Bihar board 10th Class Hindi Solution||मेरे बिना तुम प्रभु |chapter 12|रेनर मारिया रिल्के|पद्य खण्ड

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड क्लास 10 हिन्दी किताब गोधूली भाग – 2 के पद्य खण्ड के पाठ 12 ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। इस कविता के कवि रेनर मारिया रिल्के है । इस पाठ में रेनर मारिया रिल्के का मानना है कि बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय है। उनका अस्तित्व भक्त की सत्ता पर निर्भर करती है। भक्त और भगवान एक-दूसरे पर निर्भर है।|(Bihar Board Class 10 Hindi रेनर मारिया रिल्के) (Bihar Board Class 10 Hindi मेरे बिना तुम प्रभु)(Bihar Board Class 10th Hindi Solution)

  • कवि का नाम – रेनर मारिया रिल्के
  • जन्म – 4 दिसंबर 1875 ई०
  • जन्म स्थान – प्राग, ऑस्ट्रिया (अब जर्मनी) में
  • पिता का नाम – जोसेफ रिल्के
  • माता का नाम – सोफिया
  • इनकी शिक्षा-दीक्षा अनेक बाधाओं को पार करते हुए हुई।
  • इन्होंने प्राग और म्यूनिख विश्वविद्यालयों में शिक्षा पायी।
  • कला और साहित्य में आरंभ से डी इनकी गहरी अभिरुचि थी।
  • संगीत, सिनेमा आदि अनेक कलाओं में इनकी गहरी पैठ थी।
  • कविता के अतिरिक्त इन्होंने गद्य भी पर्याप्त लिखा।
  • प्रमुख रचनाएँ —
    • उपन्यास –’द नोटबुक ऑफ माल्टे लॉरिड्स ब्रिज’
    • कहानी संग्रह – ‘टेल्स ऑफ आलमाइटी’
    • कविता संकलन– ‘लाइफ एण्ड सोंग्स’, ‘लॉरेस सेक्रिफाइस’, ‘एडवेन्ट’ आदि
  • मृत्यु – 29 दिसंबर 1926 ई० में
  • इनकी काव्य शैली गीतात्मक है और भावबोध में रहस्योन्मुखता है।
  • यह कविता विश्व कविता के भाषांतरित संकलन ‘देशांतर’ से ली गयी है।
  • यह कविता प्रसिद्ध हिन्दी कवि धर्मवीर भारती द्वारा भाषांतरित किया गया है ।

मेरे बिना तुम प्रभु: रिल्के का आधुनिक विश्व कविता पर प्रभाव बताया जाता है। रिल्के मर्मी इसाई कवियों जैसी पवित्र आस्था के आस्तिक कवि थे, जिनकी कविता में रहस्यवाद के आधुनिक स्वर सुने जाते हैं। प्रस्तुत कविता इस तथ्य की एक दुर्लभ साखी पेश करती है। बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय हैं। उनकी भगवत्ता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है। व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं। प्रेम के धरातल पर अत्यंत पावनतापूर्वक यह कविता इस सत्य को अभिव्यक्त करती है।

जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे ?
जब मैं – तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा ?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊँगा या स्वादहीन हो जाऊँगा ?

अर्थ – कवि कहता है कि हे प्रभु ! जब मेरा अस्तित्व नहीं रहेगा, जब मैं नहीं रहुँगा, तब तुम क्या करोगे ? मैं तुम्हारा जलपात्र हुँ, जिससे तुम पानी पीते हो। अगर टूट कर बिखर गया तो ? मैं तुम्हारी मदिरा , जिससे नशा होता है, वह सुख जाएगी अथवा स्वादहीन हो जाएगी। तब तुम क्या करोगे?

मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?

अर्थ – वास्तव में, मैं ही तुम्हारा वेश हूँ , रूप हूँ, वृति हूँ। मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो दोगे। अगर मैं नहीं रहा तो तुम्हारी महता ही समाप्त हो जाएगी।

मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे भटकेंगे लहूलुहान ।

अर्थ –हे प्रभु, मैं नहीं रहा तो तुम गृहविहीन हो जाओगे। भटकोगे इधर – उधर । कौन करेगा तुम्हारी पूजा-अर्चना ? वास्तव में, मैं ही तुम्हारी पादुका हुँ जिसके सहारे तुम जाते हो। मेरे बिना तुम्हारे पैरों में छाले पड़ जायेंगे। लहूलुहान हो जायेंगे।

तुम्हारा शानदार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपादृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था –

अर्थ –कवि कहता है कि मुझसे ही तुम्हारी शोभा है। मेरे बिना तुम्हारा शानदार लबादा ( अन्य वस्त्रों के ऊपर पहना जाने वाला भारी और लंबा पहनावा / चोगा ) गिर जायेगा। मेरे बिना किस पर कृपा करोगे ? तुम्हारी कृपादृष्टि जो मेरे कपोलों की नर्म शय्या पर विश्राम करती है अर्थात मेरी खुशी देखकर तुम खुश होते हो , वह सुख कौन देगा ? तुम निराश होकर खोजोगे। मेरे बिना तुम्हार सुख-साधन विलुप्त हो जाऐंगे, जो मैं तुम्हें देता था।

दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख
प्रभु, प्रभु मुझे आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या करोगे ?

अर्थ –कवि कहता है कि जब मैं नहीं रहुँगा तो संध्याकालीन अस्त होते सूर्य की सुन्दर लालिमा का वर्णन आखिर कौन करेगा ? इसलिए कवि को आशंका होती है कि मैं नहीं रहा तो तुम क्या करोगे।

उत्तर – भक्त कवि अपने को भगवान का जल पात्र मानता है। कवि की जीवात्मा परमात्मा का जल पात्र है। जिसमें भगवान ने अपने सारे गुण संग्रहित कर रखे हैं। कवि ने अपने को भगवान के उस जल पात्र की मदिरा के रूप में प्रस्तुत किया है जिसमें कवि के अस्तित्व रूपी जल पात्र में भगवान ने आनंद रूपी मदिरा को बड़े ही जतन से संभाल कर रखें हैं। जल पात्र के टूटने और उससे मदिरा के बह जाने पर लोग उसके अस्तित्व पर ही शंका करने लग जाएंगे।

"मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ 
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?"

उत्तर – प्रस्तुत आशय पंक्तियां कवि रेनर मारिया रिल्के द्वारा रचित ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ शीर्षक कविता से ली गई है।

यहां पर कवि भक्त की भूमिका में भगवान से कहता है कि मैं तुम्हारा वेश हूं। तुम मुझमें ही निवास करते हो। मैं तुम्हारे वृत्ति यानी अस्तित्व हूं। मुझसे ही तुम्हारे अस्तित्व का बोध होता है यानी यदि तुमने मुझे खो दिया। तो तुम अपना अर्थ खो बैठोगे, जीवात्मा नहीं होगी तो परमात्मा की कल्पना कैसे होगी। परमात्मा का अर्थ जीवात्मा के अर्थ से ही स्पष्ट होगा। भगवान की भगवता भक्तों की सत्ता पर निर्भर है।

उत्तर –शानदार लबादा प्रभु के गिर जाएगा। प्रभु ने प्रभुता का शानदार लबादा ओढ़ रखा है। उसकी सारी चमक का महत्व भक्त के समर्पण पर निर्भर है। भक्तों को रिझाने के लिए ही प्रभु ने उस शानदार लबादे को ओढ़ रखा है। अगर भक्त प्रभु के इस शानदार लबादे की ओर आकर्षित नहीं हुआ तो फिर उस लबादे का क्या महत्व रह जाएगा। अर्थात भक्त है तो प्रभु है। भक्तों के बिना प्रभु की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

उत्तर – भक्त भगवान के सानिध्य में आनंद प्राप्त करता है तो भगवान भी भक्तों के समीप होकर असीम सुख का अनुभव करता है। भक्त कवि भगवान को सुख देता था। भगवान की कृपा दृष्टि भक्त के कपोलों की नर्म शय्यापर विश्राम करती थी। तब भक्त कवि निहाल हो उठता था।

उत्तर – कवि रेनर मारिया रिल्के को इस बात की आशंका है कि जब ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति कराने वाला आधार यानी भक्ति ही नहीं रहेगा तब ईश्वर की पहचान किस रूप में होगी। उस समय भगवान अकेला और निरुपाय हो जाएगा। सूर्य की लालिमा या सुनसान पर्वत ईश्वर के स्वरूप का दर्शन कराते हैं। यदि यह सब नहीं होंगे। तब ईश्वर का आश्रय क्या होगा? मानव किस रूप में ईश्वर को जान सकेगा। इन्हीं सब प्रश्नों को लेकर कवि आशंकित है।

उत्तर – प्रस्तुत कविता कवि रेनर मरिया रिल्के द्वारा भगवान को संबोधित है। इस कविता को कवि भगवान को संबोधित करते हुए लिखता है। इसमें कवि यह कह रहा है कि यदि उसका यानी भक्त का अस्तित्व नहीं रहेगा। तब भगवान की भी कल्पना नहीं की जा सकती है। ईश्वर का ईश्वर होना भक्त की सत्ता पर निर्भर है। भगवान की कल्पना भक्त के अस्तित्व के कारण ही सकार होती है। भक्त और भगवान अथवा व्यक्ति और विराट सत्य एक दूसरे पर अवलंबित है।मेरे बिना तुम प्रभु

उत्तर – कवि रेनर मरिया रिल्के द्वारा रचित कविता ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ में यह कहा गया है कि मानव जीवन में ईश्वरीय अंश होता है। ईश्वर को प्रत्यक्ष करने में भक्त का बड़ा योगदान होता है। इस बात को कवि ने इस कविता में बखूबी प्रस्तुत किया है। कवि ने यह कहना चाहा है कि मानव जीवन नश्वर है। लघु है, गौरवपूर्ण भी है। इसकी महिमा ईश्वर तुल्य है क्योंकि मनुष्य ही ईश्वरीय सत्ता का वाहक है।

उत्तर – कवि रेनर मारिया रिल्के द्वारा रचित कविता ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ में यह कहा गया है कि बिना भक्त के भगवान एकाकी और निरूपाय हैं। भगवान की भगवता भक्त पर ही केंद्रित है। दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। भक्त के बिना भगवान नहीं रह सकते। भक्त की भक्ति को पाकर ईश्वर आनंदित होता है और ईश्वर को प्राप्त कर के भक्त परम आनंद प्राप्त करता है। यही भक्त और भगवान में संबंध है। “मेरे बिना तुम प्रभु”

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