Class 12 Adhinayak: जय हिन्द। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड क्लास 12वीं हिन्दी किताब दिगंत भाग – 2 के पद्य खण्ड के अध्याय 10 ‘अधिनायक’ के व्याख्या को पढ़ेंगे। इस कविता के रचनाकार रघुवीर सहाय। Class 12 Adhinayak । Class 12 Adhinayak ka Arth| Class 12 Adhinayak ka bhavarth|
Class 12 Adhinayak ( कक्षा 12 अधिनायक )
कवि परिचय
कवि का नाम — रघुवीर सहाय
- जन्म : 9 दिसंबर 1929 ।
- निधन : 30 दिसंबर 1990 ।
- जन्म-स्थान : लखनऊ, उत्तरप्रदेश ।
- पिता : हरदेव सहाय (एक शिक्षक) ।
- शिक्षा : एम० ए० (अंग्रेजी), लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ।
- विशेष अभिरुचि : संगीत सुनना और फिल्में देखना ।
- गतिविधि : अपनी और समकालीन कविता के वाचन के लिए ‘कौमुदी’ नामक कविता केंद्र की स्थापना और संचालन ।
- सम्मान : ‘लोग भूल गए हैं’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार ।
- वृत्ति :
- पत्रकारिता । ‘नवजीवन’ (लखनऊ) से आरंभ,
- फिर ‘समाचार विभाग’ आकाशवाणी, नई दिल्ली
- फिर ‘नवभारत टाइम्स’ (नई दिल्ली) में विशेष संवाददाता।
- 1979 से 1982 तक ‘दिनमान’ समाचार-साप्ताहिक (नई दिल्ली) के प्रधान संपादक।
- भारतीय प्रेस परिषद् के सदस्य भी रहे ।
- कृतियाँ :
- कविता : ‘दूसरा सप्तक’ (एक कवि के रूप में शामिल), सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो-हँसो जल्दी हँसो, लोग भूल गए हैं, कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ ।
- कहानियाँ : सीढ़ियों पर धूप में, रास्ता इधर से है, जो आदमी हम बना रहे हैं।
- निबंध : सीढ़ियों पर धूप में, दिल्ली मेरा परदेस, लिखने का कारण, ऊबे हुए सुखी, वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे, यथार्थ यथास्थिति नहीं।
- इसके अतिरिक्त अनुवाद कार्य भी।
- संपूर्ण रचनावली छह खंडों में ‘राजकमल प्रकाशन’ नई दिल्ली से प्रकाशित ।
- रघुवीर सहाय बीसवीं शती के उत्तरार्ध के एक प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण कवि तथा पत्रकार हैं जिनके रचनाकर्म और पत्रकारिता का आगे की पीढ़ियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
- उन्होंने कहानियाँ भी लिखी हैं और वे अनेक कारणों से बहुमूल्य मानी जाती हैं।
- इसके अतिरिक्त रघुवीर सहाय ने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का, विशेष रूप से नाट्य, कथा आदि विधाओं की कृतियों का हिंदी में अनुवाद भी किया है जो उनके रचनाकर्म का ही एक अनिवार्य अंग है।
- रघुवीर सहाय छठे दशक के प्रारंभ में ही अज्ञेय द्वारा संपादित प्रयोगवादी संकलन ‘दूसरा सप्तक’ में एक कवि के रूप में सामने आए थे।
- ‘दूसरा सप्तक’ के सात कवियों में रघुवीर सहाय शामिल है। उनकी कविता संवेदना, सरोकार, विषयवस्तु, अनुभव, भाषा, शिल्प आदि अनेक तलों पर अपने संकल्प और व्यवहार में नई थी।
- रघुवीर सहाय व्यंग्य-कटाक्ष, घृणा और क्रोध का बहुधा उपयोग करते हैं।
- यह कविता उनके संग्रह ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ से ली गई है और एक व्यंग्य कविता है।
- ऐसी व्यंग्य कविता जिसमें हास्य नहीं, आजादी के बाद के सत्ताधारी वर्ग के प्रति रोषपूर्ण तिक्त कटाक्ष है।
- राष्ट्रीय गान में निहित ‘अधिनायक’ शब्द को लेकर यह व्यंग्यात्मक कटाक्ष है।
- आजादी हासिल होने के इतने वर्षों के बाद भी आम आदमी की हालत में कोई बदलाव नहीं आया। कविता में ‘हरचरना’ इसी आम आदमी का प्रतिनिधि है।
- वह एक स्कूल जानेवाला बदहाल गरीब लड़का है जो अपनी आर्थिक सामाजिक हालत के विपरीत औपचारिकतावश सरकारी स्कूल में पढ़ता है।
- राष्ट्रीय त्योहार के दिन झंडा फहराए जाने के जलसे में वह ‘फटा सुथन्ना’ पहने वही राष्ट्रगान दुहराता है जिसमें इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी न जाने किस ‘अधिनायक’ का गुणगान किया गया है।
- सत्ताधारी वर्ग बदले हुए जनतांत्रिक संविधान से चलती इस व्यवस्था में भी राजसी ठाठ-बाट वाले भड़कीले रोब-दाब के साथ इस जलसे में शिरकत कर अपना गुणगान अधिनायक के रूप में करवाए जा रहा है। कविता में निहितार्थ ध्वनि यह है मानो इस सत्ताधारी वर्ग की प्रच्छन्न लालसा हो सचमुच अधिनायक अर्थात तानाशाह बनने की ।
समाज में रहते हुए मैं दाढ़ी बढ़ाकर नहीं घूमता, कपड़े इस तरह के नहीं पहनता कि लोग कह उठें, वह देखो, कवि आया; और बात इस तरह से नहीं करता कि लोग परे हटकर अदब से बैठें। पर बात इस तरह जरूर करता हूँ कि सिर्फ वे ही लोग दुबारा मिलना चाहें जो निर्भय हैं और बिना अकारण आदर दिखाए या अकारण आदर माँगे दुबारा मिल सकते हैं।
रघुवीर सहाय : अपनी तस्वीर
कविता का अर्थ
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहने
जिसका गुन हरचरना गाता है।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ से ली गई है और एक व्यंग्य कविता है।
कवि कहते हैं कि पता नहीं राष्ट्रगीत में वह भाग्य विधाता कौन है जिसका गुणगान फटा सुथन्ना पहने हरचरना कर रहा है। इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी पता नहीं किसका गुणगान किया जा रहा है।
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चँवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ से ली गई है और एक व्यंग्य कविता है।
इस पंक्ति के माध्यम से कवि पूछते हैं कि मखमल के वस्त्र धारण किए हुए, टमटम पर सवार बल्लम, तुरही आदि राजसी प्रतिकों के साथ पगड़ी धारण किए हुए सिर के ऊपर छाता और जिसके आगे-पीछे लोग चँवर हिला रहे है जो अपने स्वागत मे तोपों की सलामी दिलवाता है और जो ढोल-नगाड़े बजवाकर अपनी जय-जयकार करवा रहा है वह कौन है।
पूरब-पश्चिम से आते है
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ से ली गई है और एक व्यंग्य कविता है।
इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि राष्ट्रीय त्योहारों पर सभी दिशाओ से जनता नंगे पाँव आती है। गरीबी के कारण वे कंकाल की तरह प्रतीत होते है। गरीब किसानों की कमाई जन प्रतिनिधियों द्वारा हड़प लिया जाता है और उनके अधिकारों का मेडल भी इनके द्वारा लिया जाता है। कवि पूछते है कि आखिर ये तमगे लगवाने वाला कौन है।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ से ली गई है और एक व्यंग्य कविता है।
इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि इस लोकतान्त्रिक देश में वह महाबली कौन है जो गरीब और मध्यमवर्गीय लोगो के मन पर अपना अधिकार जमा रहा है। लोग ना चाहते हुए भी विवश मन से उसका गुणगान कर रहे है वह महाबली कौन है।
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