“रावरे रूप की रीति अनूप नयो नयो लागत ज्यों-ज्यों निहारिए। त्यों इन आँखिन बननि अनोखी अघानि कहूँ नहीं आन तिहारिए।।” सप्रसंग व्याख्या।

संदर्भ:


यह पंक्ति बिहारीलाल की प्रसिद्ध कृति “बिहारी सतसई” से ली गई है। बिहारीलाल हिंदी साहित्य के रीतिकाल के प्रमुख कवि थे। उनकी रचनाएँ अलंकार, भाव, और शिल्प के अद्भुत संयोजन के लिए जानी जाती हैं। प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने नायिका के सौंदर्य और उसकी अद्वितीयता का वर्णन किया है। यह रीतिकालीन काव्य की सजीवता और नायिका की सुंदरता पर केंद्रित है, जो प्रेम और सौंदर्य के प्रति कवि की गहन अभिव्यक्ति को दर्शाता है।


प्रसंग:


इस दोहे में कवि ने नायिका के सौंदर्य की अनुपम विशेषताओं को व्यक्त किया है। कवि कहता है कि नायिका का रूप इतना अद्वितीय और आकर्षक है कि उसे बार-बार देखने पर भी उसकी नवीनता समाप्त नहीं होती। इस पंक्ति में नायिका की सुंदरता के प्रति कवि की भावनात्मक और कलात्मक दृष्टि को प्रस्तुत किया गया है।


व्याख्या:


रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागत ज्यों-ज्यों निहारिए।”
कवि कहता है कि नायिका के रूप की रीति (अर्थात उसकी सुंदरता का तरीका) इतनी अनुपम है कि उसे जितना अधिक देखा जाए, वह उतना ही नया और आकर्षक प्रतीत होता है। नायिका की सुंदरता स्थिर नहीं है; वह हर बार नई और ताज़गी भरी लगती है। यह सौंदर्य केवल बाहरी नहीं है, बल्कि उसमें एक गहराई और दिव्यता है, जो दर्शक को बार-बार मोहित करती है।

“त्यों इन आँखिन बननि अनोखी, अघानि कहूँ नहीं आन तिहारिए।”
कवि आगे कहता है कि नायिका के रूप को देखने के बाद उसकी आँखों की सुंदरता और भी अद्वितीय लगने लगती है। इन आँखों की तुलना में और कोई भी चीज़ तृप्ति नहीं दे सकती। यहाँ “अघानि” का अर्थ है संतुष्टि। कवि यह कहता है कि नायिका की सुंदरता को देखकर आँखें कभी भी पूरी तरह तृप्त नहीं होतीं। उसकी सुंदरता इतनी मोहक और गहन है कि उसे देखने की चाह और बढ़ जाती है।


भावार्थ:


इस पंक्ति के माध्यम से बिहारी ने नायिका के सौंदर्य की अलौकिकता और उसकी नवीनता को चित्रित किया है। यह सौंदर्य न केवल बाह्य है, बल्कि उसकी आभा और आकर्षण में भी कुछ ऐसा है, जो हर बार अलग अनुभव देता है। कवि के लिए नायिका का रूप केवल देखने की वस्तु नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव की तरह है, जो तृप्ति देने के बजाय और अधिक देखने की लालसा बढ़ाता है।


साहित्यिक विशेषताएँ:

  1. अलंकार:
    इस पंक्ति में अनुप्रास और उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।

रूप की रीति अनूप” में अनुप्रास अलंकार है।

नयो नयो लागत” में नवीनता की उपमा दी गई है।

  1. रीतिकाल का प्रभाव:
    यह पंक्ति रीतिकालीन काव्य परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ नायिका के रूप और उसके अंग-प्रत्यंग की सुंदरता का सूक्ष्म वर्णन किया गया है।
  2. भाव-गहनता:
    कवि ने नायिका के रूप के प्रति अपनी गहरी भावनाओं और उसकी अनोखी विशेषताओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।
  3. सौंदर्य की अद्वितीयता:
    इस दोहे में सौंदर्य को केवल भौतिक रूप से नहीं, बल्कि एक अनुभव और भावना के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

निष्कर्ष:
इस पंक्ति में बिहारीलाल ने नायिका के रूप और उसकी आकर्षक विशेषताओं का अत्यंत सजीव और भावपूर्ण वर्णन किया है। उनकी दृष्टि में नायिका का सौंदर्य हर बार नया अनुभव प्रदान करता है और कभी भी अपनी चमक नहीं खोता। यह पंक्ति रीतिकालीन काव्य की उत्कृष्टता और बिहारी के काव्य-कौशल का प्रतीक है। बिहारी की यह अभिव्यक्ति प्रेम, रूप, और कला का अनूठा संगम है, जो पाठक के मन को गहराई से छूती है।

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