जय हिन्द। इस पोस्ट में संस्कृत में समास की परिभाषा उदाहरण सहित पढ़ेंगे। जैसे – समास किसे कहते हैं। समास के कितने भेद होते हैं। |(Bihar Board Class 10 sanskrit Samaas ) (Bihar Board Class 10 Sanskrit समास की परिभाषा )(Bihar Board Class 10th sanskrit Grammer Solution) ( समास किसे कहते हैं।)
समास प्रकरण
समास की परिभाषा
एकपदीभावः समासः — अनेक पदों को मिलकर एक पद बन जाना समास कहलाता है।
उदाहरण – पितम् अम्बरं यस्य सः = पिताम्बरः ,
गङ्गायाः समीपम् = उपगंगा ,
नगरस्य समीपम् = उपनगरम्,
व्याघ्रात् भयम् = व्याघ्रभयम् आदि
- समास का अर्थ संक्षेप होता है।
- समास को तोड़ने को प्रक्रिया विग्रह कहलाती है।
- समास का विपरितर्थक/विलोम शब्द व्यास होता है।
- पदों को मिलने से जो पद बनाता है उसे समस्तपद कहा जाता है।
समास के भेद
संस्कृत में मुख्य रूप के समास चार प्रकार के होते हैं।
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- द्वंन्द्व समास
- बहुव्रीहि समास
अब आप कहेंगे कि फिर क्या कर्मधारय और द्विगु समास नहीं है, तो इसका उत्तर है – हाँ कर्मधारय और द्विगु भी समास हैं परंतु वे तत्पुरुष के अंतर्गत आते हैं। ये दोनों तत्पुरुष समास के उपभेद हैं।
इस आधार पर समास के निम्नलिखित भेद –
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- व्याधीकरण तत्पुरुष
- समानाधिकरण तत्पुरुष ( कर्मधाराय समास )
- द्विदु समास
- नञ् समास
- द्वंन्द्व समास
- बहुव्रीहि समास
1. अव्ययीभाव समास
पूर्वपदप्रधनोऽव्ययीभावः — जिस समास में प्रथम पद अव्यय, अन्य पद संज्ञा आदि हों, समस्तपद अव्यय की तरह बन जाता हो और अर्थ की दृष्टि से पूर्व पद की प्रधानता हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
बनाने का नियम :—
- उप = शब्द + स्य समीपम्। ( पुंल्लिङ्ग)
- उप = शब्द + याः समीपम्। ( स्त्रीलिङ्गः)
- अनु = शब्द + स्य योग्यम्।
- अनु = शब्द + स्य पश्चात्। ( रथ, गृह और विष्णु के लिये।
- अति = शब्द + स्य अत्ययः।
- अति = शब्दः सम्प्रति न युज्यते। ( निद्रा, हर्ष और शोक के लिए)
- सु = शब्द + आनां समृद्धिः।
- दुर् = शब्द + आनां व्यृद्धिः।
- निर् = शब्द + आनां अभावः।
- स = शब्द + ॆन युगपत्।
- यथा = शब्द अनतिक्रम्य ।
- प्रति = अंतिम पद दो बार।
- अधि = शब्द + ॆ इति।
- आ = आ शब्द + आत्
उदाहरण :—
उपनगरम् = नगरस्य समीपम्।
उपगृहम् = गृहस्य समीपम् ।
उपगंगम् = गंगायाः समीपम्।
अनुरूपम् = रूपस्य योग्यम्।
अनुरथम् = रथस्य पश्चात्।
अतिकष्टम् = कष्टस्य अत्ययः।
अतिहर्षम् = हर्षः सम्प्रति न युज्यते।
सुमद्रम् = मद्राणां समृद्धिः।
दुर्यवनम् = यवनानां व्यृद्धिः।
निर्जनम् = जनानाम् अभावः।
सचक्रम् = चक्रेण युगपत्।
यथाबलम् = बलम् अनतिक्रम्य ।
प्रतिदिनम् = दिनं दिनम्।
अधिगृहम् = गृहे इति।
अधिहरिः = हरौ इति।
आजीवनम् = आ जीवनात्।
2. तत्पुरुष समास
उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः — जिस समास में उत्तर पद यानि अंतिम पद के अर्थ की प्रधानता होती है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
तत्पुरुष समास के प्रमुख दो भेद है।
- व्याधीकरण तत्पुरुष
- समानाधिकरण तत्पुरुष ( कर्मधारय समास )
1. व्याधिकरण तत्पुरुष
व्यधिकरण तत्पुरुष — वह समास जिसमें पद भिन्न – भिन्न विभक्तियों के होते है, उसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
व्यधिकरण तत्पुरुष के छः भेद होते हैं।
- द्वितीया तत्पुरुष
- तृतीया तत्पुरुष
- चतुर्थी तत्पुरुष
- पंचमी तत्पुरुष
- षष्ठी तत्पुरुष
- सप्तमी तत्पुरुष
1. द्वितीया तत्पुरुष
द्वितीया तत्पुरुष — द्वितीया विभक्ति से युक्त पदों का श्रितः , अतीतः , पतितः , गतः , अत्यस्तः , प्राप्तः , आपन्नः आदि शब्दों के साथ जो समास होता है, उसे द्वितीया तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम :— दोनों पदों को अलग लिखकर , पहला पद में द्वितीया विभक्ति जोड़ा जाता है।
द्वितीया विभक्ति — ( बालकं )
उदाहरण —
गृहगतः = गृहं गतः।
कूपपतितः = कूपं पतितः ।
जिवनप्राप्तः = जीवनं प्राप्तः ।
सुखापन्नः = सुखं आपन्नः।
2. तृतीया तत्पुरुष
तृतीया तत्पुरुष — तृतीया विभक्ति से युक्त पदों का भिन्नः , बिद्धः , त्रातः , रक्षितः , हतः , रचितम् , कृतम् , आच्छादितस् , विभूषितः , छिन्नम् , सदृश , सम , कलह , निपुण , मिश्र , पूर्वः , श्लक्ष्ण , ऊनर्थक शब्दों के साथ जो समास होता है, उसे तृतीया तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम :— दोनों पदों को अलग लिखकर , पहला पद में तृतीया विभक्ति जोड़ा जाता है।
तृतीया विभक्ति — बालकेन्
कुछ अन्य तृतीया विभक्ति वाले शब्द
नख = नखैः | भ्रातृ = भ्रात्रा | विद्या = विद्यया |
मेघ = मेघैः | शंकुल = शंकुलया | पितृ = पित्रा |
असि = असिना | हरि = हरिण | वाक् = वाचा |
उदाहरण
मसपूर्वः = मासेन पूर्वः
नखभिन्नः= नखैः भिन्नः
व्यासरचितम् = व्यासेन रचितम्
वाक्कलहः = वाचा कलहः
धनहीनः = धनेन हीनः ( आदि )
3. चतुर्थी तत्पुरुष
चतुर्थी तत्पुरुष — बलि, हित, सुख, रक्षित, दारु, स्थाली आदि पदों के साथ जो समास होता है, उसे चतुर्थी तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम :—
दोनों पदों को अलग लिखकर , पहला पद में चतुर्थी विभक्ति जोड़ा जाता है।
चतुर्थी विभक्ति — बालकाय
कुछ अन्य चतुर्थी विभक्ति वाले शब्द
गो = गावे | पितृ = पित्रे |
उदाहरण
पुत्रहितम् = पुत्राय हितम्
भूतबलिः= भूताय बलिः
पितृसुखम् = पित्रे सुखम्
गोबलिः = गवे बलिः ( आदि )
4. पंचमी तत्पुरुष
पंचमी तत्पुरुष — भय , भीत, भी, भीति, अपेत, अपोढ़, मुक्त, पतित, अपत्रस्त , च्युत, भ्रष्ट, निर्वसित आदि पदों के साथ जो समास होता है , उसे पंचमी तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम — दोनों पदों को अलग लिखकर , पहला पद में पंचमी विभक्ति जोड़ा जाता है।
पंचमी विभक्ति — बालकात्
उदाहरण
जिवनमुक्तः = जिवनात् मुक्तः
व्याघ्रभयम् = व्याध्रात् भयम् ( आदि )
5. षष्ठी तत्पुरुष
षष्ठी तत्पुरुष — पुत्र, सेवक, जल, कन्या, पति, राज, ईश, भाषा, शाला, कथा आदि पदों के साथ जो समास होता है , उसे षष्ठी तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम — दोनों पदों को अलग लिखकर , पहला पद में षष्ठी विभक्ति जोड़ा जाता है।
षष्ठी विभक्ति — बालकस्य
कुछ अन्य षष्ठी विभक्ति वाले शब्द
देव = देवानां | राज = राज्ञः |
गंगा = गंगायाः | गो = गवां |
गण = गणानाम् | गज = गजानां |
उदाहरण
रामकथा = रामस्य कथा।
राष्ट्रपतिः = राष्ट्रस्य पतिः ।
राजपुत्रः = राज्ञः पुत्रः ।
गंगाजलम् = गंगायाः जलम्।
देवभाषा = देवानां भाषा ।
गजराजः = गजानां राजः
6. सप्तमी तत्पुरुष
सप्तमी तत्पुरुष — शौण्ड, धूर्त, कितव, प्रवीण, पटु , पण्डित, कुशल, निपुण, चपल, चतुर आदि पदों के साथ जो समास होता है , उसे सप्तमी तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम — दोनों पदों को अलग लिखकर , पहला पद में सप्तमी विभक्ति जोड़ा जाता है।
सप्तमी विभक्ति — बालके
कुछ अन्य सप्तमी विभक्ति वाले शब्द
अक्ष = अक्षेषु | प्रेम = प्रेम्णि |
कर्म = कर्मणि | सभा = सभायां |
क्रीडा = क्रीडायां |
उदाहरण
रणचतुरः = रणे चतुरः
कार्यपटुः = कार्ये पटुः
अक्षशौण्डः = अक्षेषु शौण्डः
प्रेमधूर्तः = प्रेम्णि धूर्तः
कर्मकुशलः = कर्मणि कुशलः
2 समानाधिकरण तत्पुरुष ( कर्मधारय समास )
समानाधिकरण तत्पुरुष ( कर्मधारय समास ) — जिस तत्पुरुष समास में दोनों पद समानाधिकरण अर्थात् विशेषण – विशेष्य और उपमानोपमेय के रूप में प्रथमा विभक्ति के हो उसे कर्मधारय या समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
इसके पाँच भेद होते है :—
- विशेष्य–विशेषण कर्मधारय
- उपमान पूर्वपद कर्मधारय
- उपमित कर्मधारय
- रूपक कर्मधारय
1. विशेष्य – विशेषण कर्मधारय
विशेष्य – विशेषण कर्मधारय ( विशेषणं विशेष्येण बहुलम् ) — विशेष्य के साथ विशेषण का जो समास होता है , उसे विशेष्य विशेषण कर्मधारय समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
प्रथम पद | द्वितीय पद | द्वितीय पद | द्वितीय पद |
पहचान 👉 | अः/ इः (पुल्लिंग) | आ/ई/ऊ (स्त्रीलिंग) | म् (नपुंसकलिंग) |
नील | नीलः | नीला | निलम् |
महा | महान् | महती | महत् |
विशाल | विशालः | विशाला | विशालम् |
नव | नवः | नवा | नवम् |
पवित्र | पवित्रः | पवित्रा | पवित्रम् |
श्वेत | श्वेतः | श्वेता | श्वेतम् |
कृष्ण | कृष्णः | कृष्णा | कृष्णम् |
उदाहरण
कृष्णसर्पः = कृष्णः सर्पः
महानदी = महती नदी
महाकाव्यम् = महत् काव्यम्
नववधू = नवा वधू
विशलवृक्षः = विशालः वृक्षः
महाराजः = महान् राजः
2. उपमान पूर्वपद कर्मधारय
उपमान पूर्वपद कर्मधारय ( उपमानानि सामान्यवचनैः ) — जिस वस्तु से उपमा दी जाती है उसे अपमान कहते हैं और जिस गुण की उपमा जाती है उसे सामान्य वचन कहते हैं। ऐसे अपमान और सामान्य वचनों का जो समास होता हैं उसे अपमान पूर्वपद कर्मधारय समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
- घन = घनः इव
- समुद्र = समुद्रः इव
- कमल = कमलम् इव
- नवनीत = नवनीतम् इव
- दुग्ध = दुग्धम् इव
- मृग = मृगः इव
- विद्युत = विद्युत् इव
- चन्द्र = चन्द्रः इव
उदाहरण
घनश्यामः = घनः इव श्यामः
कमलकोमलम् = कमलम् इव कोमलम्
समुद्रगम्भीरः = समुद्रःइव गंभीरः
चन्द्रोज्ज्वलः = चन्द्रः इव उज्ज्वलः
3. उपमित कर्मधारय
उपमित कर्मधारय ( उपमितं व्याघ्रादिभिः सामान्यप्रयोगे ) — व्याघ्र , सिंह , चंद्र , पुंगव , और शार्दुल आदि उपमानवाचक पदों का उपमेयवाचक पदों के साथ जो समास होता है , उसे उपमित कर्मधारय समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
- व्याघ्र = व्याघ्रः इव
- सिंह = सिंहः इव
- चन्द्र = चन्द्रः इव
- पल्लव = पल्लवः इव
- शार्दूल = शार्दूलः इव
उदाहरण
पुरुषव्याघ्रः = पुरुषः व्याघ्रः इव
नरशार्दूलः = नरः शार्दूलः इव
अधरपल्लवः = अधरः पल्लवः इव
नोट :— जिस वस्तु से उपमा दी जाती है उसे उपमान कहते हैं। और जिसकी उपमा दी जाती है उसे उपमेय कहते हैं।
4. रूपक कर्मधारय
रूपक कर्मधारय — उपमेय और उपमान को अभिन्न मानकर जो समास होता है, उसे रूपक कर्मधारय समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
- विद्या = विद्या एव
- शोक = शोकः एव
- चरण = चरणम् एव
- दुःख = दुःखम् एव
- मुख = मुखम् एव
उदाहरण
विद्याधनम् = विद्या एव धनम्
मुखकमलम् = मुखम् कमलम्
शोकसागरः = शोकः एव सागरः
चरणकमलम् = चरणम् एव कमलम्
5. मध्यमपदलोपी कर्मधारय
मध्यमपदलोपी कर्मधारय — जिस कर्मधारय समास में प्रथम पद अन्यान्य समासों द्वारा बना समस्त पद हो और उसके बाद कोई पद आकर समस्त होना चाहे तो बीच वाले पद का लोप हो जाता है , ऐसे समास को मध्यमपदलोपी समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
- शाक = शाकप्रियः
- देव = देवपूजकः
- घृत = घृतमिश्रम्
- सिंह = सिंहचिह्नितम्
- एक = एकाधिका
उदाहरण
शाकपार्थिवः = शाकप्रियः पार्थिवः
देवब्राह्मणः= देवपूजकः ब्राह्मणः
सिंहासनम् = सिंहचिह्नितम् आसनम्
एकविंशतिः -= एकाधिका विशति
3. द्विगु समास
द्विगु समास ( संख्यापूर्वे द्विगु ) — वह समास जिसका पहला पद संख्यावाचक विशेषण हो , उसे द्विगु समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
- त्रि = त्रयाणां शब्द + आनां समाहारः।
- चतुर/चतुष् = चतुर्णां शब्द + आनां समाहारः।
- पञ्च = पञ्चानां शब्द + आनां समाहारः।
- सप्त = सप्तानां शब्द + आनां समाहारः।
- अष्ट = अष्टानाम् शब्द + आनां समाहारः।
- नव = नवानां शब्द + आनां समाहारः।
- दश = दशानाम् शब्द + आनां समाहारः।
- शत = शतानाम् शब्द + आनां समाहारः।
उदाहरण
त्रिफला = त्रयाणां फलानां समाहारः।
त्रिलोकी = त्रयाणां लोकानां समाहारः ।
चतुष्पदी = चतुर्णां पदानां समाहारः
पंचवटी = पञ्चानां वटानां समाहारः।
सप्तशती = सप्तानां शतानां समाहारः।
अष्टअष्टाध्यायी = अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः।
नवग्रहः = नवानां ग्रहाणां समाहारः।
दशावतारः = दशानाम् अवताराणां समाहारः।
शताब्दी = शतानाम् अब्दानां समाहारः।
4 नञ् समास
नञ् समास — वह समास जिसका पहला पद नकारात्मक भाव लिए रहता है, उसे नञ् समास कहते है।
बनाने का नियम —
- अ = न
- अन = न अ
उदाहरण
असत्यम् = न सत्यम् ।
अनादरः = न आदरः ।
अनश्वः = न अश्वः ।
अनागतम् = न आगतम् ।
अनीशः = न ईशः ।
अनावश्यकः = न आवश्यकः।
नोट — तत्पुरुष समास के कुछ अन्य उपभेद होते है, जो निम्नलिखित है —
1. उपपद तत्पुरुष समास
उपपद तत्पुरुष समास — जिस तत्पुरुष समास में प्रथम पद संज्ञा या अव्यय हो तथा दूसरा पद धातु से बना हुआ ऐसा सुबंत हो , जिसका प्रयोग स्वतंत्र न होता हो उसे उपपद तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम :—
प्रथम पद का बदलाव | द्वितीय पद का बदलाव |
कुम्भ = कुम्भं | कारः/ करः = करोति इति |
दिवा = दिवा | ग/ गामी = गच्छति इति |
प्रभा = प्रभा | जम् = जायते इति |
ख = खे | दः/ दा = ददाति इति |
सर = सरसि | पः = पिबति इति |
सुख = सुखं | स्था = तिष्ठति इति |
मद्य = मद्यं | |
गृह = गृहे | |
द्रुत = द्रुतं |
उदाहरण
कुम्भकारः = कुम्भं करोति इति।
दिवाकरः = दिवा करोति इति।
खगः = खे गच्छति इति
सुखदः = सुखं ददाति इति।
मद्यपः = मद्यं पिबति इति।
2. आलुक् तत्पुरुष समास
आलुक् तत्पुरुष समास — जिस तत्पुरुष समास में समस्त पद बन जाने पर भी विभक्तियोंं का लोप नहीं होता , उसे आलुक् तत्पुरुष समास तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
प्रथम पद का बदलाव | द्वितीय पद का बदलाव |
वन = वने | चर = चरति इति। |
ख = खे | स्थिर/ ष्ठिर = तिष्ठति इति। |
युधि= युधि | गतः = गतः । |
दिवं = दिवं | पदम् = पदम् । |
परस्मै = परस्मै | जम् = जायते इति। |
आत्मने = आत्मने | सरः = सरसि इति। |
सरसि = सरसि | |
अग्रे = अग्रे |
उदाहरण
वनेचरः = वने चरति इति।
युधिष्ठिरः = युधि तिष्ठति इति।
खेचरः = खे चरति इति।
परस्मैपदम् = परस्मै पदम्
3. प्रादि तत्पुरुष समास
प्रादि तत्पुरुष समास — प्र आदि उपसर्गों के साथ समास करने पर भी जहाँ उत्तर पदार्थ की प्रधानता होती है, उसे प्रादि तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
- प्र = प्रगतः
- कु = कुत्सितः
- सु = शोभनः
उदाहरण
सुमार्गः = शोभनः मार्गः
प्राचार्यः = प्रगतः आचार्यः
सुपुत्रः = शोभनः पुत्रः
कुपुत्रः = कुत्सितः पुत्रः
4. मयुरव्यंसकादि तत्पुरुष
मयुरव्यंसकादि तत्पुरुष — जिस समास में प्रत्यक्ष रूप से नियमों का उल्लंघन किया गया हो, उसे मयुरव्यंसकादि तत्पुरुष समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
- अन्तरम् = अन्यः
उदाहरण
देशान्तरम् = अन्यः देशः
राजान्तरम् = अन्यः राजा
3. द्वन्द्व समास
द्वन्द्व समास ( चाऽर्थे द्वन्द्व ) — च ( और ) के अर्थ में उपस्थित दो या दो से अधिक पदों का जो समास होता है , उसे द्वन्द्व समास समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
- अ/इ/ई = श्च
- आ = च
उदाहरण
रामश्यामौ = रामश्च श्यामश्च
गौरीसंकरौ = गौरीश्च संकरश्च
सितारामौ = सीता च रामश्च
पितरौ = माता च पिता च
दम्पतिः = जाया च पतिश्च
धर्मार्थौ = धर्मश्च अर्थश्च
धर्मार्थकामाः = धर्मश्च अर्थश्च कामश्च
सुखदुःखे = सुखश्च दुःखश्च
मनोजसरोजौ = मनोजश्च सरोजश्च
भीमार्जुनौ = भीमश्च अर्जुनश्च
हरिहरौ = हरिश्च हरश्च
मृगकाकौ = मृगश्च काकश्च
सुर्यचन्द्रौ = सूर्यश्च चन्द्रश्च
4. बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास ( अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः) — वह समास जिसमें अन्य पद के अर्थ की प्रधानता होती है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
बहुव्रीहि समास के प्रमुख चार भेद होते हैं।
- समानाधिकरण बहुव्रीहि
- व्यधिकरण बहुव्रीहि
- सहार्थ बहुव्रीहि ( तुल्ययोगे बहुव्रीहि )
- व्यतिहार बहुव्रीहि
1. समानाधिकरण बहुव्रीहि
समानाधिकरण बहुव्रीहि — जिस बहुव्रीहि समास में सभी पद समानाधिकरण अर्थात् प्रथम विभक्ति के हो , उसे समानाधिकरण बहुव्रीहि समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
शब्द | प्रथम पद का बदलाव | द्वितीय पद का बदलाव |
लम्ब | लम्बम् | उदरं |
पीत | पीतम् | अम्बरं |
नील | नीलम् | अम्बरं |
नील | नीलः | कण्ठः |
महा | महान् | आशयः |
श्वेत | श्वेतम् | वसनं |
चतुर | चत्वारि | आननानि |
उदाहरण
पीताम्बरः = पीतम् अम्बरं यस्य सः।
लम्बोदरः = लम्बम् उदरं यस्य सः।
नीलकण्ठः = नीलः कण्ठः यस्य सः।
महाशयः = महान् आशयः यस्य सः।
श्वेतवसनः = श्वेतं वसनं यस्य सः।
2. व्यधिकरण बहुव्रीहि
व्यधिकरण बहुव्रीहि — जिस बहुव्रीहि समास में दोनों पदों का सामान अधिकरण न हो अर्थात् दोनों पद अलग – अलग विभक्तियों के हो , उसे व्यधिकरण बहुव्रीहि समास कहते हैं।
बनाने का नियम —
शब्द | प्रथम पद का बदलाव | द्वितीय पद का बदलाव |
चक्र | चक्रं | पाणौ |
गदा | गदा | पाणौ |
शंख | शंखं | पाणौ |
वीणा | वीणा | पाणौ |
शूल | शूलं | पाणौ |
चंद्र | चन्द्रः | शेखरे |
शशि | शशी | शेखरे |
पुस्तक | पुस्तकम् | हस्ते |
उदाहरण
चक्रपाणिः =चक्रं पाणौ यस्य सः।
चन्द्रशेखरः = चन्द्रः शेखरे यस्य सः।
वीणापाणिः = वीणा पाणौ यस्या सा।
पुस्तकहस्तः = पुस्तकं हस्ते यस्य सः।
3.सहार्थ बहुव्रीहि ( तुल्ययोगे बहुव्रीहि )
सहार्थ बहुव्रीहि ( तुल्ययोगे बहुव्रीहि ) — जिस बहुव्रीहि समास में सह ( साथ ) शब्द के साथ संज्ञा का समास होता है, उसे सहार्थ बहुव्रीहि समास कहते हैं। इस समास के द्वारा बने समस्त पद विशेषण वे क्रिया – विशेषण बन जाते हैं।
बनाने का नियम
- शब्द + एन सह वर्तमानः
- शब्द + एन सह वर्तमानम्
उदाहरण
सपुत्रः = पुत्रेण सह वर्तमानः।
सकुशलम् = कुशलेन सह वर्तमानम्।
सानुजः = अनुजेन सह वर्तमानः
4. व्यतिहार बहुव्रीहि
व्यतिहार बहुव्रीहि — युद्ध आदि में परस्पर की जाने वाली क्रिया की अदला – बदली को व्यतिहार कहते हैं। ऐसे व्यतिहार में जो समास होता है उसे व्यतिहार बहुव्रीहि समास कहते हैं।
नोट :— इस समास में विग्रह करते समय अंत में ‘ इदं युद्धं प्रवृत्तम् ’ का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण
केशाकेशि = केशेषु केशेषु गृहीत्वा इदं युद्धं प्रवृत्तम् ।
दण्डादण्डि = दण्डैश्च दण्डैश्च प्रहृत्य इदं युद्धं प्रवृत्तम् ।
मुष्टामुष्टि = मुष्टिभिश्च मुष्टिभिश्च प्रहृत्य इदं युद्धं प्रवृत्तम् ।