भूमिका
योग भारतीय दर्शन और आध्यात्मिक साधना का एक महत्वपूर्ण अंग है। महर्षि पतंजलि ने योग को अष्टांग योग के माध्यम से विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए विभिन्न साधन बताए गए हैं। योग के अभ्यास का मुख्य उद्देश्य चित्त (मन) को नियंत्रित करना और आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना है।
पतंजलि के अनुसार, मन की प्रवृत्तियाँ यानी चित्त की गतिविधियाँ वृत्तियाँ कहलाती हैं। इन वृत्तियों को नियंत्रित किए बिना सच्चे योग की अनुभूति संभव नहीं है। पतंजलि ने अपने योगसूत्र (1.2) में कहा है:
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः”
(अर्थ: योग चित्त की वृत्तियों के निरोध (नियंत्रण) का नाम है।)
इस सूत्र में स्पष्ट किया गया है कि योग का मूल उद्देश्य चित्त की वृत्तियों को शांत और नियंत्रित करना है। चित्त की पाँच वृत्तियाँ होती हैं, जो हमारे विचारों, भावनाओं और मानसिक दशा को प्रभावित करती हैं। इस निबंध में हम इन पाँच चित्त वृत्तियों के स्वरूप पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे।
चित्त वृत्ति का अर्थ
चित्त का अर्थ है – मन, बुद्धि और अहंकार का समन्वय। यह हमारे संचित संस्कारों, विचारों और भावनाओं का केंद्र होता है।
वृत्ति का अर्थ है – मन की वह स्थिति या गतिविधि, जो किसी विचार, भावना या अनुभव के रूप में प्रकट होती है।
पतंजलि के अनुसार, जब चित्त वृत्तियों को नियंत्रित किया जाता है, तब व्यक्ति सच्चे आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
चित्त की पाँच वृत्तियाँ और उनका स्वरूप
पतंजलि ने योगसूत्र (1.6) में कहा है:
“प्रमाण विपर्यय विकल्प निद्रा स्मृतयः”
(अर्थ: चित्त की पाँच वृत्तियाँ होती हैं – प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति।)
1. प्रमाण (सत्य ज्ञान या सही ज्ञान)
प्रमाण का अर्थ है – वास्तविकता को जानने का सही तरीका। यह वह वृत्ति है, जिसके माध्यम से हम सत्य और असत्य का ज्ञान प्राप्त करते हैं। प्रमाण के तीन मुख्य स्रोत होते हैं:
(i) प्रत्यक्ष (Direct Perception)
- जो ज्ञान हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप में प्राप्त करते हैं।
- उदाहरण: आँखों से देखना, कानों से सुनना, त्वचा से स्पर्श करना आदि।
(ii) अनुमान (Inference)
- किसी बात के संकेतों के आधार पर निष्कर्ष निकालना।
- उदाहरण: यदि हम धुआँ देखते हैं, तो हम अनुमान लगाते हैं कि वहाँ आग है।
(iii) आगम (शास्त्रों और गुरुओं का प्रमाण)
- किसी प्रमाणिक स्रोत जैसे शास्त्रों, गुरुओं या अनुभवी व्यक्तियों से प्राप्त ज्ञान।
- उदाहरण: योग और वेदांत ग्रंथों में दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान को स्वीकार करना।
महत्व: प्रमाण वृत्ति व्यक्ति को सही और गलत का भेद समझने में मदद करती है और ज्ञान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।
2. विपर्यय (असत्य ज्ञान या गलत धारणा)
विपर्यय का अर्थ है – असत्य को सत्य मान लेना। जब मन किसी वस्तु, व्यक्ति या घटना के बारे में गलत निष्कर्ष निकालता है, तो यह विपर्यय वृत्ति कहलाती है।
उदाहरण:
- पानी में पड़ी रस्सी को साँप समझ लेना।
- अंधेरे में कोई आकृति देखकर डर जाना, जबकि वह कोई हानिकारक वस्तु न हो।
- किसी व्यक्ति के प्रति गलत धारणा बना लेना, जो वास्तविकता से भिन्न हो।
महत्व:
- विपर्यय वृत्ति भ्रम और अज्ञान का कारण बनती है।
- योग के अभ्यास से व्यक्ति विपर्यय वृत्ति को नियंत्रित कर सकता है और वास्तविकता को स्पष्ट रूप से देख सकता है।
3. विकल्प (काल्पनिक या भ्रमित करने वाला विचार)
विकल्प का अर्थ है – ऐसे विचार, जो किसी ठोस वास्तविकता पर आधारित न हों, लेकिन मन में मौजूद हों।
उदाहरण:
- आकाश में गंधर्व नगर (कल्पना का शहर) देखना।
- किसी चीज़ के बारे में बिना ठोस आधार के मान्यता बना लेना।
- काल्पनिक भय, जैसे – कोई अदृश्य शक्ति हमें नुकसान पहुँचा सकती है।
महत्व:
- विकल्प वृत्ति से व्यक्ति अक्सर भ्रमित हो जाता है और वास्तविकता से दूर चला जाता है।
- ध्यान और साधना के द्वारा व्यक्ति अपने मन को विकल्पों से मुक्त कर सकता है और वास्तविकता को समझ सकता है।
4. निद्रा (गहरी नींद की अवस्था)
निद्रा का अर्थ है – ऐसी मानसिक अवस्था, जिसमें किसी प्रकार का बाहरी ज्ञान या अनुभूति नहीं होती।
प्रकार:
- सुसुप्ति (गहरी निद्रा) – जब व्यक्ति गहरी नींद में होता है और उसे कुछ भी महसूस नहीं होता।
- स्वप्नावस्था (सपनों की अवस्था) – जब मन विभिन्न प्रकार के सपने देखता है।
महत्व:
- निद्रा आवश्यक है, क्योंकि यह शरीर और मन को विश्राम प्रदान करती है।
- लेकिन अत्यधिक निद्रा या आलस्य योग साधना में बाधा डाल सकता है।
- योग nidra (योग निद्रा) तकनीक के माध्यम से व्यक्ति गहरी विश्रांति पा सकता है और जागरूक रह सकता है।
5. स्मृति (स्मरण शक्ति या याददाश्त)
स्मृति का अर्थ है – पुराने अनुभवों और घटनाओं को याद रखना। यह चित्त की वह वृत्ति है, जिसमें बीते हुए अनुभव मन में संचित रहते हैं।
प्रकार:
- सकारात्मक स्मृति: जो व्यक्ति को ज्ञान, अनुभव और आत्मविकास में सहायक होती है।
- नकारात्मक स्मृति: जो व्यक्ति को दुखद अनुभवों से जोड़कर रखती है और मानसिक शांति को प्रभावित करती है।
महत्व:
- अच्छी स्मृति व्यक्ति को सही निर्णय लेने में सहायक होती है।
- नकारात्मक स्मृतियाँ (बुरी यादें) मानसिक तनाव और अवसाद का कारण बन सकती हैं।
- योग और ध्यान के अभ्यास से व्यक्ति अपनी स्मृति को शुद्ध कर सकता है और सकारात्मक सोच विकसित कर सकता है।
चित्त वृत्तियों के नियंत्रण का महत्व
पतंजलि के अनुसार, यदि चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित नहीं किया जाता, तो वे व्यक्ति को सांसारिक भ्रम में उलझाए रखती हैं। योग साधना का मुख्य उद्देश्य इन वृत्तियों को शांत और संयमित करना है।
चित्त वृत्तियों को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित साधन उपयोगी होते हैं:
- अभ्यास (Practice) – नियमित ध्यान, योग और शारीरिक अनुशासन।
- वैराग्य (Detachment) – सांसारिक सुखों और मोह-माया से दूरी बनाना।
- ध्यान (Meditation) – मन को केंद्रित करना और आत्मचिंतन करना।
निष्कर्ष
चित्त की पाँच वृत्तियाँ – प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति – हमारे मानसिक और आध्यात्मिक जीवन को प्रभावित करती हैं। यदि इनका सही दिशा में उपयोग किया जाए, तो व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर सकता है। योग का अभ्यास इन वृत्तियों को संतुलित करने और मन को शुद्ध करने का सबसे प्रभावी तरीका है। जब चित्त शांत और स्थिर हो जाता है, तभी व्यक्ति सच्चे आनंद और मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकता है।