Chhappay Class 12 |छप्पय Class 12 | Chhappay ka Bhawarth | Chhappay ka Art | Nabhadas

Chhappay class 12; जय हिन्द। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड क्लास 12वीं हिन्दी किताब दिगंत भाग – 2 के पद्य खण्ड के अध्याय 4 ‘छप्पय’ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। जिसके रचनाकार नाभादास जी है। Chhappay class 12, Chhappay ka Bhawarth class 12

chhappay class 12 ( छप्पय )

कवि परिचय

कवि का नाम — नाभादास

  • जन्म : 1570 अनुमानित ।
  • निधन : अज्ञात, (1600 तक वर्तमान) ।
  • जन्म-स्थान : सांप्रदायिक मान्यता के अनुसार दक्षिण भारत में
  • शैशव में पिता की मृत्यु और अकाल के कारण माता के साथ जयपुर (राजस्थान) में प्रवास ।
  • दुर्योगवश माता से भी बिछोह ।
  • शिक्षा : गुरु और प्रतिपालक की देख-रेख में स्वाध्याय, सत्संग द्वारा ज्ञानार्जन ।
  • अभिरुचि : लोकभ्रमण, भगवद्भक्ति, काव्य रचना, वैष्णव दर्शन-चिंतन में विशेष रुचि ।
  • दीक्षागुरु : स्वामी अग्रदास (अग्रअली), जो स्वामी रामानंद की शिष्य परंपरा के प्रसिद्ध कवि थे ।
  • स्थाई निवास : वृंदावन ।
  • कृतियाँ :
    • भक्तमाल (रचनाकाल 1585-1596 निर्धारित)
    • अष्टयाम (ब्रजभाषा गद्य में)
    • अष्टयाम ( ‘रामचरितमानस’ की दोहा-चौपाई शैली में)
  • विशेष : कवि नाभादास की पारिवारिक सामाजिक पृष्ठभूमि अधिकतर विद्वानों के मुताबिक दलित वर्ग की थी।
  • नाभादास सगुण उपासक रामभक्त कभी थे।
  • गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन
  • वैष्णव संप्रदाय मे दीक्षित हुए थे।

छप्पय कविता का अर्थ (Chhappay Class 12)

कविता का अर्थ

इस पाठ में दो छप्पय दिया गया है। यह लिखे गए छप्पय ‘भक्तमाल’ से संकलित हैं। इसमें पहला छप्पय कबीरदास और दूसरा छपाई सूरदास के बारे में हैं। वैष्णव भक्ति की नितांत भिन्न दो शाखाओं के इन महान भक्तकवियों पर लिखे गए ये छंद ऊपर कही गई बातों के सटीक प्रमाण हैं। इन कवियों से संबंधित अब तक के संपूर्ण अध्ययन-विवेचन के सार-सूत्र इन छंदों में कैसे पूर्वकथित हैं यह देखना विस्मयकारी और प्रीतिकर है। ऐसा प्रतीत होता है, गोया आगे की शतियों में इन कवियों के अध्ययन-विवेचन की रूपरेखा जैसे तय कर दी गई हो ।(Chhappay Class 12)

Chhappay Class 12 (छप्पय की व्याख्या)

छप्पय 1 (कबीर)

भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए । 
योग यज्ञ व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए ।।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘छप्पय’ शीर्षक पाठ से ली गई है। ये छप्पय नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है। इसके माध्यम से नाभदास ने कबीरवाणी की विशेषता पर प्रकाश डाला है।

कवि कहते है कि जो व्यक्ति भक्ति से विमुख हो जाता है वह अधर्म में लिप्त व्यक्तियों की तरह कार्य करता है। उसके द्वारा किया गया धर्म भी अधर्म होता है। योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन सभी भक्ति के बिना तुच्छ कहा है। अर्थात् कबीर ने भक्ति के अतिरिक्त अन्य सभी क्रियाओं जैसे योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन सभी को तुच्छ कहा है।

हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी ।
पक्षपात नहिं बचन सबहिके हितकी भाषी ।।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘छप्पय’ शीर्षक पाठ से ली गई है। ये छप्पय नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है। इसके माध्यम से नाभदास ने कबीरवाणी की विशेषता पर प्रकाश डाला है।

नाभादास कहते है कि कबीर के रमैनी (कबीर की एक शैली या रचना का प्रकार अर्थात् कबीर के दोहे ) सबदी ( भजन ) साक्षी है कि उन्होंने हमेशा हिन्दू और मुसलमान को प्रमाण और सिद्धांत की बात कही है | कबीर ने कभी भी पक्षपात नहीं किया है उन्होंने हमेशा सबके हित की बात कही है।

आरूढ़ दशा है जगत पै, मुख देखी नाहीं भनी ।
कबीर कानि राखी नहीं, वर्णाश्रम षट दर्शनी ।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘छप्पय’ शीर्षक पाठ से ली गई है। ये छप्पय नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है। इसके माध्यम से नाभदास ने कबीरवाणी की विशेषता पर प्रकाश डाला है।

नाभादास कहते है कि आज की दुनिया में ऊँच-नीच की सोच, जात-पात और बाहरी दिखावे की आरूढ़ दशा (गहरी पकड़) हो गई है। किंतु कबीर ने कभी भी मुख देखी बात नहीं कही अर्थात कभी भी पक्षपातपूर्ण बात नहीं कही। कबीर ने कभी भी कही सुनाई बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने हमेशा आंखों देखी बातों को ही कहा है। कबीर ने चार वर्ण, चार आश्रम और छ: दर्शन किसी की आनि-कानी नहीं की अर्थात किसी को भी महत्व नहीं दिया।

छप्पय 2 (सूरदास)

उक्ति चौज अनुप्रास वर्ण अस्थिति अतिभारी ।
वचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी ॥

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘छप्पय’ शीर्षक पाठ से ली गई है। ये छप्पय नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है। कवि ने इसके माध्यम से सूरदास की विशेषताओं को बताया है।

नाभादास कहते हैं कि सुरदास कि कविताओं में उनकी युक्ति (कहने की शैली), चमत्कार और अनुप्रास वर्ण से भरी हुई प्रभावशाली है। सूरदास अपनी कविता की शुरुआत जिन प्रेम भरी वचनों से करते है उसका अंत भी उन्ही वचनों से करते है। जिस कारण सूरदास की कविताएँ लयबद्ध और संगीतात्मक होती है।

प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी ।
जन्म कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी ।।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘छप्पय’ शीर्षक पाठ से ली गई है। ये छप्पय नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है। कवि ने इसके माध्यम से सूरदास की विशेषताओं को बताया है।

नाभदास कहते है कि सुरदास जी अपनी दिव्य दृष्टि से , हृदय से श्रीकृष्ण की लीलाओं को महसूस किए है। श्रीकृष्ण के जन्म कर्म गुण रूप सभी को अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर उनकी लीलाओं को अपने वचनों से प्रकाशित किया।

विमल बुद्धि हो तासुकी, जो यह गुन श्रवननि धरै ।
सूर कवित सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै ।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘छप्पय’ शीर्षक पाठ से ली गई है। ये छप्पय नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है। कवि ने इसके माध्यम से सूरदास की विशेषताओं को बताया है।

नाभदास कहते है कि जो भी व्यक्ति सूरदास द्वारा कही गई भगवान के गुणों को सुनता है उसकी बुद्धि विमल हो जाती है। नाभादास कहते हैं कि ऐसा कोई कवि नहीं हैं जो सूरदास की कविताओं को सुनकर सिर चालन ना करें अर्थात सभी उनकी काव्य को सुनकर उनसे सहमति होते है और आनंद में सिर डोलते है।

Chhappay Class 12 प्रश्नोत्तर

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