‘मैला आँचल’ की भाषा

परिचय

फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित ‘मैला आँचल’ (1954) हिंदी साहित्य का एक मील का पत्थर है। यह उपन्यास भारतीय ग्रामीण जीवन, स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक संरचना का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता इसकी भाषा है, जो आम ग्रामीण जीवन की सहजता और जीवंतता को दर्शाती है। इसमें हिंदी के साथ-साथ स्थानीय बोली-भाषाओं का भी सुंदर समावेश किया गया है।


‘मैला आँचल’ की भाषा की विशेषताएँ

1. मिश्रित भाषा शैली

‘मैला आँचल’ की भाषा शुद्ध साहित्यिक हिंदी नहीं है, बल्कि इसमें हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी और मैथिली, भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय बोलियों का अनूठा मिश्रण है। इससे भाषा अत्यंत स्वाभाविक और यथार्थवादी प्रतीत होती है।

उदाहरण –
“हमनी के गाँवे में रेलगाड़ी आवत हौ!”
(गाँव वालों की भाषा में स्वाभाविकता और उत्साह झलकता है।)

यह मिश्रित भाषा ग्रामीण भारत की विविधता और सांस्कृतिक बहुलता को प्रकट करती है।


2. लोकभाषा और बोलचाल की शैली

रेणु ने अपने पात्रों के संवादों में लोकभाषा, मुहावरों और ग्रामीण शब्दावली का प्रयोग किया है, जिससे उपन्यास में प्रामाणिकता आती है।

  • लोकभाषा का प्रयोग
    • “तुमको का समझ में आवे, तुम तो बाबू-लोग ठहरे!”
    • “हमरा मुँह मत खुलवाओ!”
  • मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग
    • “जाके पाँव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।”
    • “ऊपर से फुलझड़ी, भीतर से माचिस की तीली!”

इस तरह के संवाद पाठकों को सीधे ग्रामीण परिवेश और पात्रों से जोड़ते हैं।


3. अंग्रेज़ी और उर्दू शब्दों का प्रयोग

इस उपन्यास में अंग्रेज़ी और उर्दू शब्दों का प्रयोग भी देखा जाता है, जिससे तत्कालीन समय की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का प्रभाव स्पष्ट होता है।

  • अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग
    • “डॉक्टर साहब, ये पॉलिटिक्स बड़ी गंदी चीज़ है!”
    • “गाँव में एक लीडर आया है, बड़ा स्मार्ट आदमी है!”
  • उर्दू शब्दों का प्रयोग
    • “हमारी तक़दीर ही खराब है!”
    • “यह इल्ज़ाम हम पर मत लगाइए!”

इस प्रकार, भाषा में अंग्रेज़ी और उर्दू के प्रयोग से उपन्यास के यथार्थ को और अधिक गहराई मिलती है।


4. ग्रामीण जीवन के गीत और लोकधुनें

रेणु ने उपन्यास में लोकगीतों, पारंपरिक धुनों और धार्मिक मंत्रों को भी शामिल किया है, जिससे भाषा और भी सजीव बन जाती है।

उदाहरण –
“हे गंगा मइया तोहरे अरग देबई, गवनवा कराइब हम सासुर!”

इससे ग्रामीण संस्कृति की जीवंतता और भावनात्मक गहराई का अनुभव होता है।


5. वर्णनात्मक भाषा और बिंबात्मकता

रेणु की भाषा बहुत ही चित्रात्मक और संवेदनशील है। वे शब्दों के माध्यम से प्राकृतिक दृश्यों, ग्रामीण जीवन, पात्रों की भावनाओं और सामाजिक समस्याओं को सजीव बना देते हैं।

उदाहरण –
“गाँव की पगडंडियाँ साँप की तरह बल खाती हैं, जैसे कोई भूखी नागिन गहरी नींद में सोई हो।”

इस प्रकार, रेणु की भाषा पाठकों के मन में दृश्यात्मक प्रभाव छोड़ती है।


6. व्यंग्य और हास्य का प्रयोग

रेणु की भाषा में व्यंग्य और हास्य का भी पुट मिलता है, जिससे समाज की कुरीतियों और राजनीतिक विडंबनाओं पर कटाक्ष किया जाता है।

उदाहरण –
“चुनाव के समय नेता लोगों की भाषा ऐसी मीठी हो जाती है कि गुड़ भी फीका लगने लगे!”

इस तरह, व्यंग्यात्मक भाषा से उपन्यास में रोचकता बनी रहती है।


‘मैला आँचल’ की भाषा का महत्व

  1. यथार्थवाद को बढ़ावा – उपन्यास की भाषा पात्रों और कथा को वास्तविकता के बहुत करीब ले जाती है।
  2. लोकसंस्कृति का दस्तावेज़ – इसमें क्षेत्रीय भाषाओं और लोकगीतों का समावेश होने से यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक दस्तावेज़ बन जाता है।
  3. पाठकों से सीधा संवाद – साधारण भाषा और बोलचाल के शब्दों से पाठक उपन्यास से जुड़ाव महसूस करते हैं।
  4. राजनीतिक और सामाजिक आलोचना – भाषा के माध्यम से रेणु ने समाज की सच्चाइयों और राजनीतिक तंत्र की कमजोरियों को उजागर किया है।

निष्कर्ष

फणीश्वरनाथ रेणु ने ‘मैला आँचल’ में एक नई तरह की भाषा-शैली प्रस्तुत की, जिसमें हिंदी के साथ-साथ लोकभाषा, उर्दू, अंग्रेज़ी, लोकगीतों और कहावतों का सुंदर संयोजन है। उनकी भाषा सरल, सहज, स्वाभाविक और सजीव है, जो पाठकों को कथा के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ देती है।

रेणु की भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत की आत्मा को व्यक्त करने का जरिया भी है। उनकी भाषा-शैली ने हिंदी उपन्यासों में यथार्थवाद को नया आयाम दिया और इसे भारतीय ग्रामीण समाज का जीवंत दस्तावेज़ बना दिया।

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