भूमिका
योग भारतीय संस्कृति और दर्शन का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग प्रदान करता है। महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में योग को आठ अंगों (अष्टांग योग) में विभाजित किया है। इन आठ अंगों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है:
- बहिरंग साधन (बाहरी साधन) – यम, नियम, आसन, प्राणायाम।
- अंतरंग साधन (आंतरिक साधन) – प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि।
इस निबंध में हम योग के बहिरंग साधनों पर विस्तृत चर्चा करेंगे, जो योग साधना की नींव रखते हैं और व्यक्ति को आंतरिक उन्नति की ओर अग्रसर करते हैं।
बहिरंग साधनों का परिचय
पतंजलि के अनुसार, योग की साधना बाहरी और भीतरी रूप से शुद्धता और अनुशासन की मांग करती है। यम, नियम, आसन और प्राणायाम को बहिरंग साधन कहा जाता है, क्योंकि ये बाहरी रूप से अभ्यास किए जाते हैं और साधक को आंतरिक साधनों के लिए तैयार करते हैं।
1. यम (नियंत्रण और नैतिकता के सिद्धांत)
“अहिंसा सत्यास्तेय ब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः” (योगसूत्र 2.30)
यम का अर्थ है ‘नियंत्रण’ या ‘संयम’। यह पांच नैतिक सिद्धांतों का समूह है, जो व्यक्ति को समाज में सद्गुणों का पालन करने और आत्मसंयम रखने के लिए प्रेरित करता है। ये निम्नलिखित हैं:
(i) अहिंसा (Non-violence)
- किसी भी प्राणी को शारीरिक, मानसिक या वाणी के माध्यम से हानि न पहुँचाना।
- दया, करुणा और प्रेम का पालन करना।
(ii) सत्य (Truthfulness)
- सत्य का पालन करना और किसी भी परिस्थिति में झूठ से बचना।
- सत्य का उपयोग दूसरों को चोट पहुँचाने के लिए न करना।
(iii) अस्तेय (Non-stealing)
- चोरी न करना, किसी भी वस्तु को गलत तरीके से न लेना।
- मानसिक रूप से भी ईर्ष्या या लालच न रखना।
(iv) ब्रह्मचर्य (Celibacy or Self-restraint)
- इंद्रियों और इच्छाओं पर नियंत्रण रखना।
- आत्म-संयम द्वारा ऊर्जा का संचय करना।
(v) अपरिग्रह (Non-possessiveness)
- अनावश्यक चीजों का संग्रह न करना।
- भौतिक सुख-सुविधाओं के प्रति मोह न रखना।
यम का पालन करने से व्यक्ति बाहरी रूप से अनुशासित और नैतिक रूप से दृढ़ बनता है।
2. नियम (आत्म-अनुशासन और आंतरिक शुद्धता के सिद्धांत)
“शौचसंतोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः” (योगसूत्र 2.32)
नियम का अर्थ है ‘आत्म-अनुशासन’। ये ऐसे सिद्धांत हैं, जो व्यक्ति को आत्म-शुद्धि और आंतरिक विकास में सहायक होते हैं।
(i) शौच (Purity)
- बाहरी और आंतरिक शुद्धता बनाए रखना।
- मन को नकारात्मक विचारों से मुक्त रखना।
(ii) संतोष (Contentment)
- संतोषी और सुखी रहने का अभ्यास करना।
- जीवन की परिस्थितियों को स्वीकार करना और उसमें संतुलन बनाए रखना।
(iii) तप (Discipline & Austerity)
- अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करना।
- इच्छाओं पर नियंत्रण और आत्मसंयम का पालन करना।
(iv) स्वाध्याय (Self-study & Study of Scriptures)
- आत्मचिंतन और अध्ययन द्वारा स्वयं को जागरूक बनाना।
- शास्त्रों और ग्रंथों का अध्ययन कर ज्ञान प्राप्त करना।
(v) ईश्वर प्राणिधान (Surrender to God)
- अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करना।
- भक्ति, ध्यान और विश्वास बनाए रखना।
नियम का पालन करने से व्यक्ति अपने भीतर सकारात्मकता, अनुशासन और आत्म-जागरूकता विकसित कर सकता है।
3. आसन (शारीरिक स्थिरता और स्वास्थ्य का अभ्यास)
“स्थिरसुखमासनम्” (योगसूत्र 2.46)
आसन का अर्थ है – ‘शरीर को एक स्थिर और आरामदायक स्थिति में रखना’। यह योग का भौतिक पहलू है, जो शरीर को स्वस्थ और ध्यान के लिए तैयार करता है।
आसन के लाभ
- शरीर को लचीला और मजबूत बनाता है।
- रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
- रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियों को सशक्त करता है।
- मानसिक शांति और ध्यान के लिए आवश्यक स्थिरता प्रदान करता है।
कुछ प्रमुख आसन:
- पद्मासन (Lotus Pose) – ध्यान के लिए उपयुक्त।
- शवासन (Corpse Pose) – तनाव को कम करने के लिए।
- भुजंगासन (Cobra Pose) – रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए।
पतंजलि के अनुसार, जब शरीर में स्थिरता आ जाती है, तब साधक ध्यान और प्राणायाम की ओर आगे बढ़ सकता है।
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण और ऊर्जा संतुलन)
“तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोः गतिविच्छेदः प्राणायामः” (योगसूत्र 2.49)
प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है – प्राण (जीवन ऊर्जा) और आयाम (नियंत्रण)। इसका अर्थ है ‘श्वास-प्रश्वास को नियंत्रित करना’, जिससे शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्राणायाम के लाभ
- फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ाता है।
- मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन प्रदान करता है।
- तनाव और चिंता को कम करता है।
- मानसिक स्थिरता और ऊर्जा संतुलन बनाए रखता है।
प्रमुख प्राणायाम तकनीकें
- नाड़ी शोधन प्राणायाम (Alternate Nostril Breathing) – मन को शुद्ध करता है।
- भस्त्रिका प्राणायाम (Bellow’s Breath) – ऊर्जा को बढ़ाता है।
- कपालभाति प्राणायाम (Skull Shining Breath) – शरीर को डिटॉक्स करता है।
- भ्रामरी प्राणायाम (Humming Bee Breath) – तनाव और चिंता को दूर करता है।
पतंजलि ने प्राणायाम को ध्यान और समाधि के लिए आवश्यक बताया है, क्योंकि यह मन को स्थिर करता है और ध्यान की उच्च अवस्थाओं के लिए तैयार करता है।
निष्कर्ष
योग के बहिरंग साधन व्यक्ति के बाहरी और आंतरिक जीवन को संतुलित करने में सहायक होते हैं। यम और नियम से व्यक्ति नैतिक और अनुशासित बनता है, आसन से शरीर स्वस्थ होता है, और प्राणायाम से मानसिक ऊर्जा संतुलित होती है। ये सभी साधन व्यक्ति को आंतरिक योग साधना—प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि—की ओर अग्रसर करते हैं।
इस प्रकार, बहिरंग साधन न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धता प्रदान करते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। यदि इनका सही तरीके से अभ्यास किया जाए, तो व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सकता है।