“अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।तहँ साँचे चलै तजि आपुनपौ झझकै कपटि जे निसाँक नहीं।।” सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

संदर्भ: यह पद रीतिकालीन कवि घनानंद की कविता से लिया गया है। वे श्रृंगारिक भावनाओं को भक्ति में रूपांतरित करने …

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“संबउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।महामोह तम पुंज जासु वचन रवि कर निकर।।” सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

संदर्भ:यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के आरंभिक बालकांड के मंगलाचरण का एक हिस्सा है। यह पंक्ति तुलसीदास जी …

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कबीर की सामाजिक चेतना

कबीर भारतीय समाज के उन अद्वितीय संत-कवियों में से हैं, जिनकी वाणी केवल आध्यात्मिक चिंतन तक सीमित नहीं रही, बल्कि …

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‘रोलां बार्थ’ पर टिप्पणी

रोलां बार्थ (Roland Barthes) 20वीं सदी के एक प्रमुख फ्रांसीसी साहित्यिक सिद्धांतकार, आलोचक, दार्शनिक और सांस्कृतिक चिन्तक थे। वे साहित्य, …

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‘अनुभववाद’ पर टिप्पणी

अनुभववाद

अनुभववाद एक ऐसा दार्शनिक दृष्टिकोण है, जो ज्ञान की प्राप्ति में अनुभव को प्रमुख आधार मानता है। इसे अंग्रेजी में …

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