Jit Jit Main Nirkhat Hun – हिंदी कक्षा 10 जित-जित मैं निरखत हूँ

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में Jit Jit Main Nirkhat Hun गोधूली भाग – 2 के गद्य खण्ड के पाठ 8 ‘जित-जित मैं निरखत हूँ (साक्षात्कार)’ के सारांश को पढ़ेंगे। इस पाठ में पंडित बिरजू महाराज अपनी शिष्या रश्मि वाजपेयी को अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताते हैं । (Jit Jit Main Nirkhat Hun) (जित-जित मैं निरखत हूँ)

  • लेखक – पंडित बिरजू महाराज
  • जन्म – 4 फ़रवरी 1938
  • जन्म स्थान – जफरीन अस्पताल में, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) दिन शुक्रवार, सुबह 8 बजे बसंत पंचमी के दिन।
  • माता – अम्मा जी महाराज
  • पिता – अच्छन महाराज
  • वास्तविक नाम – बृजमोहन मिश्र
  • चाचा – शम्भू महाराज, लच्छू महाराज
  • गुरु/गुरुआइन – माता ( अम्मा जी ) , पिता (अच्छन महाराज)
  • मृत्यु – 17 जनवरी 2022
  • पुरस्कार – पद्म विभूषण , संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 27 वर्ष कि आयु मे 1965 ई.
  • नृत्य – कथक ( इन्हें कथक सम्राट कहा जाता है।)
  • इनका जन्म तीन बहनों के बाद हुआ।
  • जब इनका जन्म हुआ तब इनकी माता का उम्र 28 वर्ष थी
  • और इनकी बड़ी बहन का उम्र 15 वर्ष था।
  • जब ये साढ़े नौ साल के थे तब इनके पिता की मृत्यु 54 वर्ष की आयु मे हुई।
  • इनकी पिता कि मृत्यु लू लगने के कारण हुई।
  • शिष्य – रश्मि वाजपेयी , दुर्गा , शाश्वती

जित-जित मैं निरखत हूँ (Jit Jit Main Nirkhat Hun) पाठ विश्वप्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज का एक साक्षात्कार है, जिसे उनकी शिष्या रश्मि वाजपेयी ने प्रस्तुत किया है। यह पाठ महाराज जी के जीवन, उनके कठिन संघर्षों और कला के प्रति अटूट साधना को दर्शाता है।

लखनऊ घराने के वंशज बिरजू महाराज ने बचपन में ही पिता को खोने के बाद भारी आर्थिक संकट झेला, लेकिन नृत्य के प्रति उनका समर्पण कभी कम नहीं हुआ। वे अपने पिता को अपना ‘गुरु’ और माँ को अपना सबसे बड़ा ‘जज’ मानते थे। यह पाठ हमें बताता है कि कैसे निरंतर अभ्यास और धैर्य के बल पर उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। (Jit Jit Main Nirkhat Hun) (जित-जित मैं निरखत हूँ)

प्रस्तुत पाठ “जित-जित मैं निरखत हूँ” (Jit Jit Main Nirkhat Hun) में साक्षात्कार के माध्यम से पंडित बिरजू महाराज की जीवनी, उनका कला-प्रेम तथा नृत्यकला के क्षेत्र में उनकी महान उपलब्धि पर प्रकाश डाला गया है।

बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी,1938 ई0 को लखनऊ के जफरीन अस्पताल में हुआ था। ये अपने माता-पिता के अंतिम संतान थे। इनका जन्म तीन बहनों के लम्बे अंतराल के बाद हुआ था। इनके जन्म के समय इनके माता की उम्र 28 वर्ष के करीब थी तथा बड़ी बहन 15 साल की थी। इनके पिता प्रख्यात नर्तक थे। इन्हें नृत्यकला विरासत में मिली थी। ये अपने पिताजी के साथ रामपुर के नवाब के दरबार में नृत्य-कार्यक्रम में जाया करते थे।

छः साल के उम्र में ही बिरजूजी नवाब साहब के प्रिय हो गये। इसलिए इन्हें अपने पिता के साथ वहाँ जाना पड़ता था तथा नाचना पड़ता था। इतनी कम उम्र में ही इनकी तनख्वाह निश्चित कर दी गई थी। इस नौकरी से छुट्टी पाने की इच्छा प्रकट की तो नवाब साहब ने फरमान जारी कर दिया कि यदि लड़का नहीं रहेगा तो पिता को भी नौकरी से हटा दिया जायेगा।

इस आदेश से पिताजी ने खुश होकर हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया– तथा मिठाइयाँ भी बाँटी।

बिरजू महारज कहते हैं कि उन्हें नृत्य कला की तालीम कुछ क्लास में, कुछ लोगों द्वारा कहते, सुनते तथा देखकर सिखा। इसके साथ ही जहाँ-  जहाँ पिताजी जाते थे, उनके साथ जाया करता था और कार्यक्रम में भाग लेता था।

पिता की मृत्यु 54 साल की उम्र में लु लगने के कारण हो गई। वे सहनशील व्यक्ति थे। अपना दुःख किसी को कहना पसंद नहीं करते थे। वे अतिप्रिय व्यक्ति थे।

पिता की मृत्यु के बाद माँ को दुःखी देखकर उदास रहने लगा, क्योंकि उनके मरते ही खराब दीन शुरु हो गये। भोजन-वस्त्र का घोर अभाव हो गया। शम्भू चाचा के शौकिया मिजाज के कारण कर्ज में डुब गये। उसी समय चाचा जी के दो बच्चों की मृत्यु भी हो गई। बच्चों की इस मृत्यु से हताश होकर वे अम्मा को डाइन कहने लगे। इसलिए मैं माँ को लेकर नेपाल चला गया। इसके बाद मुजफ्फरपुर गया।  फिर अम्मा बाँस बरेली इसलिए ले गई कि वहाँ नाचेगा तो इनाम मिलेगा।

ऐसी हालत में आर्यानगर में 50 रुपये के दो ट्यूशन की। इस प्रकार 50 रुपये में काम करके किसी तरह पढ़ता रहा। सीताराम नामक लड़के को डांस सिखाता और वह उन्हें पढ़ा देता था। अर्थाभाव में ठीक ढंग से पढ़ाई नहीं हो पाई। नौकरी भी नहीं मिलती थी। पिताजी के समय से ही चाचाजी अलग रहते थे। दादी के साथ उनका अच्छा व्यवहार नहीं था।

चौदह साल की उम्र में पुनः लखनऊ आ गया और कपिला जी के सहयोग से संगीत भारती में काम करना आरंभ कर दिया। वहाँ निर्मला जी से मुलाकात हुई। उन्होनें कथक डांस करने की सलाह दी। मैंने नौकरी छोड़कर भारतीय कला मंदिर में क्लास करने लगा। वहाँ पूरे मन से तालीम सिखी। मेरी तालीम देखकर महाराज की तरफ वहाँ की लड़कीयाँ आकर्षित होने लगी।

ऑल बंगाल म्यूजिक कांफ्रेंस, कलकत्ता के नाच मेरे भाग्योदय की। वहाँ काफी प्रसंशा मिली। तमाम अखबारों ने मेरे कार्यक्रम की प्रसंशा की। ईश्वर की कृपा से कलकत्ता, बम्बई, मद्रास सभी जगह मेरी इज्जत होने लगी।

27 साल की उम्र में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड मिला। मैं जर्मनी, जापान, हांगकांग, लाओस, बर्मा की यात्रा की, लेकिन एक बार अमेरिका में दो-चार जगह कार्यक्रम प्रस्तुत किया तो एक जगह वहाँ हाँफते हुए एक आदमी ने मेरे पास आया। मैंने कहा- मेरे साथ फोटो खिंचाना है क्या तुम्हें ? यस-यस अब लड़का बेहाल हो गया। इस प्रकार पाकिस्तान में कोई खातून थीं पूरे हॉल में उनकी आवाज आई सुब्हान अल्लाह। मतलब मेरे नाच के आशिक बहुत हैं। मेरे आशिक भी हैं।

बिरजू महाराज कहते हैं कि मुझे ऊँचाई तक ले जाने में अम्मा का बहुत बड़ा हाथ है। वहीं बुजुर्गों की तारीफ करके मुझे उत्साहित करती थीं। वहीं वाकई में गुरु और माँ थी। (Jit Jit Main Nirkhat Hun)

जित-जित मैं निरखत हूँ: पाठ्य पुस्तक का प्रश्नोत्तर (Jit Jit Main Nirkhat Hun)

प्रश्न 1. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है?

उत्तर :- लखनऊ में बिरजू महाराज का जन्म हुआ था बिरजू महाराज की तीनों बहनों का जन्म रामपुर में हुआ था क्योंकि उनके बाबूजी वहाँ 22 साल तक रहे। 20 वीं शताब्दी के चौथे पंचवे दशक में विभिन्न राजा कुछ समय के लिए कलाकारों को मांग लिया करते थे। बिरजू महाराज के बाबूजी पटियाला और रामगढ़ से पुनः रामपुर लौट कर आए थे। उस समय बिरजू महाराज की उम्र 5-6 साल की थी।

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प्रश्न 2. रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया? 

उत्तर :- जब बिरजू महाराज की उम्र 5-6 साल की थी तब रामपुर के नवाब साहब को उनका नृत्य पसंद आ गया और उन्होंने नृत्य करने के लिए बिरजू महाराज को अपने यहाँ रख लिया। नवाब साहब के यहाँ बिरजू महाराज को रोज चूड़ीदार पायजामा और अचकन पहनकर जाना पड़ता था उन्हें वहाँ न केवल नाचना पड़ता था, बल्कि पैरों को पीछे मोड़कर बैठना भी पड़ता था। एक प्रकार से नवाब साहब की नौकरी बिरजू महाराज के लिए दंड के समान थी, इसलिए नवाब साहब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया गया।

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प्रश्न 3. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहां किनके सम्पर्क में आए?

उत्तर:- नृत्य की शिक्षा के लिए पहले पहल बिरजू महाराज निर्मला जोशी जी की संस्था, हिंदुस्तान डांस अकैडमी (जिसे बाद में संगीत भारती के नाम से भी जाना गया), दिल्ली से जुड़े। वहाँ वे कपिल जी (कपिला वात्स्यायन), जी. डी. कृपलानी आदि के संपर्क में आए।

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प्रश्न 4. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?

उत्तर:- पिताजी और चाचा जी शंभु महाराज के साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार कलकत्ता में मिला था।

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प्रश्न 5. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे? उनका संक्षिप्त परिचय दें.

उत्तर:- बिरजू महाराज के गुरु उनके बाबूजी थे। वह सरल स्वभाव के थे। वह दुख में होने के बावजुद भी अपने दुख को व्याप्त नहीं करते थे। उन्हें काला से बेहद लगा था। उन्होंने बिरजू महाराज को नृत्य की उच्च शिक्षा दी। जब बिरजू महाराज की उम्र केवल साढ़े नौ साल थी तभी उनके पिताजी की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 6. बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देनी शुरू की?

उत्तर:- बिरजू महाराज संगीत भारती की नौकरी छोड़कर लखनऊ आ गए। भारतीय कला केंद्र (पूसा रोड, दिल्ली) में नियुक्त हुए। उस समय उनके चाचा शंभू महाराज वहाँ के बड़े और स्थापित गुरु थे। वहाँ उन्हें झमेले वाली छोटी क्लास मिली। बड़ी और समझदार लड़कियाँ बड़े महाराज जी के पास चली जाती थी। बिरजू महाराज की उम्र केवल 18-20 साल थी, लेकिन उन्हें रश्मि वाजपेयी नमक योग्य लड़की मिली और उन्होंने उस लड़की को नृत्य उचित शिक्षा दी।

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प्रश्न 7. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय कब आया? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए

उत्तर:- बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय तब आया जब उनके बाबूजी की मृत्यु हो गई। उस समय उनके घर में पैसे की तंगी थी। बाबूजी का दशक्रम करने के लिए बिरजू महाराज ने 10 दिन के अंदर में दो प्रोग्राम किये। उस प्रोग्राम से उन्हें 500 रुपये मिले, और उन्हीं पैसे से उनकी बाबूजी का दशवी और तेरहवी की गई।

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प्रश्न 8. शंभु महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंध पर प्रकाश डालिए

उत्तर:- शंभू महाराज रिश्ते में बिरजू महाराज के चाचा लगते थे। उनके साथ बिरजू महाराज बचपन में नृत्य किया करते थे। शंभू महाराज का मार्गदर्शन और आशीर्वाद हमेशा उन्हें मिला। पिता की मृत्यु के बाद, शंभु महाराज ने ही उन्हें नृत्य की बारीकियां सिखाने में मदद की और उनके साथ बिरजू महाराज ने कई मंचों पर प्रदर्शन किया। आगे चलकर शंभू महाराज से उनके रिश्ते अच्छे नहीं रहे।

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प्रश्न 9. कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:- कोलकाता की एक कॉन्फ्रेंस में बिरजू महाराज का नृत्य हुआ। कोलकाता के दर्शकों ने नृत्य की बड़ी प्रशंसा की। उस समय वह सभी समाचार पत्रों में छा गए। कोलकाता का नृत्य बिरजू महाराज के जीवन का एक नया मोड़ था जिसके बाद में प्रगति के शिखर पर बढ़ने लगे।

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प्रश्न 10. संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी?

उत्तर:- कपिला जी की कृपा से बिरजू महाराज को संगीत भारती में नौकरी मिल गई। वहाँ उन्हें वेतन के रूप में 250 रुपये मिलते थे। बिरजू महाराज अपनी अम्मा जी के साथ दरियागंज में जैन साहब के मकान में रहते थे। वे प्रतिदिन 3 या 5 नंबर के बस पकड़ कर संगीत भारतीय जाया करते थे। वहाँ सुबह रियाज (अभ्यास) करते थे, शिष्यों को सिखाते थे और शाम को खुद भी सीखते थे। उनका पूरा दिन नृत्य और संगीत की साधना में ही बीतता था। एक महीने तक वह प्रायः रास्ता भूल जाते थे।

संगीत भारती से मिलने वाले पैसे से घर चलने में दिक्कत आती थी। अत: बिरजू महाराज ने 50 रुपये की एक ट्यूशन कर ली। संगीत भारती में बिरजू महाराज ने साढ़े चार साल तक कम किये।

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प्रश्न 11. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे?

उत्तर:- वे केवल नर्तक ही नहीं, बल्कि एक कुशल संगीतकार भी थे। वे तबला, सरोद, सितार, गिटार, बाँसुरी और हारमोनियम बहुत ही सुंदरता से बजाते थे।

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प्रश्न 12. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं? 

उत्तर:- बिरजू महाराज की माँ ने उनकी शादी केवल 18 साल की उम्र में ही करा दी। बिरजू महाराज अपनी शादी के बारे में कहते हैं कि यह अच्छा नहीं हुआ कम उम्र में उनकी शादी होने से उनका बहुत नुक्सान हुआ। उनके मन में शायद इस बात का आकांशा थी कि कहीं वह बिरजू महाराज की बहू का मुंह देखे बिना ही इस दुनिया से ना चली जाए। शादी के बाद बिरजू महाराज के कंधे पर एक और बोझ बढ़ गया उन्हें परिवार चलाने के लिए नौकरी करनी पड़ी नौकरी ने रियाज में बाधा उत्पन की।

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प्रश्न 13. बिरजू महाराज की अपने शागिर्दों के बारे में क्या राय है?

उत्तर:- बिरजू महाराज की प्रिय शिष्या शाश्वती हैं। शाश्वती में नृत्य कला के क्षेत्र में कुछ नया करने की क्षमता है। वह निरंतर अभ्यास कर रही हैं और उनमें धीरे-धीरे निखार आने लगा है। विदेशियों में वेरोनिक उनकी प्रिय शिष्या हैं। वह तरक्की कर रही हैं। बिरजू महाराज मैक्साइन (Antonia Minnecola/Maxine) के बारे में बताते हैं कि वह नृत्य के क्षेत्र में अच्छा कर रहा था, पर बीच में ही वह अपने घर चला गया। तीरथ प्रताप और प्रदीप भी बिरजू महाराज के शिष्य हैं। इन लोगों ने नृत्य कला के क्षेत्र में नाम कमाए हैं। दुर्गा भी बिरजू महाराज की शिष्या हैं। वह एक छोटे से परिवार की लड़की हैं, पर नृत्य के प्रति उनके मन में बेहद लगाव है। अंत में बिरजू महाराज अपने शिष्यों के बारे में यह राय देते हैं कि उनमें लगन और संकल्प का अभाव है।

(Jit Jit Main Nirkhat Hun) (जित-जित मैं निरखत हूँ)

14. व्याख्या करें –

(क) पांच सौ रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया।
(ख) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूं कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है।
(ग) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूं. उस नाचने वाले का.

14. (क) पांच सौ रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया.

उत्तर:- “प्रस्तुत व्याख्या पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘गोधूलि भाग-2’ में संकलित ‘जित -जित मैं निरखत हूँ’ शीर्षक पाठ से उद्धृत हैं। इसके रचनाकार सुप्रसिद्ध नर्तक पंडित बिरजू महाराज हैं।
पंडित बिरजू महाराज के गुरु स्वयं उनके बाबूजी थे। अपने बाबूजी को गुरु बताते हुए बिरजू महाराज ने कहा है कि उन्होंने 500 रुपये गुरु-दक्षिणा देकर अपने बाबूजी से नृत्य की तालीम ली थी। उनके बाबूजी ने ही उन्हें अपना शिष्य मानते हुए गंडा बाँधा था। बिरजू महाराज ने यहाँ तक कहा है कि यदि उनके बाबूजी ने उन्हें नृत्य की तालीम नहीं दी होती, तो शायद वह एक सर्वश्रेष्ठ नर्तक की उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाते।”

(Jit Jit Main Nirkhat Hun) (जित-जित मैं निरखत हूँ)

14. (ख) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूं कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है.

उत्तर:- “प्रस्तुत व्याख्या पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘गोधूलि भाग-2’ में संकलित ‘जित -जित मैं निरखत हूँ’ शीर्षक पाठ से उद्धृत हैं। इसके रचनाकार सुप्रसिद्ध नर्तक पंडित बिरजू महाराज हैं।
बिरजू महाराज ऐसे उस्ताद थे जिन्होंने अपने और गैरों में कोई फर्क नहीं किया। उनके यहाँ जो भी इस कला को सीखने आया, उसको उन्होंने खुले दिल से और ईमानदारी के साथ इस कला की शिक्षा दी। बिरजू महाराज नृत्य-कला की शिक्षा देते समय ऐसा कभी नहीं सोचते थे कि वे इस कला की कुछ बारीकियों को केवल अपने तक ही सीमित रहने दें। वे अपने सारे शिष्यों को पुत्र के समान मानते थे और सभी को एक समान शिक्षा प्रदान की, क्योंकि एक गुरु की नज़र में सभी शिष्य बराबर होते हैं और इस गुरुत्व की भावना बिरजू महाराज में कूट-कूट कर भरी हुई थी।”

(Jit Jit Main Nirkhat Hun) (जित-जित मैं निरखत हूँ)

14. (ग) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूं. उस नाचने वाले का.

उत्तर:- “प्रस्तुत व्याख्या पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘गोधूलि भाग-2’ में संकलित ‘जित -जित मैं निरखत हूँ’ शीर्षक पाठ से उद्धृत हैं। इसके रचनाकार सुप्रसिद्ध नर्तक पंडित बिरजू महाराज हैं।
इन पंक्तियों में यह स्पष्ट किया गया है कि लाखों लोग बिरजू महाराज के प्रशंसक हैं। वे उनके शरीर के नहीं, बल्कि उनकी कला के प्रशंसक हैं। उनके व्यक्तित्व में नृत्य रचा-बसा हुआ है और वे स्वयं नृत्य की गरिमा से प्रफुल्लित या आह्लादित रहते हैं। बिरजू महाराज इस नृत्य रूपी शक्ति के असिस्टेंट मात्र हैं; कला उनका अनुसरण करती है।”

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प्रश्न 15. बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे?

उत्तर:-“बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को मानते थे। जब वे नाचते थे, तब उनकी माँ उन्हें देखा करती थीं। वे अपनी माँ से अपनी कमियों के बारे में पूछा करते थे और उनकी माँ अक्सर उनके बाबूजी से तुलना करके नृत्य में निखार और सुधार लाने की बात कहती थीं। जब उनकी माँ कहती थीं कि वे बिल्कुल अपने बाबूजी की तरह नाच रहे हैं, तब उन्हें सबसे अधिक संतोष और खुशी मिलती थी।”

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प्रश्न 16. पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं?

उत्तर:- “पुराने नर्तक सच्चे कलाकार होते थे। नृत्य-कला का प्रदर्शन उनका शौक और साधना थी। साधन कम उपलब्ध होने पर भी वे उसकी परवाह नहीं करते थे। वे हमेशा उत्साह से भरे रहते थे। स्टेज पर कम जगह, गड्ढा, खाँचा इत्यादि रहने के बावजूद, वे बेपरवाह होकर अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। लेकिन आज के कलाकार मंच की छोटी-छोटी कमियों पर भी नाक-भौं सिकोड़ा करते हैं। वे उसे चर्चा का विषय बनाते हैं। आज उन्हें भरपूर सुविधाएँ मिल रही हैं, फिर भी शिकायत करना आज के नर्तकों की आदत सी बन गई है।”

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