छायावाद की परिभाषा देते हुए उसकी प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।

छायावाद: परिभाषा और प्रवृत्तियां

प्रस्तावना

हिंदी साहित्य का छायावाद युग (1918-1936) हिंदी काव्य के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है। यह युग हिंदी कविता की परंपरा में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने कविता को नए आयाम और गहराई प्रदान की। छायावाद ने हिंदी काव्य को रोमांटिकता, रहस्यवाद, प्रकृति प्रेम, और मानवीय संवेदनाओं से जोड़ा। इस युग का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के आंतरिक संसार, भावनाओं, और कल्पनाओं को व्यक्त करना था।
छायावाद का उदय मुख्यतः 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ, जब हिंदी कविता ने बाह्य यथार्थ से हटकर आत्मा और प्रकृति के गहन रहस्यों की खोज शुरू की।


छायावाद की परिभाषा

छायावाद एक ऐसा काव्य आंदोलन है जिसमें कवि अपनी भावनाओं, कल्पनाओं, और आत्मा की गहराइयों को रहस्यवादी और प्रतीकात्मक शैली में व्यक्त करता है।
परिभाषा के अनुसार:
छायावाद वह काव्य धारा है, जिसमें कवि अपनी भावनाओं और कल्पनाओं को आत्मा, प्रकृति, और प्रेम के माध्यम से व्यक्त करता है। इसमें रहस्य, रोमांस, और आत्मानुभूति की प्रधानता होती है।


छायावाद का उदय

छायावाद का उदय हिंदी साहित्य में एक क्रांतिकारी परिवर्तन था। यह भारतेन्दु और द्विवेदी युग की तर्कसंगत और सुधारवादी धारा के बाद आया।

पृष्ठभूमि:


छायावाद के उदय में विश्वस्तरीय साहित्यिक और सामाजिक आंदोलनों का प्रभाव पड़ा। रोमांटिक आंदोलन, भारतीय पुनर्जागरण, और गांधीवादी आंदोलनों ने छायावादी कवियों को प्रेरित किया।

प्रमुख कारण:

व्यक्तिवाद और स्वाधीनता की भावना।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रभाव।

पश्चिमी साहित्य, विशेषकर अंग्रेजी रोमांटिक कवियों जैसे वर्ड्सवर्थ, शेली, और कीट्स का प्रभाव।


छायावाद की विशेषताएं और प्रवृत्तियां

  1. रहस्यवाद और आध्यात्मिकता:

छायावादी कविता में रहस्य और आध्यात्मिकता का प्रमुख स्थान है। इसमें आत्मा और ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों की खोज की जाती है।

उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की “कामायनी” में आध्यात्मिकता और गूढ़ विचारों का चित्रण मिलता है।

“मैं तुम्हें ढूंढ़ता था, तुम छिपे थे कहाँ।”

  1. व्यक्तिवाद:

छायावाद में व्यक्ति और उसकी भावनाओं को प्रमुखता दी गई है। यह युग “मैं” की अभिव्यक्ति का युग है। कवि अपनी आंतरिक भावनाओं को केंद्र में रखकर काव्य रचना करते हैं।

उदाहरण: महादेवी वर्मा की कविताओं में आत्मा की पीड़ा और व्यक्तिवाद स्पष्ट दिखाई देता है।

“मैं नीर भरी दुःख की बदली।”

  1. प्रकृति प्रेम:

छायावाद में प्रकृति का चित्रण मानवीय संवेदनाओं के साथ गहराई से किया गया है। प्रकृति को कवि ने अपना मित्र, सखा, और सहचर माना है।

उदाहरण: सुमित्रानंदन पंत की कविताओं में हिमालय, नदियाँ, और वसंत ऋतु का अद्भुत चित्रण है।

“चंचल जलद मृदंग बजाते।”

  1. प्रेम और सौंदर्य का चित्रण:

छायावादी कवियों ने प्रेम को एक पवित्र और आध्यात्मिक भावना के रूप में देखा। प्रेम में लौकिक और अलौकिक दोनों पक्ष दिखाई देते हैं।

उदाहरण: निराला की कविताओं में प्रेम और सौंदर्य का गहन चित्रण मिलता है।

“तुम्हें मैं भूलूँ, यह हो नहीं सकता।”

  1. अस्तित्ववाद और आत्मानुभूति:

छायावाद में कवि ने अपने अस्तित्व और आत्मा के भावों को गहराई से व्यक्त किया। यह युग आत्मा की खोज का युग था।

उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की “लहर” और “आंसू” में आत्मा और अस्तित्व की अनुभूतियां प्रबल हैं।

  1. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चेतना:

छायावादी कवियों ने भारतीय संस्कृति और इतिहास को अपनी कविताओं में प्रमुखता से स्थान दिया।

उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की “कामायनी” में वैदिक संस्कृति का वर्णन मिलता है।

  1. प्रतीकात्मकता और कल्पनाशीलता:

छायावाद में प्रतीकों और कल्पना का सुंदर प्रयोग होता है। कवि अपनी भावनाओं को प्रतीकात्मक ढंग से व्यक्त करते हैं।

उदाहरण: महादेवी वर्मा की कविताओं में प्रतीकवाद और कल्पना का सुंदर मेल मिलता है।

  1. संगीतात्मकता:

छायावाद की कविताओं में लयात्मकता और संगीतात्मकता का अद्भुत संगम है। यह कविताओं को एक अलग ही सौंदर्य प्रदान करता है।


छायावाद के प्रमुख कवि और उनकी कृतियां

  1. जयशंकर प्रसाद:

प्रमुख कृतियां: “कामायनी,” “आंसू,” “लहर।”

विशेषता: रहस्यवाद, सांस्कृतिक चेतना, और आत्मा की गहराइयों का चित्रण।

  1. महादेवी वर्मा:

प्रमुख कृतियां: “नीरजा,” “संधिनी,” “दीपशिखा।”

विशेषता: आत्मा की पीड़ा, प्रेम, और सौंदर्य का चित्रण।

  1. सुमित्रानंदन पंत:

प्रमुख कृतियां: “पल्लव,” “गुंजन,” “युगांत।”

विशेषता: प्रकृति प्रेम, सौंदर्य, और रोमांटिकता।

  1. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’:

प्रमुख कृतियां: “परिमल,” “अनामिका,” “तुलसीदास।”

विशेषता: व्यक्तिवाद, प्रेम, और सामाजिक चेतना।


छायावाद का प्रभाव

  1. हिंदी कविता का उत्कर्ष:
    छायावाद ने हिंदी कविता को रोमांटिकता और गहराई प्रदान की।
  2. मानवता और संवेदनशीलता का विकास:
    इस युग ने कविता में संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों को स्थान दिया।
  3. भारतीयता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण:
    छायावाद ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को पुनर्जीवित करने का कार्य किया।
  4. प्रेरणा स्रोत:
    छायावाद ने आगे के साहित्यिक आंदोलनों को प्रेरित किया।

निष्कर्ष

छायावाद हिंदी साहित्य का एक ऐसा युग है, जिसने कविता को मानवीय संवेदनाओं, आत्मा की गहराइयों, और प्रकृति के रहस्यों से जोड़ा। इस युग के कवियों ने हिंदी काव्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और इसे एक नई पहचान दी। छायावाद न केवल हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग है, बल्कि यह भावनाओं और कल्पनाओं का युग भी है, जिसने हिंदी काव्य को विश्व साहित्य में एक सम्मानजनक स्थान दिलाया।

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