Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me; जय हिन्द। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड क्लास 12वीं हिन्दी किताब दिगंत भाग – 2 के पद्य खण्ड के अध्याय 6 ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ के व्याख्या को पढ़ेंगे। यह कविता जयशंकर प्रसाद की रचना ‘कामायनी से लिया गया है’ Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ

तुमुल कोलाहल कलह में कविता (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me)
कवि परिचय
कवि के नाम — जयशंकर प्रसाद
- जन्म : 1889 (माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946)1
- निधन : 15 नवंबर 1937 में। :
- जन्म-स्थान : वाराणसी ।
- पिता : देवी प्रसाद साहु ।
- पितामह : शिवरत्न साहु [ सुरती (तंबाकू) बनाने के कारण ‘सुंघनी साहु’ के नाम से विख्यात ।
- शिक्षा : आठवीं तक । संस्कृत, हिंदी, फारसी, उर्दू की शिक्षा घर पर नियुक्त शिक्षकों द्वारा ।
- विशेष परिस्थिति : बारह वर्ष की अवस्था में पितृविहीन, दो वर्ष बाद माता की भी मृत्यु।
- परिवार में गृहकलह की स्थिति । ज्येष्ठ भ्राता शंभु रतन की मृत्यु से संकट की स्थिति उत्पन्न सभी उत्तरदायित्व प्रसाद जी के कंधों पर ।
- रचनाएँ : कलाधर उपनाम से ब्रजभाषा में सवैयों की रचना,
- उनकी की प्रेरणा से उनके भांजे अंबिका प्रसाद ने इंदु का प्रकाशन 1909 से प्रारंभ किया,
- कालक्रम के अनुसार चित्राधार प्रथम संग्रह, जिसमें कविता, कहानी, नाटक आदि रचनाएँ संकलित ।
- काव्य संकलन:
- झरना (1918),
- आँसू (1925),
- लहर (1933),
- अतुकांत रचनाएँ :
- महाराणा का महत्त्व,
- करुणालय,
- प्रेम पथिक ।
- प्रबंध काव्य :
- कामायनी (1936)
- नाटक :
- कल्याणी परिणय (1912),
- प्रायश्चित (1914),
- राज्यश्री (1915),
- विशाख (1929),
- कामना (1927),
- जन्मेजय का नागयज्ञ (1926),
- स्कंदगुप्त (1926),
- एक घूंट (1928),
- चंद्रगुप्त (1931),
- ध्रुवस्वामिनी (1933) ।
- कथा संग्रह :
- छाया (1912),
- प्रतिध्वनि (1931),
- इंद्रजाल (1936)।
- उपन्यास:
- कंकाल (1929),
- तितली (1934),
- इरावती (अपूर्ण, 1940) ।
- यह एक छायावाद के कवि हैं।
- यह कविता उनकी महान और श्रेष्ठ काव्य ‘कामायनी’ से ली गई है।
- कामायनी कुल 15 सर्ग हैं।
- यह कविता ‘कामायनी’ के ‘निर्वेद सर्ग’ से उद्धृत है।
- पात्र : मनु = मनुष्य का मन, श्रद्धा = मनुष्य की हृदय, इड़ा = मनुष्य की बुद्धि
Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me Chapter 6
कामायनी
मनु यज्ञ करते हैं। उसके बाद मनु की श्रद्धा से शादी होती है। मनु कृषि कार्य और गोपालन करते है। श्रद्धा माँ बनने वाली होती है। श्रद्धा को एक बेटा होता है। बेटा के जन्म के बाद अधिकतर समय वह अपने बेटे को देने के कारण मनु को समय नहीं दे पाती है। मनु को लगता है कि श्रद्धा हमसे अब प्यार नहीं करती है। जिससे मनु श्रद्धा को छोड़ कर चले जाते हैं। मन की इड़ा से मुलाक़ात होती है और मन इड़ा से प्यार करने लगते है। मनु जब इड़ा से ज़ोर-जबरदस्ती करते है तो इड़ा के राज्य की प्रजा इसका विरोध करती है और मनु को पीटकर घायल कर देती है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me) (तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
श्रद्धा मन को खोजते हुए इड़ा के राजमहल में अपने बच्चे मानव के साथ निर्वेद सर्ग पहुँचती है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me) (तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
श्रद्धा मनु को प्राप्त करके आनंद-विभोर हो जाती है और गाती है। मनु को लगता है कि उन्होंने दोनों के साथ गलत किया है और वो श्रद्धा और इड़ा को छोड़कर दूसरे जगह चले जाते हैं। श्रद्धा अपने पुत्र को इड़ा के पास छोड़कर मनु को खोजने जाती है और अंतत : दोनों मिलते है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me) (तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
तुमुल कोलाहल कलह में कविता का अर्थ(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me)
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन !
भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता महाकाव्य ‘कामायनी’ के ‘निर्वेद सर्ग’ से ली गई है। जिसके रचनाकार छायावाद के आधारस्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद जी है। इसमें श्रद्धा मनु को पाकर कहती है कि इस अत्यंत कोलाहल में मैं हृदय के बात की तरह हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि इस तूफानी कोलाहल पूर्ण वातावरण में मैं हृदय का सच्चा मार्गदर्शक हूँ।
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ)
विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल;
चेतना थक सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन !
भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता महाकाव्य ‘कामायनी’ के ‘निर्वेद सर्ग’ से ली गई है। जिसके रचनाकार छायावाद के आधारस्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद जी है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है।
पुरुष जब दिनभर की भाग-दौर और मन की चंचलता के कारण थक जाता है और व्याकुल होकर आराम करना चाहता है तो ऐसी स्थिति में श्रद्धा (नारी का हृदय) मलय पर्वत से चलने वाली सुगंधित हवा की तरह शांति और विश्राम देती है। कवि कहना चाहते हैं कि मन चंचल है और मन की चंचलता के कारण शरीर थक कर आराम खोजता है ऐसी स्थिति में व्यक्ति का हृदय ही उसको आराम देता है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ)
चिर-विषाद विलीन मन की
इस व्यथा के तिमिर वन की;
मैं उषा सी ज्योति रेखा,
कुसुम विकसित प्रात रे मन !
भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता महाकाव्य ‘कामायनी’ के ‘निर्वेद सर्ग’ से ली गई है। जिसके रचनाकार छायावाद के आधारस्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद जी है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है।
कि लंबे समय से मन मे जो दुख-दर्द है, मन की जो व्यथा है। एक अंधकार वन की तरह है। रे मन, मैं उस अंधकार रूपी कोहरे में सुबह की एक किरण, एक ज्योत रेखा की तरह हूँ। जो पूरे वन में पुष्प (फूल) को खिला देती है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ)
जहाँ मरु ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती;
उन्हीं जीवन घाटियों की,
मैं सरस बरसात रे मन !
भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता महाकाव्य ‘कामायनी’ के ‘निर्वेद सर्ग’ से ली गई है। जिसके रचनाकार छायावाद के आधारस्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद जी है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है।
कि मरूभूमि जो ज्वाला की तरह धधकती है, जहाँ चातकी पानी की एक बूंद के लिए तरसती है। मैं उस मरूभूमि मे उन घाटियों को जीवन देने वाली, मैं सरस बरसात हूँ मन । (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जा रहा झुक;
इस झुलसते विश्व-वन की,
मैं कुसुम ऋतु रात रे मन !
भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता महाकाव्य ‘कामायनी’ के ‘निर्वेद सर्ग’ से ली गई है। जिसके रचनाकार छायावाद के आधारस्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद जी है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है।
कि पवन जब ऊंची चारदीवारी के में बंद होकर रुक जाता है। जलकर, झुलस कर जब मनुष्य जीवन अपने परिस्थितियों के आगे झुक जाता है। रे मन मैं इस झूलसते विश्व में, इस निराशा रूपी वन में एक वसंत ऋतु की रात तरह हूँ। जिसमें उम्मीद में फूल खिलते हैं। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
चिर निराशा नीरधर से,
प्रतिच्छायित अश्रु सर में;
मधुप मुखर मरंद मुकुलित,
मैं सजल जलजात रे मन !
भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता महाकाव्य ‘कामायनी’ के ‘निर्वेद सर्ग’ से ली गई है। जिसके रचनाकार छायावाद के आधारस्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद जी है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हई कहती है।
कि लंबे निराशा के जो घने बादल छाया हुए है। उससे जो पानी बरसते हैं, वह आंसू रूपी तालाब की तरह है। रे मन मैं उस आंसू रूपी तालाब मे कोमल कमल की सुगंधित कलियों की तरह हूँ जिस पर भौंरे मंडराते है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
Tumul Kolahal Kalah Me ka Saransh | तुमुल कोलाहल कलह में का सारांश
सारांश
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता “तुमुल कोलाहल कलह में” महाकाव्य “कामायनी” का अंश है। इसमें जो नायक और नायिका है। वह हमारी भावनाओं और को दिखाती हैं। मनु मन को, श्रद्धा ह्रदय को और इड़ा हमारे बुद्धि को दिखाते हैं। इस कविता में श्रद्धा कहती हैं की, इस सारे शोरगुल में, मैं हृदय की बात हूँ मन। जब हम थक जाते है और हमे नींद आती है। मैं वही शांति हूँ मन। रे मन, मैं अंधकार रूपी कोहरे में सुबह की एक किरण, एक ज्योत रेखा की तरह हूँ। अर्थात आशा कि किरण की तरह हूँ। रे मन, मैं वह सरस बरसात हूँ, जिसके लिए मरुस्थल की भूमि पर चातकी पानी कि एक बूंद के लिए तरसती है। पूरा विश्व निराशा के बादल में गिरा हुआ है। मैं उस निराशा में आशा कि उस फूल की तरह हूँ जो सब के जीवन को सुगंधित करती है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
तुमुल कोलाहल कलह में कविता ka question answer
tumul kolahal kalah me question answer
प्रश्न 1. ‘हृदय की बात’ का क्या कार्य है?
उत्तर-
इस कोलाहलपूर्ण वातावरण में श्रद्धा, जो वस्तुतः कामायनी है, अपने हृदय का सच्चा मार्गदर्शक बनती है। कवि का हृदय कोलाहलपूर्ण वातावरण में जब थककर चंचल चेतनाशून्य अवस्था में पहुँचकर नींद की आगोश में समाना चाहती है, ऐसे विषादपूर्ण समय में श्रद्धा चंदन के सुगंध से सुवासित हवा बनकर चंचल मन को सांत्वना प्रदान करती है। इस प्रकार कवि को अवसाद एवं अशान्तिपूर्ण वातावरण में भी उज्ज्वल भविष्य सहज ही दृष्टिगोचर होता है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 2. कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है?
उत्तर-
छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में उषाकाल की एक महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है। उषाकाल अंधकार का नाश करता है। उषाकाल के पूर्व सम्पूर्ण विश्व अंधकार में डूबा रहता है। उषाकाल होते हुए सूर्य की रोशनी अंधकाररूपी जगत में आने लगती है। सारा विश्व प्रकाशमय हो जाता है। सभी जीव–जन्तु अपनी गतिविधियाँ प्रारम्भ कर देते हैं। जगत् में एक आशा एवं विश्वास का वातावरण प्रस्तुत हो जाता है। उषा की भूमिका का वर्णन कवि ने अपनी कविता में की है। (Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 3. चातकी किसके लिए तरसती है?
उत्तर-
चातकी एक पक्षी है जो स्वाति की बूंद के लिए तरसती है। चातकी केवल स्वाति का जल ग्रहण करती है। वह सालोंभर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती रहती है और जब स्वाति का बूंद आकाश से गिरता है तभी वह जल ग्रहण करती है। इस कविता में यह उदाहरण सांकेतिक है। दु:खी व्यक्ति सुख प्राप्ति को आशा में चातकी के समान उम्मीद बाँधे रहते हैं। कवि के अनुसार एक–न–एक दिन उनके दुःखों का अंत होता है।
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 4. बरसात की ‘सरस’ कहने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर–
बरसात जलों का राजा होता है। बरसात में चारों तरफ जल ही जल दिखाई देते हैं। पेड़–पौधे हरे–भरे हो जाते हैं। लोग बरसात में आनन्द एवं सुख का अनुभव करते हैं। उनका जीवन सरस हो जाता है अर्थात् जीवन में खुशियाँ आ जाती हैं। खेतों में फसल लहराने लगते हैं। किसानों के लिए समय तो और भी खुशियाँ लानेवाला होता है। इसलिए कवि जयशंकर प्रसाद ने बरसात को सरस कहा है।
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 5. काव्य–सौन्दर्य स्पष्ट करें
पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जा रहा झुक,
इस झुलसते विश्व–वन की,
मैं कुसुम ऋतु राज रे मन !
उत्तर-
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित यह पद्यांश छायावादी शैली का सबसे सुन्दर आत्मगान है। इसकी भाषा उच्च स्तर की है। इसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। यह गद्यांश सरल भाषा में न होकर सांकेतिक भाषा में प्रयुक्त है। प्रकृति का रोचक वर्णन इस पद्यांश में किया गया है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है। जैसे–विश्व–वन (वनरूपी विश्व)। इसमें अनुप्रास अलंकार का भी प्रयोग हुआ है। अनुप्रास अलंकार के कारण पद्यांश में अद्भुत सौन्दर्य आ गया है।
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 6. “सजल जलजात” का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘सजल जलजात’ का अर्थ जल भरे (रस भरे) कमल से है। मानव–जीवन आँसुओं का सराबोर है। उसमें पुरातन निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस चातकी सरोवर में आशा एक ऐसा जल से पूर्ण कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं और जो मकरंद (मधु) से परिपूर्ण है।
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 7. कविता का केन्द्रीय भाव क्या है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन रहस्य को सरल और सांकेतिक भाषा में सहज ही अभिव्यक्त किया है।
कवि कहना चाहता है कि र मन, इस तूफानी रणक्षेत्र जैसे कालाहलपूर्ण जीवन में मैं हृदय की आवाज के समान हूँ। कवि के अनुसार भीषण कोलाहल कलह विज्ञान है तथा शान्त हृदय के भीतर छिपी हुई निजी बात आशा है।
कवि कहता है कि जब नित्य चंचल रहनेवाली चेतना (जीवन क कार्य–व्यापार से) विकल होकर नींद के पल खोजती है और थककर अचेतन–सी होने लगती है, उस समय में नींद के लिए विकल शरीर को मादक और स्पर्शी सुख मलयानिल के मंद झोंके के रूप में आनन्द के रस की बरसात करता हूँ।
कवि के अनुसार जब मन चिर–विषाद में विलीन है, व्यथा का अन्धकार घना बना हुआ है, तब मैं उसके लिए उषा–सी ज्योति रेखा हूँ, पुष्पं के समान खिला हुआ प्रात:काल हूँ अर्थात् कवि का दुःख में भी सुख की अरुण किरणें फूटती दिख पड़ती हैं।
कवि के अनुसार जीवन मरुभूमि की धधकती ज्वाला के समान है जहाँ चातकी जल के कण प्राप्ति हेतु तरसती है। इस दुर्गम, विषम और ज्वालामय जीवन में भी (श्रद्धा) मरुस्थल की वर्षा के समान परम सुख का स्वाद चखानेवाली हूँ। अर्थात् आशा की प्राप्ति से जीव में मधु–रस की वर्षा होने लगती है।
कवि को अभागा मानव–जीवन पवन की परिधि में सिर झुकाये हुए रूका हुआ–सा प्रतीत होता है। इस प्रकार जिनका सम्पूर्ण जीवन–झुलस रहा हो ऐसे दुःख दग्ध लोगों को आशा वसन्त
की रात के समान जीवन को सरस बनाकर फूल–सा खिला देती है।
कवि अनुभव करता है कि जीवन आँसुओं का सरोवर है, उसमें निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस हाहाकारी सरोवर में आशा ऐसा सजल कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं जो मकरन्द से परिपूर्ण है। आशा एक ऐसा चमत्कार है जिससे स्वप्न भी सत्य हो जाता है।
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 8. कविता में विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है, वह किस कारण से है? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिए।
उत्तर-
प्रसाद लिखित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के द्वितीय पद में ‘विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है। कवि के अनुसार संसार की वर्तमान स्थिति कोलाहलपूर्ण है। कवि संसार की वर्तमान कोलाहलपूर्ण स्थिति से क्षुब्ध है। इससे मनुष्य का मन चिर–विषाद में विलीन हो जाता है। मन में घुटन महसूस होने लगती है। कवि अंधकाररूपी वन में व्यथा (दु:ख) का अनुभव करता है। सचमुच, वर्तमान संसार में सर्वत्र विषाद एवं ‘व्यथा’ ही परिलक्षित होता है।
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 9. यह श्रद्धा का गीत है जो नारीमात्र का गीत कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में पारियों की जो भमिका है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कविता में कही गई बातें उस पर घटित होती हैं? विचार कीजिए और गृहस्थ जीवन में नारी के अवदान पर एक छोटा निबंध लिखिए।
उत्तर-
‘तुमुल कोलाहल कलह में छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित “कामायनी” काव्य का एक अंश है। इस अंश में महाकाव्य की नायिका श्रद्धा है, जो वस्तुतः स्वयं कामायनी है। इसमें श्रद्धा आत्मगान प्रस्तुत करती है। यह आत्मगीत नारीमात्र का गीत है। इस गान में श्रद्धा विनम्र स्वाभिमान भरे स्वर में अपना परिचय देती है। अपने सत्ता–सार का व्याख्यान करती है।
इस गीत में कवि ने सामान्य जीवन में नारियों की जो भूमिका है उसे देखते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कविता में कही गई बातें उन पर घटित होती हैं। कवि का यह सोच सही है। नारी वस्तुतः विश्वासपूर्ण आस्तिक बुद्धि का प्रतीक है। नारी के जीवन से विकासगामी ज्ञान एवं आत्मबोध प्राप्त होता है।
गृहस्थ जीवन में नारी के अवदान अतुलनीय है। गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका महत्वपूर्ण है। जब पुरुष का मन कोलाहलपूर्ण वातावरण में चेतनाशून्य हो जाता है और जब वह शान्ति की नींद चाहता है तब नारी मलय पर्वत से चलनेवाली सुगन्धित हवा बनकर पुरुष के चंचल मन को आनन्द प्रदान करती है। जब पुरुष जीवन के चिर–विषाद में विलीन होकर घुटन महसूस करने लगता है एवं व्यथा के अंधकार में भटकने लगता है तब नारी सूर्य की ज्योतिपुंज के समान पथ–प्रदर्शक बनकर पुष्प के समान जीवन को आनन्दित कर देती है।
जब पुरुष के मन में मरुभूमि की ज्वाला धधकती है तब नारी सरस बरसात बनकर पुरुष जीवन में रस की वर्षा करने लगती है। जब पुरुष सांसारिक जीवन में झुलसने लगती है तब नारी आशा रूपी वसंत की रात के समान सुख की आँचल बन जाती है। इतना ही नहीं, जब मानव, जीवन पुरातन निराशारूपी बादलों से घिर जाता है तब नारी चातकी सरोवर में श्रद्वारूपी एक ऐसा सजल कमल है जिसपर भौरे मँडराते हैं। इस प्रकार गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका बहुआयामी है।
(Class 12 Tumul Kolahal Kalah Me । तुमुल कोलाहल कलह में का अर्थ )
प्रश्न 10. इस कविता में स्त्री को प्रेम और सौन्दर्य का स्रोत बताया गया है। आप अपने पारिवारिक जीवन के अनुभवों के आधार पर इस कथन की परीक्षा कीजिए।
उत्तर-
प्रसादजी के काव्यों में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में कवि ने स्त्री को प्रेम और सौन्दर्य का स्रोत बताया है। कवि का कथन सही है जब पुरुष सांसारिक उलझनों से उबकर घर आता है तो स्त्री शीतल पवन का रूप धारण कर जीवन को शीतलता प्रदान करती है। व्यथा एवं विषाद में स्त्री–पुरुष की सहायता करती है।
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