रैदास की भक्ति-भावना
परिचय:
संत रैदास भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत थे। उनका जन्म 15वीं शताब्दी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। वे चर्मकार जाति से संबंध रखते थे, लेकिन उनकी भक्ति, सरलता, और आध्यात्मिक ज्ञान ने उन्हें समाज में उच्च स्थान दिलाया। रैदास निर्गुण भक्ति के अनुयायी थे, जिसमें ईश्वर को निराकार और सर्वव्यापी माना जाता है। उनके विचारों और भजनों में सामाजिक समानता, जातिवाद का विरोध, और ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम की गहरी भावना झलकती है।
भक्ति-भावना की विशेषताएँ:
- निर्गुण भक्ति का पालन:
रैदास निर्गुण भक्ति पर विश्वास करते थे। उनके अनुसार, ईश्वर का कोई रूप या आकार नहीं है। वे सर्वत्र व्याप्त हैं और उनकी प्राप्ति केवल सच्चे प्रेम और समर्पण से संभव है।
उदाहरण:
“मन चंगा तो कठौती में गंगा।”
इस पंक्ति में रैदास ने बताया कि ईश्वर की भक्ति के लिए बाहरी आडंबर की आवश्यकता नहीं है। - सामाजिक समानता का संदेश:
रैदास ने जाति, धर्म, और वर्ग के भेदभाव का विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईश्वर की भक्ति के लिए जाति या सामाजिक स्थिति का कोई महत्व नहीं है। उनके भजनों में यह भावना बार-बार व्यक्त होती है कि सभी मनुष्य समान हैं।
उदाहरण:
“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।” - ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण:
रैदास की भक्ति-भावना में ईश्वर के प्रति गहरा प्रेम और पूर्ण समर्पण झलकता है। उन्होंने अपने भजनों में ईश्वर को “राम”, “हरि”, और “गोविंद” जैसे नामों से संबोधित किया है। उनके अनुसार, भक्ति का मुख्य उद्देश्य आत्मा को परमात्मा से जोड़ना है। - आडंबर और पाखंड का विरोध:
रैदास ने धार्मिक आडंबर और पाखंड का कड़ा विरोध किया। उन्होंने सरल और सच्चे जीवन को भक्ति का आधार बताया। वे मानते थे कि सच्ची भक्ति हृदय की पवित्रता और विचारों की सादगी में है। - लोकहित और समाज सुधार:
रैदास की भक्ति में समाज सुधार का तत्व भी मौजूद है। उन्होंने अपने समय के सामाजिक और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और मानवता को सर्वोपरि बताया।
साहित्यिक योगदान:
रैदास की रचनाएँ सरल और प्रभावशाली हैं। उनके भजन आज भी “गुरु ग्रंथ साहिब” और अन्य भक्ति साहित्य में स्थान पाते हैं। उनकी भाषा ब्रज, अवधी, और खड़ी बोली का सुंदर मिश्रण है, जो जनसामान्य को आसानी से समझ में आती है।
निष्कर्ष:
रैदास की भक्ति-भावना मानवता, प्रेम, और समानता का संदेश देती है। उनकी भक्ति न केवल आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाती है, बल्कि समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने की प्रेरणा भी देती है। उनकी शिक्षा और रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को बेहतर बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करती हैं।