विष के दाँत ( कहानी )|Chapter 2 |Vish Ke Dant Kahani

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड क्लास 10 हिन्दी किताब गोधूली भाग – 2 के गद्य खण्ड के पाठ 2 ‘विष के दाँत’ के सारांश को पढ़ेंगे। इस कहानी के कहानीकार नलिन विलोचन शर्मा है । नलिन विलोचन शर्मा जी ने इस कहानी में मध्यमवर्गीय अन्तर्विरोधों को उजागर किया है। यह कहानी समाजिक भेदभाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार दुलार के कुपरिणामों को उभरती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की महत्वपूर्ण नमूना पेश करती है। |(Bihar Board Class 10 Hindi नलिन विलोचन शर्मा ) (Bihar Board Class 10 Hindi विष के दाँत )(Bihar Board Class 10th Hindi Solution) ( विष के दाँत )

विष के दाँत
  • लेखक का नाम – नलिन विलोचन शर्मा
  • जन्म – 18 फरवरी 1916 ई०
  • जन्म स्थान – बदरघाट , पटना
  • पिता – पण्डित रामावतार शर्मा ( दर्शन और संस्कृत के प्रख्यात विद्वान )
  • माता – रत्नावती शर्मा
  • मृत्यु – 12 सितम्बर 1961 ई०
  • स्कूली शिक्षा – पटना कॉलेजिएट स्कूल
  • कॉलेज – संस्कृत तथा हिन्दी में MA, पटना विश्वविद्यालय से
  • ये जन्म से भोजपुरी भाषी थे।
  • प्राध्यापक —
    • हर प्रसाद दास जैन कॉलेज , आरा
    • राँची विश्वविद्यालय , राँची
    • पटना विश्वविद्यालय, पटना
  • 1959 ई० में ये पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने और अपनी मृत्यु तक रहे।
  • प्रमुख रचनाएँ –
    • आलोचनात्मक ग्रंथ – ‘दृष्टिकोण’, ‘साहित्य का इतिहास दर्शन’, ‘मानदंड’, ‘हिंदी उपन्यास विशेषतः प्रेमचंद’, ‘साहित्य तत्त्व और आलोचना’
    • कहानी संग्रह – ‘विष के दाँत’ और सत्रह असंगृहीत पूर्व छोटी कहानियाँ
    • काव्य संग्रह – केसरी कुमार तथा नरेश के साथ
    • संपादित ग्रंथ – ‘नकेन के प्रपद्य’ और ‘नकेन- दो’, ‘सदल मिश्र ग्रंथावली’, ‘अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ’, ‘संत परंपरा और साहित्य’ आदि ।
  • यह कहानी ‘विष के दाँत’ कहानी संग्रह से लिया गया है।
  • ये कथ्य, शिल्प, भाषा आदि स्तरों पर नवीनता के आग्रही लेखक है।
  • ये कविता में प्रपद्यवाद के प्रवर्तक और नई शैली के आलोचक है।
  • आलोचकों के अनुसार प्रयोगवाद का वास्तविक प्रारंभ इनके कविताओं से ही हुआ।

प्रस्तुत कहानी ‘विष के दाँत’ में मध्यमवर्गीय अन्तर्विरोधों को उजागर किया गया है। आर्थिक कारणों से मध्यवर्ग के भीतर ही एक ओर सेन साहब जैसे महत्वाकांक्षी तथा सफेदपोशी अपने भीतर लिंग-भेद जैसे कुसंस्कार छिपाए हुए हैं तो दूसरी ओर गिरधर जैसे नौकरी पेशा निम्न मध्यवर्गीय है जो अनेक तरह के थोपी गई बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाए रखने के लिए संघर्षरत है।यह कहानी समाजिक भेदभाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार दुलार के कुपरिणामों को उभरती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की महत्वपूर्ण नमूना पेश करती है।

सेन साहब एक अमीर आदमी थे। उनकी पाँच लड़कियाँ थी, एक लड़का था। लड़कियाँ क्या थी कठपुतलियाँ। वे किसी चीझ को ताड़ती-फोड़ती न थी। दौड़ती और खेलती भी थी, तो केवल शाम के वक्त। सेन साहब नयी मोटरकार ली थी- स्ट्रीमलैण्ड। काली चमकती हुई, खुबसूरत गाड़ी थी। सेन साहब को उस पर नाज था। एक धब्बा भी न लगने पाये- क्लिनर और शोफर को सेन साहब की सख्त ताकीद थी। चूँकि खोखा सबसे छोटा और सेन साहब के नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा था इसलिए मोटर को कोई खतरा था तो खोखा से ही।

एक दिन की बात है कि सेन साहब का शोफर एक औरत से उलझ पड़ा बात यह थी कि उसका पाँच-छः साल का बच्चा मदन गाड़ी को छुकर गंदा कर रहा था और शोफर ने जब मना किया तो वह उल्टे शोफर से ही उलझ पड़ी।

वह मामला अभी सिमटा ही था कि इस बीच खोखे ने मोटर की पिछली बती का लाल शीशा चकनाचुर कर दिया। लकिन सेन साहब ने इसका बुरा नहीं माना और अपने मित्राें से कहा- ‘देखा, आपलोगों ने ? बड़ा शरारती हो गया है काशु। मोटर के पिछे हरदम पड़ा रहता है। काशु ने मिस्टर सिंह साहब के अगले तथा पिछले पहीयां के हवा निकाल दी थी। जब मिस्टर सिंह विदा हो गये तो सेन साहब ने मदन के पिता गिरधर लाल को जो उनके फैक्ट्री में किरानी था। उसे सेन साहब ने खुब खरी-खोटी सुनाई और कहा कि बच्चों को सम्भाल कर रखो। उस रात गिरधारी लाल ने अपने बेटे मदन की खुब पिटाई की।

दूसरे दिन शाम को मदन, कुछ लड़कों के साथ लट्टू नचा रहा था। खोखा ने भी लट्टू नचाने के लिए, माँगा लेकिन मदन ने उसे फटकार दिया- ‘अबे, भाग जा यहाँ से ! बड़ा आया है लट्टू नचाने, जा अपने बाबा की मोटर पर बैठ।’

काशु को गुस्सा आ गया, वह इसी उम्र में अपनी बहनों पर, नौकरों पर हाथ चला देता था और क्या मजाल उसे कोई कुछ कह दे। उसने न आव देखा न ताव, मदन को एक घुस्सा कस दिया। मदन ने काशु पर टूट पड़ा। उसकी मरम्मत जमकर कर दी। काशु रोता हुआ घर चला गया।

लेकिन मदन घर नहीं लौटा। आठ-नौ बजे रात को मदन इधर-उधर घूमते हुए गली के दरवाजे से घर में घुसा। डर तो यही है कि आज अन्य दिनों की अपेक्षा मार अधिक लगेगी। रसोई घर में घुसा। भरपेट खाना खाया। फिर बगल वाले कमरे के दरवाजे पर जाकर अन्दर की बात सुनने लगा।उसे इस बात का ताज्जुब हो रहा था कि उसके पिता क्यों गरज-तरज नहीं रहे हैं, जबकि उसने काशु के दो-दो दाँत तोड़ डाले थे। इसका कारण यह था कि उसके पिता को नौकरी से हटा दिया गया था और मकान खाली करने का आदेश दिया जा चूका था। (विष के दाँत)

वह दबे पाँव बरामदे पर रखी चरपाई की तरफ सोने के लिए चला कि अँधेरे में उसका पैर लोटे पर लग गया, ठन्-ठन् की आवाज सुनकर गिरधर बाहर निकला और मदन की ओर बढ़ा, उसके चेहरे से नाराजगी के बादल छँट गए। उसने मदन को अपनी गोद में उठाकर बेपरवाही, उल्लास और गर्व के साथ बोल उठा, जो किसी के लिए भी नौकरी से निकाले जाने पर ही मुमकिन हो सकता है, शाबाश बेटा ! एक तेरा बाप है, और तु ने तो, खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। लेखक के कहने का तात्पर्य है कि कोई व्यक्ति स्वार्थवश ही किसी का अपमान सहन करता है, स्वार्थरहित ईंट का जवाब पत्थर से देता है।

इसी मजबुरी के कारण गिरधर अपने पुत्र को निर्दोष होते हुए भी पीटता था, क्योंकि विष के दाँत लगे हुए थे, इसे टूटते ही दुत्कार प्यार में बदल जाता है।

उत्तर – किसी गद्य का शीर्षक वह धूरी है जिसके चारों ओर कहानी घूमती है? शीर्षक के संबंध में यह शास्त्रीय विधान भी है कि शीर्षक लघु तथा सार्थक के होना चाहिए। इस दृष्टि से ‘विष के दाँत’ कहानी मध्यम वर्ग के अनेक अंतर्विरोधों को उजागर करती है। कहानी का जैसे ठोस सामाजिक संदर्भ है, वैसा ही इसका स्पष्ट मनोवैज्ञानिक आश्य भी है। यह कहानी सामाजिक भेदभाव, लिंगभेद आक्रमक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार दुलार के कुपरिणामों को उभारती हुई सामाजिक समान्तर और मानवाधिकार की महत्वपूर्ण बानगी पेश करती है। अतः इसका शीर्षक अपने आप में पूर्ण और सार्थक हैं।

उत्तर – सेन साहब धनी व्यक्ति थे। उनकी पाँच लड़कियां थी और एक मात्र लड़का था। उस परिवार में लड़का और लड़कियों के पालन पोषण में अंतर था। लड़कियों के लिए घर में अलग नियम थे। दूसरी तरह की शिक्षा थी लेकिन लड़के काशू के लिए अलग नियम और अलग शिक्षा थी। लड़कियों के लिए सामान्य शिक्षा की व्यवस्था थी। वही काशू के आरंभ से ही इंजीनियर के रूप में देखा जा रहा था। लड़कियां कठ–पुतलियों की तरह थी, उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। यही पूरी तरह से सिखाया गया था जबकि काशू के लिए इस तरह के कोई नियम नहीं थे। इस तरह से उस परिवार में लिंग आधारित भेदभाव था।

उत्तर – खोखा का जन्म तब हुआ जब लड़का होने की कोई भी उम्मीद सेन साहब को बाकी नहीं रह गई थी। इस तरह खोखा जन्म के संदर्भ में जीवन के नियम का अपवाद था। इसके साथ ही वह घर के नियमों का भी अभाव था क्योंकि उसका जन्म पाँच बहनों के बाद हुआ था। नियम केवल पाँच बहनों के लिए थी। काशू नियम से हटकर था।

उत्तर –सेन दंपति खोखा में अपने पिता की तरह इंजीनियर बनने की पूरी संभावना देखते थे। उन्होंने इसके शिक्षा के लिए भी व्यवस्था की थी। कारखाने से बड़ाई मिस्त्री घर पर आकर एक-दो घंटे खोखा के साथ कुछ ठोक–ठाक किया करता था। इससे खोखा की उंगलियां अभी से ही औजारों से वाकिफ हो जाएगी।

उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गई है जिसके रचनाकार नई शैली के आलोचक नलिन विलोचन शर्मा है।

यह संदर्भ उस समय का है जब सेन दंपति ने अपनी लड़कियों को अनुशासन का पाठ पढ़ा कर जीवन जीने की कला सिखाई है। जैसे खिलखिला कर नहीं हंसना, किसी के सामान को नहीं छूना आदि। जिस प्रकार की कठपुतलियां निर्देशों का पालन करती है, उसी प्रकार लड़कियां भी माता-पिता की आज्ञा मानती है। जहां लड़कियां अनुशासन में जी रही थी। वही खोखा का जीवन स्वतंत्र है। यहां लेखक यह कहना चाहता है कि लड़का लड़की में भेदभाव परिवार और समाज दोनों के लिए घातक है।

उत्तर –प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गई है जिसके रचनाकार नई शैली के आलोचक नलिन विलोचन शर्मा है।

यहां लेखक यह कहना चाहता है कि नकली जीवन जीते हुए सेन परिवार अपने बच्चों के प्रति भी दोहरा भाव रखते हैं। सेन साहब के अत्याधिक प्यार दुलार के कारण खोखा लापरवाह हो गया। उसके लिए सारे नीति नियम बदल दिए गए। इंजीनियर बनने का सपना देखने वाले सेन दंपति बेटे को किसी स्कूल में पढ़ाने के बदले बढ़ाई से शिक्षा दीक्षा दिलाते थे। इस प्रकार सेन दंपती ने अपने शरारती बेटे अनुसार ही शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी।

प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गई है जिसके रचनाकार नई शैली के आलोचक नलिन विलोचन शर्मा है।

यह संदर्भ उस समय का है जब सेन साहब मदन के पिता गिरधर को अपने बेटे के ऊपर अनुशासन रखने की शिक्षा देते हैं। अपने अनुशासन हीन बेटे के ऊपर सेन साहब की सीख नहीं चलती तो वे गिरधर के बेटे मदन को सीख देते हैं। मदन में उन्हें शरारत दिखाई देती है। चोर और डाकू आदि बनने के लक्षण दिखाई देते हैं किंतु अपने शरारती बेटे में इंजीनियर बनने का झूठा स्वप्न पाल रखे हैं।

प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गई है जिसके रचनाकार नई शैली के आलोचक नलिन विलोचन शर्मा है।

यह संदर्भ उस समय का है जब खोखा गाली में खेल रहे लड़कों के दल में शामिल होना चाहता है। यहां पर लेखक ने गली में खेलने वाले मदन जैसे लड़कों को कौवा और बड़े घर से संबंध रखने वाले खोखा को हंस रहा है। लट्टू खेल रहे लड़कों को देखकर खोखा का भी मन ललक गया और वह भी उस दल में शामिल हो गया। कौवे के दल में शामिल होने वाला हंस अपना नहीं अपने समाज का सामान खोता है। गरीब के दल में अमीर बाप के बेटे को शामिल होना निश्चित अमीर समाज के सामान को खोना है। (विष के दाँत)

उत्तर – एक दिन सेन साहब और उनके कुछ मित्र ड्रॉइंग रूम में बैठकर गपशप कर रहे थे। मित्रमंडली में एक पत्रकार महोदय भी थे और उनके साथ उनका लड़का भी था जो देखने में बड़ा समझदार और होनहार मालूम पड़ता था। किसी ने उसकी कोई हरकत देखकर उसकी कुछ तारीफ कर दी और पत्रकार से पूछ दिया कि बच्चा स्कूल तो जाता ही होगा? इसके पहले पत्रकार कुछ बोलते बीच में सेन साहब टपक गए और कहना शुरू किए। मैं तो अपने खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूं।

इस बात को बार-बार दोहराते रहे। पत्रकार से जब पुनः पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मेरा बेटा जेंटलमैन जरूर बने, और जो कुछ बने उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी। इस उत्तर को सुनकर सेन साहब ऐंठकर रहा गए।

उत्तर – मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार यह बताना चाहता है कि अपने पर किए गए अत्याचार का विरोध करना पाप नहीं है। मदन शोषण, अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध प्रज्ज्वलित प्रतिशोध का प्रतीक है। सेन साहब की नई चमकती काली गाड़ी को केवल छूने भर के अपवाद के लिए मदन ड्राइवर द्वारा घसीटा जाता है। यह गरीब बालक पर अत्याचार है। मदन द्वारा उसका मुकाबला करना अत्याचारों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास है। दमनकारी नीति को जड़ से उखाड़ने का प्रबल शक्ति का प्रदर्शन है।

उत्तर –मदन द्वारा गाड़ी छूने के बाद सेन परिवार के ड्राइवर ने उसे धक्का दिया था। उससे आहत होकर मदन ने ड्राइवर का प्रतिकार कर दिया था। इस प्रतिकार की सजा को भी नसीहत के रूप में दे दी गई। मदन का कुंठित मन एक दिन काशू के ऊपर उग्र हो गया। लट्टू खेलने के नाम पर दोनों एक-दूसरे से उलझ गए। इस झगड़े में एक काशू के दो दाँत रह गए। परिणाम स्वरुप मदन के पिता को नौकरी से निकाल दिया गया। यहां पर लेखक में अमीरी गरीबी के बीच पनपती घृणा को दिखाया है। (विष के दाँत)(विष के दाँत)

उत्तर – महल और झोपड़ी वालों की लड़ाई में अक्सर महल वाले ही जीतते हैं। इसका कारण आपसी भेद है। झोपड़ी वाले स्वार्थ की पूर्ति के लिए महल वालों का साथ देते हैं। यदि झोपड़ी वाले अपनी मानसिकता बदलने और समरूप हो जाए तो महल की नींव तक हिल सकती है। इसका एक उदाहरण विष के दाँत कहानी में है।

शोख मिजाज वाला काशू मदन से उलझ जाता है। इस लड़ाई में मदन के साथी भी मदन के साथ है नहीं देते हैं। उन्हें इस बात का डर है कि मदन के साथ देने का मतलब सेन परिवार से दुश्मनी मोल लेना है। काशू और मदन की लड़ाई में काशू का दाँत टूट जाता है और इसका परिणाम मदन के पिता को भुगतना पड़ता है।

उत्तर– सेन साहब के सामने गिरधर अपने आप को तुच्छ समझता है। उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि वह अपने मालिक के सामने कुछ बोल पाए। अपनी नौकरी बचाने के लिए वह अपने पुत्र को ही दंड देता है। वह हमेशा यह कोशिश करता है कि उसके द्वारा कोई ऐसा काम ना हो जाए जिससे सेन साहब से शिकायत सुननी पड़े।

एक दिन उसी का बेटा मदन सेन साहब के बेटे का दाँत तोड़ देता है। इससे गिरधर प्रसन्न हो जाता है। नौकरी चले जाने के बाद भी वह अपने आप को गौरवशाली समझता है। उसकी मूल वजह ऐसी है कि आज उसके बेटे ने ही उसे अन्याय के प्रतिकार करने का पाठ पढ़ा दिया है इसलिए गिरधर अपने बेटे मदन को दंडित करने के बजाय उसे अपनी छाती से लगा लेता है।

उत्तर – सेन साहब – ये मध्यम में वर्गीय सफेद पोश सामंत के प्रतिक हैं। झुठी शान में वह बनावटी जीवन जीते हैं। इनकी दोहरी मानसिकता है। यह लडकों के स्वतंत्रता के घर है।

मदन – यह सेन साहब के कलर्क गिरधर लाल का बेटा है यह साहस का प्रतिमूर्ति और अन्यान का विरोधी है। इसकी छवी का नायक है

काशू – यह सेन साहब का एकलौता बेटा है जो अपने माता-पिता का स्नेह पाकर जिद्दी और घामंडी हो गया है। घर के समानों को नष्ट करना और आय दिन बेवजह किसी से झगड़ा मोल लेना इसकी मानसिकता है।

गिरधर – यह सेन साहब का कर्मचारी है जो ईमानदार, आज्ञाकारी और डरपोक है। यह जी हुजूर में विश्वास करता है। इसमें अन्याय का विरोध करने की क्षमता नहीं है। नौकरी न जाए इस डर से यह अपने निर्दोष बेटे को दंडित करता है। यह लाचारी का प्रतिक है।

उत्तर – मेरे दृष्टि में कहानी का नायक गिरधर का बेटा मदन है। नायक के संबंध में पुरानी कसौटी अब बदल चुकी है। पहले यह धारणा थी की नायक वही व्यक्ति हो सकता है जो सुसंस्कृत, सुशिक्षित, युवा और ललित कला प्रेमी हो। लेकिन अभी नायक के संबंध में मान्यताएं बदल चुकी हैं। कोई भी पत्र नायक पद का अधिकारी है। यदी वह घटनाओं का संचालक है और सरे पत्रों में उसका व्यक्तित्व सबसे महत्वपूर्ण हो। इस दृष्टि से जब हम “विष के दंत” कहानी पर नजर डलते हैं, तो हम पाते हैं की मदन का चरित्र सभी पत्रों में अधिक प्रभावशाली है।

उत्तर – कहानी के मध्यम से कहानीकर नलिन विलोचन शर्मा ने अमीरों की प्रदर्शन प्रियता पर व्यंग किया है। कहानी के आरंभ में लेखक ने व्यंग को यथा तथ्य स्थान दिया है जैसे बंगले के सामने गाड़ी चमचामती नई कार, नई कार साढ़े सात हजार में आयी है। लड़कियां कठपुतलियां हैं। होठों पर ऐसी मुस्कुराहट की सोसायटी की तरिकाएं भी कुछ सिखाना चाहे आदि।

उत्तर – ‘विष के दाँत’ नलिन वीलोचन शर्मा द्वारा रचित एक मनोवैज्ञानिक कहानी है।

कहानी का आरंभ सेन साहब के बंगले से होता है। उनका बंगला तो बड़ा है मगर उनका मन ही बहुत छोटा है। सेन साहब के परिवार में पाँच लड़कियां और इकलौटा पुत्र काशू है। सेन साहब के परिवार में दो नियम काम करते हैं। एक तरफ जहाँ उन्होंने अपने लड़कियों को सभ्यता और संस्कृति के पाठ पढ़ाया है, वहीं कासू के लिए इस प्रकार के कोई नियम नहीं बने हैं।

अत्यधिक प्रेम दुलार में पला काशू, शरारती और उदंड हो गया है। वह गिरधर के बेटे मदन से भी उलझ जता है। उस झगड़े में कासू के दो दाँत टूट जाते हैं और गिरधर को नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। नौकरी के जाने से भी वह दुखी नहीं होता। क्योंकी मदन ने उसे अन्याय का प्रतिकार करने का पाठ जो पढ़ा दिया है।

इस प्रकार से यह कहानी, सामाजिक भेदभाव, लिंग भेद, आक्रमक, स्वार्थ की छाया में पलते हुऎ, प्यार, दुलार के कुपरिणामों को उभारती हुई सामाजिक समानता और मानव अधिकार की महत्वपूर्ण बंगी पेश करती है।

1 thought on “विष के दाँत ( कहानी )|Chapter 2 |Vish Ke Dant Kahani”

Leave a comment