‘पर्यावरणीय समस्याओं को दूर करने का सर्वोत्तम साधन अहिंसा है’ – जैन धर्म के आलोक में व्याख्या

पर्यावरणीय समस्याएँ आज के समय में एक गंभीर चुनौती बन चुकी हैं। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, वन की अंधाधुंध कटाई, जैव विविधता का नुकसान और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, ये सभी समस्याएँ मनुष्य के पर्यावरण के साथ असंवेदनशील व्यवहार का परिणाम हैं। जैन धर्म में अहिंसा (non-violence) का महत्व अत्यधिक है और इसे न केवल मानवों के बीच, बल्कि सभी जीवों और पर्यावरण के प्रति भी पालन करने की आवश्यकता बताई गई है। जैन धर्म के दृष्टिकोण में अहिंसा का अनुपालन पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने का सर्वोत्तम उपाय है। इस लेख में हम जैन धर्म के आलोक में पर्यावरणीय समस्याओं को दूर करने के लिए अहिंसा के महत्व को समझेंगे।

1. जैन धर्म और अहिंसा का सिद्धांत

जैन धर्म में अहिंसा को सर्वोच्च मूल्य माना गया है। अहिंसा का अर्थ केवल शारीरिक हिंसा से बचना नहीं है, बल्कि मानसिक और वचन से भी हिंसा को नकारना है। जैन धर्म के अनुसार, हर जीव (मानव, पशु, पक्षी, कीट, वनस्पति आदि) में आत्मा (soul) होती है और सभी जीवों के साथ समान रूप से दयालु और करुणामय व्यवहार करना चाहिए। अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार, हमें न केवल दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का भी अत्यधिक दोहन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह भी एक प्रकार की हिंसा है।

जैन धर्म के महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में यह कहा गया है कि “अहिंसा परमो धर्म” यानी अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। इसका मतलब यह है कि हमारे कार्य, वचन और विचारों में किसी भी जीव के प्रति हिंसा का विचार भी नहीं होना चाहिए। यदि हम इस सिद्धांत को जीवन में अपनाते हैं, तो यह पर्यावरण की रक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

2. अहिंसा और पर्यावरणीय समस्याएँ

पर्यावरणीय समस्याओं में प्रमुख रूप से प्रदूषण (वायु, जल, मृदा), वन कटाई, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का नुकसान, और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग शामिल हैं। जैन धर्म के अहिंसा सिद्धांत के आलोक में इन सभी समस्याओं का समाधान संभव है।

a. प्रदूषण और अहिंसा:

वायु, जल और मृदा प्रदूषण आज के समय में गंभीर समस्या बन चुकी हैं। वायुमंडल में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन, जल स्रोतों में रासायनिक कचरे का मिलना, और भूमि की उपजाऊ शक्ति का क्षरण, यह सभी प्रदूषण के रूप हैं। जैन धर्म के अनुसार, हमें इन प्रदूषणों से बचने के लिए अहिंसक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

उदाहरण के लिए, यदि हम वनस्पति और वन्य जीवन के प्रति हिंसा नहीं करेंगे और उनके प्राकृतिक आवासों को नुकसान नहीं पहुँचाएँगे, तो प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सकता है। जैन धर्म में जल, वायु, और मृदा के प्रति सम्मान रखने का संदेश दिया गया है, जो हमें प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है।

b. वन कटाई और अहिंसा:

वनों का अत्यधिक कटाव और जंगलों का नष्ट होना पर्यावरणीय संकट का एक प्रमुख कारण है। जैन धर्म में जीवों और वनस्पतियों के प्रति अत्यधिक सम्मान दिया गया है। जैन संतों ने हमेशा यह सिखाया है कि हमें पेड़ों और पौधों के साथ हिंसा नहीं करनी चाहिए।

यदि हम जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करें, तो हमें अनावश्यक रूप से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से बचना चाहिए। इसके अलावा, वृक्षारोपण को बढ़ावा देना, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना, और पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाना, यह सब अहिंसा का हिस्सा है।

c. जलवायु परिवर्तन और अहिंसा:

जलवायु परिवर्तन भी एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या है, जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव, समुद्र स्तर में वृद्धि, और पारिस्थितिकी तंत्र का असंतुलन हो रहा है। जैन धर्म के अनुसार, जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण पाने के लिए हमे अपने जीवनशैली में बदलाव लाना होगा।

जैन धर्म में संयमित जीवन जीने की शिक्षा दी जाती है। इसका मतलब है कि हमें अपनी जीवनशैली को अधिक पर्यावरण मित्र बनाना चाहिए, जैसे कि ऊर्जा का अधिक उपयोग न करना, संयमित जल उपयोग करना, और हरित ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना। अहिंसा के सिद्धांतों के अनुसार, हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने से बच सकते हैं और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।

d. जैव विविधता का संरक्षण और अहिंसा:

जैव विविधता का नुक्सान भी एक गंभीर समस्या है। अनेक जीवों की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है। जैन धर्म में यह सिखाया गया है कि सभी जीवों का अस्तित्व महत्वपूर्ण है और हमें किसी भी जीव के अस्तित्व को समाप्त नहीं करना चाहिए।

जैन धर्म के अनुसार, हमें जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रयास करना चाहिए। यह हमें प्रेरित करता है कि हम वन्य जीवन, जलजीव, और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए कार्य करें। हमें जीवन के सभी रूपों के प्रति करुणा और अहिंसा का पालन करना चाहिए, ताकि पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित रहे और जैव विविधता को बनाए रखा जा सके।

3. जैन धर्म में अहिंसा का व्यक्तिगत आचरण पर प्रभाव

अहिंसा का पालन केवल वैश्विक स्तर पर ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जैन धर्म में अहिंसा का पालन करने वाले व्यक्ति अपने आहार में भी संयम रखते हैं। वे मांसाहार से बचते हैं, क्योंकि यह हिंसा के रूप में आता है। इसी तरह, जैन धर्म में संयमित जीवनशैली को प्रोत्साहित किया जाता है, जिसमें पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सकारात्मक प्रभाव डाला जा सकता है।

जैन धर्म का एक और पहलू यह है कि इसमें हर व्यक्ति को स्वयं की जिम्मेदारी समझने की शिक्षा दी जाती है। यही जिम्मेदारी हमें अपने पर्यावरण के प्रति भी समझनी चाहिए। अगर हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत आचरण में अहिंसा का पालन करेगा, तो यह पर्यावरणीय समस्याओं को कम करने में मदद करेगा।

4. निष्कर्ष

जैन धर्म में अहिंसा का सिद्धांत न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन में बल्कि पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने में भी अत्यधिक प्रभावी है। प्रदूषण, वन कटाई, जलवायु परिवर्तन, और जैव विविधता के नुकसान जैसी समस्याओं से निपटने के लिए अहिंसा का पालन करना आवश्यक है। जब हम सभी जीवों और पर्यावरण के प्रति सम्मान और करुणा का भाव रखते हैं, तो हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित और स्वस्थ बना सकते हैं। जैन धर्म का यह सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत जीवन को सुधारता है, बल्कि वैश्विक पर्यावरण संकट से निपटने के लिए भी एक मजबूत आधार प्रदान करता है।

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