रेणु का मैला आंचल (1954) हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण उपन्यास है, जिसे आंचलिक उपन्यासों की परंपरा की आधारशिला माना जाता है। यह उपन्यास स्वतंत्रता के बाद के भारतीय ग्रामीण समाज का यथार्थवादी चित्रण प्रस्तुत करता है। इसकी कथा-भूमि बिहार के पूर्णिया जिले का एक ग्रामीण इलाका है, जिसे रेणु ने अपने अनुभवों और संवेदनाओं से गढ़ा है।
‘मैला आंचल’ की कथा-भूमि केवल भौगोलिक स्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवेश का भी प्रतिनिधित्व करती है। इस उपन्यास में गाँव की मिट्टी की गंध, लोगों की पीड़ाएँ, राजनीतिक उथल-पुथल, जातिगत भेदभाव, अंधविश्वास, गरीबी, शोषण और प्रेम—ये सब जीवंत रूप में उभरकर आते हैं।
1. कथा-भूमि का भौगोलिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
‘मैला आंचल’ की कथा बिहार के एक छोटे से गाँव मेरीगंज में घटित होती है। यह गाँव न केवल बिहार, बल्कि पूरे भारत के ग्रामीण समाज का प्रतिनिधि गाँव बन जाता है। रेणु ने इसकी भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक सौंदर्य को अत्यंत संवेदनशीलता से चित्रित किया है।
गाँव की पृष्ठभूमि में गंगा और कोसी नदी के तट दिखाई देते हैं। यह क्षेत्र बाढ़ग्रस्त है, जहाँ प्राकृतिक आपदाएँ लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं। धूल भरी पगडंडियाँ, ऊसर खेत, दलदली जमीन, बांस के झुरमुट और पोखर—ये सब गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य और संघर्षमय जीवन को दर्शाते हैं।
गाँव की संस्कृति में लोकगीत, लोकनृत्य, मेलों और त्योहारों की झलक मिलती है। यहाँ भोजपुरी, मैथिली और हिंदी की मिश्रित भाषा बोली जाती है, जो इसे एक विशिष्ट आंचलिक रंग प्रदान करती है।
2. सामाजिक संरचना और वर्ग विभाजन
गाँव की सामाजिक संरचना सामंती और जातिगत आधार पर बंटी हुई है। गाँव में ब्राह्मण, राजपूत, यादव, कायस्थ, दलित और मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं, लेकिन सामाजिक भेदभाव और ऊँच-नीच की मानसिकता यहाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
- सवर्णों और दलितों के बीच अंतर:
- गाँव के सवर्ण लोग, विशेषकर ब्राह्मण और जमींदार, सत्ता और सम्मान के प्रतीक हैं। वे अपने से निम्न जातियों को शोषित करते हैं।
- दलित और निम्न जातियों के लोगों को सामाजिक और आर्थिक शोषण सहना पड़ता है। उनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी दुर्लभ हैं।
- गरीबी और शोषण:
- गाँव के गरीब किसानों और मजदूरों की स्थिति दयनीय है। वे महाजनों और जमींदारों के चंगुल में फँसे हुए हैं।
- साहूकारों का शोषण और प्रशासनिक भ्रष्टाचार उनके जीवन को और कठिन बना देता है।
- महिलाओं की स्थिति:
- गाँव में महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है। वे दोहरे शोषण का शिकार हैं—पहला, पुरुषसत्तात्मक समाज का और दूसरा, सामाजिक अन्याय का।
- बाल विवाह, दहेज प्रथा, अशिक्षा और घरेलू हिंसा जैसी समस्याएँ गाँव की महिलाओं के जीवन का हिस्सा हैं।
3. राजनीतिक परिवेश और स्वतंत्रता के बाद की परिस्थितियाँ
‘मैला आंचल’ केवल एक सामाजिक उपन्यास नहीं है, बल्कि यह स्वतंत्रता के बाद के ग्रामीण भारत की राजनीतिक स्थिति को भी उजागर करता है।
- स्वतंत्रता संग्राम और उसके प्रभाव:
- उपन्यास में स्वतंत्रता संग्राम की झलक मिलती है। गाँधीवादी विचारधारा और कांग्रेस की नीतियाँ गाँव के कुछ हिस्सों में प्रभावी हैं।
- कुछ लोग स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले चुके हैं, लेकिन आज़ादी के बाद वे हाशिए पर आ गए हैं।
- कम्युनिस्ट आंदोलन और राजनीतिक परिवर्तन:
- गाँव में कम्युनिस्ट विचारधारा और वामपंथी आंदोलन का प्रभाव बढ़ रहा है।
- जमींदारी प्रथा के अंत के बावजूद किसानों की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।
- राजनीतिक अवसरवादिता और भ्रष्टाचार:
- आज़ादी के बाद नेताओं और सरकारी अधिकारियों में भ्रष्टाचार बढ़ गया है। गाँव में चुनावों के दौरान धन और बाहुबल का खुला खेल देखने को मिलता है।
- जनता का विश्वास नेताओं से उठता जा रहा है।
4. पात्रों के माध्यम से कथा-भूमि का चित्रण
रेणु ने गाँव की इस कथा-भूमि को जीवंत बनाने के लिए अनेक पात्रों की सृष्टि की है। इन पात्रों के माध्यम से गाँव की विविध समस्याओं और सामाजिक संरचना को उकेरा गया है।
- डॉक्टर प्रशांत:
- उपन्यास का नायक, जो एक आदर्शवादी चिकित्सक है।
- उसने गाँव में आकर गरीबों की सेवा करने का निश्चय किया है।
- वह जातिवाद, अंधविश्वास और शोषण के खिलाफ लड़ता है।
- बटोही:
- गाँव का एक रहस्यमयी पात्र, जो यहाँ की सच्चाई को समझने और व्यक्त करने में सक्षम है।
- वह गाँव की जनता का प्रतिनिधित्व करता है।
- तोरणी देवी:
- एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला, जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती है।
- मठाधीश और महाजन:
- गाँव में धार्मिक और आर्थिक शोषण के प्रतीक हैं।
5. भाषा और शैली में कथा-भूमि की जीवंतता
रेणु की भाषा विशुद्ध रूप से आंचलिक है। उन्होंने लोकभाषा, लोकगीतों, कहावतों और ग्रामीण मुहावरों का प्रयोग किया है, जिससे उपन्यास की कथा-भूमि वास्तविक प्रतीत होती है।
- संवादों में स्थानीयता:
- संवादों में भोजपुरी, मैथिली और हिंदी का मिश्रण मिलता है।
- पात्रों की भाषा उनके सामाजिक वर्ग और मानसिकता को प्रकट करती है।
- लोकगीतों और कहावतों का प्रयोग:
- गाँव के मेलों, त्योहारों, विवाह और शोक के अवसरों पर लोकगीतों का प्रयोग कथा को अधिक प्रभावी बनाता है।
निष्कर्ष
‘मैला आंचल’ की कथा-भूमि केवल एक गाँव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समूचे भारतीय ग्रामीण जीवन का प्रतीक बन जाती है। रेणु ने इसमें बिहार के गाँवों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याओं को बेहद यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया है।
यह उपन्यास न केवल स्वतंत्रता के बाद के ग्रामीण भारत का दस्तावेज़ है, बल्कि यह उस मानसिकता को भी उजागर करता है, जो भारतीय समाज को जकड़े हुए है। रेणु की भाषा, शैली और पात्रों के माध्यम से यह कथा-भूमि इतनी सजीव हो उठती है कि पाठक स्वयं को उस गाँव का ही एक हिस्सा महसूस करने लगता है।
इस तरह, ‘मैला आंचल’ केवल एक उपन्यास नहीं, बल्कि भारतीय गाँवों की धड़कन को महसूस करने का एक सशक्त माध्यम है।