर) पेंच राष्ट्रीय उद्यान (होशंगाबाद) सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान (भोपाल) संजय डुबरी राष्ट्रीय उद्यान (सीधी) |
कर्नाटक | गाँधी सागर अभयारण्य (मन्दसौर) बान्दीपुर राष्ट्रीय उद्यान भद्रा अभयारण्य (चिकमंगलूर) डण्डेली वन्य जीव अभयारण्य (दक्षिणी कन्नड़) शारावती वन्य जीव अभयारण्य (शिवामोग्गा) |
राजस्थान | रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान (सवाई माधोपुर) घना पक्षी विहार (भरतपुर) दर्शत अभयारण्य (कोटा) सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य (अलवर) डेसर्ज अभयारण्य (जैसलमेर, बाडमेर) |
आन्ध्र प्रदेश | काबला वन्य जीव अभयारण्य (आदिलाबाद) किन्नरसानी वन्य जीव अभयारण्य मालापट्टी पक्षी विहार (नैल्लोर) |
केरल | परम्बिकुलम वन्य जीव अभयारण्य (पालबाट) पेरियार राष्ट्रीय उद्यान विनायड वन्य जीव अभ्यारण्य |
उत्तराखंड | कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान (नैनीताल) नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान (चमोली) केदारनाथ अभयारण्य (चमोली) चीला अभयारण्य (गढ़वाल) |
उत्तर प्रदेश | दुधवा राष्ट्रीय उद्यान (लखीमपुर खीरी) चन्द्रप्रभा अभयारण्य (वाराणसी) |
असम | काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (शिवसागर, नौगाँव) मानस वन्य जीव अभयारण्य (ग्वालपाड़ा) सोनाईरूपा वन्य जीव अभयारण्य (दरांग) |
झारखण्ड | हजारीबाग वन्य जीव अभयारण्य पलामू वन्य जीव अभयारण्य (पलामू) डाल्मा वन्य जीव अभयारण्य |
तमिलनाडु | मुदुमलाई वन्य जीव अभयारण्य अन्नामलाई बाघ अभयारण्य गुण्डी राष्ट्रीय उद्यान (चेन्नई) |
महाराष्ट्र | बोरीवली राष्ट्रीय उद्यान (मुम्बई) टोडोबा राष्ट्रीय उद्यान (चन्द्रपुर) डाकना अभयारण्य (अमरावती) |
गुजरात | गिरि राष्ट्रीय उद्यान (जूनागढ़) बल्वाडर राष्ट्रीय उद्यान (भावनगर) |
हिमाचल प्रदेश | रोहिला राष्ट्रीय उद्यान (कुल्लू) शिकारी देवी वन्य जीवन अभयारण्य (मण्डी) |
पश्चिम बंगाल | जलदापारा वन्य जीव अभयारण्य (जलपाइगुड़ी) सुन्दरवन टाइगर रिजर्व (चौबीस परगना) |
अरुणाचल प्रदेश | अरूणचल प्रदेश वन्य जीवन अभयारण्य (कामेंगा) जन्दफा वन्य जीव अभयारण्य (तिरप) |
उड़ीसा | सिमिलीपाल राष्ट्रीय उद्यान (मयूरगंज) चिल्का अभयारण्य (पूरी) |
छत्तीसगढ़ | इन्द्रावती राष्ट्रीय उद्यान (बस्तर) कांकेर राष्ट्रीय उद्यान (कांकेर) कुटरू उद्यान (बस्तर) उदयन्ती अभयारण्य (रायपुर) तमोर पिंगला राष्ट्रीय उद्यान (सरगुजा) |
जम्बु-कश्मीर | दिनगाँव राष्ट्रीय उद्यान (श्रीनगर) |
सिक्किम | कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान |
मिजोरम | डम्पा वन्य जीव अभयारण्य (आइजोल) |
नागालैण्ड | इंटेंगी वन्य जीव अभयारण्य (कोहिमा) |
प्रजनन केन्द्र : प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवों के प्रजनन दर में कमी आती है। ऐसी कई प्रजातियाँ हैं जिनकी प्रजनन दर कम होने के कारण संकटग्रस्त सूची में शामिल हैं। इसलिए जीवों के लिए प्रजनन केन्द्र की सुविधा विकसित होनी चाहिए। हमारे देश में मध्य प्रदेश में पर्यावरण परिवर्तन के कारण घड़ियालों की संख्या में भारी कमी हो गई, इसलिए
इनके संरक्षण के लिए मुरैना (मध्य प्रदेश) में एक घड़ियाल प्रजनन केन्द्र स्थापित किया गया है। इसी प्रकार उड़ीसा के नन्दनकानन में उजले बाघ का प्रजनन केन्द्र स्थापित किया गया है।
शिकार पर रोक : वन्य प्राणियों के ह्रास का एक प्रमुख कारण इनका शिकार और इन्हें विभित्त उद्देश्यों के लिए फंसाना है। इनका आर्थिक महत्त्व होने के कारण इनका दोहन होता है। यद्यपि फंसाना, शिकार करना, व्यापार करना कानूनी रूप से वर्जित है, किन्तु स्थानीय राज्य एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इनकी काला बजारी एवं तस्करी हो रही है। जिसके कारण वन्य जीव का तेजी से दोहन हो रहा है। इसपर सरकार द्वारा सख्त कानूनी कार्रवाई भी की जा रही है। स्वयं सेवी संस्थाओं को भी आगे लाया जा रहा है और स्थानीय जनता में जागरूकता लाने की भी जरूरत है। बिहार के दरभंगा जिला का कुशेश्वर स्थान अभयारण्य (पक्षी विहार क्षेत्र) एक अच्छा उदाहरण है, जहाँ प्रवासी पक्षियों के शिकार एवं व्यापार पर रोकथाम के लिए स्थानीय नागरिकों के सहयोग से जन-जागरण के कार्यक्रम चलाए गए हैं। जिला प्रशासन के सहयोग से स्थानीय यूनेस्को क्लब द्वारा पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिसके अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। जिला प्रशासन द्वारा इसके लिए यहाँ एक वाच टावर (Watch Tower) का निर्माण कराया गया है।
जैव अपहरण की समस्या (Bio Piracy Problem): यह आधुनिक अनुवंशिक इंजिनियरिंग एवं जैव तकनीकी का प्रतिफल (output) है। यह केवल वन्य प्राणियों के लिए गम्भीर समस्या नहीं है वरन सम्पूर्ण मानव समाज के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। विभिन्न प्रकार के जीवों और वनस्पतियों के अनुवांशिक गुणों का पता लगाकर दूसरे जीवों में एवं पौधों में प्रत्यारोपण के द्वारा अन्य प्रकार के जीव एवं पौधा विकसित किया जाता है, इस कार्य के लिए विभिन्न देशों से जैव अपहरण होता है यानी अनुवांशिक गुणों की हेराफेरी की जाती है।
पश्चिमी अफ्रीका में पाये जाने वाला पन्टडिपलान्ड्रा ब्राजिएनी ब्रेजीन (Pendiplandra brazzeane Brazzein) नाम का पौधा इसी प्रभाव में आ गया है, इस पौधे में पाये जाने वाले एक प्रकार के प्रोटीन की मिठास चीनी से 2000 गुना अधिक होती है। इसमें कैलोरी भी कम होती है अमेरिका द्वारा मिठास उत्पन्न करने वाले जीन की पहचान कर ली गई है। इस जीन को मक्का के पौधे में प्रतिस्थापित कर मकई के पौधा से चीनी से भी अधिक मिठास तथा कम कैलोरी वाला जैविक उत्पाद प्राप्त करने की दिशा में शोध किये जा रहे हैं। आप समझ सकते हैं कि गन्ने से चीनी का उत्पादन तथा निर्यात करने वाले देशों के लिए यह जैव अपहरण एक प्रकार की चुनौती है। इसके लिए अब कई राष्ट्रों द्वारा कठोर कदम उठाए जा रहे हैं। और हॉट स्पॉट (Hot Spot) चिह्नित कर जैव सम्पदा पर पाबंदी लगाई जा रही है।
हॉट स्पाट्स (Hot Spots): नॉर्मोन मायर्स (Normen Mayers) ने 1988 में इन सेटू संरक्षण को प्राथमिकता के आधार पर हॉट स्पाट्स के पहचान पर जोर दिया।
“The hot spots are the richest and the most threatened reservoir of plant and animal life on the earth”.
हॉट स्पॉट्स के निर्धारण के लिए मुख्य शर्तें हैं
(1) देशज प्रजातियों की संख्या का निर्धारण-ऐसी प्रजातियां जो अन्य और कहीं नहीं पायी जाती हैं।
(ii) अधिवास पर अतिक्रमण की सीमा निर्धारित करना।
बाघ परियोजना : वन्य जीवन संरचना में बाघ एक महत्वपूर्ण जंगली जाति है। 1973 में अधिकारियों ने पाया कि देश में 20 वीं शताब्दी के आरंभ में बाघों की संख्या अनुमानित संख्या 5500 से घटकर मात्र 1827 रह गई है। बाघों को मारकर उनको व्यापार के लिए चोरी करना, आवासीय स्थलों का सिकुड़ना, भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की संख्या कम होना और जनसंख्या में वृद्धि बाघों की घटती संख्या के मुख्य कारण हैं। बाघ परियोजना विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है और इसकी शुरुआत 1973 में हुई। शुरू में इसमें बहुत सफलता प्राप्त हुई क्योंकि बाघों की संख्या बढ़कर 1985 में 4002 और 1989 में
4334 हो गयी। परंतु 1993 में इसकी संख्या घटकर 3600 तक पहुँच गई भारत में 37,761 वर्ग किमी० पर फैले हुए 27 बाघ रिजर्व हैं।
चिपको आंदोलन : उत्तर प्रदेश टेहरी-गढ़वाल पर्वतीय जिले में सुंदर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में अनपढ़ जनजातियों द्वारा 1972 में यह आंदोलन आरंभ हुआ था। इस आंदोलन में स्थानीय लोग ठेकेदारों की कुलहाड़ी से हरे-भरे पौधों को काटते देख, उसे बचाने के लिए अपने आगोस में पौधा को घेर कर इसकी रक्षा करते थे। इसे कई देशों में स्वीकारा गया।
वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कानूनी प्रावधान : वन्य जीवों के संरक्षण के लिए बनाए गए नियमों तथा कानूनी प्रावधानों को दो वर्गों में बांट सकते हैं, ये हैं-
(क) अंतर्राष्ट्रीय नियम : वन्य जीवों के संरक्षण के लिए दो या दो से अधिक राष्ट्र समूहों के द्वारा (अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अंतर्गत) नियम तथा कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर 1968 में अफ्रीकी कनवेंशन, अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड्स का कनवेंशन 1971 तथा विश्व प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण एवं रक्षा अधिनियम 1972 के अंतर्गत बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय नियमों के द्वारा वन्य जीवों के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। इस पर सख्ती से अनुपालन करके वन्य जीवों की रक्षा की जा सकती है।
(ख) राष्ट्रीय कानून : संविधान की धारा 21 के अंतर्गत अनुच्छेद 47, 48 तथा 51 (क) वन्य जीवों तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के नियम हैं। वन्य जीव सुरक्षा एक्ट 1972, नियमावली 1973 एवं संशोधित एक्ट 1991 के अंतर्गत पक्षियों तथा जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है।
जैव विविधताः पृथ्वी पर पौधों और जीव-जंतुओं की लगभग 17-18 लाख से ज्यादा प्रजातियों का विवरण मिलता है। पृथ्वी पर विभिन्न प्रजातियों के पौधों और जीवदृजंतुओं का होना जैव विविधता को दर्शाता है।
जैव विविधता का सामान्य अर्थकृ जीवों की विभिन्नता अर्थात् किसी विशेष क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के जीवों एवं वनस्पतियों जैसे- जानवर, पक्षी, जलीय जीव, पेड़-पौधे, छोटे-छोटे कीटों आदि की उपस्थिति को जैव विविधता कहते हैं। जैव विविधता अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग होती है।
हमारा देश जैव-विविधता के संदर्भ में विश्व के सर्वाधिक देशों में से एक है, इसकी गणना विश्व के 12 विशाल जैविक-विविधता वाले देशों में की जाती है, यहाँ विश्व की सारी जैव उप जातियों का 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16
लाख) पाई जाती है।
राष्ट्र के स्वस्थ्य जैव मंडल एवं जैविक उद्योग के लिए समृद्ध जैव-विविधता अनिवार्य है।
जैव विविधता का उपयोग कृषि तथा बहुत सारे औषधीय उपयोग में होता है।
पादप (Flora) :
हमारे देश की जलवायु विषम है, वस्तुतः संसार में जितने भी प्रकार की जलवायु है, वह सभी जलवायु यहाँ मिलती है, यही कारण है कि हमारे देश में अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं। हम इन्हें मोटे तौर पर आठ वनस्पतिक क्षेत्र (Botanical Region) में बांट सकते हैं।
- पश्चिमी हिमालय वनस्पतिक क्षेत्र: इस क्षेत्र का विस्तार कश्मीर से कुमाऊँ तक है। यहाँ चीड़, देवदार और कोणधारी वृक्ष का फैलाव है, ऊँचाई के साथ-साथ वृक्षों की प्रजातियों में भी परिवर्तन देखने को मिलता है, अधिक ऊँचे क्षेत्रों (4750 मी०) में अल्पाईन वनों का विस्तार है।
- पूर्वी हिमालय वनस्पतिक क्षेत्र इस क्षेत्र में ओक, छोटी बेंत तथा फूलों वाले सदाबहार वृक्ष मिलते हैं।
- असम वनस्पतिक क्षेत्र यह ब्रह्मपुत्र और सुरमाघाटी के बीच का क्षेत्र है, यहाँ मुख्य रूप से सदाबहार वन मिलते हैं सदाबहार वनों के बीच-बीच में घने बांसों एवं लम्बी घासों के झुरमुट मिलते हैं।
- सिन्धु मैदान वनस्पतिक क्षेत्र इस क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के मैदान को शामिल किया गया है। बबूल, नागफनी, खेजरी, आक आदि यहाँ के मुख्य पौधे हैं।
- गंगा की मैदानी वनस्पतिक क्षेत्र : अरावली से बंगाल और उड़ीसा के बीच के क्षेत्र इसके अन्तर्गत रखा गया है। यह क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र है इसलिए यहाँ वन बहुत कम विस्तृत है जहाँ-तहाँ बांस साल, खैर, तेन्दू के वृक्ष पाए जाते हैं।
- दक्षिण का पठारी वनस्पतिक क्षेत्र : इसमें पूरा दक्षिण का पठारी क्षेत्र सम्मिलित किया गया है। यहाँ पतझड़ वाले वृक्ष पाए जाते हैं इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की जंगली झाड़ियाँ देखने को मिलती हैं।
- मालाबार वनस्पतिक क्षेत्र इसके अंतर्गत पश्चिमी तटीय क्षेत्र को रखा गया है। यहाँ पर गर्म मसाले, सुपारी, नारियल, रबर के वृक्ष के अलावा काजू, चाय एवं कॉफी के वृक्ष पाए जाते हैं।
- अंडमान वनस्पतिक क्षेत्र यहाँ पर सदाबहार, अर्द्ध सदाबहार, एवं समुद्रीतटीय जंगलों की प्रमुखता है।
भारतीय वनस्पतिक सर्वेक्षण (Botanical Survey of India, BSI) के अनुसार यहाँ 47,000 पेड़-पौधों की प्रजातियाँ हैं जिसमें 15,000 प्रजातियां वाहिनी वनस्पति (Vascular Plant) के अन्तर्गत आते हैं। इनमें 35% प्रजातियां देशी (Endemic) हैं, जो विश्व में और कहीं नहीं पायी जाती है।
जन्तु (Fauna): भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, कोलकाता (Zoological Survey of India, ZSI) के सर्वेक्षण के अनुसार हमारे यहाँ 89,451 जीव-जन्तुओं की प्रजातियां पायी जाती हैं, जिनको निम्नांकित वर्गों में रखा गया है।
अद्यजीव (प्रोटिस्टा) 2577 प्रजातियां
आथ्रोपोडा 68,389 प्रजातियां
मोलस्क 5000 प्रजातियां
अन्य अकशेरूकी 8,329 प्रजातियां
प्रोटोकॉर्डय 119 प्रजातियां
मछलियां 2,546 प्रजातियां
अभयचर 209 प्रजातियां
सरीसृप 456 प्रजातियां
पक्षी 1,232 प्रजातियां
स्तनपायी 390 प्रजातियां
इनमें कई लुप्त होने के कगार पर हैं। इनके संरक्षण के लिए सरकार ने कई कदम उठाऐ हैं। इनके लिए 89 उद्यान तथा 400 वन्य प्राणी उद्यान का विकास प्रमुख है। इसके अंतर्गत सम्मिलित रूप से 1.56 लाख किलोमीटर क्षेत्रफल है।
SOME IMPORTANT NOTES
- वन उस बड भूभाग को कहते हैं जो पेड़ पौधों एवं झाड़ियों द्वारा आच्छादित होते हैं।
- F.A.O. (Food and Agriculture Organisation) की वानिकी रिपोर्ट के अनुसार 1948 में विश्व में 4 अरब हेक्टेयर वन क्षेत्र था जो 1963 में घटकर 3.8 अरब हेक्टेयर हो गया और 1990 में 3.4 अरब हेक्टेयर वनक्षेत्र बच गया। किन्तु 2005 में यह पुनः 3.952 अरब हेक्टेयर हो गया है।
- 2005 तक F.S.I. के रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 67.71 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.60 प्रतिशत है।
- देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 25.11 प्रतिशत वन क्षेत्र पूर्वोत्तर के सात राज्यों में है।
- देश में वनाच्छादित क्षेत्र के मामले में मध्यप्रदेश का स्थान प्रथम है जहाँ देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 11.22% वन है।
- वन्य जीवों के संरक्षण के लिए यहाँ 58 राष्ट्रीय उद्यान, 448 अभ्यारण्य एवं 14 सुरक्षित जैव मंडल रिजर्व क्षेत्र हैं।
- विश्व के 65 देशों में करीब 243 सुरक्षित जैव-मंडल क्षेत्र हैं।
- वन को बचाने के लिए उत्तरांचल के टेहरी-गढ़वाल जिले में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में 1972 ई. से चिपको आन्दोलन चलाया जा रहा है।
- वन एक प्राकृतिक नवीकरणीय संसाधन है, क्योंकि नष्ट होने पर इसे पुनः उगाया जा सकता है और इसकी पूर्ति की जा सकती है।
- वन हमारी राष्ट्रीय सम्पत्ति है और आर्थिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- वन उस बड़े भू-भाग को कहते हैं जो पेड़ एवं झाड़ियों द्वारा आच्छादित होते हैं।
- FA.O.(Food and Agriculture Organisation) की वानिकी रिपोर्ट के अनुसार 1948 में विश्व में 4 अरब हेक्टेयर वन क्षेत्र था जो 1963 में घटकर 3.6 अरब हेक्टेयर हो गया और 1990 में 3.4 अरब हेक्टेयर वन क्षेत्र बच गया। किन्तु 2005 में यह पुन: 3.952 अरब हेक्टेयर हो गया है।
- वन से मानव को कई लाभ हैं।
- औद्योगिक क्रांति के बाद वनों का बड़े पैमाने पर ह्रास हुआ है।
- वन से प्राप्त उत्पादों के दो वर्ग हैं-(क) मुख्य उत्पाद और (ख) गौण उत्पाद।
- प्लाईवुड का निर्माण जर्मनी में शुरू हुआ।
- भारत में वनस्पतियों की लगभग 47,000 उपजातियाँ पायी जाती हैं जिनमें 15,000 भारतीय मूल की हैं।
- भारत में लगभग 6,77,088 वर्ग किलोमीटर भूमि पर वन का विस्तार है।
- राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश की 33.3% भूमि पर वन का विस्तार होना आवश्यक है।
- वन नीति के छह प्रमुख उद्देश्य हैं -(i) वन संपत्ति की सुरक्षा (ii) पर्यावरण को संतुलित बनाना (iii) भूमि-कटाव को रोकना (iv) बाढ़-नियंत्रण (v) मरुस्थल विस्तार को रोकना (vi) लकड़ियों की आपूर्ति बनाए रखना।
- प्रमुख उत्पाद वाले वनों में देवदार, शीशम, साल तथा चीड़ इत्यादि के पेड़ पाये जाते हैं।
बिहार बोर्ड की किताब के प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. भारत में 2001 में कितने प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में वन का विस्तार है?
(क) 25 (ख) 19.27
(ग).20 (घ) 20.60
उत्तर- (ख) 19.27
प्रश्न 2. वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार भारत में वन का विस्तार है।
(क) 20.60% भौगोलिक क्षेत्र में
(ख) 20.55% भौगोलिक क्षेत्र में
(ग) 20% भौगोलिक क्षेत्र में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ख) 20.55% भौगोलिक क्षेत्र में
प्रश्न 3. बिहार में कितने प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में वन का फैलाव है ?
(क) 15 (ख) 20
(ग) 10 (घ) 7
उत्तर- (घ) 7
प्रश्न 4. पूर्वोत्तर राज्यों के 188 आदिवासी जिलों में देश के कुल क्षेत्र का कितना प्रतिशत वन
(क) 75 (ख) 80.05
(ग) 90.03 (घ) 60.11
उत्तर- (घ) 60.11
प्रश्न 5. किस राज्य में वन का सबसे अधिक विस्तार है ?
(क) केरल (ख) कर्नाटक
(ग) मध्य प्रदेश (घ) उत्तर प्रदेश
उत्तर- (ग) मध्य प्रदेश
प्रश्न 6. वन संरक्षण एवं प्रबंधन की दृष्टि से वनों को वर्गीकृत किया गया है
(क) 4 वर्गों में (ख) 5 वर्गों में
(ग) 5 वर्गों में (घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ख) 5 वर्गों में
प्रश्न 7. 1951 से 1980 तक लगभग कितना वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र कृषि-भूमि में परिवर्तित हुआ?
(क) 30,000 (ख) 26,200
(ग) 25,200 (घ) 35,500
उत्तर- (ख) 26,200
प्रश्न 8. संविधान की धारा 21 का संबंध है
(क) वन्य जीवों तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण
(ख) मृदा संरक्षण
(ग) जल संसाधन संरक्षण
(घ) खनिज सम्पदा संरक्षण
उत्तर- (क) वन्य जीवों तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण
प्रश्न 9. एक ए ओ की वानिकी रिपोर्ट के अनुसार 1948 में विश्व में कितने हेक्टेयर भूमि पर वन का विस्तार था।
(क) 6 अरब हेक्टेयर
(ख) 4 अरब हेक्टेयर
(ग) 8 अरब हेक्टेयर में
(घ) 5 अरब हेक्टेयर में
उत्तर- (ख) 4 अरब हेक्टेयर
प्रश्न 10. प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण 1968 में कौन-सा कनवेंशन हुआ था?
(क) अफ्रीकी कनवेंशन
(ख) वेटलैंड्स कनवेंशन
(ग) विश्व आपदा कनवेंशन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (क) अफ्रीकी कनवेंशन
प्रश्न 11. इनमें कौन-सा जीव है जो केवल भारत ही में पाया जाता है ?
(क) घड़ियाल (ख) डॉलफिन
(ग) ह्वेल (घ) कछुआ
उत्तर- (ख) डॉलफिन
प्रश्न 12. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है।
(क) कबूतर (ख) हंस
(ग) मयूर (घ) तोता
उत्तर- (ग) मयूर
प्रश्न 13. मैंग्रोव्स का सबसे अधिक विस्तार है
(क) अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के तटीय भाग में
(ख) सुन्दरवन में
(ग) पश्चिमी तटीय प्रदेश में
(घ) पूर्वोत्तर राज्य में
उत्तर- (ख) सुन्दरवन में
प्रश्न 14. टेक्सोल का उपयोग होता है
(क) मलेरिया में (ख) एड्स में
(ग) कैंसर में (घ) टी.बी. के लिए
उत्तर- (ग) कैंसर में
प्रश्न 15. ‘चरक’ का संबंध किस देश से था?
(क) म्यनमार से (ख) श्रीलंका से
(ग) भारत से (घ) नेपाल से
उत्तर- (ग) भारत से
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. बिहार में वन सम्पदा की वर्तमान स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर- बिहार विभाजन के बाद वन विस्तार में बिहार राज्य दयनीय हो गयी है, क्योंकि वर्तमान बिहार में अधिकतर भूमि कृषि योग्य है। मात्र 6764.14 हेक्टेयर में वन क्षेत्र बच गया है। यह भोगोलिक क्षेत्र का मात्र 7.1 प्रतिशत है। बिहार के 38 जिलों में से 17 जिलों से वन क्षेत्र समाप्त हो गया है। पश्चिमी चम्पारण, मुंगेर, बांका, जमुई, नवादा, नालन्दा, गया, रोहतास, कैमूर और औरंगाबाद जिलों के वनों की स्थिति कुछ बेहतर है, जिसका कुल क्षेत्रफल 3700 वर्ग किमी है। शेष में अवक्रमित वनक्षेत्र है, वन के नाम पर केवल झाड़-झरमूट बच गए हैं।
प्रश्न 2. वन विनाश के मुख्य कारकों को लिखें।
उत्तर- वन विनाश के मुख्य कारक निम्न हैं-
कृषिगत भूमि का फैलाव
- नदी घाटी परियोजनाओं के विकास के कारण
- पशुचारण एवं ईंधन के लिए लकड़ियों का उपयोग
- पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार भारत के कई क्षेत्रों में वाणिज्य की दृष्टि से एकल वृक्षारोपण करने से पेड़ों की दूसरी जातियाँ नष्ट हो गयीं, जैसे सागवान के एकल रोपण से दक्षिण भारत में अन्य प्राकृतिक वन बर्बाद हो गए।
- भोजन, सुरक्षा एवं आनन्द के लिए वन्य जीवों का शिकार भी वन विनाश का एक मुख्य कारक है।
प्रश्न 3. वन के पर्यावरणीय महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वन एवं वन्य प्राणी मानव जीवन के प्रमुख हमसफर हैं। वन पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच जैसा है। यह केवल एक संसाधन ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण घटक है। यह जीवमंडल में सभी जीवों को संतुलित स्थिति में जीने के लिए अथवा संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान देता है क्योंकि सभी जीवों के लिए खाद्य ऊर्जा का प्रारंभिक स्रोत वनस्पति ही है।
प्रश्न 4. वन्य-जीवों के ह्रास के चार प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- वन्य जीवों के हास के चार प्रमुख कारक निम्न हैं—
- प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण यातायात की सुविधाओं में वृद्धि आदि कारणों से – जीवों के प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण हो रहा है जिससे वन्य जीवों की सामान्य वृद्धि प्रजनन क्षमता में कमी आ गई।
- प्रदूषण जनित समस्या प्रदूषण के कारण वन्य जीवों का जीवन-चक्र प्रभावित हो रहा है।
- आर्थिक लाभ- अनेक वन्य जीवों एवं उसके उत्पाद का उपयोग आर्थिक लाभ के लिए हो रहा है जिससे उनका दोहन हो रहा है।
- सह विलुप्तता-जब एक जाति विलुप्त होती है तब उसपर आधारित दूसरी जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं।
प्रश्न 5. वन और वन्य जीवों के संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- सहयोगी रीति-रिवाजों का वन और वन्य जीवों के संरक्षण में काफी महत्वपूर्ण योगदान है। ग्रामीण लोग कई धार्मिक अनुष्ठानों में 100 से अधिक पादप प्रजातियों का प्रयोग करते हैं और इन पौधों को अपने खेतों में भी उगाते हैं।
आदिवासियों को अपने क्षेत्र में पाये जाने वाले पेड़-पौधों तथा वन्य जीवों से भावनात्मक एवं आत्मीय लगाव होता है। वे प्रजननकाल में मादा वन पशुओं का शिकार नहीं करते हैं। वन संसाधनों का उपयोग चक्रीय पद्धति से करते हैं। वन के खास क्षेत्रों को सुरक्षित रख उसमें प्रवेश नहीं करते हैं।
प्रश्न 6. चिपको आन्दोलन.क्या है ?
उत्तर- उत्तर प्रदेश टेहरी-गढ़वाल पर्वतीय जिले में सुन्दरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में अनपढ़ जनजातियों द्वारा 1972 में एक आन्दोलन शुरू हुआ, जिसे चिपको आन्दोलन कहा जाता है। इस आन्दोलन में स्थानीय लोग ठेकेदारों को हरे-भरे पौधों को काटते देख, उसे बचाने के लिए अपने आगोश में पौधों को घेर कर उसकी रक्षा करते हैं। इसे कई देशों में स्वीकारा गया।
प्रश्न 7. कैंसर रोग के उपचार में वन का क्या योगदान है ?
उत्तर- हिमालय यव (चीड़ के प्रकार का सदाबहार वृक्ष टेक्सस बेनकेटा एवं टी. ब्रव्ही फोलिया) एक औषधीय पौधा है जो हिमालय और अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता .. है। चीड़ की छाल, पत्तियों, टहनियों और जड़ों से टैक्सोल नामक रसायन निकाला जाता है। इससे कैंसर रोधी औषधि बनायी जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक बिकने वाली कैंसर औषधि है।
प्रश्न 8. दस लुप्त होने वाली पशु-पक्षियों का नाम लिखिए।
उत्तर- एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाला बत्तख, डोडो, गिद्ध (भारत), थाईलैंसीन (आस्ट्रेलिया), ‘स्टीलर्स सीकाउ (रूस), शेर की तीन प्रजातियाँ (बाली, जावन एवं कास्पियन) (अफ्रिका), कस्तुरी मृग, चीतल इत्यादि।
प्रश्न 9. वन्य जीवों के हास में प्रदूषण जनित समस्या पर अपना विचार स्पष्ट करें।
उत्तर- पराबैंगनी किरणें, अम्ल वर्षा और हरितगृह प्रभाव प्रमुख प्रदूषक हैं जिन्होंने वन्य जीवों को काफी प्रभावित किया है। इसके अलावे वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण के कारण वन एवं वन्य जीवों का जीवनचक्र गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। इससे इनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है। फलस्वरूप धीरे-धीरे वन्य जीवन संकटग्रस्त होते जाता है।
प्रश्न 10. भारत के दो प्रमुख जैवमंडल क्षेत्र का नाम क्षेत्रफल एवं प्रान्तों का नाम बतावें।
उत्तर-
- नीलगिरि -5520
- वर्ग किमी – तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक।
- मानस-2,837 वर्ग किमी – असम।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. वन एवं वन्य जीवों के महत्व का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर- वन एवं वन्य जीव हमारी धरा पर अमूल्य धरोहर हैं। ये मानव जीवन के प्रमुख हमसफर हैं। वन पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच हैं।
वन एवं वन्य जीवों के महत्व निम्नलिखित हैं :—
- प्राकृतिक संतुलन-वन एवं वन्य जीव प्राकृतिक संतुलन कायम रखने में मदद करते हैं। जैसे-आवास एवं अन्य कार्यों के लिए जंगल काटे जाने से अनेक पारिस्थितिक समस्याएँ उत्पन्न हुईं जैसे मृदा अपरदन, अनावृष्टि, अतिवृष्टि इत्यादि का सामना करना पड़ा।
- आर्थिक महत्व-वन एवं वन्य जीवों से अनेक ऐसे उत्पाद प्राप्त होते हैं जिनका आर्थिक महत्व बहुत अधिक होता है। जैसे—कीमती लकड़ियाँ, जड़ी-बूटियाँ, हाथी दाँत, चमड़ा इत्यादि।
- वैज्ञानिक उपयोगिता-वन्य प्राणी पर किये गए प्रयोगों के जरिए शरीर रचना, कार्यिकीय तथा पारिस्थितिक तथ्यों का अपार ज्ञान प्राप्त हुआ है। नयी औषधियों के गुण अथवा नयी शल्य चिकित्सा प्रणाली की महत्ता की जाँच पहले मेढक खरमोश, बंदर भेड़ा इत्यादि वन्य प्राणियों पर ही किये जाते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व और धार्मिक लगाव-अनादिकाल से ही मनुष्य का वन्य जीवों से सांस्कृतिक एवं धार्मिक लगाव रहा है। मनुष्य पीपल, बरगद, तुलसी, आँवला इत्यादि की पूजा करता रहा है। हिन्दू धर्म में मत्स्य, नरसिंह, हनुमान इत्यादि को देवताओं का अवतार समझा जाता है। बाघ, गरुड़, चूहा, बैल इत्यादि को दुर्गा, विष्णु, गणेश, शिव इत्यादि देवताओं का वाहन समझा जाता है। पौराणिक कथाएँ एवं साहित्य वन्य जंतुओं के विवरण से भरे हुए हैं।
- क्रीड़ा तथा आनन्द अनुभव हमारे देश में वन्य जीवों की बहुलता है और वे क्रीडा तथा आनन्द अनुभूति के अपार स्रोत हैं। भिन्न-भिन्न पशुओं तथा पक्षियों की क्रीड़ाएं मनमोहक दृश्य उत्पन्न करती हैं।
प्रश्न 2. वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों का वर्गीकरण कीजिए और सभी वर्गों का वर्णन विस्तार से कीजिए।
उत्तर- वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों को पांच वर्गों में बाँटा गया है
- अत्यंत सघन वन-भारत में इस प्रकार के वन विस्तार 54.6 लाख हेक्टेयर भूमि पर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.66 प्रतिशत है, असाम और सिक्किम को छोड़कर समूचा पूर्वोत्तर – राज्य इस वर्ग में आते हैं। इन क्षेत्रों में वनों का घनत्व 75% से अधिक है।
- 2.सघन वन-इसके अन्तर्गत 73.60 लाख हेक्टेयर भूमि आती है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 3% है। हिमालय, सिक्किम, मध्यप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र एवं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र । में इस प्रकार के वनों का विस्तार है। यहाँ वनों का घनत्व 621.99 प्रतिशत है।
- खुले वन-2.59 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर इस प्रकार के वनों का विस्तार है। यह कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.12% है, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा के कुछ जिले एवं असम के 16 आदिवासी जिलों में इस प्रकार के वनों का विस्तार है, असाम आदिवासी जिलों में वृक्षों का घनत्व 23.89% है।
- झाड़ियाँ एवं अन्य वन-रराजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्र में इस प्रकार के वन पाये जाते हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार एवं प. बंगाल के मैदानी भागों में वृक्षों का घनत्व 10% से भी कम है इसलिए यह क्षेत्र इसी वर्ग में सम्मिलित है। इसके अन्तर्गत 2.459 करोड़ हेक्टेयर भूमि आती है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8.66% है।
- मैंग्रोव्स (तटीय वन)-विश्व के तटीय वन क्षेत्र (मैंग्रोव्स) का मात्र 5% 4,500 किमी. क्षेत्र ही भारत में है, जो समुद्र तटीय राज्यों में फैला है, जिसमें आधा क्षेत्र पश्चिम बंगाल का सुंदरवन है, इसके बाद गुजरात के अंडमान निकोबार द्वीप समूह आते हैं, कुल मिलाकर 12 राज्यों तथा केन्द्र प्रशासित प्रदेशों में मैंग्रोव्स वन है जिनमें आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, , तमिलनाडु, प. बंगाल, अंडमान-निकोबार, पाण्डेिचरी, केरल एवं दमन-दीप शामिल हैं।
प्रश्न 3. जैव विविधता क्या है ? यह मानव के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं ? विस्तार से लिखिए।
उत्तर- जैव विविधता से तात्पर्य, विभिन्न जीव रूपों में पाई जानेवाली विविधता से है। यह शब्द किसी विशेष क्षेत्र में पाये जाने वाले विभिन्न जीव रूपों की ओर इंगित करता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक पृथ्वी पर जीवों की करीब एक करोड़ प्रजातियां पाई जाती हैं।
ये हमारी धरा पर अमूल्य धरोहर हैं। वन्य जीव सदियों से हमारे सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इनसे हमें भोजन, वस्त्र के लिए रेशे, खालें, आवास आदि सामग्री एवं अन्य उत्पाद प्राप्त होते हैं। इनकी चहक और महक हमारे जीवन में स्फूर्ति प्रदान करते हैं। पारिस्थितिकी के लिए ये श्रृंगार के समान हैं। भारत में इन्हें सदैव आदरभाव एवं पूज्य समझा गया। मनीषियों के लिए प्रेरणा का स्रोत तो सैलानियों के लिए आकर्षण का विषय रहा है। ये पर्यावरण संतुलन के लिए भी अति आवश्यक हैं तथा हमारी भावी पीढ़ियों के लिए भी ये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 4. विस्तारपूर्वक बताएं कि मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पति और प्राणीजगत के हास के कारक हैं।
उत्तर- मानव जीवमण्डल का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य है जो न सिर्फ अन्य जैविक सदस्यों को प्रभावित करता है बल्कि पर्यावरण के अजैविक घटकों में भी अत्यधिक परिवर्तन लाता है। मानव अपनी बुद्धि और विवेक के कारण प्रकृति के दूसरे जीवों और अजैविक घटकों का प्रयोग. कर अपने जीवन को सुखमय और आरामदायक बनाता है। किन्तु जब मानव के क्रियाकलाप अनियंत्रित हो जाते हैं तो पर्यावरण के घटकों जैसे-वायु, जल तथा मृदा एवं दूसरे जीवों में अनावश्यक परिवर्तन आ जाता है जो वनस्पतियों एवं प्राणियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
मानव खेती के लिए कारखाने स्थापित करने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को काटता रहा है और अभी भी काट रहा है। शाकाहारी एवं मांसाहारी जानवरों का अंधाधुंध शिकार कर जीवों में असंतुलन पैदा कर दिया है और बहुत-से जन्तु लुप्त होने के कगार पर हैं जैसे—सिंह, बाघ, चीता, गैंडा, बारहसिंगा, कस्तुरी मृग आदि।
मानव के निम्नलिखित क्रियाकलाप वनस्पतियों एवं प्राणीजगत के हास के कारक हैं-
- औद्योगिकीकरण में अनियोजित वृद्धि
- जंगली जंतुओं का शिकार
- आवासीय एवं कृषि योग्य भूमि का विस्तार
- हानिकारक रसायनों का अनियोजित प्रयोग
- आर्थिक लाभ प्राप्त करने हेतु जैव विविधताओं का अति दोहन
- जनसंख्या में वृद्धि, इत्यादि।
प्रश्न 5.
भारतीय जैव मंडल क्षेत्र की चर्चा विस्तार से कीजिए।
उत्तर- हमारा देश जैव विविधता के संदर्भ में विश्व के सर्वाधिक समृद्ध देशों में से एक है। इसकी गणना विश्व के 12 विशाल जैविक-विविधता वाले देशों में की जाती है। यहाँ विश्व की सारी जैव उपजातियों का आठ प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पाई जाती है। इन्हीं जैव विविधताओं के संरक्षण हेतु यूनेस्को के सहयोग से भारत में 14 जैव मण्डल आरक्षित क्षेत्र की स्थापना की गई है जिनका विवरण निम्न है-
क्र०स० | जैवमंडल रिजर्व क्षेत्र का नाम | कुल भौगोलिक क्षेत्र (वर्ग किमी) | स्थिति (राज्य) |
1 | नीलगिरि | 5,520 | वायनाद, नगरहोल, बांदीपुर, मुदुमलाई, निलम्बूर, सायलेण्ट वैली और सिरूवली पहाड़ियाँ (तामिलनाडु, केरल, और कर्नाटक) |
2 | नन्दा देवी | 2,236.74 | चमौली, पिथौरगढ़ और अल्मोड़ा जिलों का भाग (उत्तराखंड) |
3 | नोकरेक | 820 | गारो पहाड़ियों का भाग (मेघालय) |
4 | मानस | 2,837 | कोकराझार, बोंगाईगाँव, बरपेटा, नलबाड़ी कामरूप व दारंग जिलों के हिस्से (असम) |
5 | सुन्दरवन | 9,630 | गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टा और इसका भाग (पश्चिमी बंगाल) |
6 | मन्नार की खाड़ी | 10,500 | भारत और श्रीलंका के बीच स्थित मन्नार की खाड़ी का भारतीय हिस्सा (तमिलनाडु) |
7 | ग्रेट निकोबार | 885 | अंडमान निकोबार के सुदूर दक्षिणी द्वीप (अंडमान निकोबार द्वीप समूह) |
8 | सिमिलीपाल | 4,374 | मयूरभंज जिले के भाग (उड़ीसा) |
9 | डिब्रु साईकोबा | 765 | डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया जिले के भाग (असम) |
10 | दिहांग देबांग | 5,111.5 | अरूणाचल प्रदेश में सियांग और देवांग जिलों के भाग |
11 | कंचनजंगा | 2,619.92 | उत्तर और पश्चिम सिक्किम के भाग |
12 | पचमढ़ी | 4,926.28 | बेतूल, होशंगाबाद और छिंदवाड़ा जिलों के भाग (मध्य प्रदेश) |
13 | अगस्थ्यमलाई | 1,701 | केरल में अगस्थ्यमलाई पहाड़ियां |
14 | अचानकमार-अमरकंटक | 3,835.51 | मध्य प्रदेश में अनुपपुर और दिनदौरी जिलों के भाग और छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के भाग |