मैथिलीशरण गुप्त: राष्ट्रकवि और आधुनिक हिंदी काव्य के पुरोधा
प्रस्तावना
मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के महान कवि और भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रेरक कवियों में से एक थे। उन्हें “राष्ट्रकवि” के रूप में सम्मानित किया गया। उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति, सामाजिक चेतना, और राष्ट्रभक्ति का अद्भुत समन्वय मिलता है। गुप्त जी ने हिंदी कविता को खड़ी बोली में प्रतिष्ठित किया और इसे आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला। उनकी रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनमें भारतीय समाज और राष्ट्रीयता का स्पष्ट चित्रण भी मिलता है।
जीवन परिचय
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के चिरगाँव, झाँसी में एक संपन्न वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता काशीबाई धार्मिक प्रवृत्ति के थे, जिनका गहरा प्रभाव गुप्त जी के व्यक्तित्व और काव्य पर पड़ा। गुप्त जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिंदी, संस्कृत, और बंगाली में प्राप्त की।
उन्होंने बाल्यकाल से ही साहित्य में रुचि ली और ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली में काव्य रचना की। उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें “सरस्वती” पत्रिका में लिखने का अवसर दिया। उनकी पहली प्रसिद्ध कृति “भारत-भारती” ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया।
साहित्यिक योगदान
मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिंदी काव्य के उन कवियों में से हैं, जिन्होंने खड़ी बोली को काव्य की भाषा के रूप में स्थापित किया। उनकी रचनाएँ भारतीय संस्कृति, समाज और राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत हैं।
प्रमुख कृतियाँ
- भारत-भारती:
यह कृति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय में लिखी गई और इसमें भारत के गौरवपूर्ण अतीत, दयनीय वर्तमान, और उज्ज्वल भविष्य का चित्रण किया गया है। यह रचना राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रबल करती है।
“हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी।
आओ विचारें आज मिलकर, ये समस्याएँ सभी।”
- साकेत:
यह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसमें उन्होंने रामायण की कथा को उर्मिला के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। इसमें भारतीय समाज और नारी के महत्व को दर्शाया गया है। - पंचवटी:
इस कृति में रामायण के अरण्यकांड का वर्णन है, जिसमें सीता का अपहरण और वन की सुंदरता का चित्रण मिलता है। - यशोधरा:
यह रचना गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के त्याग और संघर्ष को केंद्र में रखकर लिखी गई है। - जयद्रथ वध:
महाभारत के जयद्रथ वध प्रसंग को गुप्त जी ने अपने काव्य का आधार बनाया।
काव्यगत विशेषताएँ
- राष्ट्रभक्ति और समाज सुधार:
गुप्त जी की कविताएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय में लोगों के मन में देशप्रेम की भावना जगाने का कार्य करती हैं।
उदाहरण: “भारत-भारती”
- नारी की महत्ता:
उनकी कविताओं में नारी के त्याग, सहनशीलता, और शक्ति को प्रमुखता से चित्रित किया गया है।
उदाहरण: “साकेत” और “यशोधरा”
- भारतीय संस्कृति और परंपरा:
गुप्त जी ने भारतीय संस्कृति, धर्म, और परंपराओं को अपने काव्य में प्रमुखता दी।
- खड़ी बोली का प्रयोग:
गुप्त जी ने हिंदी कविता में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित किया और इसे साहित्य की भाषा के रूप में स्वीकृति दिलाई।
- सरल और प्रभावशाली भाषा:
उनकी भाषा सरल, सहज, और प्रभावशाली है, जो आम जनता को भी आकर्षित करती है।
- चरित्रों का मानवीकरण:
गुप्त जी ने अपने काव्य में पौराणिक और ऐतिहासिक पात्रों का मानवीकरण किया और उन्हें आम जीवन के करीब लाया।
मैथिलीशरण गुप्त की लोकप्रियता
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्य राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी कविताएँ स्वतंत्रता संग्राम के समय में प्रेरणा का स्रोत बनीं। उनकी रचनाओं ने न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय समाज को नई दिशा देने में भी योगदान दिया।
निष्कर्ष
मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के ऐसे कवि हैं, जिन्होंने न केवल साहित्यिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति, नारी सम्मान, और राष्ट्रभक्ति का अद्भुत समन्वय है। गुप्त जी ने हिंदी साहित्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। उनके योगदान के कारण उन्हें सही मायनों में “राष्ट्रकवि” कहा जाता है।