पंक्ति:
“नंदक नंद कदंबक तरु तर धीरे-धीरे मुरली बजाव।
समय संकेत-निकेतन बइसल बेरि-बेरि बोलि पठाव।।”
प्रसंग
यह पंक्ति विद्यापति की काव्य रचना से ली गई है, जिसमें राधा-कृष्ण के प्रेम और उनके मधुर संबंधों का वर्णन किया गया है। विद्यापति ने अपनी रचनाओं में कृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि, कदंब के पेड़ों की छाया, और राधा के प्रति उनकी प्रेमपूर्ण लीलाओं को अत्यंत कोमलता से चित्रित किया है। इस पंक्ति में कृष्ण की मुरली की ध्वनि और राधा के मनोभावों को अभिव्यक्त किया गया है।
संदर्भ
इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण कदंब के वृक्ष के नीचे बैठकर धीरे-धीरे मुरली बजा रहे हैं। मुरली की मधुर ध्वनि प्रकृति को जीवंत कर रही है और राधा को संकेत दे रही है कि वह उनके पास आएं। रचना में प्रेम का प्रतीकात्मक वर्णन किया गया है, जिसमें कृष्ण के प्रेम का संदेश मुरली के माध्यम से राधा तक पहुँचता है।
व्याख्या
इस पंक्ति में विद्यापति ने भगवान श्रीकृष्ण और राधा के दिव्य प्रेम का वर्णन किया है।
- “नंदक नंद कदंबक तरु तर धीरे-धीरे मुरली बजाव”:
- यहाँ “नंदक नंद” का अर्थ है नंद बाबा के पुत्र, यानी श्रीकृष्ण।
- “कदंबक तरु तर” का तात्पर्य है कदंब के वृक्ष के नीचे।
- श्रीकृष्ण कदंब के पेड़ के नीचे बैठे हैं और अपनी मुरली को धीरे-धीरे बजा रहे हैं।
- मुरली की मधुर ध्वनि उनके प्रेम का प्रतीक है, जो राधा को उनकी ओर आकर्षित करती है।
- “समय संकेत-निकेतन बइसल बेरि-बेरि बोलि पठाव”:
- “समय संकेत” का मतलब है कि यह वह समय है जब राधा और कृष्ण का मिलन होना चाहिए।
- “निकेतन बइसल” से तात्पर्य है कि श्रीकृष्ण अपने निश्चित स्थान पर (कदंब वृक्ष के नीचे) बैठे हुए हैं।
- “बेरि-बेरि बोलि पठाव” का अर्थ है कि श्रीकृष्ण बार-बार राधा को मुरली के माध्यम से बुला रहे हैं।
यह पंक्ति राधा-कृष्ण के प्रेम में प्रतीक्षारत समय, संकेतों और मुरली की भूमिका को उजागर करती है। मुरली यहाँ केवल एक वाद्य यंत्र नहीं, बल्कि प्रेम का संदेशवाहक है।
भावार्थ
इस पंक्ति में राधा-कृष्ण की प्रेमलीला का अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण चित्रण है। पंक्ति में जो भाव प्रकट होते हैं, वे निम्नलिखित हैं:
- प्रकृति और प्रेम:
- कृष्ण की मुरली की ध्वनि प्रकृति के साथ संगति बनाती है। कदंब का वृक्ष, मुरली की ध्वनि, और उनका स्थान प्रेम का एक आदर्श वातावरण निर्मित करते हैं।
- प्रतीक्षा का भाव:
- राधा और कृष्ण के बीच मिलने की प्रतीक्षा और संकेतों के माध्यम से प्रेम की अभिव्यक्ति का वर्णन है।
- संकेत और मुरली का महत्व:
- मुरली केवल एक वाद्ययंत्र नहीं है, बल्कि यह राधा के प्रति कृष्ण के प्रेम की अभिव्यक्ति का माध्यम है।
- भक्ति और श्रृंगार:
- इस पंक्ति में श्रृंगार रस और भक्ति रस का सुंदर समन्वय है। यह प्रेम केवल लौकिक प्रेम नहीं है, बल्कि इसमें भक्ति का भी अद्भुत मिश्रण है।
साहित्यिक सौंदर्य
विद्यापति की भाषा और शैली में अद्वितीय कोमलता और लयबद्धता है।
- चित्रात्मक वर्णन: कदंब वृक्ष, मुरली की ध्वनि, और संकेत का विवरण इतना सजीव है कि पाठक इसे अपनी आँखों के सामने देख सकते हैं।
- लय और संगीतात्मकता: यह पंक्ति गेयता और भावनात्मक गहराई से परिपूर्ण है।
निष्कर्ष
इस पंक्ति में विद्यापति ने प्रेम, प्रतीक्षा, और संकेतों के माध्यम से राधा-कृष्ण की अमर प्रेमगाथा का वर्णन किया है। कदंब के पेड़ के नीचे मुरली बजाते कृष्ण का चित्र केवल प्रेम का नहीं, बल्कि भक्ति और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है। यह पंक्ति विद्यापति की काव्य कला और उनके भावनात्मक गहराई को दर्शाती है।